Friday, 28 February 2014

शुतुरमुर्ग चाल के वामपंथियों के लिए

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Satya Narayan 

अब सुन ए केजरीवाल
कांग्रेस और भाजपा के राज की तरह
अब भी है मज़दूरों का हाल बेहाल

ठेकेदारी-प्रथा को ख़त्म न करके तुम करते हो ठेकेदारों को मालामाल
और मज़दूरों को करते हो कंगाल
लगता है आप पार्टी है ठेकेदारों की दलाल
लोकसभा के चुनाव में मत भेजना टोपी-धारियों को मज़दूर बस्तियों में
क्योंकि जाग गया है मज़दूर और अब
खिंच सकती है आपके "कार्यकर्ताओं" की खाल.…. .






2011 में, मीरा  हिलेरी क्लिंटन के  'अंतरराष्ट्रीय महिला व्यापार नेतृत्व परिषद' में शामिल 


 मीरा सान्याल दक्षिण मुंबई से चुनाव लड़ेंगी:

 मेधा ने स्पष्ट किया है कि आम आदमी पार्टी के टिकट पर वह चुनाव में उतरेंगी। हालांकि अभी उन्होंने अपनी सीट के बारे में पत्ते नहीं खोले हैं। दूसरी ओर, रॉयल बैंक ऑफ स्कॉटलैंड (इंडिया) की पूर्व अध्यक्ष मीरा सान्याल 'आप' के टिकट से केंद्रीय राज्यमंत्री मिलिंद देवड़ा को चुनौती देंगी। मीरा वही भारतीय महिला हैं जिसको हिलेरी क्लिंटन के राज्य सचिव के तरफ से 'अंतरराष्ट्रीय महिला व्यापार नेतृत्व परिषद' में शामिल होने का मौका मिला था।
साल के शुरुआत में मीरा आम आदमी पार्टी में शामिल हुईं थी और उन्होंने दक्षिण मुंबई से लोकसभा का टिकट मांगा था। पार्टी उनकी इच्छा को पूरा करते हुए देवड़ा के खिलाफ चुनाव लड़ने की अनुमति दे दी है।

मीरा सान्याल दक्षिण मुंबई संसदीय क्षेत्र से 2009 के लोकसभा चुनावों में निर्दलीय उम्मीदवार थी। उस दौरान मीरा चुनाव हार गईं थीं। इस बार मीरा ने चुनावी मैदान में सफल होने के लिए 'आप' का सहारा लिया है। फिलहाल मीरा 'लिबरल्स इंडिया फॉर गुड गवर्नेंस' संस्था की अध्यक्ष भी हैं। गौरतलब है कि मीरा ने समाज सेवा के लिए रॉयल बैंक ऑफ स्कॉटलैंड का अध्यक्ष पद छोड़कर राजनीति में कदम रखा था।


52 वर्षीय मीरा भारत के मशहूर और प्रभावशाली बैंकर्स में से एक हैं। उनका जन्म कोच्चि में हुआ था। मीरा सान्याल स्वर्गीय एडमिरल गुलाब मोहनलाल हीरानंदानी की पुत्री हैं, जिन्हें वीरता पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। एडमिरल गुलाब मोहनलाल का नाम भारतीय नौसेना के इतिहास में सुनहरे अक्षरों में लिखा जाता है। मीरा एएमपी रिटेल सर्विसेज के एमडी आशीष जे सान्याल की पत्नी हैं। मीरा ने अपनी शुरुआती पढ़ाई मुंबई से की थी और फ्रांस के आईएनएसईएडी से एमबीए की डिग्री हासिल की।

अपने 30 साल के बैंकिंग करियर के दौरान मीरा ने आखिरी के 6 साल आरबीएस बैंक के लिए काम किया। इसके पहले, 15 साल एबीएन एएमआरओ बैंक में 15 साल काम किया। मीरा ने कंपनी को ग्लोबल बैंकिंग और टैक्नोलॉजी सेवाएं देने के लिए तैयार किया था। आज यह कंपनी भारत में लगभग 12 हजार लोगों को रोजगार प्रदान कर रही है। 2005 में मीरा को 17 देशों के लिए बैंक का प्रमुख बनया गया था।

 मीरा एक अंतरराष्ट्रीय एनजीओ 'राइट टू प्ले' की सदस्य भी हैं। यह संस्था बच्चों के विकास के लिए 20 देशों में काम करती है।

2011 में, मीरा को हिलेरी क्लिंटन के राज्य सचिव के तरफ से 'अंतरराष्ट्रीय महिला व्यापार नेतृत्व परिषद' में शामिल होने का न्योता मिला था। मीरा ने इस परिषद का हिस्सा बनकर महिलाओं के विकास में अहम योगदान दिया था। फाइनेंस के क्षेत्र में बेहतर प्रदर्शन के लिए उन्हें 'भारतीय वाणिज्य मंडलों के संघ का सदस्य बनाया गया था'। इसके साथ ही मीरा सीआईआई के बैंकिंग और वित्त, सार्वजनिक नीति और महिलाओं की सुरक्षा के लिए राष्ट्रीय परिषद की सदस्य भी हैं।

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शुतुरमुर्ग चाल और प्रवृति के वामपंथी लगातार केजरीवाल/आ आ पा भक्ति के गीत गाये जा रहे हैं। इधर ममता बनर्जी की हज़ारे से समर्थन प्राप्त करने की कूटनीतिक चाल ने तो ऐसे लोगों को किंकर्तव्य विमूढ़ कर दिया है और वे अनर्गल प्रलाप में निमग्न हो गए हैं। 'दीवार पर लिखे को न पढ़ने' और न समझने के कारण वे एक तानाशाह के बदले दूसरे तानाशाह को आमंत्रण देते से प्रतीत  होते हैं जब  उनके द्वारा केजरीवाल व उनकी पार्टी को ईमानदार तथा जन-हितैषी बताया जाता है जबकि 17 फरवरी 2014 को खुल कर खुद को वह पूंजीवाद समर्थक घोषित कर चुके हैं। 

केजरीवाल की पार्टी द्वारा जिन धनिकों या विदेशी सत्ता के शुभेच्छुओं को अपना उम्मीदवार बनाया जा रहा है उनका भारत देश व इसकी जनता के हित से कोई सरोकार नहीं है। दिल्ली सरकार में केजरीवाल ने एक कारखानादार को श्रम मंत्री बनाया था जिसने मजदूरों का घनघोर दमन व उत्पीड़न किया था फिर भी किस मुंह से खुद को वामपंथी कहने वाले लोग उनका समर्थन करते हैं इसे तो वे ही जानें किन्तु इतना स्पष्ट है कि इस दृष्टि के पीछे साधारण जनता और मजदूर वर्ग का हित नहीं है। 

बहुत ही साधारण सी बात है कि जब उदारीवाद के मसीहा मनमोहन जी आउट आफ़ डेट हो गए और उनका विकल्प मोदी साहब जन-संहार के दोष से उबर नहीं पाये तो देशी-विदेशी कारपोरेट को केजरीवाल साहब के रूप में नव-उदारीवाद का मसीहा नज़र आया और उनको राजनीति के स्टेज पर प्रस्तुत कर दिया गया। किन्तु उनके समर्थक वामपंथी क्यों उनकी छवी चमका रहे हैं जिनके हाथ मजदूरों के खून से सने हुये हैं?



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