Monday 21 April 2014

वामपंथ का विरोधाभास -मीडिया का प्रयास

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 भाकपा के राष्ट्रीय सचिव कामरेड अतुल अंजान का निष्कर्ष और आशंका की पुष्टि इसी समीक्षा द्वारा बड़ी आसानी से हो जाती है। हिंदुस्तान के समीक्षक पत्रकार महोदय ने  टेलीफोन पर विभिन्न वामपंथी नेताओं से साक्षात्कार लिए और उनके द्वारा बताई विस्तृत बातों में से जो परस्पर विरोधाभासी प्रतीत हुईं उनको अखबार में प्रकाशित कर दिया गया। जहां अंजान साहब ने बिलकुल सटीक कहा -"आ आ पा कभी वामपंथ का विकल्प नहीं बन सकती। " वहीं राज्यसचिव डॉ गिरीश के बयान का वही भाग छापा गया है जिससे अंजान साहब के विपरीत ध्वनि निकलती है-"यह सही है कि आप ने हमारे ही मुद्दे उठा कर हमारे स्पेस को छीन लिया है। "

पत्रकार और अखबार यह दिखाना चाहते थे कि एक ही पार्टी के एक राष्ट्रीय सचिव व एक राज्यसचिव एकमत नहीं हैं तो सम्पूर्ण वामपंथ कैसे एकजुट हो सकता है? फिर cpm के राज्यसचिव डॉ कश्यप के हवाले से छापा गया है कि उनकी पार्टी 'उदारवादी आर्थिक नीतियों की पोषक है '। अपने आगरा कार्यकाल के दौरान तो डॉ कश्यप cpm की ओर से उदारवादी आर्थिक नीतियों पर कडा प्रहार करते थे अब लखनऊ आकर समर्थक कैसे हो गए? क्या कहीं अखबारी खेल तो नहीं है?

अखबार वाले देख रहे हैं कि वामपंथी दल कई लोकसभा सीटों पर आपस में ही टकरा रहे हैं इसलिए वे उन मतभेदों को जनता के बीच ले जाकर सम्पूर्ण वामपंथ की छ्वी खराब कर देना चाहते हैं। वामपंथी प्रभावशाली नेता गण अपने ही साथियों को धकिया कर आगे बढ़ना  चाहते हैं और इसके लिए अपने पत्रकार मित्रों का सहारा लेते हैं और उनकी इसी लालसा का लाभ पत्रकार उठा कर वामपंथ में दरार व खाई दिखाने का प्रयास करते हैं। 

यदि उत्तर-प्रदेश में कामरेड अंजान के संरक्षत्व में भाकपा आगे बढ़ती तो न केवल भाकपा वरन सम्पूर्ण वामपंथ को लाभ मिलता। परंतु ऐसा नहीं हुआ उल्टे कामरेड अंजान की छ्वी खराब करने हेतु अङ्ग्रेज़ी पत्रिकाओं का सहारा लिया गया जिसके कारण उनको खंडन व बचाव में ऊर्जा व्यय करनी पड़ी । ऐसा अचानक अभी नहीं शुरू हो गया है बल्कि योजनाबद्ध ढंग से राष्ट्रीय सचिव के रूप में बनी अंजान साहब की छ्वी को धूमिल करने का अभियान सतत चलता रहता है। 26 दिसंबर 2010 को भाकपा के स्थापना दिवस पर प्रदेश कार्यालय में आयोजित सभा में मुख्य वक्ता के रूप में अंजान साहब के बोलने के बाद संचालक महोदय ने IAC के अरविंद केजरीवाल को बुलवाया था जो कि सरासर मुख्य वक्ता का अपमान था। उन संचालक महोदय की भाषा में अंजान साहब के लिए अश्लील शब्दों का प्रयोग आम बात है। वैसे वह सभी वरिष्ठ नेताओं का निरादर करने में ही अपनी काबिलियत समझते हैं। अखबार में आ आ पा के समर्थन में डॉ गिरीश का बयान उन संचालक महोदय की नीतियों के अनुरूप ही है। 

आ आ पा का गठन नरेंद्र मोदी की खराब छ्वी के चलते उनके विकल्प के रूप में अरविंद केजरीवाल को प्रतिस्थापित करने हेतु देशी-विदेशी कारपोरेट द्वारा किया गया है तो भला वह वामपंथ के मुद्दे कैसे छीन सकता है? क्या वामपंथ का उद्देश्य मोदी के स्थान पर केजारीवाल की फासिस्ट तानाशाही स्थापित करना था? यह कैसे हो सकता है? अतः आ आ पा को भाजपा के साथ ही निशाने पर रख वामपंथ को मजबूत किया जा सकता है अन्यथा कारपोरेट और मीडिया इस अंतर्विरोध का लाभ वामपंथ विरोधियों को पहुंचाता ही रहेगा।


 संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश 

1 comment:

  1. Left is the real alternative. Natrurally, the corporate sector controlled media will never project Left as viable alternative. The parties like congress, BJP etc really cater to the same corporate sector. Hence the media will project them only.

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