नई दिल्ली। हाल ही में देश की सेवा करने वाले जवानों को श्री श्री की सेवा में लगाया गया। जवानों से उनकी कोई इच्छा नहीं पूछी गई और उन्हें इस काम के लिए लगा दिया गया। देशभर में इसका विरोध हुआ। आर्ट ऑफ लिविंग के कार्यक्रम में सैकड़ों जवान बाबा की सेवा में लगाए गए थे, वहीं हरिद्वार में भी बाबा रामदेव के फूड पार्क में सेना के 35 जवान सुरक्षा दे रहे हैं। ये जवान देश के लिए कुछ कर गुजरने के सपने लिए हुए सेना में भर्ती हुए थे। लेकिन इस तरह के काम करके उनके अंदर दर्द है, एक व्यथा है। सैनिकों ने अपनी पीढ़ा व्यक्त की है। दिल्ली में आर्ट ऑफ लिविंग के वर्ल्ड कल्चर फेस्टिवल की सुरक्षा में देश की सारी सेनाओं को सिक्युरीटी के लिए नियुक्त किया गया। पुलिस, सीआरपीएफ, बीएसएफ, ब्लैक कैट कमांडो, एनएसजी के जिम्मे सुरक्षा थी तो सेना को पुल बनाने के लिए बुलाया गया। सैनिक बताते हैं कि ‘दुश्मनों से मुकाबला करते हैं तो हमें गर्व होता है। तो वहीं बाढ़-भूकंप जैसी मुसीबत व आपदाओं में फंसे लोगों की मदद करते हैं तो सुकून मिलता है। इसके लिए सेना में आए थे क्या? पढ़िए सैनिकों की व्यथा, उन्हीं की जुबानी...
‘17 साल तीन महीने उमर थी मेरी, जब सेना में आया। कुछ सालों में रिटायर हो जाऊंगा। लेकिन ये पहली ही बार ऐसा काम करना पड़ा। हम दुश्मन से मुकाबला करते हैं तो गर्व होता है। बाढ़-भूकंप जैसी मुसीबत में लोगों की जिंदगी बचाते हैं तो सुकून मिलता है। लेकिन इन मेलों में ड्यूटी में न गर्व मिलता है न सुकून, गुस्सा आया कि इसके लिए तो सेना में नहीं आए थे हम? बाबाओं की ड्यूटी करना पड़े तो आर्मी में रहने का क्या मतलब। दरअसल पीडब्ल्यूडी यहां पुल बना रहा था। एक महीने में जो पुल बनाया था वो टूट गया। उस दिन हमारी प्रैक्टिस चल रही थी मेरठ आर्मी कैम्प में जब हमें दिल्ली आकर ये पुल बनाने का ऑर्डर मिला। पहले तो हम चौंक ही गए। हमें लगा जेसीओ मजाक कर रहे हैं। लेकिन जब चलने को बोला तो हमें बहुत गुस्सा आया। हम ये काम नहीं करना चाहते थे। सीनियर्स ने कहा इसे प्रैक्टिस समझ कर ही डालते हैं। लेकिन यहां आकर लगा इससे अच्छा तो हम वहीं मेरठ में प्रैक्टिस करते रहते।
इंजीनियरिंग कोर के हम 60 जवान और ऑफिसर भेजे गए इस काम के लिए। एक मार्च को ही आ गए थे हम। 13 तक कार्यक्रम चला। यहां काम आसान था। मुश्किल काम से हम डरते भी नहीं हैं। तीन बार कश्मीर, दो बार जैसलमेर में ड्यूटी कर चुका हूं। हम बाढ़ में या पुल टूटने पर फ्लोटिंग ब्रिज बनाते रहे हैं। हमारे टैंक और ट्रक निकालने के लिए एक से एक उफनती नदियों पर हमने रास्ता बनाया है। पर ये काम मुशकिल नहीं बुरा था। हम अपने हर ऑपरेशन को गर्व से याद करते हैं। लेकिन इसका तो कभी जिक्र भी नहीं करेंगे किसी से। आप बताओ क्या नाम देंगे इसको, ऑपरेशन ऑर्ट ऑफ लिविंग या ऑपरेशन श्री श्री रविशंकर?
