Saturday 5 March 2016

कन्हैया कुमार के विचार : जन-अभिव्यक्ति ------ विजय राजबली माथुर

कन्हैया कुमार ने जो राह दिखा दी है उसको अपना कर ,उसको मान-सम्मान के साथ अनुकरण में लाकर जनता को अपने साथ जोड़ने का कार्य वामपंथ को अविलंब करना चाहिए। उसके विचार जन-अभिव्यक्ति हैं तभी तो अब मीडिया भी उनको स्थान देने लगा है। 
(विजय राजबली माथुर )
कन्‍हैया के भाषण में सबक लेने लायक कोई बात थी तो वह वामपंथियों के लिए ही थी। उन्‍होंने कहा, ‘जेएनयू में हम सभी को सेल्फ क्रिटिसिज्‍म की जरूरत है क्योंकि हम जिस तरह से यहां बात करते हैं वो बात आम जनता को समझ में नहीं आती है। हमें इस पर सोचना चाहिए।’ देश में वामपंथ राजनीति सालों से इस समस्‍या से जूझ रही है। वह जनता के हितों की बात करती है, फिर भी जनता उनकी सुनती नहीं है। कन्हैया ने अपने जेल के अनुभव गिनाते हुए संकेत दिया कि वामपंथियों को दलितों को साथ लेकर चलना होगा। वामपंथी पार्टियां इस पर सोच सकती हैं।



नई दिल्‍ली: देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार होने के बाद कल (गुरुवार को) जमानत पर रिहा होकर जेएनयू वापस लौटे जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष कन्हैया कुमार ने NDTV से खास बातचीत में कहा कि '9 फरवरी का कार्यक्रम मैंने आयोजित नहीं किया था। देश‍विरोधी नारे लगे या नहीं लगे, इसके बारे में मुझे कुछ नहीं पता, क्योंकि मैं वहां मौजूद नहीं था।'

