Sunday, 23 June 2013

लॉन्ग ड्राइव कम रोमान्स राइड---अनीता राठी



Anita Rathi
आदरनीय मित्रो

उत्तराखंड - बदरीनाथ , केदारनाथ में प्रकृति ने जो तांडव मचाया, इस हादसे को देशवासी नहीं भूल सकते। कई हजार लोगो ने अपने अपनों को हँसते हँसते तीर्थ यात्रा भेज था और उम्मीद की थी की सब हंसी ख़ुशी लौट आयेंगे , हमेशा की तरह, मगर ... इस बार त्रिकाल को कुछ और ही लीला सूझी और उसने अपने भक्तो को अपना रौद्र रूप दिखा ही दिया। कई हज़ार लोग लापता और कई हज़ार लोग बे-वक़्त मौत के हवाले। इन मरने वालो में ..... नौ-जवान सबसे जियादा है, फिर प्रौढ़ और यहाँ तक की छोटे छोटे मासूम बच्चे और दुध्मुहे बच्चे तक शामिल है। हम इसके लिए समय को दोष दे, या प्रकृति को या कहे कुछ भक्त भगवान् को इतने भा गए की उन्होंने उनको हमेशा हमेशा के लिए अपने पास बुला लिया, मगर ......हकीकत .................

हकीकत ये है की, मेट्रो की चाल चलता जीवन, रुपैये के ढेर पर सोता इंसान, नींद को तरसती कॉल सेंटर्स में कमर तोड़ म्हणत करते युवा , जिंदगी शहरी जीवनशैली , भौतिकतावादी संस्कृति और सबसे बड़ी बात मानव का अति-अपेक्षावादी होना। और इन सब का परिणाम तनाव, ब्लड-प्रेशर, घबराहट, बेचैनी ,रिश्तो में तनाव और तनाव को कम करने या भूलाने का एक
मात्र उपाय आमोद-प्रमोद , हिल स्टेशन की सैर। अब ऐसे में धर्म को एक अछि खासी commodity बनाने वाला वो तबका जो स्वयम को धर्म का मसीहा दिखा कर बसे और ट्रेने तीर्थ यात्रा कम्पनी के नाम पर लोगो को लुभावने आकर्षण दे दे कर उकसाते है। और नीम हकीम खतरा ये जान , धर्म और धार्मिकता के मर्म को पूरी तरह समझे बगैर बोरिया बिस्तर ले चल देते है हिल स्टेशन के सैर सपाटे cum तीर्थ यात्रा के ठेकेदारों के पास। खुश होते है प्रति नग खर्च कम में दस से पन्द्राह दिन के हनीमून पर। या फिर खुद की कार से लॉन्ग ड्राइव कम रोमान्स राइड पर। रास्ते में पीना पिलाना आम बात ..... ये यात्रा धार्मिक नहीं रह जाती .... ये ... ना मालूम क्या ही हो जाती है .......

मुझे जहां तक मालूम है हिन्दू धर्म ग्रंथो में मनुष्य जीवन को १ ० ० वर्ष का मान उसे उम्र के अनुसार आश्रमों में बांटा गया है ताकि इंसान व्यवस्थित और दीर्घायु के साथ साथ सुखी संपन्न जीवन यापन कर सके ... ये आश्रमों में एक है ... संन्यास आश्रम जो की आयु का वो होता है इंसान अपने सभी उत्तरदायित्वो से हो जाता है और स्वयम को इश-अराधना, ध्यान और साधना में लगा आध्यात्मिक सुख प्राप्त करता है।और इसी क्रम में वह तीर्थ यात्राएं करता है , क्रोध , लोभ , मोह के जंजाल से जीवात्मा को मुक्त कर , परमात्मा के सानिध्य को पाने के उपक्रम में वो दिन रात सारे मोह ताज कर तीर्थो पर जाता है। परन्तु आज हम देख रहे है २ साल का बच्चा भी तीर्थ यात्रा गया था .... तो ... १ ६ साल की बालिका भी तीर्थ कर रही है,....... हाँ मजेदार बात ये है की बुजुर्गो की संख्या उतनी नहीं जितनी प्रोढ़ लोगो की है ....

