Showing posts with label केजरीवाल. Show all posts
Showing posts with label केजरीवाल. Show all posts

Thursday, 28 May 2015

वित्तमंत्री मनमोहन सिंह के उदारीवाद की उपज है मोदी सरकार --- विजय राजबली माथुर

स्पष्ट रूप से पढ़ने के लिए इमेज पर डबल क्लिक करें (आप उसके बाद भी एक बार और क्लिक द्वारा ज़ूम करके पढ़ सकते हैं )



2011 से ही ब्लाग-पोस्ट्स के माध्यम से सूचित करता रहा हूँ कि मनमोहन सिंह जी ने अपने कार्यकाल में सोनिया जी व राहुल जी पर हज़ारे/केजरीवाल/रामदेव/RSS के सहयोग से भ्रष्टाचार संरक्षण आंदोलन चलवाया था जिसने मोदी साहब को सत्तासीन किया है। यह भेंट अगली कड़ियों पर अमल करने हेतु थी।
Jeevan Yadav यह निष्कर्ष बहुत सी बातों की प्रतीक्षा करेगा




 2011 से ही अपने ब्लाग http://krantiswar.blogspot.in/ के माध्यम से स्पष्ट करता रहा हूँ कि हज़ारे/केजरीवाल/रामदेव के कारपोरेट भ्रष्टाचार संरक्षण आंदोलन को कांग्रेस के मनमोहन सिंह गुट/RSS का समान समर्थन रहा है। जब मनमोहन जी को तीसरी बार पी एम बनाने का आश्वासन नहीं मिला तो मोदी को पी एम बनवा दिया गया है और मोदी के विकल्प के रूप में केजरीवाल को तैयार किया जा रहा है। RSS के कांग्रेस मुक्त भारत की परिकल्पना को अमेरिका प्रवास के दौरान जस्टिस काटजू साहब बखूबी संवार रहे हैं महात्मा गांधी,नेताजी सुभाष और जिन्नाह साहब के विरुद्ध विष-वमन करके। मनमोहन जी के विकल्प के रूप में मोदी व मोदी के विकल्प के रूप में केजरीवाल की ताजपोशी की रूप रेखा व्हाईट हाउस में बराक ओबामा के निर्देश पर तैयार की गई थी और निर्वाचन प्राणाली की खामियों तथा ई वी एम के करिश्मे के जरिये उस पर जनता की मोहर लगवा ली गई है। परंतु साम्यवादियों/वामपंथियों का केजरीवाल की परिक्रमा करना आत्मघाती तो है ही बल्कि देश के लिए भी अहितकर है।
http://krantiswar.blogspot.in/2015/03/blog-post_13.html 
***
https://www.facebook.com/aquil.ahmed.7927/posts/458395827647852 


 http://krantiswar.blogspot.in/2015/02/aquil-ahmed.html
****


अभी अभी मनमोहन सरकार के वरिष्ठ मंत्री वीरप्पा मोइली ने खुलासा किया है कि मनमोहन सिंह ने हड़बड़ी मे 'उदारवाद' अर्थात आर्थिक सुधार लागू किए थे जिनसे 'भ्रष्टाचार' मे अपार वृद्धि हुई है। 

तो यह वजह है कि मनमोहन सिंह जी ने आर एस एस को ताकत पहुंचाने हेतु अन्ना हज़ारे के आंदोलन को बल प्रदान किया था। सिर्फ और सिर्फ तानाशाही ही भ्रष्टाचार को अनंत काल तक संरक्षण प्रदान कर सकती है और इसी लिए इन आंदोलनकारियों ने लोकतान्त्रिक मूल्यों को नष्ट करने का बीड़ा उठा रखा है। राजनीति और राजनीतिज्ञों के प्रति नफरत भर कर ये लोग जनता को लोकतन्त्र से दूर करना चाहते हैं।
http://krantiswar.blogspot.in/2012/03/blog-post.html

