March 13 ·
रूपेश
वत्स जी, पता नहीं आपके द्वारा दिए गए इस सम्मान के हकदार हैं भी या
नहीं , पर आभारी है आपके इस अनोखी पहल में जगह पाकर। तहे दिल से शुक्रिया ।
https://www.facebook.com/anita.gautam.39/posts/794873853934922
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एक
बेहतर सफल गृहणी के साथ-साथ अपने सपनो को पूरा करना किसी चुनौती से कम
नहीं ! इसके लिए जज्बा और हिम्मत की जरूरत होती है जो शायद हर महिलाओं में
नहीं होती है ! “पत्रकार एक नजर में” सीरिज के 18वें अंक में मिलिए प्रतिभा
की धनी, कलम की खिलाड़ी और महिलाओं के लिए प्रेरणास्रोत अनीता गौतम जी से
:-
अनिता गौतम जी का जन्म 24 जून को पटना में हुआ था ! इनकी प्रारंभिक शिक्षा राजकीय कन्या उच्च विद्यालय, पटना में हुयी ! इन्होने एम.ए की पढाई इतिहास विषय से ए.एन. कॉलेज पटना, मगध विश्वविद्यालय से की ! हिन्दी लेखन में इनकी विशेष रूचि रही है राजनीति पर विशेष नजर के साथ-साथ समाजिक सरोकार से जुड़ी ख़बरें लिखना इन्हें खूब पसंद है ! इनका मानना है की सामाजिक सरोकार से जुड़े मुद्दों पर लिखने से ही समाजिक उत्थान संभव है ! पहली बार इनकी एक अपनी कविता के अलावा दो रिपोर्ट दिल्ली से निकलने वाली अखबार अमृत-वर्षा में छपी थी । इसके बाद इन्होने पत्रकारिता की शुरुआत की ! अनीता जी डीएनए, बिंदिया , प्रभात खबर, स्कैनर, चर्चित बिहार, बिहार अभ्युदय आदि मैगजीन और अखबारों के लिए भी लगातार विभन्न विषयों पर लिखती रही हैं ! वर्तमान समय में तेवर तेवरऑनलाइन डॉट कॉम (www.tewaronline.com) में संयुक्त संपादक के पद पर कार्यरत हैं । इसके अलावा भारत के पड़ोसी देशों से बनते बिगड़ते रिश्ते और इनमें सुधार की गुंजाइश पर नजर रखना भी इनके शौक में शामिल है । बिहार की बेहतरी के लिए भी लिखना इन्हें अच्छा लगता है। ये महिला और उनसे जुड़ी समस्याएं और उनके निदान पर विचार- विमर्श में शामिल होती रहती हैं हाल ही में मुझे भी इन्हें दूरदर्शन पर वाद-विवाद में देखने का मौका मिला ! इनकी एक खासियत यह भी है की ये सिर्फ बहस में भाग नहीं लेती बल्कि बहस के बाद जो निकल कर आता है उन पर लिखती भी है । नये लेखकों की किताबें पढ़ना और उनकी समीक्षा करना इनके शौक में शुमार है साथ ही लिखना और खूब पढ़ना पसंद है। कहानी औऱ कविता लिखना , छोटी छोटी लाइनों में अपनी बात लिखना , हिन्दी को सरह बनाती हैं ! इनका यह मानना है की अलंकृत भाषा ने युवा पीढी को हिन्दी से दूर कर दिया है इसलिए ये आसान शब्दों में अपनी बात को युवाओं को समझाने की कोशिश करती हूं। सोशल साईट फेसबुक पर भी इनकी जोरदार उपस्थिति हैं व्यक्तिगत तौर पर मैं इनके लिखे किसी सन्देश, खबरे आदि मिस नहीं करता ! इनके लेखनी में केवल दम ही नहीं बल्कि बेहतरीन जानकारी छिपी होती है ! अनीता जी हमारे समाज के लिए किसी आदर्श से कम नहीं हैं ! मैं इनके लेखनी का मुरीद हूँ और इनके होंसले और जज्बे को सलाम करता हूँ ! इनकी लिखी एक कहानी आप भी इस लिंक को खोलकर पढ़ सकते हैं **+**
http://tewaronline.com/?p=2181&cpage=1#comment-9084
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**+**इंगित कहानी पर मैंने यह टिप्पणी दी थी :
