Friday 14 June 2013

फेसबुक गाथा -1

20 मार्च 2013
वकील साहब की जुबानी अस्पताल की कहानी-
नाई साहब एक ओर तो हेयर कटिंग करते जा रहे थे तो साथ ही साथ एक साहब से बातें करते जा रहे थे। वह साहब चटकारे ले ले कर बातें बताते जा रहे थे। वह बता रहे थे कि,'मेदानता हास्पिटल'मे ज़बरदस्त सफाई रखी जाती हैवहाँ आते-जाते रहने के कारण उनका पान-गुटखा खाना तो बिलकुल ही छूट गया है। इससे तो उतनी दिक्कत नहीं होती है। तलब नहीं रोकी जा सकती उसे पूरा करने के लिए लखनऊ मे 40/- रु मे मिलने वाला क्वार्टर वहाँ मँगवाने पर रु 600/- मे पड़ता है क्योंकि 35-40 किलोमीटर दूर से मङवाना होता है। लाने वाला ढूँढने के बाद उसके आने-जाने का टैक्सी का खर्चा रु 500/- पड़ जाता है और उसे भी जेब खर्च देना पड़ता है। इसके बाद पीना भी किसी तपस्या से कम नहीं पड़ता है। उन्होने साझे का कमरा लिया हुआ है जिसमे दो पेशेंट हैं और उनके एक-एक तीमारदार हैं। एक रोज़ का किराया रु 4000/- प्रत्येक को पड़ता है। अतः उसी कमरे मे दूसरे पेशेंट व तीमारदार के सामने पीना जबकि अस्पताल मे पीना प्रतिबंधित हो संभव न था। इसलिए उनको टाइलेट की शरण लेनी पड़ी। उनका कहना था कि पूरे अस्पताल मे कहीं भी किसी भी कमरे मे कुंडा,चटकनी या ताला लगाने का प्रबंध नहीं है। जब कोई अंदर जाता है तो DND की प्लेट लटका जाता है और आने पर हटा देता है। वह पीने की जल्दबाज़ी मे बिना DND प्लेट लटकाए एक बार क्वार्टर और बिसलेरी की बोतल लेकर घुस गए। पीना शुरू ही किए थे कि दूसरे पेशेंट की तीमारदारन दरवाजा खोल कर घुस गई और उनको पीते देख कर हक्का-बक्का रह गई। उल्टे पैरों वह तो लौट गई लेकिन यह साहब घबरा गए और जल्दी से सब गटक कर खाली क्वार्टर की बोतल जेब मे डाल कर पानी की बोतल वापिस लेकर आ गए। साथ के पेशेंट की उन  तीमारदार महिला से उन्होने  गुस्से मे कहा कि उनकी मिसेज से पूछ तो लेतीं कि वह नीचे गए हैं या बाथरूम मे। उन महिला को डरा कर शिकायत कर्ने से तो रोक दिया परंतु खाली बोतल फिंकवाने के लिए फिर रु 100/- खर्च कर्ने पड़े। इतनी दास्तान सुनाने के बाद वह तो दूसरे खोके पर दाढ़ी बनवाने चले गए। चलते -चलते नाई ने पूछा कि अब फायदा है तो जवाब मे उन्होने नकारात्मक हाथ हिला दिया और बोले हम दिमाग पर टेंशन नहीं लेते हैं।सरकार खर्चा देती है तो इलाज चल रहा है वरना पैसा कहाँ था?
हमने उन नाई साहब से पूछा कि यह साहब किस विभाग मे नौकरी करते हैं। नाई ने बताया कि यह सामने वाली लाईन मे रहने वाले वकील साहब हैं ,बड़े ही व्यवहारिक हैं। इनकी पत्नी IAS हैं जिनको डेढ़ लाख मासिक वेतन मिलता है और एक वर्ष से कैंसर से पीड़ित हैं तबसे लगातार इलाज चल रहा है,दिल्ली मे और कभी-कभी मेदानता मे भी भर्ती करना पड़ता है। साल भर से ही उनकी वकालत ठप पड़ी है। फिर भी मस्त हैं।

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