Wednesday, 11 February 2015

यज्ञ का रथ - घोडा उनके ही अंश ने रोका था किसी और ने नहीं ।। तब भी और अब भी ------- अरविन्द विद्रोही

Arvind Vidrohi 59 mins · शुभ संध्या -- मित्रों - मित्रानियों:
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 दिल्ली विधानसभा का चुनावी परिणाम आने के पश्चात् टी वी पर चर्चाओं में , अख़बारों में और सोशल मीडिया में हर जगह एक बात जरुर इंगित हुई कि नरेन्द्र मोदी - भाजपा के अश्वमेघ यज्ञ का रथ / घोडा दिल्ली में अरविन्द केजरीवाल - आआपा ने रोक लिया । उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव भी बरबस बोल ही पड़े कि दिल्ली में अरविन्द केजरीवाल ने मोदी को सबक सिखाया और हम अब उत्तर प्रदेश में बड़ा दांव देंगे ,पटखनी देंगे । शायद अखिलेश यादव यह भूल गए हैं कि दिल्ली विधानसभा चुनाव से बड़ी विजय समाजवादी पार्टी उनके युवा नेतृत्व में 2012 के आम विधान सभा चुनाव में हासिल कर चुकी है । कुछ समाजवादियों का तो मानों भाग्य उदय हो गया हो दिल्ली में आआपा की जीत से । बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बिहार से लेकर दिल्ली की सड़क तक बिहार के जनता दल यू विधायकों को मानो बगल में दबाये भ्रमण कर रहे हैं , उनको बहुत भय है कि तनिक से ढील हुई तो जो किसी तरह सहेजे हैं वो भी मटियामेट हो जायेगा । लेकिन वे दुसरे पर हर तरह का आरोप लगाने से नही चूक रहे हैं । पुनः बिहार का मुख्यमंत्री बनने के पुरे प्रयास में लगे नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यू इस बार दिल्ली में एक भी सीट पर चुनाव नही लड़ी जबकि उनका संगठन भी है और पिछले चुनाव में लडे जीते भी थे । लेकिन बिहार में जीतन राम मांझी के कुर्सी छोड़ने के इंकार से उठे दर्द को तनिक राहत देने के लिए दवा दिल्ली में भाजपा की करारी शिकस्त ने नीतीश कुमार को दे ही दिया । और नीतीश कुमार कहते भी हैं -- दिल्ली ने मोदी सरकार के खिलाफ जनादेश दिया है ।। एक बात तो सभी के सामने है कि आआपा को प्रचंड बहुमत हासिल हुआ दिल्ली में और अगर नीतीश कुमार सहित तमाम नेताओं को लगता है कि यह दिल्ली का जनादेश नरेन्द्र मोदी के खिलाफ , केंद्र की भाजपा सरकार के खिलाफ पुरे देश का मन है तो क्या यह सत्य नही है कि यह जनादेश अरविन्द केजरीवाल - आआपा को हासिल हुआ है और कांग्रेस को तो बिलकुल ही ख़ारिज कर दिया जनता ने । और अगर दिल्ली का यह जनादेश पुरे देश की जनता के मन को प्रदर्शित करता है तो इस तथ्य को कहने मानने वाले समस्त नेताओं को निश्चित रूप से अब अरविन्द केजरीवाल -- आआपा का नेतृत्व स्वीकारना चाहिए । क्यूंकि इन सभी बधाई पर बधाई प्रेषित करने वाले सभी सामाजिक न्याय के समाजवादी पुरोधाओं की दृष्टि में दिल्ली की भाजपा की करारी हार से मोदी का घमंड टुटा और उनके झूठे वायदों की कलई खुली । खैर हार जीत के कारण के विश्लेषण में न जाकर मैं जनता परिवार के धुरंधरों का ध्यान आआपा नेता योगेन्द्र यादव के कथन कि अब हम पुरे देश में भाजपा मोदी विरोधी दलों को एकजुट करेंगे की तरफ आकृष्ट कराना चाहता हूँ । क्या जनता परिवार के आपके एकीकरण का प्रयास निष्फल हो चुका है ?? 