**********************
1962 मे चीनी आक्रमण मे भारत की फौजी पराजय के सदमे से नेहरू जी गंभीर रूप से बीमार पड़ गए तब 1963 मे राधाकृष्णन जी की महत्वाकांक्षा जाग्रत हो गई। के कामराज नाडार ,कांग्रेस अध्यक्ष जो उनके प्रांतीय भाषी थे से मिल कर उन्होने नेहरू जी को हटा कर खुद प्रधान मंत्री बनने और कामराज जी को राष्ट्रपति बनवाने की एक गुप्त स्कीम बनाई। परंतु उनका दुर्भाग्य था कि( वह नहीं जानते थे कि उनके एक बाड़ी गार्ड साहब जो तमिल भाषी न होते हुये भी अच्छी तरह तमिल समझते थे ) नेहरू जी तक उनकी पूरी स्कीम पहुँच गई जिसका खुलासा उस सैन्य अधिकारी ने अवकाश ग्रहण करने के पश्चात अपनी जीवनी मे किया है।..........................आज 48 वर्ष बाद कांग्रेस मे उस कहानी को दूसरे ढंग से दोहराया गया है अब कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया जी गंभीर बीमारी का इलाज करने जब अमेरिका चली गईं तो उनकी गैर हाजिरी मे उनके द्वारा नियुक्त 4 सदस्यीय कमेटी (राहुल गांधी जिसका महत्वपूर्ण अंग हैं)को नीचा दिखाने और सोनिया जी को चुनौती देने हेतु गैर राजनीतिक और अर्थशास्त्री प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह जी ने अपने पुराने संपर्कों(I M F एवं WORLD BANK) को भुनाते हुये फोर्ड फाउंडेशन से NGOs को भारी चन्दा दिला कर और बागी इन्कम टैक्स अधिकारी अरविंद केजरीवाल तथा किरण बेदी (असंतुष्ट रही पुलिस अधिकारी) के माध्यम से पूर्व सैनिक 'अन्ना हज़ारे' को मोहरा बना कर 'भ्रष्टाचार' विरोधी सघन आंदोलन खड़ा  करवा दिया।
http://krantiswar.blogspot.in/2011/09/blog-post.html

 संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश

Friday, 28 February 2014

शुतुरमुर्ग चाल के वामपंथियों के लिए

स्पष्ट रूप से पढ़ने के लिए इमेज पर डबल क्लिक करें (आप उसके बाद भी एक बार और क्लिक द्वारा ज़ूम करके पढ़ सकते हैं )

http://www.livehindustan.com/



Satya Narayan 

अब सुन ए केजरीवाल
कांग्रेस और भाजपा के राज की तरह
अब भी है मज़दूरों का हाल बेहाल

ठेकेदारी-प्रथा को ख़त्म न करके तुम करते हो ठेकेदारों को मालामाल
और मज़दूरों को करते हो कंगाल
लगता है आप पार्टी है ठेकेदारों की दलाल
लोकसभा के चुनाव में मत भेजना टोपी-धारियों को मज़दूर बस्तियों में
क्योंकि जाग गया है मज़दूर और अब
खिंच सकती है आपके "कार्यकर्ताओं" की खाल.…. .






2011 में, मीरा  हिलेरी क्लिंटन के  'अंतरराष्ट्रीय महिला व्यापार नेतृत्व परिषद' में शामिल 


 मीरा सान्याल दक्षिण मुंबई से चुनाव लड़ेंगी:

 मेधा ने स्पष्ट किया है कि आम आदमी पार्टी के टिकट पर वह चुनाव में उतरेंगी। हालांकि अभी उन्होंने अपनी सीट के बारे में पत्ते नहीं खोले हैं। दूसरी ओर, रॉयल बैंक ऑफ स्कॉटलैंड (इंडिया) की पूर्व अध्यक्ष मीरा सान्याल 'आप' के टिकट से केंद्रीय राज्यमंत्री मिलिंद देवड़ा को चुनौती देंगी। मीरा वही भारतीय महिला हैं जिसको हिलेरी क्लिंटन के राज्य सचिव के तरफ से 'अंतरराष्ट्रीय महिला व्यापार नेतृत्व परिषद' में शामिल होने का मौका मिला था।
साल के शुरुआत में मीरा आम आदमी पार्टी में शामिल हुईं थी और उन्होंने दक्षिण मुंबई से लोकसभा का टिकट मांगा था। पार्टी उनकी इच्छा को पूरा करते हुए देवड़ा के खिलाफ चुनाव लड़ने की अनुमति दे दी है।

मीरा सान्याल दक्षिण मुंबई संसदीय क्षेत्र से 2009 के लोकसभा चुनावों में निर्दलीय उम्मीदवार थी। उस दौरान मीरा चुनाव हार गईं थीं। इस बार मीरा ने चुनावी मैदान में सफल होने के लिए 'आप' का सहारा लिया है। फिलहाल मीरा 'लिबरल्स इंडिया फॉर गुड गवर्नेंस' संस्था की अध्यक्ष भी हैं। गौरतलब है कि मीरा ने समाज सेवा के लिए रॉयल बैंक ऑफ स्कॉटलैंड का अध्यक्ष पद छोड़कर राजनीति में कदम रखा था।