vijai mathur says:
अनिता गौतम जी का जन्म 24 जून को पटना में हुआ था ! इनकी प्रारंभिक शिक्षा राजकीय कन्या उच्च विद्यालय, पटना में हुयी ! इन्होने एम.ए की पढाई इतिहास विषय से ए.एन. कॉलेज पटना, मगध विश्वविद्यालय से की ! हिन्दी लेखन में इनकी विशेष रूचि रही है राजनीति पर विशेष नजर के साथ-साथ समाजिक सरोकार से जुड़ी ख़बरें लिखना इन्हें खूब पसंद है ! इनका मानना है की सामाजिक सरोकार से जुड़े मुद्दों पर लिखने से ही समाजिक उत्थान संभव है ! पहली बार इनकी एक अपनी कविता के अलावा दो रिपोर्ट दिल्ली से निकलने वाली अखबार अमृत-वर्षा में छपी थी । इसके बाद इन्होने पत्रकारिता की शुरुआत की ! अनीता जी डीएनए, बिंदिया , प्रभात खबर, स्कैनर, चर्चित बिहार, बिहार अभ्युदय आदि मैगजीन और अखबारों के लिए भी लगातार विभन्न विषयों पर लिखती रही हैं ! वर्तमान समय में तेवर तेवरऑनलाइन डॉट कॉम (www.tewaronline.com) में संयुक्त संपादक के पद पर कार्यरत हैं । इसके अलावा भारत के पड़ोसी देशों से बनते बिगड़ते रिश्ते और इनमें सुधार की गुंजाइश पर नजर रखना भी इनके शौक में शामिल है । बिहार की बेहतरी के लिए भी लिखना इन्हें अच्छा लगता है। ये महिला और उनसे जुड़ी समस्याएं और उनके निदान पर विचार- विमर्श में शामिल होती रहती हैं हाल ही में मुझे भी इन्हें दूरदर्शन पर वाद-विवाद में देखने का मौका मिला ! इनकी एक खासियत यह भी है की ये सिर्फ बहस में भाग नहीं लेती बल्कि बहस के बाद जो निकल कर आता है उन पर लिखती भी है । नये लेखकों की किताबें पढ़ना और उनकी समीक्षा करना इनके शौक में शुमार है साथ ही लिखना और खूब पढ़ना पसंद है। कहानी औऱ कविता लिखना , छोटी छोटी लाइनों में अपनी बात लिखना , हिन्दी को सरह बनाती हैं ! इनका यह मानना है की अलंकृत भाषा ने युवा पीढी को हिन्दी से दूर कर दिया है इसलिए ये आसान शब्दों में अपनी बात को युवाओं को समझाने की कोशिश करती हूं। सोशल साईट फेसबुक पर भी इनकी जोरदार उपस्थिति हैं व्यक्तिगत तौर पर मैं इनके लिखे किसी सन्देश, खबरे आदि मिस नहीं करता ! इनके लेखनी में केवल दम ही नहीं बल्कि बेहतरीन जानकारी छिपी होती है ! अनीता जी हमारे समाज के लिए किसी आदर्श से कम नहीं हैं ! मैं इनके लेखनी का मुरीद हूँ और इनके होंसले और जज्बे को सलाम करता हूँ ! इनकी लिखी एक कहानी आप भी इस लिंक को खोलकर पढ़ सकते हैं **+**
http://tewaronline.com/?p=2181&cpage=1#comment-9084
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**+**इंगित कहानी पर मैंने यह टिप्पणी दी थी :
vijai mathur says:
‘सच्चा प्यार’ और ‘दिली मोहब्बत’ को
‘बेबसी’ के रूप मे मार्मिक ढंग से पेश करके आपने समाज मे व्याप्त ढ़ोंगी
-पाखंडी धार्मिक रूढ़ियों के जिंदंगियों पर पड़ने वाले ‘मनोवैज्ञानिक प्रभाव’
को बखूबी रेखांकित किया है।
http://tewaronline.com/?p=2181&cpage=1#comment-9084
