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Thursday, 12 March 2020

मराठा खंडहरों पर उगे हिन्दू रजवाड़े ------ मनीष सिंह

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Manish Singh
भारत के इतिहास और राजनीतिक दांव पेंच के पिछले 160 बरस अगर आप नजदीक से देखना चाहते हैं, तो ग्वालियर के महल की खिड़की से देखिए। यहां पर शो की फ्रंट सीट लगी है। सब नजदीक से साफ साफ दिखता है।
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शो 1857 से शुरू होता है।तब तक लुटेरी कम्पनी सरकार ने, दीवानी पर कब्जे जमाये थे, और फौजदारी अधिकार अधीनस्थ रजवाड़ो के हाथ में छोड़ रखा था। ऐसे मे पब्लिक डीलिंग रजवाड़ो के हाथ थी। जब 1858 में कम्पनी को हटाकर सीधे ब्रिटिश क्राउन ने सत्ता हाथ मे ली। उन्होंने 1857 के ग़दर से गहरे सबक लिए।

पहला- इस ग़दर में हिन्दू मुस्लिम जनता शिद्दत से, साथ साथ लड़ी थी। इसे डिवाइड करना था। दूसरा- राजाओ नवाबों का कोई भरोसा नही है, पब्लिक डीलिंग सीधे सरकार को हाथ मे लेना होगा। बांटने के लिए अंग्रेजो ने मुस्लिम रजवाड़ों से कड़ा और हिन्दू रजवाड़ो से नरम बिहेव करना शुरू किया। मुस्लिम नवाब और उच्च वर्ग हाशिये में फील करने लगे। हिन्दू मुस्लिम एकता टूटी।


अंग्रेजो का ये नरम गरम बर्ताव नैचुरल था। तब उत्तर भारत में या तो मुगल बिखराव से उपजे मुस्लिम रूलर थे, या मराठा खंडहरों पर उगे हिन्दू रजवाड़े। ग़दर में मुस्लिम रजवाड़े, और वहाबी आंदोलन से उपजे जननायक कहीं ज्यादा मजबूती से आगे थे। सिंधिया आदि मराठा मूल के रजवाड़े कम्पनी सरकार के साथ गए। असल मे, विद ड्यू रिस्पेक्ट टू रानी लक्ष्मीबाई.. 1857 की क्रांति का मंच झांसी नही, बेगम हजरत महल का लखनऊ था। ये हमे आज नही पता, मगर तब अंग्रेजो को पता था।


तो सत्ता से बेदखल होते मुस्लिम वर्ग में जो होशियार थे, उन्होंने सामाजिक सुधार और शिक्षा की ओर ध्यान दिया। अगर नवाबी न रहे, तो समाज के लोग पढ़ लिखकर अफसर ही बन जाएं। सत्ता में भागीदारी रहेगी। नतीजतन अलीगढ़ का कालेज आया, मुस्लिम बुद्धिजीवी साथ आये। नवाबो ने कॉलेज के लिए दान दिया। इसी में से मुस्लिम लीग निकलने वाली थी।

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इधर डायरेक्ट पब्लिक डीलिंग के लिए अंग्रेजों ने बनाई कांग्रेस। देश भर के एनजीओ, वकील टाइप लोगो की सालाना सभा। इसमे पढ़े लिखे प्रगतिशील लोग थे। कोई दिक्कत हो, तो सरकार से आवेदन निवेदन करके निपटा लें, न कि ग़दर विद्रोह की सोचे। तिलक द्वारा कांग्रेस की तासीर बदल देने के पहले ये सिस्टम काफी सफल हुआ।

कांग्रेस प्रगतिशील लोगो की संस्था थी। अनुनय विनय अक्सर देशी राजा के टैक्स, कानून अत्याचारों के खिलाफ होते थे। जब जब कांग्रेस की सुनी जाती, राजा नवाबों की जेब कटती। तो राजाओ नवाबों इसे काउंटर करने के लिए जनसंगठन चाहिए था। मुस्लिम नवाबों ने पहले एक्ट किया, मुस्लिम सेंट्रिक बुद्धिजीवीयो से मुस्लिम लीग बनवाई।


पीछे पीछे हिन्दू रजवाड़े थोड़ा लेट से जागे। सेम प्रोसेस से बीएचयू बना, मदनमोहन मालवीय ने राजाओ से दान लिया। सिंधिया ने भी दिया। मालवीय जी सबको साथ लिए। उनके संगत के हिन्दू सेंट्रिक बुद्धिजीवियों से धीरे से हिन्दू महासभा बन गयी।

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अब तीन टीमें खेल रही थी। समय के साथ कप्तान बदलते हैं। हिन्दू राजाओ की टीम हिन्दू महासभा, कप्तान सावरकर। नवाबों की टीम मुस्लिम लीग, कप्तान जिन्ना। और आम पब्लिक की टीम कांग्रेस, कप्तान गांधी। आगे चुनाव आते हैं। तीनो में मैच चलता है। अंपायर अंग्रेज हैं, कभी इसके फेवर में रोंठाई करते है, कभी उंसके फेवर में रोंठाई करते है। मगर दरअसल हमेशा अपने फेवर में रोठाई करते हैं। रोठाई बोले तो बेईमानी। खैर ..