52 वर्षीय मीरा भारत के मशहूर और प्रभावशाली बैंकर्स में से एक हैं। उनका जन्म कोच्चि में हुआ था। मीरा सान्याल स्वर्गीय एडमिरल गुलाब मोहनलाल हीरानंदानी की पुत्री हैं, जिन्हें वीरता पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। एडमिरल गुलाब मोहनलाल का नाम भारतीय नौसेना के इतिहास में सुनहरे अक्षरों में लिखा जाता है। मीरा एएमपी रिटेल सर्विसेज के एमडी आशीष जे सान्याल की पत्नी हैं। मीरा ने अपनी शुरुआती पढ़ाई मुंबई से की थी और फ्रांस के आईएनएसईएडी से एमबीए की डिग्री हासिल की।

अपने 30 साल के बैंकिंग करियर के दौरान मीरा ने आखिरी के 6 साल आरबीएस बैंक के लिए काम किया। इसके पहले, 15 साल एबीएन एएमआरओ बैंक में 15 साल काम किया। मीरा ने कंपनी को ग्लोबल बैंकिंग और टैक्नोलॉजी सेवाएं देने के लिए तैयार किया था। आज यह कंपनी भारत में लगभग 12 हजार लोगों को रोजगार प्रदान कर रही है। 2005 में मीरा को 17 देशों के लिए बैंक का प्रमुख बनया गया था।

 मीरा एक अंतरराष्ट्रीय एनजीओ 'राइट टू प्ले' की सदस्य भी हैं। यह संस्था बच्चों के विकास के लिए 20 देशों में काम करती है।

2011 में, मीरा को हिलेरी क्लिंटन के राज्य सचिव के तरफ से 'अंतरराष्ट्रीय महिला व्यापार नेतृत्व परिषद' में शामिल होने का न्योता मिला था। मीरा ने इस परिषद का हिस्सा बनकर महिलाओं के विकास में अहम योगदान दिया था। फाइनेंस के क्षेत्र में बेहतर प्रदर्शन के लिए उन्हें 'भारतीय वाणिज्य मंडलों के संघ का सदस्य बनाया गया था'। इसके साथ ही मीरा सीआईआई के बैंकिंग और वित्त, सार्वजनिक नीति और महिलाओं की सुरक्षा के लिए राष्ट्रीय परिषद की सदस्य भी हैं।

*******************************************************************************************************

शुतुरमुर्ग चाल और प्रवृति के वामपंथी लगातार केजरीवाल/आ आ पा भक्ति के गीत गाये जा रहे हैं। इधर ममता बनर्जी की हज़ारे से समर्थन प्राप्त करने की कूटनीतिक चाल ने तो ऐसे लोगों को किंकर्तव्य विमूढ़ कर दिया है और वे अनर्गल प्रलाप में निमग्न हो गए हैं। 'दीवार पर लिखे को न पढ़ने' और न समझने के कारण वे एक तानाशाह के बदले दूसरे तानाशाह को आमंत्रण देते से प्रतीत  होते हैं जब  उनके द्वारा केजरीवाल व उनकी पार्टी को ईमानदार तथा जन-हितैषी बताया जाता है जबकि 17 फरवरी 2014 को खुल कर खुद को वह पूंजीवाद समर्थक घोषित कर चुके हैं। 

केजरीवाल की पार्टी द्वारा जिन धनिकों या विदेशी सत्ता के शुभेच्छुओं को अपना उम्मीदवार बनाया जा रहा है उनका भारत देश व इसकी जनता के हित से कोई सरोकार नहीं है। दिल्ली सरकार में केजरीवाल ने एक कारखानादार को श्रम मंत्री बनाया था जिसने मजदूरों का घनघोर दमन व उत्पीड़न किया था फिर भी किस मुंह से खुद को वामपंथी कहने वाले लोग उनका समर्थन करते हैं इसे तो वे ही जानें किन्तु इतना स्पष्ट है कि इस दृष्टि के पीछे साधारण जनता और मजदूर वर्ग का हित नहीं है। 

बहुत ही साधारण सी बात है कि जब उदारीवाद के मसीहा मनमोहन जी आउट आफ़ डेट हो गए और उनका विकल्प मोदी साहब जन-संहार के दोष से उबर नहीं पाये तो देशी-विदेशी कारपोरेट को केजरीवाल साहब के रूप में नव-उदारीवाद का मसीहा नज़र आया और उनको राजनीति के स्टेज पर प्रस्तुत कर दिया गया। किन्तु उनके समर्थक वामपंथी क्यों उनकी छवी चमका रहे हैं जिनके हाथ मजदूरों के खून से सने हुये हैं?



