Tuesday 18 August 2015

उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा 'अमृतलाल नागर जन्म शताब्दी समारोह' --- विजय राजबली माथुर

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कल दिनांक 17 अगस्त 2015 को  प्रातः 11 बजे उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, हज़रत गंज, लखनऊ में 'अमृतलाल नागर जन्म शताब्दी समारोह' का प्रारम्भ दीप प्रज्वलन,माल्यार्पण और  सरस्वती वंदना से हुआ। मंचस्थ अतिथियों  डॉ प्रभाकर श्रोत्रिय , बंधु कुशावर्ती,डॉ दीप्ति गुप्ता,नासिरा शर्मा,डॉ सूर्य प्रसाद दीक्षित,डॉ अचला नगर ,बेकल उत्साही,उदय प्रताप सिंह का अंग वस्त्र प्रदान कर संस्थान के निदेशक डॉ सुधाकर अदीब ने स्वागत किया। गोष्ठी की अध्यक्षता संस्थान के कार्यकारी अध्यक्ष उदय प्रताप सिंह जी ने तथा  कुशल संचालन डॉ अमिता दुबे जी ने किया। अतिथियों व श्रोताओं का स्वागत भाषण डॉ सुधाकर अदीब जी ने दिया। संस्थान की त्रैमासिक पत्रिका 'साहित्य भारती' के अमृतलाल नागर विशेषांक का विमोचन भी अतिथि गण ने किया।सर्व प्रथम लखनऊ दूर दर्शन द्वारा पूर्व प्रसारित एक वृत्त -चित्र भी नागर जी पर दिखाया गया। 
विद्वत जनों ने नागर जी के कहानी,उपन्यास,नाटक,रेडियो नाटक,फिल्मी पट कथा आदि विविध लेखन पर विस्तृत व विशिष्ट प्रकाश डाला। नासिरा शर्मा जी ने श्रोताओं से नागर जी की कहानी 'शकीला 'की माँ' पढ़ने का विशेष आग्रह किया। उदय प्रताप जी ने अपने संस्मरण सुनाते हुये अतिथियों व श्रोताओं का धन्यवाद ज्ञापन किया। 
भोजनोपरांत दिवतीय सत्र का संचालन भी डॉ अमिता दुबे जी ने किया  व अध्यक्षता उदय प्रताप जी ने । प्रारम्भ में नागर जी की सुपुत्री डॉ अचला नागर जी अपने पिताजी के व्यक्तिगत संस्मरण याद करते हुये कुछ उन पत्रों को भी पढ़ कर सुनाया  जिनको बचपन में उनके पिताजी ने उनको लिखा था। उनके बाद उनकी भाभीजी - विभा नगर जी ने भी नागर जी के व्यक्तिगत संस्मरणों की चर्चा की। नागर जी के पौत्र पारिजात अत्यंत भावुक हो जाने के कारण स्वम्य न बोल सके किन्तु हिन्दी संस्थान को आयोजन के लिए धन्यवाद ज्ञापन किया। अचला जी के पुत्र सन्दीपन विमलकान्त नागर ने अपने नानाजी के संस्मरण सुनाते हुये उनको नई पीढ़ी का प्रेरणादायक बताया और उनके प्रति मुलायम सिंह जी के आदर भाव का वर्णन करना भी वह न भूले तथा उदय प्रताप जी को इस आयोजन की प्रेरणा देने के लिए उन्होने कृत्यज्ञता व्यक्त की। नागर जी की पौत्री डॉ दीक्षा नागर ने बचपन से उनके साथ के संस्मरणों को बताते हुये यह दुख भी व्यक्त किया कि इस अवसर पर उनके ताऊजी(कुमुद नागर),ताई जी व उनके पिता डॉ शरद नागर जी नहीं हैं (वे पहले ही दिवंगत हो चुके हैं)। लेकिन डॉ दीक्षा ने कहा कि अमृतलाल नागर जी सिर्फ अपने निजी परिवार के ही नहीं थे। उनका परिवार विस्तृत था सारे समाज को ही वह अपना परिवार मानते थे।इस संबंध में उन्होने अपने बचपन का एक किस्सा सुनाया कि एक बार नागर जी चौक में पान खाने निकले थे वह नौ वर्षीय बालिका थीं और उनके साथ थीं। वह एक चने वाले के पास रुक गए जिसका उनको अचरज हुआ फिर नागर जी ने उनको 'शंकर' कह कर संबोधित किया जिसके जवाब में उन्होने नागर जी को 'अमृत' का सम्बोधन दिया जिससे उनको और भी आश्चर्य हुआ। परंतु बाद में पता चला कि वह उनके सहपाठी थे। नागर जी मनुष्य-मनुष्य के बीच भेद नहीं मानते थे।   मोहन स्वरूप भाटिया जी व सोम ठाकुर साहब ने भी अपने संस्मरणों से श्रोताओं को अवगत कराया। 
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 मेरे बाबूजी (स्व. ताजराज बली माथुर ) लखनऊ के  कालीचरण हाईस्कूल  में जब  पढ़ते थे तब खेल  - कूद में सक्रिय थे। टेनिस में सीनियर ब्वायज एसोसियेशन  की ओर से  पंडित अमृत लाल नागर जी  खेलते थे तब   बाबूजी  तत्कालीन छात्र की हैसियत से उनके साथ खेलते  थे ।  पत्रकार राम पाल सिंह जी ( जो नवभारत टाईम्स , भोपाल के संपादक रहे )  भी बाबूजी के खेल के साथी थे। का.भीखा  लाल जी  तो बाबूजी के रूममेट  और सहपाठी थे  जो जब तहसीलदार बने   तो बाबूजी का उनसे संपर्क टूट गया। इन तीनों का ज़िक्र अपने बाबूजी से बचपन से सुनता रहा हूँ। बाबू जी के खेल के मैदान के साथी रहे अमृतलाल नागर जी के जन्म शताब्दी समारोह का अवलोकन करने पर अपने को भाग्यशाली समझता हूँ।
(विजय राज बली माथुर ) 
https://www.facebook.com/vijai.mathur/posts/926781337383843?pnref=story

  संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश

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