Friday 20 December 2013

देवयानी विवाद पर जैसे को तैसा व्यवहार होना चाहिए---विजय राजबली माथुर

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जिस प्रकार के समाचार प्रकाशित हो रहे हैं उनसे ऐसा लगता है कि केंद्र सरकार यह दिखाना चाहती है कि वह अमेरिका के विरुद्ध सख्त कदम उठा रही है। किन्तु यह सिर्फ जनता को धोखा देने वाली बात है क्योंकि एक तबका खुद देवयानी खोबरगड़े को दोषी ठहरा रहा है तभी अमेरिकी विदेश विभाग की प्रवक्ता ने बड़ी बुलंदगी से कह दिया है कि अमेरिका न तो केस वापिस लेगा और न ही माफी माँगेगा। 

एक समय भारतीय प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी की तुलना अमेरिकी राष्ट्रपति जानसन ने 'लेडीबर्ड' सम्बोधन से अपनी पत्नी के साथ की थी। लेकिन बाद में इन्दिरा जी ने अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निकसन द्वारा भेजे 7वां बेड़ा के बंगाल की खाड़ी में पहुँचने से पहले ही 'बांगला देश' को आज़ाद करवा लिया था। सोवियत रूस से 20 वर्षीय 'शांति एवं मैत्री संधि' की थी। अब न वह सोवियत रूस है और न ही वैसा भारतीय नेतृत्व। 

होना तो यह चाहिए था कि कोलकाता व मुंबई स्थित अमेरिकी बाणिज्य दूतों को गिरफ्तार करके पालम हवाई अड्डे से वापिस अमेरिका भेज दिया जाता और देवयानी खोबरगड़े को वापिस भारत बुलवा लिया जाता। देवयानी को वापिस न भेजने पर अमेरिका से राजनयिक संबंध तोड़ लेने की बात भारत सरकार को कहनी चाहिए थी। वर्ल्ड बैंक के पूर्व कारिंदा पी एम साहब क्या इतनी हिम्मत दिखा सकेंगे?अन्यथा क्या यह भी आगामी लोकसभा चुनावों में इन्दिरा कांग्रेस को कमजोर करने की उनकी कोई दूरगामी चाल है?
 संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त माथुर

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