Sunday 4 January 2015

प्रेम और विरह के यशस्वी गीतकार गोपाल दास नीरज ----- ध्रुव गुप्त


जन्मदिन / नीरज (4 जनवरी):
फूलों के रंग से, दिल के कलम से तुझको लिखी रोज पाती !
प्रेम और विरह के यशस्वी गीतकार गोपाल दास नीरज के गीतों के श्रृंगार ने कभी हमारे युवा सपनों को आसमान और परवाज़ बख़्शा था। उनके गीतों में बड़ी खामोशी से चीखती विगत प्रेम की वेदना और टीस कभी हमारी नम आंखों के लिए रूमाल हुआ करती थी। हिंदी कविता के पूर्वग्रहग्रस्त वामपंथी आलोचकों द्वारा निरंतर हाशिए पर रखे गए नीरज जी ने हिंदी गीतों और ग़ज़लों को समृद्ध करने के अलावा मेरा नाम जोकर, गैम्बलर, तेरे मेरे सपने, पहचान, नई उमर की नई फसल, पतंगा, चा चा चा, दुनिया, शर्मीली, प्रेम पुजारी, छुपा रुस्तम जैसी फिल्मों के गीतों को जो तेवर, कोमलता, विचार और संस्कार दिए, वह अभूतपूर्व था। अगाध प्रेम और शाश्वत विरह के इस महाकवि के जन्मदिन पर उनके लंबे और सृजनशील जीवन की अशेष शुभकामनाएं, उन्हीं की पंक्तियों के साथ !

 "प्यार अगर थामता न पथ में ऊंगली इस बीमार उमर की
हर पीड़ा वेश्या बन जाती, हर आंसू आवारा होता !

मन तो मौसम सा चंचल है, सबका होकर भी न किसी का
अभी सुबह का कभी शाम का, अभी रुदन का अभी हंसी का
और इसी भौरे की गलती क्षमा न यदि ममता कर देती
ईश्वर तक अपराधी होता, पूरा खेल दुबारा होता !

हर घर-आंगन रंगमंच है, औ' हर एक सांस कठपुतली
प्यार सिर्फ वह डोर कि जिसपर नाचे बादल, नाचे बिजली
तुम चाहे विश्वास न लाओ लेकिन मैं तो यही कहूंगा
प्यार न होता धरती पर तो सारा जग बंजारा होता !
"

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