 अब बात हो अश्वमेघ यज्ञ के रथ / घोड़े की । दिल्ली चुनाव परिणाम के बाद यह उदाहरण अनवरत जारी है सो मेरा भी हस्तक्षेप जरुरी ही है । यह उदाहरण आया अयोध्या के सूर्यवंशी राजा रामचंद्र के अश्वमेघ यज्ञ के दौरान तत्कालीन परंपरा अनुसार छोड़े गए रथ को दो वनवासी बालक लव एवं कुश के द्वारा अपनी बाल सुलभ चंचलता के कारण रोक लेने से । लंका विजय के पश्चात् वनवासी राम से अयोध्या के राजा बने राम के अनुज लक्ष्मण ,हनुमान सहित सम्पूर्ण वीर अपनी अपनी शक्ति में चूर थे । बाल सुलभ चंचलता में , अश्व - रथ पसंद आने के कारण रथ को रोक चुके लव - कुश से अयोध्या के राजा राम के शक्ति मद में चूर वीर हारे , घायल हुए और मुँह की खाए । अश्वमेघ यज्ञ का रथ घोडा दो वीर बालकों ने रोका था । वे वनवासी बालक थे , अपनी माँ के साथ ऋषि के आश्रम में रहते थे । स्वाभाविक था तमाम वीरों को शिकस्त देने के पश्चात् माँ और ऋषि गुरु को सूचित करना ।। अंत में अब होता क्या है ? ऋषि अश्वमेघ यज्ञ का रथ घोडा देखकर वीर लव कुश को बताते हैं कि यह तो तुमने गलत किया । यह तो उनका रथ है जिनके तुम अंश हो । यह अश्वमेघ यज्ञ का रथ घोडा तो अयोध्या के सूर्यवंशी राजा राम का है और इसे छोड़ दो । यह यज्ञ पूरा होना अति आवश्यक है और ऋषि गुरु के आदेश को शिरोधार्य करते हुए वीर लव- कुश अश्वमेघ यज्ञ के रथ - घोड़े को छोड़ देते हैं । तत्कालीन कथा के अनुसार ही लव - कुश के द्वारा अश्वमेघ यज्ञ के इस रथ - घोड़े को पकड़ कर फिर छोड़ने के पश्चात् किसी ने भी उस वक़्त अश्वमेघ यज्ञ के उस घोड़े को पकड़ने की चेष्टा नही की थी । लंका विजय करने वाले सभी वीरों का गर्व भी चकनाचूर हुआ , अयोध्या के राजा राम के वनवासी पुत्रों लव - कुश का बाहुबल भी स्थापित हुआ और अश्वमेघ यज्ञ भी पूरा हुआ ।। तो दिल्ली के चुनावी परिणामों के पश्चात् अश्वमेघ यज्ञ के घोड़े की उपमा से क्या समझा जाये ? पत्रकारों की कलम ने भी अश्वमेघ यज्ञ के घोड़े का जिक्र किया और श्री मुख ने भी । समाजवादियों ने भी खूब यह बात दोहराई तो क्या अब भी यह बात आप के समझ में न आई कि जब चर्चा अश्वमेघ यज्ञ के रथ घोड़े को रोकने की होगी तो ध्यान देना चाहिए कि रथ रूका तो परन्तु क्या रूका ही रहा ? और रथ रोका किसने था उस युग में भी और इस युग में भी ?? रथ रुका तो पर छोड़ने के पश्चात् अयोध्या के राजा राम का अश्वमेघ यज्ञ सकुशल विधिवत पूरा भी हुआ और रथ - घोडा रोककर ख्याति अर्जित करने वाले वीर बालक लव - कुश अयोध्या समारोह में शामिल भी हुए और कालांतर में अयोध्या के शासक भी हुए । और यह उदाहरण पेश करने वालों को क्या यह कथा ज्ञात नही थी ? अगर नही थी तो जान लीजिये कि अयोध्या के राजा राम के अश्वमेघ यज्ञ का रथ - घोडा उनके ही अंश ने रोका था किसी और ने नहीं ।। तब भी और अब भी
 ------- अरविन्द विद्रोही

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