भारतीय मानस की ब्राह्मणवादी कृति का घिनौना रूप है कर्मकाण्ड ।
- मंजुल भारद्वाज ( विश्वविख्यात रंगचिंतक एवं दार्शनिक )
एक व्यापार
जन्म और मृत्यु का ,
निरा और निरा अमानवीय कृत्य
ईश्वर के नाम पर एक ढोंग ,
भारतीय संस्कृति के किसी भी सार्वभौमिक तत्त्व की कब्र खोदता ,
बखियां उधेड़ने का कृत्य है कर्मकाण्ड ।
ना आत्मा के तर्क पर टिकता है
ना परमात्मा के तर्क पर टिकता है ,
अनुवांशिक रूप 'भय' से पीड़ित भारतीय मानस की ब्राह्मणवादी कृति का घिनौना रूप है कर्मकाण्ड ।
आत्मा अजर है ,
अमर है आत्मा
जब शरीर धारण करती है उसको जन्म और शरीर त्यागती है उसको मृत्यु कहते हैं
जन्म से मृत्यु की यात्रा यानि जीवन ।
किसी भी वेद में कर्मकाण्ड की व्याख्या, अनिवार्यता और संदर्भ उद्धर्त नहीं है ।
यह ब्राह्मणवाद क्या है - यह वो मनोवृति है जो मनुष्य की चिता पर अपनी रोटीयां सेक कर खाती है , जीवन के हर मोड़ पर "ईश्वरीय" भय का विकराल रूप दिखा कर ठगती , लुटती और शोषित करती है मानवता को ।
शरीर छोड़ जाने पर आत्मा का शरीर से कोई रिश्ता नहीं है उसी तरह बाकी जीवित देहों के साथ कोई सम्बन्ध नहीं होता। पर ब्राह्मण का खेल देखिये मोक्ष,स्वर्ग लोक का मोह जाल देखिये, कितना शातिर खेल है यह - आत्मा की शांति का ।
जिसका कोई प्रमाण नहीं है झूठे मन्त्रों के उच्चार एक एक अभिशाप है मानवता पर , और ईश्वर की शक्ति को धिक्कारता है । जब ईश्वर ही सब करता कर्ता है , तो मनुष्य उसकी सत्ता को क्यों चुनौती देकर भगवान बनना चाहता है ?
आत्मा ईश्वर के अधिकार क्षेत्र में आती है तो क्या ईश्वरीय मिलन भी उसको शांत नहीं करता । उसके लिए पृथ्वी पर या मृत्युलोक पर छुट गए लोगों का बिलखना , ब्राह्मण के माया जाल में लूटना जरुरी है । कोई तर्क नहीं क्योंकि सत्य तो यही है । जहाँ तर्क नहीं होता वहीँ से भगवान जन्मता है और तर्क आस्था में और आस्था अन्धविश्वास , अंधविश्वास कर्मकाण्ड में बदल जाता है और चिता पर रोटियां सेकने वाला ब्राह्मण फलता फूलता है ।
और श्रद्धा के मायाजाल में फंसे रिश्तेदार , आंसू बहा बहा कर झूठ के फरेब में पिसते हैं । ब्राह्मण उसको नए ढकोसलों की व्याख्या से उलझाता रहता है। शरीर और आत्मा का घालमेल कर मनुष्यों को ऐसा जमाल गोटा पिलाता है - एक वीभत्स रचना करता है जिसमें आत्मा भी शरीर के रूप में रिश्ते नाते धारण कर लेती है । इसका ही खेल है पितर !
ये पितर का खेल ब्राह्मण का जन्मों जन्मों का इन्शुरन्स है - कर्मकाण्ड जो देश , उसकी संस्कृति , मानवीय मूल्यों और स्वयं ईश्वर को ठगता है । बस एक प्राणी जिन्दा है और चिता पर अपनी रोटी पका कर खाता है - वो है कर्मकांडी ब्राह्मण ।
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संक्षिप्त परिचय -
“थिएटर ऑफ रेलेवेंस” नाट्य सिद्धांत के सर्जक व प्रयोगकर्त्ता मंजुल भारद्वाज वह थिएटर शख्सियत हैं, जो राष्ट्रीय चुनौतियों को न सिर्फ स्वीकार करते हैं, बल्कि अपने रंग विचार "थिएटर आफ रेलेवेंस" के माध्यम से वह राष्ट्रीय एजेंडा भी तय करते हैं।
एक अभिनेता के रूप में उन्होंने 16000 से ज्यादा बार मंच से पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है।लेखक-निर्देशक के तौर पर 28 से अधिक नाटकों का लेखन और निर्देशन किया है। फेसिलिटेटर के तौर पर इन्होंने राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर थियेटर ऑफ रेलेवेंस सिद्धांत के तहत 1000 से अधिक नाट्य कार्यशालाओं का संचालन किया है। वे रंगकर्म को जीवन की चुनौतियों के खिलाफ लड़ने वाला हथियार मानते हैं। मंजुल मुंबई में रहते हैं। उन्हें 09820391859 पर संपर्क किया जा सकता है।
संपर्क - मंजुल भारद्वाज .
