Thursday, 20 August 2015
जयंती पर एक स्मरण : राजीव गांधी
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मणि शंकर अय्यर साहब ने पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी जी के जन्मदिवस पर एक भावपूर्ण लेख द्वारा उनका सही ही स्मरण किया है। परंतु उनके राजनीतिक पक्ष को शायद जान बूझ कर ही छोड़ दिया गया है। निष्पक्ष विश्लेषण हेतु उनके कुछ ऐसे निर्णयों का उल्लेख करना भी समीचीन होगा जिनके परिणाम स्वरूप आज देश में सांप्रदायिकता की पक्षधर और कारपोरेट हितैषी सरकार सत्तारूढ़ है।
हालांकि 1980 में सत्ता में पुनर्वापिसी को आतुर उनकी माँ इंदिरा जी ने ही आर एस एस के गुप्त समझौते व समर्थन को हासिल करके नेहरू जी द्वारा स्थापित 'धर्म निरपेक्षता' की नीति के परित्याग की नींव डाल दी थी। किन्तु राजीव जी ने शाहबानों केस की प्रतिक्रिया में 1989 में विवादित स्थल का ताला खुलवा कर पूजा शुरू करवा कर सांप्रदायिकता की विष- बेल को सिंचित किया था। जबकि 1949 में उप-प्रधानमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल द्वारा राम मंदिर/बाबरी मस्जिद पर ताला लगवा कर विवाद का पटाक्षेप कर दिया गया था। आडवाणी की विध्वंस यात्रा और 1992 का ढांचा -ध्वंस जिसके परिणाम स्वरूप मुंबई दंगे /गोधरा कांड आदि विभाजनकारी घटनाएँ हुईं । इसी ध्रुवीकरण का दुष्परिणाम है केंद्र में सांप्रदायिक / फासिस्ट सरकार की ताजपोशी।
इसके अतिरिक्त केंद्र सरकार का कार्पोरेटीकरण भी राजीव शासन द्वारा ही प्रारम्भ किया गया था। शिक्षा मंत्रालय को मानव संसाधन विकास मंत्रालय में परिणित किया जाना उसका जीता जागता प्रमाण है। वाया मनमोहन सिंह जी मोदी साहब का सरकार को कारपोरेट संस्थानों के हित में चलाया जाना 'जनतंत्र'' से 'जन ' का खात्मा करके फासिस्ट तानाशाही में बदलने की प्रक्रिया का प्रारम्भ राजीव शासन से ही हुआ है। इस तथ्य को भी नहीं भुलाया जाना चाहिए।
संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश
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