Wednesday 7 December 2016

लेदर -फुटवियर इंडस्ट्री सरकार की नोटबंदी से बर्बाद : मौजूदा लेदर उद्योग का स्थान बड़ी कारपोरेट पूंजी को ------ चंद्र प्रकाश झा / जगदीश्वर चतुर्वेदी

लाखों लोगों को अपनी रोजी-रोटी का संकट : 

Jagadishwar Chaturvedi

Chandra Prakash Jha की वॉल से साभार -
नोट बन्दी तथ्यपत्रक 10
( Via Vivekanand Tripathi )
लेदर -फुटवियर इंडस्ट्री सरकार की नोटबंदी से बर्बाद
नोट बंदी की वजह से पूरी दुनिया में अपनी अलग पहचान रखने वाला आगरा लेदर व फुटवियर इंडस्ट्री पर बहुत ही बुरा असर हुआ है। गौरतलब है कि चीन के बाद भारत लेदर उद्योग व निर्यात में दूसरे स्थान पर है और सालाना कारोबार लगभग 30 हजार करोड़ का है जिसमें अकेले आगरा का शेयर 10 हजार करोड़ है। 2013-14 में कुल निर्यात अरब अमेरिकी डालर था। पूरे इस उद्योग में 25 लाख लोग लगे हैं। अकेले आगरा में प्रतिदिन डेढ़ लाख पेयर शूज का उत्पादन होता है। जिसमें 60 बड़े औद्योगिक प्रतिष्ठान, 3000 छोटे प्रतिष्ठान और 30 हजार काॅटेज/हाउस होल्ड यूनिट काम कर रही हैं और आगरा शहर की लगभग एक तिहाई लेदर-फुटवियर उद्योग पर निर्भर है जिसमें लगभग 5 लाख मजदूरों को प्रत्यक्ष रोजगार मिलता है। अभी आगरा का लेदर-फुटवियर उद्योग निर्यात में 35 फीसदी व घरेलू बाजार में 65 फीसदी योगदान करता है। वर्कर्स फ्रंट की टीम ने 2 दिसम्बर को आगरा में लेदर-फुटवियर के औद्योगिक प्रतिष्ठानों व घरेलू उत्पादन इकाईयों को मौके पर जाकर देखा। नोट बंदी के बाद बड़े प्रतिष्ठानों में 80 फीसदी से ज्यादा ठेका/दिहाड़ी मजदूरों ने काम छोड़ कर चले गये हैं और उत्पादन एक तिहाई से भी कम हो गया है। इसी तरह घरेलू उत्पादन में हालात् और ज्यादा खराब हो गये हैं जहां स्टाक के कच्चे माल से कुछ उत्पादन तो जारी है लेकिन सप्लाई एकदम ठप है जिससे नया कच्चा माल खरीदने के लिए पैसा ही नहीं है और अगले कुछ दिनों में इन स्माल स्केल यूनिटों में भारी असर होगा। अभी भी न केंद्र और न ही राज्य सरकार की तरफ से कोई भी ठोस उपाय नहीं किये जा रहे हैं जिससे भविष्य में इस पूरे उद्योग पर भारी संकट आ सकता है जिससे न सिर्फ आगरा बल्कि देश की अर्थव्यवस्था पर भारी असर होगा। जानकार बताते हैं कि अपने देश में 2000 पेयर शूज का उत्पादन करने की क्षमता से बड़ी यूनिटे नहीं है जबकि चीन में 40 हजार पेयर शूज प्रतिदिन उत्पादन की यूनिट है। यहां पर भी बड़े कारपोरेट घराने इस क्षेत्र में अपनी पूंजी लगाना चाहते हैं जिसके लिए स्माल स्केल व मध्यम दर्जे की औद्योगिक इकाईयों को बर्बाद होना तय है। नोट बंदी से वे परिस्तियां पैदा हो सकती हैं जिससे भविष्य मौजूदा लेदर उद्योग का स्थान बड़ी कारपोरेट पूंजी ले ले। जो भी हो इससे भारी पैमाने पर मजूदरों की छटंनी हो सकती है र परोक्ष रोजगार में भारी कमी होगी। इसी तरह बनारस का बुनकर उद्योग, अलीगढ़ का ताला उद्योग सहित विभिन्न विभिन्न लघु-कुटीर उद्योग जो पहले ही सरकार की नीतियों से बर्बाद हो रहे हैं नोट बंदी से और ज्यादा संकटग्रस्त हो गया है और लाखों लोगों को अपनी रोजी-रोटी का संकट पैदा हो गया है।
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फेसबूक कमेंट्स : 
07-12-2016 

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