यहां पब्लिक की टीम कांग्रेस मजबूत है। तो कई बार राजा और नवाबो की टीम मिलकर उसका मुकाबला करती हैं। फिर आपस मे भी दंगा करती है। किस्सा चलता रहता है। इनके लफड़े में हिंदुस्तान दो टुकड़े हो जाता है। नवाबों की टीम को पाकिस्तान मिल जाता है। भारत पब्लिक की टीम, याने कांग्रेस के हाथ लगता है। राजाओ की टीम याने हिन्दू महासभा टापते रह जाती है।


इस टीम के लीडर गांधी हत्या में कटघरे में थे। उन्हें कूड़े दान में फेंककर पुर्नगठन होता है। टीम का नया नामकरण होता है। मगर जनता माफ करने को तैयार नही। इधर नेहरू सम्विधान और धर्मनिरपेक्षता ले आते हैं। इनके हिन्दू राज्य, बाबा, पंडे, सब खिसियाये रह जाते हैं। अभी ये 70 साल खिसियायें रहने वाले हैं।

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हिन्दू महासभा के सबसे बड़े पोषक और फ़ंडर महाराज सिंधिया थे। विलय के बाद नेहरू ने चाहा कि जीवाजी कांग्रेस जॉइन कर लें। सेंट्रल प्रान्त का राज्यपाल भी बनाया। मगर जीवाजी तन मन धन से महासभाई थे।

नेहरू के लिहाज में पत्नी को कांग्रेस में भेजा। विजयाराजे कांग्रेस सांसद हुई। मगर ध्यान दें, की पत्नी भले कांग्रेस में थी, लेकिन जनसंघ को जो भी सीटें आती रही, वे पूर्व ग्वालियर राज्य से ही आती रही। इसे ड्युअल गेम कह सकते हैं क्या?? आखिर उस दौर में महल की मर्जी के बगैर जीतने की औकात किसकी थी??


1967 में डीपी मिश्र, इंदिरा, विजयाराजे के ईगो क्लैश में, डीपी की सरकार जाती है। राजमाता सिंधिया जनसंघ के विधायकों के समर्थन से कॉंग्रेस तोड़कर पहली गैर कांग्रेसी सरकार बनवाती है। अभी नेहरू की बेटी, जो राजमाता से बेहद जूनियर है, पीएम हो चुकी।


राजमाता मुहिम छेड़कर सारे रजवाड़ो को फिर एक कर रही हैं। मिशन- महासभा वाली टीम/जनसंघ को पुनर्जीवित करना फंडिंग करना, उसे सत्ता में लाना। लेकिन इंदिरा तो इंदिरा थी, सारे मास्टरस्ट्रोक की अम्मा थी।


पैसा राजाओ की ताकत थी। पैसा जो सरकार से मिलता था, अपना राज्य भारत मे विलय करने के बदले। ये प्रिवीपर्स कहलाता था। इंदिरा 8 बजे टीवी पर हाथ नही हिलाई, मगर राजाओ का धनस्रोत सूख गया। प्रिवीपर्स खत्म हो चुका था। जयपुर में छापा पड़ा, मिला कुछ नही। 1500 डॉलर मिले, विदेशी मुद्रा कानून में राजमाता रानी गायत्री देवी डिटेन हुई। रजवाड़ो ने सरेंडर कर दिया।


मगर राजमाता भी शेरनी थी। जनसंघ के साथ खुलकर रही।इमरजेंसी में राजमाता सिन्धिया को जेल भेजा जाता है। बेटे माधवराव नेपाल भाग जाते हैं। फिर कोई सेटिंग होती है। बेटा कांग्रेस जॉइन कर लेता हैं। कांग्रेस सांसद हो जाता है। इंदिरा की हत्या हो जाती है।

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राजीव और माधव विदेश की पढ़ाई के वक्त दोस्त थे। व्हाट्सप गल्प है कि सोनिया से राजीव माधवराव के मार्फ़त मिले थे। कौन जाने। जानिए इतना कि जीवाजी के खिलाये पढ़ाये बढ़ाये अटल से, राजीव माधवराव को सीधे भिड़ा देते हैं। अटल खेत रहते हैं। ये 1985 था। भाजपा दो सीटों पर सिमट गई।

परिवार में सम्पत्ति और दूसरी वजहों से मतभिन्नता है। माधव की बहने मा के साथ हैं। परिवार की स्वाभाविक तासीर के अनुरूप भाजपा में जाती हैं। एक वंसुन्धरा दो बार सीएम हो चुकी। दूसरी एमपी में सीनियर विधायक हैं।


