Wednesday 28 January 2015

सुमन कल्याणपुर : संगीत-राजनीति का निर्मम शिकार --- ध्रुव गुप्त






 जन्मदिन पर  विशेष -----
साभार : 

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यूं ही दिल ने चाहा था रोना रुलाना
तेरी याद तो बन गई एक बहाना !


सुमन कल्याणपुर, मुबारक बेगम और शमशाद बेगम हिंदी सिनेमा के सुनहरे दौर की उन बेहतरीन गायिकाओं में थीं जो अपनी आवाज़ और अदायगी की बेपनाह नेमतों के बावजूद उस दौर की संगीत-राजनीति का निर्मम शिकार हो गईं| सुमन जी की रेशमी, कांपती आवाज़ रूमानी और विरह गीतों के लिए सबसे उपयुक्त आवाज़ थी, लेकिन उन्हें अपना जादू चलाने के पर्याप्त मौके नहीं मिले| उन्होंने लता जी और आशा जी की तुलना में बहुत कम गीत गाए, लेकिन बावजूद इसके उनके पचासों गीत हमारी अनमोल संगीत-धरोहर का मूल्यवान हिस्सा है |1954 में अपनी फिल्मी पारी की शुरूआत करने वाली सुमन जी के कुछ कालजयी एकल और युगल गीत हैं - न तुम हमें जानो न हम तुम्हें जानें, दिल गम से जल रहा है जले पर धुआं न हो, यूं ही दिल ने चाहा था रोना रुलाना, मेरे महबूब न जा आज की रात न जा, बुझा दिए हैं खुद अपने हाथों मुहब्बतों के दीये जला के, तुम अगर आ सको तो आ जाओ, सावरिया रे अपनी मीरा को भूल न जाना, ज़िंदगी ज़ुल्म सही ज़बर सही गम ही सही, इतने बड़े ज़हां में अपना भी कोई होता, जूही की कली मेरी लाडली, बहना ने भाई की कलाई पे प्यार बांधा है, शराबी शराबी ये सावन का मौसम, तुम्ही मेरे मीत हो, ना ना करते प्यार तुम्ही से कर बैठे, अजहू न आए बालमा सावन बीता जाए, तुमने पुकारा और हम चले आए, चुरा ले न तुमको ये मौसम सुहाना, दिल ने फिर याद किया बर्क सी लहराई है, अंखियों का नूर है तू अंखियों से दूर है तू, आपसे हमको बिछड़े हुए एक ज़माना बीत गया, आजकल तेरे मेरे प्यार के चर्चे हर जुबान पर, दिल एक मंदिर है, इतना है तुमसे प्यार मुझे मेरे राजदार, तुझे प्यार करते हैं करते रहेंगे, मेरा प्यार भी तू है ये बहार भी तू है !

जन्मदिन पर सुमन कल्याणपुर के लंबे, स्वस्थ और सृजनात्मक जीवन की शुभकामनाएं !

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