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समाजशास्त्र (सोशियोलाजी ) में ज़िक्र आता है कि, प्राचीन समाजों के इतिहास का अध्यन करने हेतु प्रतीकों का अवलोकन करके निष्कर्ष निकाला जाता है। हालांकि, आधिकारिक रूप से पुष्टि तो इसकी भी नहीं की जा सकती है। बी ए के कोर्स की पुस्तक में दो उदाहरण देकर इसे सिद्ध किया गया है। ( 1 ) जंगल में धुआँ देख कर यह अनुमान लगा लिया जाता है कि, आग लगी है। ( 2 ) किसी गर्भिणी को देख कर यह अनुमान लगा लिया जाता है कि, संभोग हुआ है। जबकि आधिकारिक रूप से कहने के लिए कोई प्रत्यक्ष प्रमाण उपलब्ध नहीं होता है किन्तु ये अनुमान बिलकुल सटीक होते हैं।
बहुत ही चालाकी से इस पोस्ट में यह कहने से बचा गया है कि, साम्यवादी और समाजवादी विचारधारा के स्वार्थ लोलुप लोग आसानी से आर एस एस की चाल का शिकार खुद - ब - खुद बने थे। ऐसे लोग न घर के होते हैं न घाट के। सन 2011 में जब राष्ट्रपति चुनावों की सुगबुगाहट शुरू हो गई थी और मनमोहन सिंह जी को राष्ट्रपति बना कर प्रणव मुखर्जी साहब को पी एम बनाने की कवायद शुरू हुई तब जापान की यात्रा से लौटते में विमान में सिंह साहब ने पत्रकारों से कहा था कि, वह जहां हैं वहीं ठीक हैं बल्कि, तीसरी बार भी पी एम बनने के लिए प्रस्तुत है। जब सोनिया जी इलाज के वास्ते विदेश गईं तब सिंह साहब की प्रेरणा से हज़ारे / रामदेव आदि ने कारपोरेट भ्रष्टाचार के संरक्षण में जनलोकपाल आंदोलन खड़ा कर दिया जिसका उद्देश्य संघ/ भाजपा / कारपोरेट जगत को लाभ पहुंचाना था। आज की एन डी ए सरकार के गठन में सौ से भी अधिक भाजपाई बने कांग्रेसियों का प्रबल योगदान है।
जनसंघ युग में ब्रिटेन व यू एस ए की तरह दो पार्टी शासन की वकालत उनका उद्देश्य था। उस पर अमल करने का मौका उनको अब मिला है जब भाजपा केंद्र की सत्ता में और आ आ पा उसके विरोध की मुखर पार्टी के रूप में सामने है। आ आ पा का उद्देश्य कांग्रेस, कम्युनिस्ट, समाजवादी,अंबेडकरवादी आदि समेत सम्पूर्ण विपक्ष को ध्वस्त कर खुद को स्थापित करना है। भाजपा के विपक्ष में आ आ पा और आ आ पा के विपक्ष में भाजपा को दिखाना आर एस एस की रणनीति है। बनारस में मोदी साहब को आसान जीत दिलाने के लिए केजरीवाल साहब ने वहाँ पहुँच कर भाजपा विरोधियों को ध्वस्त कर दिया था और पुरस्कार स्वरूप दिल्ली में थमपिंग मेजारिटी से उनकी सरकार का गठन हो गया तथा कांग्रेस समेत सम्पूर्ण विपक्ष ध्वस्त हो गया।
अभी भी जो लोग आ आ पा में विश्वास बनाए रखते हैं वे वस्तुतः अप्रत्यक्ष रूप से मोदी और भाजपा को ही मजबूत बनाने में लगे हुये हैं।
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समाजशास्त्र (सोशियोलाजी ) में ज़िक्र आता है कि, प्राचीन समाजों के इतिहास का अध्यन करने हेतु प्रतीकों का अवलोकन करके निष्कर्ष निकाला जाता है। हालांकि, आधिकारिक रूप से पुष्टि तो इसकी भी नहीं की जा सकती है। बी ए के कोर्स की पुस्तक में दो उदाहरण देकर इसे सिद्ध किया गया है। ( 1 ) जंगल में धुआँ देख कर यह अनुमान लगा लिया जाता है कि, आग लगी है। ( 2 ) किसी गर्भिणी को देख कर यह अनुमान लगा लिया जाता है कि, संभोग हुआ है। जबकि आधिकारिक रूप से कहने के लिए कोई प्रत्यक्ष प्रमाण उपलब्ध नहीं होता है किन्तु ये अनुमान बिलकुल सटीक होते हैं।
बहुत ही चालाकी से इस पोस्ट में यह कहने से बचा गया है कि, साम्यवादी और समाजवादी विचारधारा के स्वार्थ लोलुप लोग आसानी से आर एस एस की चाल का शिकार खुद - ब - खुद बने थे। ऐसे लोग न घर के होते हैं न घाट के। सन 2011 में जब राष्ट्रपति चुनावों की सुगबुगाहट शुरू हो गई थी और मनमोहन सिंह जी को राष्ट्रपति बना कर प्रणव मुखर्जी साहब को पी एम बनाने की कवायद शुरू हुई तब जापान की यात्रा से लौटते में विमान में सिंह साहब ने पत्रकारों से कहा था कि, वह जहां हैं वहीं ठीक हैं बल्कि, तीसरी बार भी पी एम बनने के लिए प्रस्तुत है। जब सोनिया जी इलाज के वास्ते विदेश गईं तब सिंह साहब की प्रेरणा से हज़ारे / रामदेव आदि ने कारपोरेट भ्रष्टाचार के संरक्षण में जनलोकपाल आंदोलन खड़ा कर दिया जिसका उद्देश्य संघ/ भाजपा / कारपोरेट जगत को लाभ पहुंचाना था। आज की एन डी ए सरकार के गठन में सौ से भी अधिक भाजपाई बने कांग्रेसियों का प्रबल योगदान है।
जनसंघ युग में ब्रिटेन व यू एस ए की तरह दो पार्टी शासन की वकालत उनका उद्देश्य था। उस पर अमल करने का मौका उनको अब मिला है जब भाजपा केंद्र की सत्ता में और आ आ पा उसके विरोध की मुखर पार्टी के रूप में सामने है। आ आ पा का उद्देश्य कांग्रेस, कम्युनिस्ट, समाजवादी,अंबेडकरवादी आदि समेत सम्पूर्ण विपक्ष को ध्वस्त कर खुद को स्थापित करना है। भाजपा के विपक्ष में आ आ पा और आ आ पा के विपक्ष में भाजपा को दिखाना आर एस एस की रणनीति है। बनारस में मोदी साहब को आसान जीत दिलाने के लिए केजरीवाल साहब ने वहाँ पहुँच कर भाजपा विरोधियों को ध्वस्त कर दिया था और पुरस्कार स्वरूप दिल्ली में थमपिंग मेजारिटी से उनकी सरकार का गठन हो गया तथा कांग्रेस समेत सम्पूर्ण विपक्ष ध्वस्त हो गया।
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