इधर माधव को कॉन्ग्रेस में ऊंची जगह मिलता हैं। राजीव के बाद गांधी परिवार के निर्वासन के दौर में वे कांग्रेस छोड़ते हैं। भाजपा में नही जाते, अपनी पार्टी बनाकर जीतते हैं। परिवार का दौर लौटते ही कांग्रेस में लौट आते हैं। विधि का विधान, कांग्रेस की सत्ता लौटने के ठीक पहले देहांत हो जाता है।


ज्योतिरादित्य उनकी जगह लेते हैं। मंत्री, सांसद, सीएम कैंडीडेट (2013) सब होते हैं। उन्हें पिता की लिगेसी और खानदान की तासीर में से एक का चुनाव करना था। ताजा खबरे यही हैं कि उन्होंने अपने दादाजी की टीम का बारहवां खिलाड़ी होना तय किया है।



मगर शो अभी बाकी है। देखते रहिये।
https://www.facebook.com/manish.janmitram/posts/2801984806552485



 संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश

Monday, 26 August 2019

बाहर दुनियां का दबाब, अंदर हिंदू राष्ट्र का ख्वाब, करें तो करे क्या?? ------ Dr BN Singh / Kanti Shikha

Kanti Shikha
Agust 23 at 9:15 pm
मोदी 370 हटाने वाले कानून को विश्व बिरादरी के रूख को देखकर वापस लेने को मजबूर दिखाई दे रहे हैं, फेस सेविंग का बहाना खोजा जा रहा है, मामला बहुत दूर तक चला गया लगता है.

धारा 370 भारत काश्मीर के जोड़ का सीमेंट था. संविधान का अंग था. उसकी पहली शर्त थी कि उसमे भारतीय संसद कोई निर्णय बिना कश्मीर के संविधान सभा के राय के बिना नही ले सकती , जबकि संविधान सभा का अस्तित्व नही है, पहले यह धारा अस्थायी थी लेकिन संविधान सभा भंग होने के कारण यह स्वतः स्थायी हो गयी है, ऐसा सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा है. अत: उसकी जगह विधान सभा की राय जरूरी थी.

मोदी ने असंवैधानिक रूप से 370 के साथ जो छेड़छाड़ किये उसका परिणाम कश्मीर विश्व के बिरादरी मे अपने को स्वतंत्र घोषित करना शुरू कर दिया है.

उसका कहना है कि "कश्मीर भारत का कभी अंग नही रहा, हम शर्तों पर साथ आये थे. वह शर्त 370 धारा मे स्पष्ट थी. 370 भारत ने खतम कर दिया तो हमारी स्थिति पुन: 1947 वाली हो गयी!
अब हम आजाद हैं!!"

इस बात पर चीन और अमेरिका दोनों पंचायत करने की बात कर रहे हैं. अभी ट्रंप ने कहा कि G summit की मिटंग मे मै जा रहा हूं , या तो मै मध्यस्थता करूंगा या कुछ और करूंगा. कश्मीर एक जटिल समस्या है , धार्मिक मामला है जो बहुत ही कठिन समस्या है. देखता हूँ मै क्या कर सकता हूँ."

एमनेस्टी इंटरनेशनल जैसी विश्वविख्यात संस्था ने भी इस पर ध्यान देना शुरू कर दिया है.

पूरा मुश्लिम देश इस बार कश्मीर के जनता के साथ हैं.

मोदी को अपनी मूर्खता समझ मे आने लगी है लेकिन अपना थूका चाटें कैसे?

बाहर दुनियां का दबाब, अंदर हिंदू राष्ट्र का ख्वाब, करें तो करे क्या??

अब ट्रंप चाचा ने कहा है कि जल्दी कुछ करो नही तो हम कुछ नही कर सकते. मोदी जी ने कहा कि पाकिस्तान से बुलवा दीजिये कि हम काश्मीर मे कोई हस्तक्छेप नही करेंगे. हम वापिस ले लेंगे.

सबसे बड़ी बात भक्तों का क्या होगा?? अब कश्मीर मे प्लाट और लड़की कैसे पायेंगे?
- Dr BN Singh

