स्पष्ट रूप से पढ़ने के लिए इमेज पर डबल क्लिक करें (आप उसके बाद भी एक बार और क्लिक द्वारा ज़ूम करके पढ़ सकते हैं )
शिक्षक दिवस पर विशेष -
प्रस्तुत कविता 1954 मे प्रकाशित पुस्तक 'सरल हिन्दी पाठमाला' से उद्धृत है जिसे बनारस वासी( 'सुखी बालक'के सहायक संपादक) रमापति शुक्ल जी ने हास्य-रचना के रूप मे प्रस्तुत किया था । आपकी यह कविता रूढ़ीवादी शिक्षा-प्रणाली पर तीव्र व्यंग्य है । बालोपयोगी कविताओं की रचना मे शुक्ल जी सिद्ध हस्त रहे हैं ।
शिक्षक दिवस पर उनकी इस रचना को विशेष रूप से आपके समक्ष रख रहे हैं ।
क्या आज भी ऐसे शिक्षकों की आवश्यकता है?क्या ऐसा उचित था?या है?
संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त माथुर
शिक्षक दिवस पर विशेष -
प्रस्तुत कविता 1954 मे प्रकाशित पुस्तक 'सरल हिन्दी पाठमाला' से उद्धृत है जिसे बनारस वासी( 'सुखी बालक'के सहायक संपादक) रमापति शुक्ल जी ने हास्य-रचना के रूप मे प्रस्तुत किया था । आपकी यह कविता रूढ़ीवादी शिक्षा-प्रणाली पर तीव्र व्यंग्य है । बालोपयोगी कविताओं की रचना मे शुक्ल जी सिद्ध हस्त रहे हैं ।
शिक्षक दिवस पर उनकी इस रचना को विशेष रूप से आपके समक्ष रख रहे हैं ।
क्या आज भी ऐसे शिक्षकों की आवश्यकता है?क्या ऐसा उचित था?या है?
संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त माथुर
Spare the rod and spoil the child
ReplyDeleteकुछ हद तक सही हो सकता है
लेकिन प्यार से जो सिखाया जाता है वो ताउम्र कायम रहता है ....
ऐसे गुरु की छवि ही याद रह जाती है
जो हमे प्यार से सिखाये
सादर
mazedar
ReplyDeleteभई वाह ..
ReplyDeleteवह डंडा याद आ गया :)