तुमको देखा तो ये ख़याल आया ! :
आधुनिक भारतीय सिनेमा की महानतम अभिनेत्रियों में से एक शबाना आज़मी ने भारतीय सिनेमा में संवेदनशील और यथार्थवादी अभिनय के जो नए आयाम जोड़े, उसकी मिसाल भारतीय सिनेमा में तो क्या, विश्व सिनेमा में भी कम ही मिलती है।अभिनय में गहराई ऐसी कि एक-एक ख़ामोशी सौ-सौ लफ़्ज़ों पर भारी। शालीनता ऐसी जो हज़ार अदाओं पर भारी। परदे पर उनकी ज़ुबान कम, आंखें ज्यादा संवाद करती हैं। महान शायर कैफ़ी आज़मी की इस बेटी को फिल्म एंड टेलीविज़न इंस्टिट्यूट, पुणे से ग्रेजुएशन के बाद जो पहली फिल्म मिली, वह थी ख्वाजा अहमद अब्बास की 'फ़ासला', लेकिन परदे पर पहले रिलीज हुई श्याम बेनेगल की 'अंकुर'। इस फिल्म की सफलता और ख्याति ने उन्हें उस दौर की दूसरी महान अभिनेत्री स्मिता पाटिल के साथ तत्कालीन समांतर और कला सिनेमा का अनिवार्य हिस्सा बना दिया। शबाना ने चार दशक लंबे फिल्म कैरियर में पचास से ज्यादा हिंदी, बंगला और अंग्रेजी फिल्मों में अपने अभिनय के झंडे गाड़े, जिनमें कुछ यादगार फिल्में हैं - अंकुर, मंडी, परिणय, निशांत, शतरंज के खिलाड़ी, स्पर्श, तहजीब, अर्थ, खंडहर, जुनून, मासूम, मृत्युदंड, गॉडमदर, मकड़ी, आर्तनाद, धारावी, दिशा,नमकीन, थोड़ी सी बेवफ़ाई, दस कहानियां, फायर, लिबास, कल्पवृक्ष, भावना, पार,अवतार, उमराव जान, एक ही भूल, साज़, हनीमून ट्रेवल्स, मटरू की बिजली का मंडोला, पतंग, द मोर्निंग रागा, 15 पार्क अवेन्यू, द मिडनाइट चिल्ड्रेन, द बंगाली नाईट, साइड स्ट्रीट्स आदि। व्यावसायिक दबाव में जिन कुछ बेमतलब की फिल्मों में उन्होंने ग्लैमरस भूमिकाएं की, उन्हें वे शायद ख़ुद भूल जाना चाहेंगी। शबाना आज़मी देश की ऐसी पहली अभिनेत्री हैं जिन्हें फिल्मों में अभिनय के लिए पांच राष्ट्रीय और आठ फिल्मफेयर पुरस्कार मिले। अभिनय के अलावा स्त्रियों और बच्चों के अधिकारों और मानवीय समस्याओं के लिए लड़ने वाली एक योद्धा के रूप में भी उनका कम योगदान नहीं रहा है।
जन्मदिन (18 सितंबर) पर आपके लंबे, सृजनशील और यशस्वी जीवन के लिए बहुत बहुत शुभकामनाएं, शबाना ! #ShabanaAzmi:
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