साभार : 
https://www.facebook.com/globalmailindia0012/posts/2364531170541368

मोदी का पूरा रिपोर्ट कार्ड  ------  Raju Misra

Raju Misra
*मोदी का पूरा रिपोर्ट कार्ड*(अगर गलत लगे तो गुगल पर जाकर देख लेना) 
आप यह देखकर चौंक जाएंगे कि पिछले 5 वर्षों में भारत कैसे बदल गया है, इसमे अगर कुछ भी गलत लगे तो बताएं...अन्यथा इस सच को स्वीकार करें..
*1* भारत अब उच्चतम बेरोजगारी दर से पीड़ित है *(NSSO डेटा)* 
*2* दुनिया के सभी शीर्ष 10 सबसे प्रदूषित शहर अब भारत में हैं *(WHO डेटा)*
*3* भारतीय सैनिकों की शहीद की संख्या 30 वर्षों में सबसे अधिक है *(वाशिंगटन पोस्ट)*
*4* भारत में अब 80 वर्षों में सबसे अधिक आय असमानता है *(क्रेडिट सुइस रिपोर्ट)*
*5* भारत महिलाओं के लिए दुनिया का सबसे खराब देश बन गया है *(थॉमस रॉयटर्स सर्वे)*
*6* उग्रवाद में शामिल होने वाले कश्मीरी युवा इन वर्षों में सबसे ज्यादा हैं *(भारतीय सेना के आंकड़े)* 
*7*.इस बार भारतीयों किसानों को पिछले 18 साल में सबसे खराब कीमत का सामना करना पड़ा *(WPI डेटा)* 
*8* मोदी के पीएम बनने के बाद अब तक की सबसे ज्यादा गाय से जुड़ी हिंसा और रिकॉर्ड पर मॉबलिंचिंग की घटनाएं हुई *(इंडिया स्पेंड डेटा)* 
*9* भारत अब विश्व का दूसरा सबसे असमान देश है *(ग्लोबल वेल्थ रिपोर्ट)*
*10* भारतीय रुपया अब एशिया की सबसे खराब प्रदर्शन वाली मुद्रा *(मार्केट डेटा)* है
*11* भारत पर्यावरण संरक्षण में विश्व का तीसरा सबसे बुरा देश बन गया है *(EPI 2018)*
*12* भारत के इतिहास में पहली बार विदेशी धन और भ्रष्टाचार को वैध बनाया गया है *(वित्त विधेयक २०१ in)*
*13* हमारे वर्तमान प्रधान मंत्री 70 वर्षों में कम से कम जवाबदेह प्रधानमंत्री हैं *(प्रथम पीएम 0 प्रेस कॉन्फ्रेंस करने के लिए)* 
*14* भारत के इतिहास में पहली बार, CBI बनाम CBI, RBI बनाम Govt, SC बनाम Govt के झगड़े इसलिए हुए क्योंकि मोदी सभी लोकतांत्रिक संस्थाओं पर नियंत्रण चाहते थे
*15* भारत के इतिहास में पहली बार, सुप्रीम कोर्ट के 4 जजों ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कहा कि ”लोकतंत्र खतरे में है, हमें काम नही करने दिया जा रहा” 
*16*. भारत के इतिहास में पहली बार, रक्षा मंत्रालय कार्यालय से चोरी हुए शीर्ष गुप्त रक्षा दस्तावेज (राफेल)
*17*.पिछले 70 सालों में असहिष्णुता और धार्मिक अतिवाद सबसे ज्यादा है *(व्यक्तिगत अवलोकन क्योंकि इसके लिए कोई डेटा मौजूद नहीं है )*
*18.भारतीय मीडिया अब तक के वर्षों में सबसे खराब है *(व्यक्तिगत अवलोकन)*
*19*.भारत के इतिहास में पहली बार, अगर आप मोदी सरकार की आलोचना करते हैं, तो आप पर देशद्रोही का लेबल लगता हे जो की बहुत शर्मनाक है
इस संदेश में जो कुछ भी कहा गया है वह जुमला नहीं है। ऊपर दिया गया सभी डेटा 100% सत्यापित एफएसीटीएस है। आप किसी भी बिंदु पर एक Google खोज करके उन्हें स्वयं सत्यापित कर सकते हैं। हमारे भारत के साथ जो हुआ है उसकी वास्तविकता यही है। 
मोदी सरकार पिछले 70 वर्षों में सबसे खराब भारत सरकार है। 
कुछ लोग कहते हैं कि 2019 का चुनाव भारत में होने वाला आखिरी चुनाव होगा। क्योंकि अगर मोदी इस बार जीतते हैं, तो वह हमारे लोकतंत्र के सभी संस्थानों को नियंत्रित करना चाहते हैं और एक तानाशाह बन जाएंगे। आज *"चोर" और "चौकीदार" की बहस के बीच रोज़ी-रोटी, शिक्षा, स्वास्थ्य, सुरक्षा, भ्रष्टाचार, कालाधन, नोटबंदी, रोजगार, महंगाई आदि सभी मुद्दें उड़न छू हो गये।
लेकिन ये तय है कि जब देश को बर्बाद करने वालों की सूची तैयार होगी तब इन दो वर्गों का नाम सबसे ऊपर होगा
1.बिकाऊ मीडिया
2. मूर्ख अंधभक्त
*इस सरकार की सुखद बात यही रही कि नाली से गैस, बतख से ऑक्सीजन, गोबर से कोहिनूर, रोजगार में पकौड़े इतनी मनोरंजक सरकार थी कि 5 साल कैसे कट गये पता ही नहीं चला..*
डरें मत, इस संदेश को साझा करें।
हमारे लोकतंत्र को बचाएं।

Friday, 3 May 2019

तेजबहादुर बिना लड़े ही जीत गया,और कोई लाखों के फूल बरसा कर भी जनता की नजरों में गिर गया ------ सुनीता वर्मा


