Monday, 13 July 2015

पाठकों को उत्प्रेरित करने वाला लेखन हो : गिरीश चंद्र श्रीवास्तव

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 फोटो कटिंग्स जनसंदेश  टाईम्स , लखनऊ  दिनांक : 13 जूलाई 2015 से साभार ---


 लखनऊ के क़ैसर बाग स्थित 'जय शंकर प्रसाद सभागार', में  इप्टा द्वारा आयोजित गोष्ठी के दूसरे सत्र के अध्यक्षीय वक्तव्य में 'निष्कर्ष' के संपादक गिरीश चंद्र श्रीवास्तव साहब  ने उन तथ्यों पर प्रकाश डाला जिनके जरिये पाठकों की मनोदशा को वांछनीय दिशा में मोड़ा जा सकता है। उन्होने मुख्य रूप से मोहन राकेश की कहानियों की चर्चा की और कृष्णा सोबती की रचना कला का भी वर्णन किया। उनका दृष्टिकोण था कि केवल 'यथार्थ' को लक्ष्य करके हम पाठकों की मनोदशा को नहीं बदल सकते हैं। समय और परिस्थितियों के अनुकूल लेखन द्वारा पाठकों को सही दिशा में उत्प्रेरित करने का कार्य किया जाना चाहिए अन्यथा आज का लेखन आने वाले कल में 'अप्रासांगिक' हो जाएगा। इस संबंध में उन्होने मुंशी प्रेमचंद जी का उदाहरण दिया कि उनका लेखन आज भी उतना ही प्रासांगिक है जितना उनके काल में था और उससे आज भी प्रेरणा मिलती है। 

गोष्ठी के अंत में राकेश जी द्वारा सूचना दी गई कि 'इप्टा' व 'प्रलेस' के संयुक्त तत्वावधान में 31 जूलाई -'प्रेमचंद जयंती' पर 'राय उमानाथ बली प्रेक्षागृह' में संक्षिप्त गोष्ठी के उपरांत प्रेमचंद जी की दो कहानियों का नाट्य मंचन किया जाएगा। धन्यवाद ज्ञापन प्रदीप घोष ने किया।
( संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश)

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