Friday 27 June 2014

रेल हादसों की ज़िम्मेदारी माओवादियों की या निजीकरण के पक्षपातियों की?---विजय राजबली माथुर

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प्रस्तुत लेख में छपरा के निकट हुये रेल हादसे के मद्देनजर तटस्थ भाव दिखाने का प्रयत्न किया गया है। लेखक ने माना है कि परिस्थितियों के अनुसार इसमें माओवादियों का हाथ हो भी सकता है और नहीं भी हो सकता है। लेखक महोदय ने एक महत्वपूर्ण बात को उठाया है कि जहां माओवादियों का अस्तित्व भी नहीं है वहाँ भी रेल हादसे होते हैं। लेखक ने रेलवे के सिस्टम को इसके लिए जिम्मेदार बताते हुये यह भी निष्कर्ष दिया है कि बड़े रेल सिस्टम को सरकार खुद मेनेज करने मे सक्षम नहीं है। लेखक ने सुझाव दिया है कि पी पी पी योजना के अंतर्गत संरक्षा को लाना चाहिए। 

आज़ादी के बाद ब्रिटेन,अमेरिका समेत सभी साम्राज्यवादी देशों ने भारत को 'तकनीक' देने से इंकार कर दिया था तब सोवियत रूस ने आधारभूत ढांचे की स्थापना मे भारत को सहयोग दिया था। नेहरू सरकार ने रूस के सहयोग से भिलाई,रांची,बोकारो,दुर्गापुर में सरकारी क्षेत्र में आधारभूत उद्योगों की स्थापना की थी। उससे पहले रेलवे,एयर लाईन्स,टेलीफोन  आदि का राष्ट्रीयकरण करके सरकारी नियंत्रण में ले लिया था। इस प्रकार देश में तीव्र औद्योगिक विकास संभव हो सका था। 

लेकिन औद्योगिक विकास ने निजी क्षेत्र को भी फलने-फूलने का  अवसर प्रदान किया है।टाटा,रिलायंस,बिरला आदि औद्योगिक घराने इतने शक्तिशाली हो गए हैं कि इस बार उनकी पसन्द का व्यक्ति प्रधानमंत्री भी बन चुका है। पिछली भाजपा सरकार में 'विनिवेश मंत्रालय' बना कर सरकारी कारखानों को निजी क्षेत्रों को सौंपा गया था।टेलीफोन विभाग को तोड़ कर अंडरटेकिंग में बदला गया जिसे अंततः रिलायंस को सौंपे जाने की तैयारी है। राज्यों में भी बिजली विभाग को तोड़ कर अंडरटेकिंग में तब्दील किया गया है। धीरे-धीरे निजी बिजली कंपनियों को इसे सौंपने की चालें चली जा रही हैं। 

रेलवे को भी निजी औद्योगिक घरानों को सौंपने की दिशा में पहले  पब्लिक प्राईवेट पार्टनरशिप  की योजनाएँ चलाई जानी हैं। निजी क्षेत्र में आरक्षण न होने से पिछड़े व दलित वर्ग के लोगों के लिए रोजगार के अवसर भी सीमित हो जाएँगे तथा कर्मचारियों के शोषण के अवसर बढ़ जाएँगे। सरकार और सरकारी कर्मचारियों को नाकारा साबित करने का अभियान निजी क्षेत्र के हितों के मद्देनजर ही चलाया जा रहा है। अतः बहुत संभव है कि निजी क्षेत्र के हिमायती ही इन रेल हादसों को अंजाम दे रहे हों। इसका संकेत प्रस्तुत लेख के निष्कर्ष से भी मिल जाता है। 


 संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश

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