Sunita Verma
मेरे प्यारे भटके हुए सम्मानित भाइयों ! अंधभक्ति में इतना भी न गिरो की इंसानियत भी शर्मसार हो जाये
आप कितना जानते हो इस तेजबहादुर यादव के बारे में ???
मैं बताती हूँ आपको, वो मेरे गांव एवं वार्ड (जिला महेन्द्रगढ़, हरियाणा) से ही है तेजबहादुर, पहले वो भी आपकी तरहं मोदी की अंधभक्ति में आकंठ डूबा हुआ था, इसने पूर्व चुनावों में अपने परिवार के वोट तो मोदी को दिलाये ही और लोगों को भी मोदी को जिताने के लिए प्रेरित किया, इसे सनक थी कि मोदी ईमानदार है, वह आ गया तो भ्र्ष्टाचार खत्म कर देगा,
और जब मोदी जीता तो इस ने सोचा कि अब मैं सेना में जो भी गलत हो रहा है उससे मोदी को अवगत कराऊंगा ताकि सैनिकों की सुध ली जा सके, सेना में व्याप्त भ्रष्टाचार को रोका जा सके।
बस ! इसकी यही मूर्खता इसे ले डूबी, इसने सेना में खराब खाने की वीडियो जारी करने से पहले कई पत्र भी पीएमओ को लिखे लेकिन जब कोई उनका सकारात्मक जवाब नही आया तब उसने ये वीडियो बनाया ताकि ईमानदारी का ढोल पीटने वाला मोदी इस पर संज्ञान ले सके,...उसके बाद क्या हुआ पूरा देश जानता है, इसे बर्खास्त कर दिया गया,,,अब इसके सिर से मोदी भक्ति का भी भूत उतर चुका था,,,एक सैनिक होने के नाते इसने अन्याय के खिलाफ लड़ने की सोची,,इसी दौरान इसका इकलौता पुत्र भी हादसे का शिकार हो गया,,,इस दुख की घड़ी का भी बीजेपी आईटी सैल वालो ने नफरत के रूप में भुनाना शुरू कर दिया, एक साजिश के तहत बीजेपी ने अपनी पारम्परिक गन्दी राजनीति का धर्म निभाते हुए इस बारे झूठ प्रचारित करना शुरू कर दिया कि बेटे ने अपने बाप से दुखी होकर आत्महत्या कर ली, और सुसाइड नोट में ये बात लिख कर मरा...जबकि ये दोनों ही बातें झूठ के रूप में साजिशन फैलाई जा रही थी, इसे मानसिक रूप से परेशान करने के लिए इसे ट्रोल करने के लिए इसे जनता में पागल साबित करने के लिए। सच ही कहा है मूर्ख और असामाजिक तत्वों के सिर पर सिंग नही होते वो अपनी संकीर्ण व औछी बातों से ही अपने नकली मिलावटी खून की पहचान करा देते है...और ऐसा ही तेजबहादुर को ट्रोल करने वालो ने भी किया...
बीजेपी आईटी सैल ने तेजबहादुर यादव के नाम से एक फेसबुक आईडी बनाई जिसमे ज्यादा से ज्यादा पाकिस्तानी फॉलोवर्स जोड़े गए, वजह आप समझ सकते हैं ???
इस फेसबुक से तेजबहादुर को बदनाम करने के लिए मुस्लिम भाइयों को गालियां दी गई ताकि मुस्लिमों की नजर में इसे खराब किया जा सके।।।।।
वो मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ने और जितने के लिए नही गया था बल्कि अपना विरोध दर्ज कराने और अन्याय के खिलाफ लड़ाई लड़ने के एक सैनिक का धर्म निभाने गया था।
मगर देश के तथाकथित फर्जी राष्ट्रभक्तों ने उस पर सुनियोजित तरीके से तरह - तरह के आरोप लगाने शुरू कर दिए, ये सब बीजेपी, संघ और उसकी आईटी सैल का पूर्व प्रायोजित काम था,...
उसे कहा जाने लगा कि सेना में और भी तो सैनिक हैं सिर्फ उसे ही खाने की क्यो दिक्कत हुई, तो उन मंधबुद्धि लोगों से मैं बताना चाहूंगी कि और सैनिकों ने भी इस बारे आवाज उठाई थी और इस बारे कुल 16 सैनिक बर्खास्त किये गए थे, वैसे भी इस बात को यों भी समझा जा सकता है कि गुलाम देश भारत मे सिर्फ भगत सिंह को ही क्या जरूरत थी आजादी का बिगुल बजाने की गुलाम तो और भी लोग थे? भगत सिंह ने भी जेल में खराब खाने को लेकर भूख हड़ताल की थी क्या वो भी 'पेटू और गद्दार' था..???
तेजबहादुर का परिवार ही सैनिक परिवार है इसके दादा भी आजाद हिंद फौज का सिपाही रहा है, तेजबहादुर ने भी अपने परिवार के देशभक्ति संस्कारों का लोहा सेना में मनवाया थे इन्हें कुल 16 अवार्ड सेना की तरफ से मिले थे।
और इसमे कोई दो राय नही की इसका नामांकन साजिशन रद्द कराया गया, क्योंकि मोदी डर गया था अप्रत्याशित चुनावी परिणाम से..
अन्यथा NOC लाने के लिए इतना थोड़ा समय नही दिया जाता, और इसके अलावा भी जानबूझ कर NOC देने वाले अधिकारी को उसकी कुर्सी से गायब रखा गया,,,।
बैगर किसी की पूरी प्रोफाइल जाने नकारात्मक टिप्पणी देना ना सिर्फ अपनी मूर्खता और नासमझी का परिचय देता है अपितु ऐसा करके हम अपने अधकचरे ज्ञान को ही प्रदर्शित करते हैं।
*"तेजबहादुर बिना लड़े ही जीत गया,*
*और कोई लाखों के फूल बरसा कर भी जनता की नजरों में गिर गया*
और हां ! इस घटनाक्रम से चौकीदार ने साबित कर दिया कि वो डरपोक भी है और 'चौकीदार ही ..... है।'
वैसे डरना भी सच्चा था, एक तो 'तेज' ऊपर से 'बहादुर'
धन्यवाद
शुभेच्छुक :
आलेख : सुनीता वर्मा जिला पार्षद महेन्द्रगढ़ (हरियाणा)
एवं
पूर्व उपजिला प्रमुख व पूर्व बसपा जिला अध्यक्षा महेन्द्रगढ़
एवं
बसपा पूर्व प्रत्याशी अटेली विधानसभा
ट्विटर अकाउंट




