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Tuesday, 29 May 2018

बड़बोले सांप्रदायिक के संचालन में है ' द वायर ' का मीडियबोल ------ विजय राजबली माथुर

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पत्रकारिता  के  अपनी मूलभावना से भटकाव  को उजागर करने के लिए द वायर  ने जिस मीडियाबोल कार्यक्रम को चलाया है उसका उद्देश्य अच्छा होते हुये भी यह कार्यक्रम संचालक महोदय के मौलिक रूप से सांप्रदायिक झुकाव के कारण निष्पक्ष नहीं रह पाता है।
एपिसोड 50 में ज़्यादातर ध्यान पंडित राव साहब पर दिया गया जबकि जावेद अंसारी साहब को बीच - बीच में हस्तक्षेप करना पड़ा तब उनकी बात सामने आ पाई। इसी एपिसोड पर एक टिप्पणी में रिटायर्ड IPS ध्रुव गुप्ता जी के दिल्ली की सेलफ़ी में प्रकाशित एक लेख का लिंक दिया जिसमें ब्रिटिश काल में उर्दू के एक निर्भीक पत्रकार के बलिदान का ज़िक्र था उस पर कार्यक्रम के संचालक द्वारा यह टिप्पणी करना उनके सांप्रदायिक दृष्टिकोण को और मजबूती से दर्शाता है ------ 
उनकी यह टिप्पणी दर्शाती है कि, ध्रुव गुप्तजी का उर्दू पत्रकार की शहादत वाला लेख उनको बेहद चुभा तभी तो उनके साथ - साथ मुझे भी  'सजा ए मौत ' शब्द से लपेट दिया। यदि 1857 में मुझे मौत की सजा मिल चुकी थी फिर उनके एपिसोड पर टिप्पणी क्या मेरी मृतात्मा ने की थी ? 
लेकिन बड़ी चालाकी से से यह महाशय खुद को सत्तारूढ़ सांप्रदायिक शक्तियों से अलग दिखाने के लिए विशिष्ट अंदाज पेश करते हैं जिस पर एपिसोड 51 में ओम थानवी साहब ने कड़ाई से उनका प्रतिरोध किया जिस पर वह चुप्पी साध गए । इससे पूर्व के कई एपिसोड्स में वह बाजपेयी जी के प्रेस सलहकार रहे टंडन जी को अत्यधिक तवज्जो देते रहे हैं जो उनके सांप्रदायिक दृष्टिकोण को उजागर करता है।