हमें पास में ही दिल्ली कैंट में रुकवाया गया है। लेकिन बेस हमने पुल के पास बनाया। जितने दिन ये मेला चला हम सुबह 6 बजे यहां पहुंच जाते थे। और रात 12 बजे के बाद ही बैरक में लौटते। सुबह अपने साथ कैंट से पीने का पानी लेकर आते थे। दोपहर में टिफिन आ जाता। लेकिन बदबू के बीच खाना नहीं खा पाते थे। हर दिन हमारे 7-8 साथी रात को यहीं रुकते थे। टेंट में। पुल को चेक करना पड़ता है। हर 10 मिनट बाद हमारा एक जवान इसकी चेकिंग करता है। 24 घंटे। बोट्स की हवा तो नहीं कम हुई। फिर ये दिल्ली है, जो सामान पड़ा है कहीं कोई ले कर न चल दे इसका भी टेंशन। फंक्शन शुरू होने से एक दिन पहले रात को मैं ड्यूटी पर था। मैंने वो सीआरपीफ वालों से कह दिया था किसी को आने मत देना अंदर। तभी रविशंकर अचानक पहुंच गए। अब उनको कैसे रोकता। आने दिया। उन्होंने कार से ही आर्शीवाद देते हुए हाथ उठाया। मैंने बोला बाबा आ तो गए हो पर मेरे लिए मुसीबत मत करना कोई। पहले ही हमारी बेइज्जती करा दी है काफी। इस राजनीति में हमें नहीं पड़ना। उस दिन घर पर पत्नी से बात हो रही थी। कहने लगी बस ड्यूटी करना बाबे के चक्कर में मत पड़ जाना। ये बाबे झूठे होते हैं। मैं हंस के रह गया। मैंने अपने मेजर को भी ये बात बताई। वो भी जमकर हंसे।’
शर्म आती है कमांडो हूं, बना दिया गया सिक्योरिटी गार्ड
मई 2015 में बाबा रामदेव के हरिद्वार स्थित पतंजलि फूड एंड हर्बल पार्क में विवाद के दौरान एक व्यक्ति की मौत हो गई तो केंद्र ने पैरा मिलिट्री फोर्स सीआईएसएफ को तैनात कर दिया। संस्थान इसके एवज में 21 लाख रुपए प्रतिमाह का भुगतान भी करती है, लेकिन देश के लिए कुछ करने और मर मिटने की कसम खाने वाले यहां तैनात 35 दक्ष कमांडो परेशान हैं। उन्हें बार-बार एक ही बात कचोटती है कि वे निजी सिक्योरिटी गार्ड जैसा यह काम करने के लिए तो सीआईएसएफ में नहीं आए थे। वहां तैनात दो जवानों का दर्द...
