Kaushal Kishor
Yesterday (07-09-2017 ) at 12:14pm
बेखौफ, बेबाक पत्रकार
गौरी लंकेश की हत्या, निश्चित तौर पर दाभोलकर,
कलबुर्गी और पंसारे की हत्या की श्रंखला का हिस्सा
है । इसे हमे पूरी ताकत से निपटना होगा वरन सच
कहने वालों,लिखने वालों की हत्याएं होती रहेंगी ।
आज लखनऊ में, गांधी चबूतरे पर लखनऊ का नागरिक समाज जिसमे सामाजिक संगठनों ,महिला संगठनों ट्रेड यूनियनों,छात्रों,लेखको एवम पत्रकारों ने भारी संख्या में हिस्सेदारी की और अपने रोष को व्यक्त किया।
अब अभिव्यक्ति के सारे खतरे उठाते हुए बोलना ही नही ,इस कट्टरपंथी और फासीवादी सत्ता के खिलाफ एक जुट होकर उतारना होगा ।
अब हम चुप रहे तो जिंदा लाश बन जाएंगे ।
जन संस्कृति मंच ने इस घटना के विरोध में बयान जारी किया और देश भर में हो रहे प्रतिवाद संघर्ष के साथ एकजुटता जाहिर की ....
तानाशाही, गैर-संवैधानिक, गैर-लोकतान्त्रिक ताकतों के खिलाफ साझा संघर्ष को आगे बढ़ाना ही गौरी लंकेश को सच्ची श्रद्धांजलि होगी
कन्नड पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या के खिलाफ जन संस्कृति मंच का बयान
लखनऊ, 6 सितम्बर. 5 सितंबर को कन्नड की अनभय दिलेर पत्रकार गौरी लंकेश की बंगलुरु स्थित उनके आवास पर गोली मार कर हत्या कर दी गई। गौरी कन्नड में 'लंकेश पत्रिके' नाम की पत्रिका की संपादक थीं। अपने पिता के नक्शे-कदम पर चलते हुए वे पत्रकारिता को लोकतन्त्र, न्याय और धर्मनिरपेक्षता की मशाल की तरह थामने वाली आवाज थीं। तमाम दक्षिणपंथी धमकियों के बावजूद वे इस मुल्क की जम्हूरियत को अपनी कलम के जरिये मजबूत करने वाली निर्भीक पत्रकार थीं। हाल ही में उन्होंने गुजरात के राज्यप्रायोजित नरसंहार की डिजाइन उघाड़ने वाली राणा अयूब की किताब 'गुजरात फाइल्स ' का कन्नड में तर्जुमा किया था। वे लगातार महिलाओं, अल्पसंख्यकों, दलितों और अन्य हाशिये के तबकों के सवाल मजबूती से उठाती रहीं। भाजपा और संघ परिवार की तीखी आलोचक गौरी लगातार उनके निशाने पर रहीं, उनको तमाम तरह की धमकियाँ मिलती रहीं, पर उन्होंने सच और साहस का दामन मजबूती से थामे रखा। अभिव्यक्ति की आजादी के सवाल पर वे लगातार लिखती-बोलती रही थीं।
गौरी लंकेश की हत्या बढ़ती असहिष्णुता के साथ इस बात का भी प्रमाण है कि मुल्क का लोकतन्त्र भीषण खतरे में है। भिन्न विचार ही लोकतन्त्र की आत्मा होते हैं, उनका गला घोंटा जा रहा है। उनकी हत्या विवेकवादी, धर्मनिरपेक्ष, वामपंथी और हिंदुत्वविरोधी लेखकों की दिन-दहाड़े हो रही हत्याओं की अगली कड़ी है। 2013 में महाराष्ट्र में नरेंद्र दाभोलकर, 2015 में गोविंद पनसारे और 2016 में एमएम कलबुर्गी की हत्या की गयी। इन हत्याओं का तरीका एक है। कर्नाटक पुलिस के मुताबिक कलबुर्गीकी हत्या में जिस पिस्तौल का इस्तेमाल हुआ, उसी से पनसारे की हत्या की गयी थी. यह भी पता चल चुका है कि जिन दो पिस्तौलों का इस्तेमाल पनसारे की हत्या करने के लिए किया गया था, उन्हीं में से एक से दाभोलकर को भी मारा गया था. यानी इन सभी हत्याओं के तार एक-दूसरे से जुड़े हैं।
गौरी लंकेश ने लिखा था कि "हमारे पास यूआर अनंतमूर्ति,कलबुर्गी, मेरे पिता पी लंकेश, पूर्ण चंद्र तेजस्वी जैसे लोग थे. वे सभी जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के आलोचक थे लेकिन उन पर कभी हमला नहीं किया गया." पर मौजूदा दौर में संघ गिरोह जिस तरह का माहौल बना रहा है उसमें हत्यारों को खुली छूट मिली हुई है। उनके सर पर सत्ता का वरदहस्त है। पर वे सच से डरते हैं। वे डरते हैं कि एक दिन निहत्थे लोग उनसे डरना बंद कर देंगे। इसीलिए वे उन सब आवाजों को खामोश कराना चाहते हैं जो इन निहत्थों को एकजुट करना चाहती हैं। इसीलिए वे एक अकेली दुबली-पतली महिला के जिस्म में सात-सात गोली उतार देते हैं। कर्नाटक के चुनाव सिर पर हैं और वे खून की बारिश से मतदान की फसल काटने की फिराक में हैं।
पर जैसा कि गौरी लंकेश ने अपने एक ट्वीट में लिखा, 'हम हमारे सबसे बड़े दुश्मन को जानते हैं। उसके खिलाफ एकजुट होना 'हमारी सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी है। हम उनके समतामूलक समाज के सपने को साझा एकजुट लड़ाई के जरिये गति दे सकते हैं।
हत्यारों को अविलंब सजा की मांग करते हुए जन संस्कृति मंच ने विभिन्न शहरों और इलाकों में गौरी लंकेश की हत्या के खिलाफ प्रतिवाद दर्ज कराया है। जसम दोस्ताना ताकतों के साथ मुल्क में तानाशाही, गैर-संवैधानिक, गैर-लोकतान्त्रिक ताकतों के खिलाफ साझा संघर्ष को आगे बढ़ाने के लिए कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा रहेगा। शायद यही गौरी लंकेश को सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
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