Tuesday, 18 February 2014

इस तरह के कल्पना विलासी नेता से तो जनता के हितों की रक्षा करना संभव नहीं लगता ---जगदीश्वर चतुर्वेदी

मुक्त व्यापार,मुक्त बाज़ार का मुक्त नायक केजरीवाल

February 18, 2014 at 10:00am
अरविंद केजरीवाल पर मीडिया के लट्टू होने की वजह धीरे धारे साफ़ होती जा रही हैं। साथ ही नव्य उदार आर्थिक नीतियों के हिमायती युवाओं के उसके प्रति आकर्षण के वैचारिक कारण भी सामने आने लगे हैं । हमें यह भ्रम भी नहीं पालना चाहिए कि केजरीवाल सिस्टम में परिवर्तन करने के लिए राजनीति में आए हैं । वे भी यह नहीं मानते ।
अरविंद केजरीवाल ने साफ़ कहा है कि वह 'क्रोनी कैपीटलिज्म" ( लंपट पूँजीवाद) के ख़िलाफ़ है। लेकिन पूँजीवाद के पक्ष में है। सीआईआई के जलसे में बोलते हुए केजरीवाल ने कहा

"We are not against capitalism, we are against crony capitalism", ( बिज़नेस स्टैंडर्ड, 17फरवरी 2014)
यह भी कहा 'हम ग़लती कर सकते हैं लेकिन हमारी मंशाएँ भ्रष्ट नहीं हैं।'
केजरीवाल की मंशाएँ साफ़ हैं और लक्ष्य भी साफ़ हैं। पहलीबार केजरीवाल ने आर्थिक नीतियों के सवाल पर अपना नज़रिया व्यक्त करते हुए जो कुछ कहा है वह संकेत है कि आख़िरकार वे देश को किस दिशा में ले जाना चाहते हैं ?

केजरीवाल पर बातें करते समय उनके आम आदमी पार्टी के गठन के पहले के बयानों और कामों के साथ मौजूदा दौर में दिए जा रहे बयानों का गहरा संबंध है फिर भी हमें राजनेता केजरीवाल और सामाजिकनेता केजरीवाल में अंतर करना होगा ।
आम आदमी पार्टी के गठन के बाद केजरीवाल यह पहला महत्वपूर्ण नीतिगत बयान है। यह बयान इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि उनके दल के साथ सोशलिस्टों, अतिवामपंथी, उदार देशभक्त और जानेमाने वामपंथी विचारधारा के लोग भी शामिल हैं। ये सब वे लोग हैं जो कल तक विभिन्न मंचों से अपने जो विचार रख रहे थे उनसे केजरीवाल के आर्थिक विचारों का मेल बिठाने में असुविधाएं हो सकती हैं ।
केजरीवाल ने साफ़ शब्दों में अपने नज़रिए की बुनियादी धारणा पेश की है , उन्होंने कहा है
"Time has come to define what is the government's role," Kejriwal said, adding the government has no business to be in business, which is best left to private players.

He said whatever the form of government, it has three primary tasks - providing security, justice and a corruption-free administration."

यानी केजरीवाल चाहते हैं सरकार या राज्यसत्ता की बाज़ार के नियमन में कोई भूमिका न हो । वे चाहते हैं सरकार का काम है सिर्फ़ प्रशासन चलाना ।व्यापार के काम को निजी क्षेत्र के रहमोकरम पर छोड़ दिया जाय।

नव्य उदार आर्थिक नीति की भी यही माँग रही है। इसी माँग की पूर्ति के लिए कांग्रेस काम करती रही है और बाज़ार की शक्तियाँ ही तय करती रही हैं कि व्यापार में क्या हो?