373/ 18 , जलतरंग ,सेक्टर 3 , चारकोप ,कांदिवली (पश्चिम) मुंबई -400067.
फोन : 9820391859
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फेसबुक कमेंट्स :
- मंजुल भारद्वाज ( विश्वविख्यात रंगचिंतक एवं दार्शनिक )
एक व्यापार
जन्म और मृत्यु का ,
निरा और निरा अमानवीय कृत्य
ईश्वर के नाम पर एक ढोंग ,
भारतीय संस्कृति के किसी भी सार्वभौमिक तत्त्व की कब्र खोदता ,
बखियां उधेड़ने का कृत्य है कर्मकाण्ड ।
ना आत्मा के तर्क पर टिकता है
ना परमात्मा के तर्क पर टिकता है ,
अनुवांशिक रूप 'भय' से पीड़ित भारतीय मानस की ब्राह्मणवादी कृति का घिनौना रूप है कर्मकाण्ड ।
आत्मा अजर है ,
अमर है आत्मा
जब शरीर धारण करती है उसको जन्म और शरीर त्यागती है उसको मृत्यु कहते हैं
जन्म से मृत्यु की यात्रा यानि जीवन ।
किसी भी वेद में कर्मकाण्ड की व्याख्या, अनिवार्यता और संदर्भ उद्धर्त नहीं है ।
यह ब्राह्मणवाद क्या है - यह वो मनोवृति है जो मनुष्य की चिता पर अपनी रोटीयां सेक कर खाती है , जीवन के हर मोड़ पर "ईश्वरीय" भय का विकराल रूप दिखा कर ठगती , लुटती और शोषित करती है मानवता को ।
शरीर छोड़ जाने पर आत्मा का शरीर से कोई रिश्ता नहीं है उसी तरह बाकी जीवित देहों के साथ कोई सम्बन्ध नहीं होता। पर ब्राह्मण का खेल देखिये मोक्ष,स्वर्ग लोक का मोह जाल देखिये, कितना शातिर खेल है यह - आत्मा की शांति का ।
जिसका कोई प्रमाण नहीं है झूठे मन्त्रों के उच्चार एक एक अभिशाप है मानवता पर , और ईश्वर की शक्ति को धिक्कारता है । जब ईश्वर ही सब करता कर्ता है , तो मनुष्य उसकी सत्ता को क्यों चुनौती देकर भगवान बनना चाहता है ?
आत्मा ईश्वर के अधिकार क्षेत्र में आती है तो क्या ईश्वरीय मिलन भी उसको शांत नहीं करता । उसके लिए पृथ्वी पर या मृत्युलोक पर छुट गए लोगों का बिलखना , ब्राह्मण के माया जाल में लूटना जरुरी है । कोई तर्क नहीं क्योंकि सत्य तो यही है । जहाँ तर्क नहीं होता वहीँ से भगवान जन्मता है और तर्क आस्था में और आस्था अन्धविश्वास , अंधविश्वास कर्मकाण्ड में बदल जाता है और चिता पर रोटियां सेकने वाला ब्राह्मण फलता फूलता है ।
और श्रद्धा के मायाजाल में फंसे रिश्तेदार , आंसू बहा बहा कर झूठ के फरेब में पिसते हैं । ब्राह्मण उसको नए ढकोसलों की व्याख्या से उलझाता रहता है। शरीर और आत्मा का घालमेल कर मनुष्यों को ऐसा जमाल गोटा पिलाता है - एक वीभत्स रचना करता है जिसमें आत्मा भी शरीर के रूप में रिश्ते नाते धारण कर लेती है । इसका ही खेल है पितर !
ये पितर का खेल ब्राह्मण का जन्मों जन्मों का इन्शुरन्स है - कर्मकाण्ड जो देश , उसकी संस्कृति , मानवीय मूल्यों और स्वयं ईश्वर को ठगता है । बस एक प्राणी जिन्दा है और चिता पर अपनी रोटी पका कर खाता है - वो है कर्मकांडी ब्राह्मण ।
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“थिएटर ऑफ रेलेवेंस” नाट्य सिद्धांत के सर्जक व प्रयोगकर्त्ता मंजुल भारद्वाज वह थिएटर शख्सियत हैं, जो राष्ट्रीय चुनौतियों को न सिर्फ स्वीकार करते हैं, बल्कि अपने रंग विचार "थिएटर आफ रेलेवेंस" के माध्यम से वह राष्ट्रीय एजेंडा भी तय करते हैं।
एक अभिनेता के रूप में उन्होंने 16000 से ज्यादा बार मंच से पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है।लेखक-निर्देशक के तौर पर 28 से अधिक नाटकों का लेखन और निर्देशन किया है। फेसिलिटेटर के तौर पर इन्होंने राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर थियेटर ऑफ रेलेवेंस सिद्धांत के तहत 1000 से अधिक नाट्य कार्यशालाओं का संचालन किया है। वे रंगकर्म को जीवन की चुनौतियों के खिलाफ लड़ने वाला हथियार मानते हैं। मंजुल मुंबई में रहते हैं। उन्हें 09820391859 पर संपर्क किया जा सकता है।
संपर्क - मंजुल भारद्वाज .
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09-092016 |
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