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*** अङ्ग्रेज सरकार ने तो क्रांतिकारियों द्वारा 09-08-1925 को लखनऊ के काकोरी स्टेशन पर ट्रेन से ले जाये जा रहे सरकारी खजाने को आज़ादी के संघर्ष के लिए हथियार खरीदने के उद्देश्य से 'हस्तगत' करने को 'लूट' व 'डकैती' की संज्ञा देकर राजद्रोह में कुछ को फांसी व अन्य सजाएँ दी थीं। आज़ादी के 68 वर्ष पूर्ण होने जा रहे हैं और आज़ाद भारत की सरकार ने भी इन क्रांतिकारियों को शहीद का दर्जा नहीं दिया है। सिर्फ फूल चढ़ा कर चित्रों पर मालाएँ पहना कर उनकी रस्मी पूजा भर ही की जाती है। न तो उनके 'त्याग' व 'बलिदान' से कोई सीख ली जाती है न उनका अनुसरण करने का कोई प्रयास किया जाता है नतीजा है-भुखमरी,बेरोजगारी,शोषण,उत्पीड़न व लूट का जस का तस बरकरार रहना।
इसी प्रकार 09-08-1942 से प्रारम्भ हुये गांधी जी के आंदोलन से भी कोई सबक नहीं लिया गया है । यह देशव्यापी आंदोलन भी कई बलिदानों का गवाह बना है।बलिया में तो ब्रिटिश सरकार का अस्तित्व ही समाप्त कर दिया गया था। बदले में दमन और उत्पीड़न का सामना जनता को करना पड़ा था। पटना सचिवालय से छात्रों ने 'यूनियन जैक' को उतार कर तिरंगा फहरा दिया था। सात वीर छात्र अंग्रेज़ सरकार की पुलिस द्वारा शहीद कर दिये गए थे और असंख्य को गिरफ्तार कर कड़ी सजाएँ दी गईं थीं। उनकी स्मृति में वहाँ आर ब्लाक चौराहे पर 'सप्त मूर्ति' बनी हुई हैं। वहाँ भी फूल और मालाएँ चढ़ा कर उनका गुण गान करके खाना पूरती ही की जाती है। आज देश में कहीं भी 'देशप्रेम' की भावना दृष्टिगोचर नहीं हो रही है। लोग परस्पर खून के प्यासे हो रहे हैं एक दूसरे का गला काटने व निजी तिजोरियाँ भरने की कवायद चारों ओर दिखाई दे रही है। जिस उद्देश्य से क्रांतिकारियों व सत्याग्रहियों ने अपनी कुर्बानी दी थी वह विफल हो रहा है।
अपने पूर्वजों की कुर्बानी की रक्षा करना प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है। देश अपना है और इसके प्रत्येक नागरिक को समान अवसर मिलें यह सुनिश्चित करना सरकार का दायित्व है। आपाधापी और सिर्फ अपने लिए जीने की पृवृति को त्यागना होगा तभी देश में खुशहाली लाई जा सकेगी।
संकलन-विजय माथुर,
फौर्मैटिंग-यशवन्त यश
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