यह अचानक नहीं है कि केजरीवाल 48दिन दिल्ली में सरकार में रहे लेकिन उन्होंने महँगाई नियंत्रण के लिए कोई क़दम नहीं उठाया । यहाँ तक कि व्यापारियों की लूट -खसोट के ख़िलाफ़ कोई बयान तक नहीं दिया।

केजरीवाल ने अपने बयान में मूलत: मुक्त बाज़ार की धारणाओं की हिमायत की है और जो फ़ार्मूला सुझाया है वह विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष विगत कई दशकों से सुझाता रहा है । यह नीति लगातार सभी देशों में पिटती रही है यहाँ तक कि अमेरिका में भी पिटी है।

मुक्त बाज़ार का मतलब भारत जैसे देश के लिए आत्मघाती है। इसका यह भी अर्थ है कि मनमोहन सिंह की सरकार द्वारा जो जनविरोधी आर्थिक नीतियाँ लागू होती रही हैं उनको लेकर बुनियादी तौर पर केजरीवाल का कोई बुनियादी सैद्धांतिक मतभेद नहीं है। केजरीवाल की मनमोहन सिंह के बारे में जो धारणा है वह जानें,कहा है,
"The world's best economic expert is our Prime Minister Manmohan Singh. During the last 10 years of UPA tenure, you saw best economic policies but the biggest drawback was lack of honest politics. As there was no honest politics, those economic policies could not be implemented,"

यानी मनमोहन सिंह की नीतियाँ सही हैं लेकिन संकट है तो ईमानदार राजनीति का । ईमानदार राजनीति हो और मनमोहन सिंह की नीतियाँ रहें तो बस सोने में सुहागा समझो !

ईमानदार राजनीति का जनहितकारी नीतियों से गहरा संबंध है। मनमोहन सिंह की जनविरोधी नीतियों का भ्रष्ट राजनीति से गहरा संबंध है । मनमोहन सिंह की नीतियाँ " लंपट पूँजीवाद" की जनक हैं। समस्या ईमानदार नेता और बेईमान नेता में से चुनने की नहीं है ।

समस्या यह है मनमोहन सिंह की नीतियाँ रहें या जाएँ ? क्या केजरीवाल के पास मनमोहन सिंह की सुझायी और लागू की गयी नीतियों का कोई विकल्प है ? केजरीवाल के बयान से लगता है उनके पास मनमोहन सिंह की नीतियों का कोई विकल्प नहीं है। नीति मनमोहन सिंह की और राजनीति केजरीवाल की !

केजरीवाल का यह कहना कि सरकार का काम है प्रशासन चलाना और व्यापार के काम से सरकार को बाहर रहना चाहिए । इसका क्या अर्थ लें ?

केजरीवाल के अनुसार व्यापार के नियम व्यापारी बनाएँ , सरकार उस काम में हस्तक्षेप न करे। यानी वे व्यापारियों को मनमानी करने का अबाधित हक़ देना चाहते हैं। बाज़ार को सरकारी चंगुल से पूरी तरह मुक्त करते हुए वे क्या करना चाहते हैं इस पर साफ़तौर पर कुछ नहीं कहा ।

मसलन केजरीवाल से पूछा जाना चाहिए कि रेडियो तरंगों का मालिक कौन रहेगा ? सरकार रहेगी या निजी क्षेत्र ? क्या रेडियो तरंगों के बाजिव दाम मिल जाएँगे तो रेडियो तरंगों को निजी क्षेत्र को बेच दिया जाय ?
यह सच है केन्द्र सरकार ने रेडियो तरंगें निजी क्षेत्र को बेचकर राष्ट्र को भारी क्षति पहुँचायी है । रेडियो तरंगों को किसी भी क़ीमत पर निजी क्षेत्र को बेचना राष्ट्रहित में नहीं है। ये तरंगें राष्ट्र के लिए आवंटित हैं और राष्ट्र की संपदा हैं। इसी तरह मुनाफ़ा देने वाले सार्वजनिक क्षेत्र के कारख़ानों के निजीकरण के प्रयासों को देखा जाना चाहिए ।
आम आदमी पार्टी का सार्वजनिक क्षेत्र के कारख़ानों और संस्थानों को लेकर क्या नज़रिया है ? इस पर केजरीवाल चुप रहे ? लेकिन उनकी मुक्तबाजार की धारणा साफ़ बता रही है कि वे सार्वजनिक क्षेत्र के पक्ष में नहीं हैं ।

यानी केजरीवाल को मौक़ा मिलेगा तो वे सार्वजनिक क्षेत्र को तेज़ी से निजी हाथों में सौंपेंगे ।

