Thursday, 7 September 2017

देश की प्रकृति के प्रतिकूल वातावरण - सृजन है हत्याओं का कारण ------ विजय राजबली माथुर

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यदि भारत के मानचित्र और शिव की परिकल्पना को एक साथ अध्यन करेंगे तो हम पाएंगे कि, यह शिव हमारा देश भारत ही तो है। शिव के मस्तक पर अर्द्ध चंद्र यह हमारा हिमाच्छादित हिमालय ही तो है।शिव की जटा से निकलती गंगा का प्रतीक त्रिवृष्टि ( अब तिब्बत ) स्थित मानसरोवर झील से गंगा का उद्गम बताता है। शिव का वाहन नंदी (बैल ) हमारे देश के कृषि प्रधान होने का द्योतक है।  त्रिशूल इस बात का द्योतक है कि, जब वात - पित्त - कफ शरीर को धारण करने के बजाए शरीर को  दूषित करने लगें तो उनका शमन करना आवश्यक है। सर्प, बैल, बिच्छू, बाघ -  चर्म आदि की परिकल्पना शिव के साथ करने का अभिप्राय यह है कि, हमारा देश परस्पर विरोधी जीवों के मध्य सामंजस्य बना कर चलने वाला है। शिव के साथ पार्वती ( देश की प्रकृति ) की परिकल्पना  इस देश की प्रकृति व पर्यावरण के संरक्षण के उद्देश्य को परिलक्षित करती है। 
जब हम कहते है : ' ॐ नमः शिवाय ' तब उसका अभिप्राय होता है - 'सैलूटेशन टू दैट लार्ड द बेनीफेक्टर आफ आल '। लेकिन आज हमारे देश में इस देश की प्रकृति के विरोधी अधार्मिक लोगों का बोलबाला है जो शिव - पार्वती और उनके गणों की परिकल्पना के विपरीत आचरण कर रहे हैं। ऐसे ही लोग नरेंद्र दाभोलकर, गोविंद पानसारे, एम एम कलबूरगी व अब गौरी लंकेश की हत्याओं के लिए उत्तरदाई हैं। किन्तु देश का यह दुर्भाग्य ही है कि, ऐसे ही लोग खुद के धार्मिक होने का दावा कर रहे हैं जिसकी पुष्टि एथीज़्म को मानने वाले भी करते है जबकि ऐसे लोगों को पाखंडी और अधार्मिक घोषित करके उनका सामाजिक बहिष्कार किया जाना चाहिए था।






संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश

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