https://www.facebook.com/sunita1verma/?__tn__=%2Cd%3C*F-R&eid=ARCui_6q0nYW2Rg3ORMlOr6T9h2MGXozIjE8oT7VvKYoaJ9KuImzjuQxssTRzl5wPhbf14BCtpnsWVul&hc_ref=ARRJiLi0ONGoB4UsAsp757oj4i7jmXsujTwC9d0njFw9phKJm0I6ZeHuAaonhn0dzdw







 

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Face Book : 
06-05-2019 

Saturday, 11 November 2017

राहुल- मोदी, गुजरात चुनाव और आगे ------

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2004 के लोकसभा चुनावों से पूर्व जहां एक ओर अधिकांश लोग ए बी बाजपेयी साहब के दोबारा लौटने के कयास लगा रहे थे वहीं दूसरी ओर एक बड़ा तबका सोनिया जी के पी एम बनने के स्वप्न सँजो रहा था।अखिल भारतीय कायस्थ महासभा आगरा के अध्यक्ष सी एम शेरी साहब के निजी कार्यक्रम में एकत्र कांग्रेस व भाजपा के तमाम लोग ऐसी ही चर्चाए कर रहे थे। मैंने तब सबके समक्ष स्पष्ट कहा था कि, न तो बाजपेयी साहब न ही सोनिया जी पी एम बनेंगी कोई तीसरा ही व्यक्ति बनेगा। चुनाव परिणाम के बाद सुषमा स्वराज, उमा भारती जैसे महिला नेत्रियों ने सोनिया जी के विरुद्ध आग उगलना शुरू कर दिया था। लेकिन डॉ एम एम सिंह साहब पी एम बने। 

गुजरात चुनावों के परिप्रेक्ष्य में एक बार 2019 के लिए फिर चर्चा है कि, क्या मोदी साहब लौटेंगे अथवा राहुल गांधी पी एम बनेंगे। मेरा पुनः विचार है कि, दोनों में से कोई नहीं फिर कोई तीसरा ही पी एम बनेगा। चुनाव भी समय पूर्व ही हो सकते हैं । बड़े अखबारों में बड़े - बड़े लेख लिखने वाले सब लोग निराश ही होंगे।
संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश

Thursday, 5 January 2017

बैंकों की घटती विश्वसनीयता : गंभीर संकट और कैशलेस डकैती ------ प्रो . हिमांशु / गिरीश मालवीय