असल में अरविंद केजरीवाल का 'लंपट पूँजीवाद' का विरोध भी नक़ली है । वे चालाकी से इस बात को छिपा रहे हैं कि 'लंपट पूँजीवाद' तो पूँजीवाद के स्वाभाविक विकास की प्रक्रिया के गर्भ से पैदा हुआ है ।
अमेरिका को 'लंपट पूँजीवाद' का जनक माना जाता है और वहाँ पर बड़े पैमाने पर इसके दुष्परिणाम जनता को भोगने पड़े हैं । मुक्त बाज़ार का सिद्धांत अंततः 'लंपट पूँजीवाद' में जाकर ही शरण लेता है ।
'लंपट पूँजीवाद' के आदर्श नायकों का जनक नव्य आर्थिक उदारीकरण है । केजरीवाल से लेकर मेधा पाटकर तक किसी को इसे लेकर समस्या नहीं है। दिलचस्प बात यह है कि स्वयंसेवी संगठनों का जो नेटवर्क विगत 25 सालों में पैदा हुआ था उसका बहुत बड़ा हिस्सा इनदिनों आम आदमी पार्टी में समाहित हो चुका है । इसमें वे लोग भी हैं जो कल तक नव्य आर्थिक पूँजीवाद का विरोध कर रहे थे ,ज़मीनी संघर्ष चला रहे थे । लेकिन केजरीवाल के सीआईआई में दिए गए बयान ने साफ़ कर दिया है कि इन सभी रंगत के सामाजिक संगठनों का नव्य आर्थिक उदारीकरण का विरोध तात्कालिक और अवसरवादी था ।

केजरीवाल के द्वारा 'मुक्त व्यापार' की हिमायत करने को एक बड़ी राजनीतिक सफलता के रुप में भी देख सकते हैं । कम से कम केजरीवाल के ज़रिए वे तमाम संगठन जो कल तक मेधा पाटकर से लेकर लिंगराज के नेतृत्व में नव्य आर्थिक पूँजीवादी नीतियों का विरोध कर रहे थे , वे अब खुलकर मुक्त व्यापार के पक्ष में आ गए हैं। यह एनजीओ मार्का परिवर्तनकामी राजनीति में आया नया परिवर्तन है और त्रासद परिवर्तन है ।

केजरीवाल का मुक्त व्यापार की हिमायत में दिया गया बयान माओवादी,नव्य वामपंथियों और दिल्ली के फ़ैशनेबुल सोशलिस्टों के अब तक के नीतिगत बयानों का अतिक्रमण करता है ।

सवाल यह है क्या ये लोग अब भी केजरीवाल के मुक्त बाज़ार ,मुक्त व्यापार और राज्य की भूमिका को लेकर दिए गए बयान से सहमत हैं ? और साथ रहना चाहते हैं ? क्या मुक्त व्यापार का नारा सिस्टम को बदल सकता है ? क्या मुक्त व्यापार की नीतियों से आम जनता के हितों की रक्षा संभव है ? क्या मुक्त व्यापार की नीतियों के चलते 'लंपट पूँजीवाद' से बचना संभव है ? राज्य को व्यापार से पूरी तरह मुक्त करके केजरीवाल किन वर्गों की सेवा करना चाहते हैं ?
केजरीवाल जिस मुक्त व्यापार की हिमायत कर रहे हैं उसकी एक ज़माने में स्वतंत्र पार्टी और संगठन कांग्रेस ने जमकर हिमायत की थी और देश की संसद ने मुक्त व्यापार के सिद्धांत को अनेकबार ठुकराया है। 'मिश्रित अर्थव्यवस्था' का रास्ता मुक्त व्यापार के ख़िलाफ़ विचारधारात्मक संघर्ष के क्रम में ही जन्मा था ।

मनमोहन सिंह ने विगत २० सालों में मुक्त व्यापार की हिमायत करते हुए बार बार सार्वजनिक क्षेत्र पर हमला किया है और दूरसंचार से लेकर बिजली तक सभी क्षेत्रों में निजी क्षेत्र के हाथों औने-पौने दामों पर सरकारी संपत्ति को बेचा है । विनिमयन के नाम पर मुक्त बाज़ार और बाज़ार की शक्तियों को अबाध अधिकार दिए हैं । केजरीवाल की नज़र में यह सब जायज़ दाम वसूली का मामला मात्र है । मसलन् रेडियो तरंगें हों या कोयला खदानें उनको यदि जायज़ दामों पर बेच दिया जाता तो उनको कोई आपत्ति नहीं होती । समस्या यहीं पर है।

