Thursday, 6 March 2014

चिकित्सकों को जन-विरोधी सिद्ध करने का औचित्य क्या है?












फेसबुक तथा समाचार-पत्रों के माध्यम से एक बड़ा वर्ग कानपुर के चिकित्सा  छात्रों एवं चिकित्सक/शिक्षकों के साथ हुये अन्यायपूर्ण अत्याचार के बावजूद समस्त चिकित्सक समुदाय को दोषी सिद्ध करके बर्बर पुलिस और अमानवीय प्रदेश सरकार को बचाने का प्रयास कर रहा है।

उपरोक्त दोनों वीडियों का अवलोकन करने तथा चिकित्सकों के बयानों का अध्ययन करने से ज्ञात होगा कि किस प्रकार पुलिस के माध्यम से छात्रों एवं शिक्षक चिकित्सकों को पुलिस द्वारा उत्पीड़ित कराया गया है इस संबंध में कानपुर के जिलाधिकारी का कहना है कि छात्रावास में पुलिस जाने की उनको जानकारी थी। क्या उन्होने प्राचार्य से पुलिस प्रवेश की अनुमति ली थी? यदि नहीं तो पुलिस के साथ-साथ वहाँ के जिलाधिकारी भी  इस उत्पीड़न में भागीदार हैं और बेगुनाह मरीजों की मौतों के लिए जिम्मेदार हैं। 


https://www.facebook.com/photo.php?fbid=295422987277272&set=gm.616254928457429&type=1&theater शिक्षा  संस्थानों में पुलिस का प्रवेश ब्रिटिश शासन में भी वर्जित था और बगैर प्राचार्य की पूर्वानुमती के पुलिस विद्यालय अथवा छात्रावास में नहीं घुस सकती थी। एक उदाहरण इस संबंध में शाहजहाँपुर के मिशन हाईस्कूल का देना उपयुक्त रहेगा। सभी जानते थे कि राम प्रसाद बिस्मिल जो वहाँ कक्षा नौ के छात्र थे देश की आज़ादी के लिए क्रांतिकारी गतिविधियों में सक्रिय रहते थे। सरकार ने खुफिया जानकारी के आधार पर उनको गिरफ्तार करने हेतु स्कूल भेजा था किन्तु प्राचार्य महोदय ने बिस्मिल जी की देश-भक्ति के मद्देनजर उनको गिरफ्तार न होने देने का निश्चय करके पुलिस को अपने कार्यालय में उलझाए रख कर कक्षाध्यापक के पास संदेश भेजा कि हाज़िरी रजिस्टर में रामप्रसाद को 'अनुपस्थित' दिखा कर कक्षा से भगा दें।रामप्रसाद जी ऊपरी मंजिल की कक्षा में थे और खिड़की के जरिये पेड़ पर कूद कर नीचे उतर  कर गायब हो गए जब पुलिस का कक्षा में प्रवेश हुआ वह वहाँ नहीं मिले हाजिरी  रजिस्टर में भी गैर-हाजिर पाये गए। 

लेकिन इस वीडियों में डॉ प्रोफेसर साहब बता रहे हैं कि पुलिस ने गेट बंद करवाकर छात्रों के साथ-साथ उनको भी पीटा और गालियां दी तथा गिरफ्तार करके थाने भेज दिया। गुलाम भारत में विद्यालय के अध्यापकों ने क्रांतिकारी बिस्मिल को बचा लिया किन्तु आज़ाद भारत में छात्रों को बचाने की प्रक्रिया में शिक्षक चिकित्सक भी पिटे व गिरफ्तार हुये जिसके  लिए कानपुर के जिलाधिकारी और एस पी सीधे -सीधे तथा प्रदेश सरकार अप्रत्यक्ष रूप से जिम्मेदार हैं।  

डाक्टरों के आंदोलन के संबंध में पुलिस और प्रशासन की बदनीयती का एक और उदाहरण आगरा का है। सरोजनी नायडू मेडिकल कालेज के जूनियर डाक्टर्स का आंदोलन था और उस समय के एस पी सिटी ( जो DG भी बने ) ने मजिस्ट्रेट से ब्लैंक साईंन  करा कर रखे वारंट्स के आधार पर डाक्टर नेताओं को गिरफ्तार कर लिया था। भाकपा ने डाक्टरों का समर्थन किया और अपने कार्यालय से मशाल जुलूस निकाला था। राजा-की-मंडी चौराहे पर पहुँचते ही  जुलूस में शामिल जिलामंत्री कामरेड रमेश  मिश्रा समेत सभी लोगों को उस एस पी सिटी द्वारा हस्तगत ब्लैंक  वारंट्स के आधार पर गिरफ्तार कर लिया गया । यहाँ तक कि डॉ जवाहर सिंह धाकरे जो उस एस पी सिटी के शिक्षक भी रहे थे को भी नहीं बकशा  गया। सहायक जिलमंत्री डॉ महेश चंद्र शर्मा जी और मैं बच कर पार्टी कार्यालय आ गए और पार्टी कार्यालय नियमित खुलता रहा। रोजाना डाक्टरों व कम्युनिस्ट नेताओं के समर्थन में मजदूर भवन से  गिरफ्तारी आंदोलन चला। किसी ने भी जमानत नहीं कराई और अंत में पंद्रह दिन बाद  सभी को बिना शर्त रिहा किया गया। 

मुकदमा पार्टी नेताओं पर आगजनी व अशांति भड़काने का लगाया गया था। बाज़ार के दूकानदारों ने सभी गिरफ्तारियों की निंदा की थी और पुलिस के  आरोपों को झूठा साबित कर दिया था। लेकिन कानपुर में चिकित्सकों के साथ हुई इस ज्यादती पर कुछ लोग डाक्टरों को ही गुनाहगार ठहरा रहे हैं जो सर्वथा गलत है। जनता को डाक्टरों के साथ खड़े होना चाहिए अन्यथा फासिस्ट सरकार आने वाले समय में दूसरे वर्गों का भी जब उत्पीड़न करेगी तब उनको भी जन-समर्थन मिलना मुश्किल हो जाएगा। 




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