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Girish Malviya
05-01-2017
कैशलेस हो जाने के खतरे............... इस लेख का तात्पर्य आपको डराना नहीं है लेकिन पैसो के मामले में कैशलेस हो जाने से जो सामान्य आदमी के मन मे चिंताए उपजति है उसे समझना भी बेहद जरुरी है.....................
सबसे महत्वपूर्ण चिंता है सुरक्षा की, क्या हमारा मेहनत से कमाया पैसा इन कैशलेस उपायों को बिना सोचे समझे अपनाने से सुरक्षित है इसे कुछ इस तरह से समझिए..............
फर्ज कीजिये कि एक सुनसान रात मे आप जरूरी काम से जा रहे है और आपके बटुए मे हजारो रुपये है अचानक आपके पीछे कुछ लुटेरे लग जाते है, आप उन्हें आते हुए देख लेते हो अब आपके पास कम से कम एक ऑप्शन है कि आप पूरा जोर लगाकर दौड़ लगा देते हो और आप बच भी जाते हो................
अब यही परिस्थिति आप साइबर वर्ल्ड की समझे.......... पिछली वाली परिस्थिति मे आप खतरा आसानी से भाप गए थे..और आपने दौड़ लगा दी लेकिन साइबर वर्ल्ड मे आपका पैसा बिलकुल खुले में पड़ा है और कौन सा लुटेरा आप के पैसे पर निगाह डाल कर बैठा है आप नहीं जानते कोई अमेरिका से आपके अकाउंट को हैक कर रहा है कोई चीन मे बैठा आपके ट्रांसिक्शन पर निगाह लगाये है, कोई कलकत्ता से फोन कर आपकी एटीएम कार्ड की डिटेल जानना चाहता है, लेकिन आप इन सब से अंजान है...........
यहाँ आप दौड़ नहीं लगा सकते 
यहाँ चोरी नहीं होगी होगी तो सीधे डकैती होगी............
और हम यह भी नहीं जान पाएंगे कि हम कैसे लुट गए...........
दूसरी चिंता थोड़ी उदारवादी दृष्टिकोण लिए हुए है........
आप सब लोग मॉल तो गए ही होंगे माल में जितनी भी दुकाने होती है उनके पैटर्न पर कभी आप गौर करना जिस सामान की हमारे दैनंदिन जीवन में बेहद अधिक उपयोगिता होती है उसे सबसे अधिक छुपाकर रखा जाता है और जो सामान लग्जरी होता है जिसे बेचने मे दूकान दार का फायदा होता है उसे हमेशा आगे रखा जाता है 
कैशलेस समाज मे इस तरह की मार्केटिंग को और अधिक वरीयता मिलेगी क्योकि आपको अब सब डिजिटल फार्म में करना है आपको दिनरात ऐसी चीजे जचायी जायेगी जो वास्तव मे आपके काम की नहीं है लेकिन उसे भी उपयोगी बताकर बेचा जायेगा जैसा क़ि नापतोल जैसे चैनल आज खुलकर कर रहे है...........
कैशलेस मे लोगो मे बिना सोचे समझे खर्च करने की प्रव्रत्ति को बढ़ावा मिलेगा...........
और भी बहुत से पहलू है इस कैशलेस संस्कृति के कभी फुरसत मे चर्चा की जायेगी...........

    संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश

Saturday, 23 July 2016

मीडिया मायावती को मोदी समझ रही:/सवर्ण और दलितों का अलगाव ------ अकील अहमद / लालाजी निर्मल

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****** जिसके एक आह्वान पर UP ही नहीं देश के दलित सड़क पर उतर आने को आतुर हो , उसी ताकतवर दलित महिला नेत्री के विरूद्ध आक्रमक तेवर में फरार दयाशंकर की पत्नी को उसके समकक्ष दिखाने का पर्यास जिसमे स्वाति सिंह कह रही है की भाजपा के सारे कार्यकर्ता मेरे साथ
.....क्या संदेश है ? ******
***उत्तर प्रदेश की राजनीती में सवर्ण और दलितों का अलगाव और अपने अपने खेमे में जुड़ाव साफ़ नजर आने लगा है | सोसल मिडिया में तो यह अलगाव शीशे की तरह साफ़ नजर आ रहा है | स्वाभाविक मित्रों को छोड़ कर वैचारिक विरोधियों के साथ दोस्ती और जातीय प्रबंधन निष्फल दिखने लगा है |***
***  दलितों - सवर्णों का यह अलगाव 'नास्तिकता'- एथीज़्म का दावा करने वाले साम्यवादी दल  के भीतर भी उतना ही मजबूत है जितना सोशल मीडिया और समाज में क्योंकि ये दल भी ब्राह्मण वादियों के ही नियंत्रण में हैं। बस फर्क सिर्फ इतना है कि, इन दलों में दलितों का समर्थन करने वाले मुखर लोग खुद दलित नहीं हैं बल्कि गैर ब्राह्मण और गैर प्रभावशाली कामरेड्स हैं । ब्राह्मण वादी /कार्पोरेटी/मोदीईस्ट कामरेड्स प्रभावशाली और दलित विरोधी मानसिकता के हैं जिनके लिए मार्क्स वाद सिर्फ सत्ता नियंत्रण का मंत्र भर है और वे अपनी कारगुजारियों से मार्क्स वाद को जनता से दूर रखने में निरंतर सफल रहे हैं । ***