राज्य की संपदा को निजी क्षेत्र को क्यों बेचें ? क्या सरकार संपदा का प्रबंधन सही तरीक़ों और कौशलपूर्ण ढंग से नहीं कर सकती ? क्या सरकारी प्रबंधन और संचालन की नई नीति नहीं बनायी जा सकती ?
केजरीवाल का मानना है सरकार का काम ख़ाली प्रशासन चलाना है ।व्यापार करना नहीं है । नौकरी देना सरकार की ज़िम्मेदारी नहीं है वह तो निजी क्षेत्र की ज़िम्मेदारी है । इस तरह के कल्पना विलासी नेता से तो जनता के हितों की रक्षा करना संभव नहीं लगता ।

मुक्त बाज़ार और मुक्त व्यापार की हिमायत मूलत: जनतंत्र का विलोम है। मुक्त व्यापार में जनतंत्र तो अमीरों की रखैल है।
अमेरिका में मुक्त व्यापार है और वहाँ लोकतंत्र के नाम पर धनतंत्र है। आम आदमी की कोई हैसियत नहीं है। भारत में अभी भी लोकतंत्र में ग़रीब को ताक़त हासिल है और उसके बिना आप कुछ नहीं कर सकते ।

मुक्त व्यापार में लोकतांत्रिक संरचनाएँ मनमाने नियमों के तहत काम करती हैं। याद करें अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा के पहले राष्ट्रपति चुनाव परिणामों को वहाँ मतपत्रों की गिनती पूरी किए बिना ही उनको राष्ट्रपति बना दिया गया , हमारे देश में यह संभव नहीं है। मुक्त व्यापार के जगत में नीतियों का फ़ैसला सीधे कारपोरेट घराने लेंगे और वह स्थिति भारत के लिए बेहद ख़तरनाक हो सकती है ।

केजरीवाल अपनी भाषणकला के ज़रिए नीतिगत सवालों से कन्नी काटते रहे हैं और घूम फिरकर भ्रष्टाचार के मुद्दे पर चले आते हैं। भ्रष्टाचार से लड़ना ज़रुरी है लेकिन अन्य समस्याओं से भी लड़ना ज़रुरी है।

आम आदमी पार्टी को सोचना होगा कि वे मुज़फ़्फ़रनगर के दंगों पर चुप क्यों रहे ? वे गुजरात के दंगों या सिख दंगों पर बोलते हैं लेकिन मुज़फ़्फ़र नगर के दंगों पर चुप रहते हैं,यह नहीं चलेगा।दंगों में से चुनने का सवाल नहीं है । उसी तरह मोदी की साम्प्रदायिकता पर हमले करें लेकिन दिल्ली में एक जाति विशेष के लोगों या हरियाणा में जाति विशेष के लोगों द्वारा फैलाए जा रहे ज़हर का वोटबैंक की राजनीति के दबाव के कारण विरोध ही न करना ग़लत है ।

भारत में मुक्त व्यापार की हिमायत कल्पना विलास है और इससे जनता की मौजूदा बदहाली को ख़त्म नहीं किया जा सकता । केजरीवाल के पास अभी भी समय है और सोचें कि देश की आर्थिक उन्नति के लिए उनके पास नया क्या है ? मुक्त व्यापार की हिमायत तो नई बोतल में पुरानी शराब ही है और भारत की जनता यह शराब बार बार ठुकरा चुकी है ।


Wednesday, 1 January 2014

भारत वह स्थान नहीं,जो उसके सभी संस्थापकों ने सोचा था---गोपाल कृष्ण गांधी

स्पष्ट रूप से पढ़ने के लिए इमेज पर डबल क्लिक करें (आप उसके बाद भी एक बार और क्लिक द्वारा ज़ूम करके पढ़ सकते हैं )



