Wednesday, 21 September 2016

देशहित में युद्ध की संभावना से भी बचा जाना चाहिए ------ विजय राजबली माथुर

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हिंदुस्तान,20 सितंबर 2016 के अंक में प्रकाशित वर्तमान सेनाध्यक्ष  की तरफ से DGMO का यह बयान पूरी तरह से घोर अनुशासन हीनता का ज्वलंत उदाहरण है। भारतीय संविधान के अनुसार भारत का राष्ट्रपति भारतीय सेना का सर्वोच्च समादेष्टा (सुप्रीम कमांडर ) है , क्या सेनाध्यक्ष ने अपने सुप्रीम कमांडर से इजाजत लेकर यह बयान दिलवाया है? शायद नहीं और इसी कारण यह अनुशासन हीनता है। राष्ट्रपति को सुप्रीम कमांडर की हैसियत से इसके विरुद्ध कारवाई करनी चाहिए। 
इनके अतिरिक्त पूर्व सैन्य अधिकारी भी युद्ध के हक में बयान जारी करके जनता को भड़का रहे हैं। 

1971 जैसी भड़काऊ नीतियाँ केंद्र सरकार के इशारे पर चलाई जा रही हैं जिससे निकट भविष्य में सीमित युद्ध करके फिर मध्यावधि चुनावों में उसी प्रकार जीत हासिल की जाये जैसी इन्दिरा जी ने 1971 युद्ध के बाद 1972 में हासिल की थी और संसद की अवधि छह वर्ष करके एमर्जेंसी थोप दी थी। तब निकसन के 7 वां बेड़े की चुनौती को रूस की मदद से मुक़ाबला किया गया था। लेकिन अब तो ओबामा प्रशासन से सहयोग चल रहा है ।अब रूस का भी पाकिस्तान से सहयोग चल रहा है और चीन व यू एस ए का तो है ही। आज शत्रु से नहीं मित्र से ज़्यादा खतरा है। देश की जनता को यह समझना चाहिए और भावावेश में नहीं बहना चाहिए। कश्मीर स्थित जोजीला दर्रे के नीचे छिपा 'प्लेटिनम' यू एस ए को 'यूरेनियम ' निर्माण हेतु चाहिए जो एटम बम के निर्माण में सहायक होता है। अपने सामरिक-आर्थिक हितों की रक्षा के लिए यू एस ए के फायदे के लिए कश्मीर में हिंसा को बढ़ावा दिया जा रहा है जिससे युद्ध का बहाना मिल जाये। भारत और पाकिस्तान दोनों देशों की जनता के लिए ऐसा युद्ध विनाशक होगा जबकि यू एस ए के लिए लाभदायक । देशहित में युद्ध की संभावना से भी बचा जाना चाहिए।


    संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश

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