Aquil Ahmed
मायावती v/s स्वाति 
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जैसे ही हजरतगंज थाने से मायावती जी सहित बसपा के दो अन्य नेतावो सतिस्चन्द्र मिश्र और नसीमुद्दीन सिद्दीकी और कर्य्कर्तावो के खिलाफ FIR दर्ज करा बाहर निकलते ही मीडियाकर्मियों से घिरी स्वाति सिंह (पत्नी भाजपा से निष्कासित नेता दयाशंकरसिंह) ने सहयोग के लिए कैमरे पर ही media का धन्यवाद दिया ,..........मुझे आजतक का वो समाचार याद आ गया मायावती जी के संसद में दयाशंकर जी के विरूद्ध प्रतिरोधस्वरूप उठाईगयी थी जिसमे उन्होंने कहा था ..'' मै देश की बेटी हू ,दया शंकर जी ने मुझ पर नहीं अपनी बेटी , बहन को ये शब्द कहे हैं"......सबसे पहले लोगो का ध्यानाकर्षित करते हुए ''आजतक'' नेकहा था मायावती जी का भी जुबान फिसल रही है .......अब जा कर यह समझ में आया की अहं से भरी स्वर्ण प्रभुत्व और मानसिकता वाली मीडिया को यह हजम न हो पा रहा था की एक दलित भी अपने मान सम्मान के लिए इतने आक्रामकता के साथ प्रतिरोध दर्ज करा सकती है ?____निचे दिए गए देश के दो प्रमुख चैनलों के है, जरा गौर कीजिये ....1, ABP न्यूज़ ....देश के सबसे ताकतवर दलित महिला के विरूद्ध अपराधिक टिपन्नी करने वाले फरार दयाशंकर सिंह की पत्नी का मीडिया से घिर bite देते 2, 'आजतक' की heading " मायावती v/s स्वाति" ____बिना इस बात की परवाह किये की जिसके एक आह्वान पर UP ही नहीं देश के दलित सड़क पर उतर आने को आतुर हो , उसी ताकतवर दलित महिला नेत्री के विरूद्ध आक्रमक तेवर में फरार दयाशंकर की पत्नी को उसके समकक्ष दिखाने का पर्यास जिसमे स्वाति सिंह कह रही है की भाजपा के सारे कार्यकर्ता मेरे साथ

.....क्या संदेश है ?........ऐसे ऐसे मायावती के मुकाबले कोई गुमनाम स्वर्ण स्वाति भी भारी है?
https://www.facebook.com/aquil.ahmed.7927/posts/668679363286163




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Lalajee Nirmal
सवर्ण और दलितों का अलगाव  :
देश की सबसे ताकतवर महिला दलित सुप्रीमो बहन जी पर आज बड़ा सामंती हमला हुआ |उनके विरूद्ध भारतीय दंड संहिता की धारा 504 ,506 ,509 ,153ए और 120बी के तहत मुकदमा दर्ज कराया गया है |नसीमुद्दीन सिद्दीकी,राम अचल राजभर और मेवालाल गौतम सहित अज्ञात लोगों को भी इसमें आरोपी बनाया गया है |इसी के साथ उत्तर प्रदेश की राजनीती में सवर्ण और दलितों का अलगाव और अपने अपने खेमे में जुड़ाव साफ़ नजर आने लगा है | सोसल मिडिया में तो यह अलगाव शीशे की तरह साफ़ नजर आ रहा है | स्वाभाविक मित्रों को छोड़ कर वैचारिक विरोधियों के साथ दोस्ती और जातीय प्रबंधन निष्फल दिखने लगा है |बड़ी मजबूती के साथ फिर कह रहा हूँ भारत के सामंती कोढ़ की शल्य चिकित्सा केवल और केवल बहुजन अवधारणा से ही संभव है |

https://www.facebook.com/lalajee.nirmal/posts/1122617821131866

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उपरोक्त टिप्पणियों से साफ नज़र आता है कि, दलितों - सवर्णों का यह अलगाव 'नास्तिकता'- एथीज़्म का दावा करने वाले साम्यवादी दल  के भीतर भी उतना ही मजबूत है जितना सोशल मीडिया और समाज में क्योंकि ये दल भी ब्राह्मण वादियों के ही नियंत्रण में हैं। बस फर्क सिर्फ इतना है कि, इन दलों में दलितों का समर्थन करने वाले मुखर लोग खुद दलित नहीं हैं बल्कि गैर ब्राह्मण और गैर प्रभावशाली कामरेड्स हैं । ब्राह्मण वादी /कार्पोरेटी/मोदीईस्ट कामरेड्स प्रभावशाली और दलित विरोधी मानसिकता के हैं जिनके लिए मार्क्स वाद सिर्फ सत्ता नियंत्रण का मंत्र भर है और वे अपनी कारगुजारियों से मार्क्स वाद को जनता से दूर रखने में निरंतर सफल रहे हैं । इसी लिए 1964 में टूट कर CPM का गठन किया गया था। यू पी में पिछले बाईस वर्षों में दो बार पार्टी विभाजन भी ब्राह्मण वाद और ब्राह्मणों के वर्चस्व का  ही परिणाम था। CPM से टूटे नकसल पंथी गुटों ने कार्पोरेटी शक्तियों को मजदूरों - किसानों का दमन करने का स्वर्णिम अवसर प्रदान कर दिया है। आज का जातीय विभाजन और टकराव और कुछ नहीं सिर्फ शोषणवादी शक्तियों को ही मजबूत करेगा जो कि, सत्तारूढ़ सरकारों की गहरी कूटनीतिक चाल है। इसकी पुष्टि  BBC के इस वीडियो से भी होती है 
( विजय राजबली माथुर )