विद्वान चिंतक और पूर्व राज्यपाल गोपाल कृष्ण गांधी जी भी दिल्ली में केजरीवाल/आप के उभार को शुभ लक्षण नहीं मानते हैं।
दिल्ली की आप सरकार द्वारा  जिनको पानी का कन्सेशन मिलेगा वे सभी समृद्ध लोग होंगे क्योंकि झुग्गी-झोपड़ियों तक तो पानी की पाईप लाईनेन ही नहीं बिछी हैं और बिजली कनेकशन  भी नहीं हैं वह लाभ भी मीटर वाले लोगों को ही मिलेगा गरीबों की बस्तियों में नहीं। 1947 में देश को सांप्रदायिक/साम्राज्यवादी आधार पर विभाजित करके पाकिस्तान की संरचना ब्रिटिश सरकार ने अमेरिकी साम्राज्यवाद के इशारे पर की थी। अमेरिका हमेशा पाकिस्तान की समप्रभुत्ता का उल्लंघन करता रहा है और अब हमारी बानिज्य राजनयिक देवयानी खोबरागड़े को गिरफ्तार व अपमानित करके भारत की सम्प्रभुत्ता को भी चुनौती दे रहा है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अमेरिकापरस्ती बेनकाब होने के बाद पहले मोदी को आगे किया गया था किन्तु उन पर सांप्रदायिक नर-संहार का ठप्पा लगा होने के कारण 'आप' व केजरीवाल को अमेरिकी साम्राज्यवाद की रक्षा के लिए आगे लाया गया है। अतः कम्युनिस्ट कार्यकर्ताओं एवं नेताओं का यह नैतिक दायित्व था कि इस खतरे से जनता को आगाह करते जिससे आसन्न लोकसभा चुनावों में जनता गुमराह न होती। किन्तु दुखद स्थिति यह है कि बड़े से बड़े कम्युनिस्ट नेता भी 'केजरीवाल/आप' के भ्रमजाल में बुरी तरह उलझ गायें हैं फिर जनता को कौन जाग्रत करेगा?ध्यान रखने की बात थी कि इन्दिरा कांग्रेस का मनमोहन गुट,भाजपा और आप तीनों ही RSS से प्रभावित हैं। अतः सभी कम्युनिस्टों को मिल कर इन शक्तियों का मुक़ाबला करना चाहिए था बजाए 'आप'/केजरीवाल के गुण गाँन करने के। यदि आज आप/केजरीवाल को आगे बढ़ाया गया तो निश्चय ही अर्द्ध-सैनिक तानाशाही स्थापित करने में RSS को सहयोग मिलेगा। 1980 के बाद से RSS के लोग अनेक दलों में घुस चुके हैं। जबकि कम्युनिस्ट बिखरे हुये हैं। उस स्थिति में 'हिंसक' आंदोलन की ही गुंजाईश बचेगी जो कि लोकतन्त्र के लिए कैसे शुभ रहेगा?



 संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त माथुर

Wednesday, 7 December 2011

राष्ट्र ध्वज का अपमान

स्पष्ट रूप से पढ़ने के लिए इमेज पर डबल क्लिक करें (आप उसके बाद भी एक बार और क्लिक द्वारा ज़ूम करके पढ़ सकते हैं )






हिंदुस्तान,लखनऊ 05 दिसंबर 2011 के अंक मे दिल्ली मे निकली अन्ना टीम की केजरीवाल/किरण बेदी द्वारा निकाली वाहन रैली का यह फोटो छ्पा है। इसमे स्पष्ट रूप से दिखाया गया है कि भागीदार 'राष्ट्र ध्वज'लेकर जुलूस निकाल रहे हैं।

स्वाधीनता दिवस -15 अगस्त,गणतन्त्र दिवस -26 जनवरी और गांधी जयंती -02 अक्तूबर को राष्ट्र ध्वज सार्वजनिक रूप से सभी जगह फहराया जा सकता है। शेष दिनों मे केवल सरकारी कार्यालयों मे ही राष्ट्र ध्वज फहराया जा सकता है। राष्ट्र ध्वज लेकर आंदोलन करना राष्ट्र द्रोह है जिसके लिए आंदोलनकारियों के विरुद्ध 'राष्ट्रध्वज का अपमान' करने के नियम के अंतर्गत कारवाई होनी चाहिए। परंतु अन्ना टीम शुरू से ही राष्ट्र ध्वज का अपमान करती आ रही है और कोई कारवाई न किया जाना इसमे सरकारी मिली-भगत के षड्यंत्र की ओर इंगित करता है।

अन्ना आंदोलन अमेरिकी प्रशासन,अमेरिकी व भारतीय कारपोरेट घरानों के हित मे कांग्रेस के मनमोहन गुट के समर्थन से चल रहा है और आर एस एस का भी इसे खुला समर्थन है।

अमेरिका मे जार्ज वाशिंगटन ने कहा था- जो कोई अमेरिकन राष्ट्र ध्वज का अपमान करे उसे तत्काल गोली मार दो। और भारत मे खुलमखुल्ला राष्ट्र ध्वज का अपमान हो रहा है और अपराधी सिर-माथे पर बैठाये जा रहे हैं,क्यों?




 संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त माथुर