स्वामीनाथन (परिवर्तित नाम) ने बताया कि दो साल पहले सीआईएसएफ की ट्रेनिंग के दौरान चुस्ती फुर्ती देख अलग से कमांडो की ट्रेनिंग दी गई। उन्हें लगा कि देश के नामी संस्थानों की सुरक्षा का जिम्मा मिलेगा। ट्रेनिंग पूरी हुई तो गाजियाबाद में रिजर्व बटालियन भेज दिया गया। एक माह पहले ही फूड पार्क भेजा गया। यहां आते ही मन में पहली बात यही उठी कि मैं तो किराए का गार्ड बन गया। अब ड्यूटी के बारे में घर और दोस्तों को बताते हुए शर्मिंदगी होती है। सब पूछते हैं कि आजकल कहां हो? जवाब सुनकर उसकी नजरों में फौजी वाला सम्मान तार तार हो जाता है। हमारी यूनिट गाजियाबाद में है। उसकी एक कंपनी हरिद्वार के पास भारत हैवी इलेक्ट्रिकल लिमिटेड के संयंत्र में तैनात है। वहां अटैचमेंट के तौर पर हम 35 जवानों को यहां लगा रखा है। 24 घंटे में आठ-आठ घंटे की शिफ्ट में ड्यूटी होती है। हाथ में एके-47 लिए गेट के आसपास खड़े रहना, गेट खोलना-बंद करना और हर आने जाने-वाले की रजिस्ट्रर में एंट्री करना, बस हमारा यही काम रह गया है। वह भी प्राइवेट गार्ड के साथ। दिन में सैकड़ों ट्रक कच्चा माल लेकर पार्क में आते-जाते हैं। उनके ड्राइवर भी हमारे साथ चौकीदार जैसा व्यवहार करते हैं। लगता है कि सीआईएसएफ में आकर गलती कर दी। गेट के बाहर ही अस्थाई बैरक बने हुए हैं। एक कमरे में ऑफिस और दूसरे में इंस्पेक्टर रहते हैं। तीसरे कमरे में बाकी जवान बारी-बारी सोते हैं। हमें पार्क की कैंटीन में जाने नहीं दिया जाता, वहां से टिफिन भरकर मिलते हैं। कई बार खुद खाना बनाना पड़ता है या हाइवे पर जाकर खाते हैं। स्नान व शौचालय में अपनी बारी का इंतजार अलग। पता नहीं कब यहां से मुक्ति मिलेगी।
वहीं एक अन्य सैनिक तेजपाल सिंह (परिवर्तित नाम) बताते हैं कि हम गेट खोलने और बंद करने वाले नौकर रह गए हैं। 12 साल के कॅरिअर की यह सबसे खराब तैनाती है। गर्विली फोर्स में देश के नामी हवाईअड्डों और कई दुर्दांत स्थानों पर सरकारी संयंत्रों पर सुरक्षा का जिम्मा बखूबी संभाला है। दो माह पहले यहां भेजा गया तो मन मसोसकर आ गया। कुछ घंटों में ही समझ आ गया कि यहां प्रशासन और बाहर से आने वालों की नजरों में हमारी हैसियत गेट खोलने वाले नौकर की तरह है। बेल्ट के अनुशासन से बंधे हैं, इसीलिए कोई जवान अपनी पीड़ा अफसरों के साथ खुलकर नहीं कहना चाहता। पर ऐसे तो कल हमारी फौज को किराए पर कहीं भी, किसी देश या संस्थान को बेच दिया जाएगा। हमारा स्वाभिमान और सम्मान तिल-तिल मर रहा है। हमें गेट के इर्द गिर्द ही रहने को कहा गया है। गेट खोलो-बंद करो, ट्रकों की एंट्री करो। ज्यादा ट्रक आ जाएं तो ट्रैफिक पुलिस की तरह कतारबद्ध खड़े करवाओ। टोल गेट जैसा नजारा हर दिन। ट्रकों की धमक और प्रेशर हॉर्न सुनकर कान पक गए हैं। ड्यूटी के बाद भी चैन से सोना मुहाल है। कभी-कभी बाबा यहां आते हैं तो हमें ऐसे लाइनअप किया जाता है, जैसे हमारे डीजी या एचएम आ रहे हों। सब कुछ हमारी आन-बान-शान के खिलाफ है, लेकिन फौजी हैं तो ड्यूटी निभा रहे हैं।
साभार- दैनिक भास्कर
http://www.nationaldastak.com/news-view/view/baba-ramdev-and-sri-sri-security-personnel-express-his-pain/
अगर सही आदमी से सही काम लेना आ जाये हमारे देश के मैनेजरों को तो देश का नक्शा ही बदल जाये|
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