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मीडिया में महिलाओं की भूमिका उनकी स्थिति और स्थान आज चौतरफा बहस का मुद्दा बना हुआ है। हर क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी को अनमने मन से भले स्वीकार किया जा रहा है पर उनकी वास्तविक स्थिति आज भी समाज में कमतर आंकी जाती है। मीडिया संस्थानों में महिला पत्रकारों की स्थिति दोयम दर्जे की है, इस कड़वे सच से इनकार नहीं किया जा सकता है। कदम कदम पर यहां नारी विभेद की तस्वीर बिल्कुल साफ देखी जा सकती है।
महिलाओं की स्थिति की समीक्षा जब कभी करने की कोशिश होती है, तो उसी क्षेत्र के पुरुषों की कार्य शैली से की जाती है। आकड़ों को ही आधार बनाया जाये तो पत्रकारिता में आज महिला कहां खड़ी हैं, खासकर पुरुषों की तुलना में तो उनकी असमान्य उपस्थिति को समझना मुश्किल नहीं है। दूसरे कार्यक्षेत्रों की तरह मीडिया में भी नारी विभेद का मतलब उनकी क्षमता को कम कर के आंकना, पुरुषवादी सोच और महिलाओं की दीन-हीन दशा का प्रस्तुतिकरण ही आधार बनता है। सबसे ज्यादा हैरानी इस बात पर होती कि स्त्री के आधुनिकीकरण और उनके बराबरी के अधिकारों को भी मनोविज्ञान की कसौटी पर तराशा जाता है।
नारी विभेद और मनोवैज्ञानिक आधार उन्हें संरंक्षण की श्रेणी में लाता है पर खुल कर लिखने की आजादी से वंचित कर देता है। महिला पत्रकार का मतलब महिलाओं की समस्या को समझने की कोशिश और उसी आधार पर लेखन की उम्मीद, व्यवहारिक समस्याओं के समाधान की पहल, समाज में स्त्री पर बर्बरता की कहानियों के आधार पर महिला पत्रकारों की लेखनी का बांधा जाना मीडिया में महिलाओं के लिये सर्वमान्य है।
देश की राजधानी की बात अगर छोड़ दे तो छोटे छोटे राज्यों और गांव कस्बों में महिला पत्रकार अपनी मूलभूत सुविधाओं तक से भी वंचित हैं। यूं तो पत्रकार को किसी जेंडर में नहीं बांधा जा सकता है पर बात जब लेखनी और उसकी स्वतंत्रता की हो तो इस अलगाव को बड़ी सहजता से समझा जा सकता है। महिला पत्रकारिता सुरक्षा और संरंक्षणात्मक हो गयी है जबकि इसे अपनी पहचान और बराबरी की दरकार है। सूचना और प्रसारण मंत्रालय के साथ साथ मीडिया हाउस भी महिला पत्रकारिता में बराबरी की अवहेलना करता आया है।
आत्मविश्वास और दृढ़ इच्छा शक्ति से भरी महिलायें बड़ी संख्या में पत्रकारिता में अपने कदम रखती है, परन्तु पुरुषों की सनक भरी पत्रकारिता की शिकार होकर हाशिये पर ढकेल दी जाती हैं या फिर उनकी कलम की धार को कांट-छांट और संपादन के नाम पर कुंद कर दिया जाता है।
इन सबके साथ समय समय मीडिया में महिला की स्थिति की जो तस्वीर निकल कर आती है उस से पूरी पत्रकारिता को शर्मशार होना पड़ता है।
साहित्य और मीडिया में महिलाओं की लेखनी अपने मुकाम तक पहुंचे इसके लिए उनकी भागीदारी को बढ़ाना, साथ में हर गतिविधि में उन्हें सम्मान मिले ऐसी संभावनाओं पर विचार करने की जरुरत है। सुरक्षा, सहयोग, संकोच और विशेष सुविधाओं से बाहर आकर अपने अस्तित्व की पहचान करनी होगी। व्यवहारिक स्तर पर मानसिकता की बराबरी को तवज्जो देना और आत्मसम्मान की जरूरत पर बल देने की आवश्यकता है।
http://tewaronline.com/?p=2181&cpage=1#comment-9084
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https://www.facebook.com/anita.gautam.39/posts/668987146523594
मीडिया में आधी आबादी की नगण्य भागीदारी!