कन्हैया द्वारा कही गई मुख्‍य बातें...
मेरी उस कार्यक्रम के प्रति परोक्ष रूप से कोई सहमति नहीं थी। मुझे उस कार्यक्रम की सूचना नहीं दी गई थी। कार्यक्रम की इजाजत देना मेरा काम नहीं है।
चार-पांच लोग वहां नारे लगा रहे थे। नारे लगाना गलत है। नारे लगाने वालों पर कार्रवाई होनी चाहिए।
पुलिस कहती है कि मेरी रज़ामंदी से कार्यक्रम हुआ, इसलिए गिरफ़्तार किया।
पहले से इस तरह की गतिविधियां होती आ रही है। उस कार्यक्रम को रोकना मेरे अधिकार से बाहर था।
अध्यक्ष होने के नाते मैं छात्रों की नुमाइंदगी करता हूं। छात्रों की बात करना मेरा काम, कार्यक्रम की इजाज़त देना नहीं।
कुछ छात्रों को निशाना बनाने की कोशिश हो रही है।
जो नारे लगाए गए, मैं उसकी निंदा करता हूं। ये सिर्फ़ नारे का मामला नहीं है, उससे ज़्यादा गंभीर है। नारों से लोगों का पेट नहीं भरता।
देश के सिस्‍टम पर मेरा भरोसा है।
मामला कोर्ट में है, इसलिए मैं ज्‍यादा बोल नहीं सकता।
हमारा देश इतना कमजोर है, जो नारों से हिल जाएगा?
हैदराबाद की कहानी जेएनयू में दोहराने की कोशिश हुई।
जेएनयू में दक्षिणपंथी ताकतें अलग-थलग हैं।
हर मामले को हिंदू-मुसलमान रंग दिया जाता है।
हम अफजल गुरु पर कोर्ट के आदेशों का सम्‍मान करते हैं।
मेरा भाई सीआरपीएफ में था, जो नक्‍सली हमले में मारा गया।
किसी को नक्‍सली बताकर गलत तरीके से मारने का भी समर्थन नहीं करता।
ये लड़ाई देश के खिलाफ नहीं, बल्कि सरकार के खिलाफ है।
जेएनयू के छात्रों को देशद्रोही बताया जा रहा है।
पिछड़े लोगों को निशाना बनाया जा रहा है।
पटियाला हाउस कोर्ट में जो मैंने देखा वो ख़तरनाक परंपरा है।
हाथ में झंडा लेकर संविधान की धज्जियां उड़ा रहे थे।
देशद्रोह का क़ानून अंग्रेज़ों के ज़माने का है।
भगत सिंह देश के लिए लड़ रहे थे। भगत सिंह को अंग्रेज़ देशद्रोही मानते थे।
सरकार आपके पास के थाने से लेकर संसद तक है।
विचारधारा को रणनीतिक रूप नहीं देने से वो ख़त्म हो जाती है।
केजरीवाल, राहुल गांधी को देश से प्यार है तो आंदोलन करना होगा।
भगत सिंह और गांधी जैसे सुधारक हुए। ये वो लोग थे जो साम्राज्यवाद से लड़े।
दक्षिणपंथी मुद्दों पर फ़ोकस करतें है, विचारधारा पर नहीं।
जब तक आप डरेंगे नहीं तो लड़ेंगे नहीं।
मुझे आरएसएस से डर लगा इसलिए उसके ख़िलाफ़ लड़ा।
अब पुलिस से दोस्ती हो गई है।
मैं आगे चलकर शिक्षक ही बनूंगा।
मैं मुद्दों पर बहस करूंगा, अपनी विचारधारा के लिए लडूंगा।
मैं अपने अनुभवों पर किताब लिखना चाहता हूं।
मामला कोर्ट में है, अभी फ़र्ज़ी राष्ट्रवाद पर बहस न हो।
जब आरएसएस में वैचारिक बदलाव हो रहा है तो कांग्रेस, लेफ़्ट में भी होगा। हमें इस बदलाव को बारीकी से देखने की ज़रूरत है। तभी हम लेफ़्ट, बीजेपी, कांग्रेस, केजरीवाल में फ़र्क कर पाएंगे
सबको एक ब्रश से मत रंगिए।
http://khabar.ndtv.com/news/india/exclusive-kanhaiya-kumar-interview-by-ravish-kumar-1283995?site=full
स्पष्ट रूप से पढ़ने के लिए इमेज पर डबल क्लिक करें (आप उसके बाद भी एक बार और क्लिक द्वारा ज़ूम करके पढ़ सकते हैं )
05-03-2016 

http://epaper.telegraphindia.com/details/173713-175741306.html

नीतीश कुमार ::
युवाओं के आगे आने से देश में लोकतंत्र मजबूत होगा। देश में पनप रहे अंसतोष को दबाने के लिए देशभक्ति का नारा छेड़ा है। उनको और कम्युनिस्ट पार्टी को शुभकामना देता हूं, ऐसे विचारों को बल मिलेगा।

http://www.livegaya.com/…/in…/id/3118/kanhaiya-nitish-kumar… 


भाषण में क्‍या था:  
कन्‍हैया के भाषण में सबक लेने लायक कोई बात थी तो वह वामपंथियों के लिए ही थी। उन्‍होंने कहा, ‘जेएनयू में हम सभी को सेल्फ क्रिटिसिज्‍म की जरूरत है क्योंकि हम जिस तरह से यहां बात करते हैं वो बात आम जनता को समझ में नहीं आती है। हमें इस पर सोचना चाहिए।’ देश में वामपंथ राजनीति सालों से इस समस्‍या से जूझ रही है। वह जनता के हितों की बात करती है, फिर भी जनता उनकी सुनती नहीं है। कन्हैया ने अपने जेल के अनुभव गिनाते हुए संकेत दिया कि वामपंथियों को दलितों को साथ लेकर चलना होगा। वामपंथी पार्टियां इस पर सोच सकती हैं।   

http://www.jansatta.com/national/why-jnusu-president-kanhaiya-kumar-not-a-hero/73955/?utm_source=JansattaHP&utm_medium=referral&utm_campaign=jaroorpadhe_story

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फेसबुक पर प्राप्त  टिप्पणियाँ :
05-03-2016 

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