इस सब में धार्मिकता कम, अधार्मिकता अधिक दिखती है, अंधविश्वास और अज्ञान अधिक दिखता है , अन्धानुकरण साफ़ द्रष्टिगोचर होता है , हम समझ सकते है, किस मकसद से किस उम्र का इंसान ऐसी आस्था और विश्वास वाले स्थानों पर जाते है और वहाँ के प्राकृतिक सौहाद्र और वातावरण को नुक्सान भी पहुंचाते है।
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धर्म शास्त्रों में शिव का स्थान सबसे ऊपर है वो त्रिनेत्रधरी है, वो त्रिलोकी है वो अन्तर्यामी है , वो भोले है, लेकिन हम ये क्यों नहीं स्वीकारते वो एकांतवासी है , वो साधक है, उनकी साधना में तो स्वयं पार्वती (प्रकृति) भी बाधा उत्पन्न नहीं कर सकती थी और करती थी तो अच्छा ख़ासा दंड भुगतना पड़ता था , तांडव से धरती डोल उठती है , तीनो लोक काँप उठते है। और इंसान अपनी हदें भूल उनके एकांत को कोलाहल में परिवर्तित करता चला जा रहा है, ...... कोई सीमा ही नहीं रही , कोई बंधन ही नहीं रहे , कोई अंकुश ही नहीं ..... धन के दम पर क्या क्या खरीद लेना चाहता है ... चाह परिणाम सामने है

उन्होंने बदरीनाथ के प्राचीन स्वरुप को एक बार वापस हमारे सम्मुख ला रखा है , केदारनाथ के मंदिर में बाबा भू-समाधि में है और बाकी बचा है तो एक नंदी, ........ और सब और वीरान .... सन्नाटा ..........

क्यों नहीं हम सीख लेते इस हादसे से .... हमें प्रण लेना होगा ......

१. तीर्थ यात्रा अपने सभी उत्तरदायित्वो से मुक्त हो कर ही जाना है।
२. ६५ / ७ ० 65 /70 वर्ष से कम उम्र के व्यक्ति अपना स्वास्थ्य जांच करवा कर ही तीर्थ जाए
३ . धार्मिकता अपनाये ... मन, कर्म , और वचन से अन्धविश्वासो में नहीं।
४. सरकार इन स्थानों पर व्यावसायिकता को बैन करे।
५ दर्शन करने के बाद, वहां रुकने के लिए सिर्फ कुछ घंटो की इजाजत दे
६. नियंत्रित यत यात व्यवस्था को अपनाये।
७ बीमा कम्पनियों को दायित्व दे।


मेरी इस पोस्ट से किसी की धार्मिक भावना को ठेस पहुंची हो तो मुझे अनजान समझ कर माफ़ करें।







 संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त माथुर

5 comments:

  1. मै पुरी तरह से सहमत हूं इस पोस्ट से । खुद के पाप को छुपाने और मौज मस्ती के लिये यात्रा करने वाले हीं ज्यादातर रहते है ।

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  2. बहुत सुन्दर जानकारी ,हिमालय में प्राकृतिक विपदा तो पहले भी आती रही है, लेकिन अनियोजित निर्माण और जंगलो का विनाश इस पर और भी बुरा असर डाल रहा है.प्रकृति माँ है उसका सरक्षण अनिवार्य है ,नहीं तो वो अपना त्री नेत्र खोल ऐसा ही तांडव खेलती रहेगी .

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  3. मै पुरी तरह से सहमत हूं इस पोस्ट से ..........

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  4. फेसबुक में प्राप्त टिप्पणी---
    Saifuddin Saify Saify: wha very nice

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  5. मै पुरी तरह से सहमत हूं आपके द्वारा प्रस्तुत विचारों से। हम भी ऐसी ही सोच रखते हैं एवं यह वास्तविकता है है कि इन यात्राओं के पीछे धार्मिक भावना बहुत कम है और मौज़ मस्ती अधिक। प्रकृति से खिलवाड़ करने पर प्रकृति भी इंसान से खिलवाड़ ही करेगी।

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