अनिता गौतम.मीडिया में महिलाओं की भूमिका उनकी स्थिति और स्थान आज चौतरफा बहस का मुद्दा बना हुआ है। हर क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी को अनमने मन से भले स्वीकार किया जा रहा है पर उनकी वास्तविक स्थिति आज भी समाज में कमतर आंकी जाती है। मीडिया संस्थानों में महिला पत्रकारों की स्थिति दोयम दर्जे की है, इस कड़वे सच से इनकार नहीं किया जा सकता है। कदम कदम पर यहां नारी विभेद की तस्वीर बिल्कुल साफ देखी जा सकती है।
महिलाओं की स्थिति की समीक्षा जब कभी करने की कोशिश होती है, तो उसी क्षेत्र के पुरुषों की कार्य शैली से की जाती है। आकड़ों को ही आधार बनाया जाये तो पत्रकारिता में आज महिला कहां खड़ी हैं, खासकर पुरुषों की तुलना में तो उनकी असमान्य उपस्थिति को समझना मुश्किल नहीं है। दूसरे कार्यक्षेत्रों की तरह मीडिया में भी नारी विभेद का मतलब उनकी क्षमता को कम कर के आंकना, पुरुषवादी सोच और महिलाओं की दीन-हीन दशा का प्रस्तुतिकरण ही आधार बनता है। सबसे ज्यादा हैरानी इस बात पर होती कि स्त्री के आधुनिकीकरण और उनके बराबरी के अधिकारों को भी मनोविज्ञान की कसौटी पर तराशा जाता है।
नारी विभेद और मनोवैज्ञानिक आधार उन्हें संरंक्षण की श्रेणी में लाता है पर खुल कर लिखने की आजादी से वंचित कर देता है। महिला पत्रकार का मतलब महिलाओं की समस्या को समझने की कोशिश और उसी आधार पर लेखन की उम्मीद, व्यवहारिक समस्याओं के समाधान की पहल, समाज में स्त्री पर बर्बरता की कहानियों के आधार पर महिला पत्रकारों की लेखनी का बांधा जाना मीडिया में महिलाओं के लिये सर्वमान्य है।
देश की राजधानी की बात अगर छोड़ दे तो छोटे छोटे राज्यों और गांव कस्बों में महिला पत्रकार अपनी मूलभूत सुविधाओं तक से भी वंचित हैं। यूं तो पत्रकार को किसी जेंडर में नहीं बांधा जा सकता है पर बात जब लेखनी और उसकी स्वतंत्रता की हो तो इस अलगाव को बड़ी सहजता से समझा जा सकता है। महिला पत्रकारिता सुरक्षा और संरंक्षणात्मक हो गयी है जबकि इसे अपनी पहचान और बराबरी की दरकार है। सूचना और प्रसारण मंत्रालय के साथ साथ मीडिया हाउस भी महिला पत्रकारिता में बराबरी की अवहेलना करता आया है।
आत्मविश्वास और दृढ़ इच्छा शक्ति से भरी महिलायें बड़ी संख्या में पत्रकारिता में अपने कदम रखती है, परन्तु पुरुषों की सनक भरी पत्रकारिता की शिकार होकर हाशिये पर ढकेल दी जाती हैं या फिर उनकी कलम की धार को कांट-छांट और संपादन के नाम पर कुंद कर दिया जाता है।
इन सबके साथ समय समय मीडिया में महिला की स्थिति की जो तस्वीर निकल कर आती है उस से पूरी पत्रकारिता को शर्मशार होना पड़ता है।
साहित्य और मीडिया में महिलाओं की लेखनी अपने मुकाम तक पहुंचे इसके लिए उनकी भागीदारी को बढ़ाना, साथ में हर गतिविधि में उन्हें सम्मान मिले ऐसी संभावनाओं पर विचार करने की जरुरत है। सुरक्षा, सहयोग, संकोच और विशेष सुविधाओं से बाहर आकर अपने अस्तित्व की पहचान करनी होगी। व्यवहारिक स्तर पर मानसिकता की बराबरी को तवज्जो देना और आत्मसम्मान की जरूरत पर बल देने की आवश्यकता है।