Shesh Narain Singh
सोनिया गांधी ने कांग्रेस को दलदल से निकाला था , देखें राहुल क्या करते हैं .शेष नारायण सिंह
राहुल गांधी को कांग्रेस अध्यक्ष पद की कुर्सी औपचारिक रूप से सम्भलवाकर सोनिया गांधी ने राजनीति से वानप्रस्थ की घोषणा की . वे कांग्रेस की राजनीति के शीर्ष तक पंहुची . इसके पीछे कारण यह था कि वे इंदिरा गांधी के बड़े बेटे की पत्नी थीं . सोनिया गांधी जब कांग्रेस की अध्यक्ष बनीं और जिस तरह से बनीं ,वह कांग्रेस पार्टी के चापलूसी की परम्परा का एक प्रतिनिधि नमूना है . संसद भवन के दो-तीन किलोमीटर के दायरे में देश के सर्वोच्च चापलूस हमेशा से ही विराजते रहे हैं . सत्ता चाहे जिसकी हो ये लोग उसके करीबी आटोमेटिक रूट से हो जाते हैं . सोनिया गांधी को भी इन्हीं चापलूसों ने ही कांग्रेस अध्यक्ष पद पर आसीन किया था . लेकिन जिस तरह से उन्होंने खंड खंड होती कांग्रेस को फिर से केंद्रीय सत्ता के केंद्र में स्थापित करने का माहौल बनाया उससे लग गया कि वे संगठन के फन की माहिर हैं . सत्ता से पैदल कांग्रेस को अटल बिहारी वाजपेयी को हराने वाली पार्टी बना कर उन्होंने साबित कर दिया कि वे एक सक्षम नेता हैं . उन्होंने देश के गवर्नेंस माडल में बहुत सारे बदलाव किये . सूचना का अधिकार एक ऐसा हथियार है जो देश की ज़िम्मेदार राजनीति में हमेशा सम्मान से याद किया जाएगा . गड़बड़ तब शुरू हुई जब राहुल गांधी ने अपनी तरह के लोगों को कांग्रेस के केंद्र में घुसाना शुरू कर दिया .नतीजा यह हुआ कि तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह की अथारिटी धूमिल होना शुरू हो गयी . और कांग्रेस फिर पतन के रास्ते पर चल पड़ी . राहुल गांधी उस दौर में सी पी जोशी और मधुसूदन मिस्त्री नाम के लोगों पर बहुत ज़्यादा भरोसा करने लगे . सी पी जोशी की एक उपलब्धि यह है कि वे विधान सभा का चुनाव एक वोट से हारे थे और मधुसूदन मिस्त्री की सबसे बड़ी उपलब्धी यह है कि वे वडोदरा से कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में अपने विरोधी उम्मीदवार नरेंद्र मोदी का पोस्टर फाड़ने बिजली के खम्बे पर चढ़े थे . राहुल की अगुवाई में यह उत्तर प्रदेश की राजनीति के इंतज़ाम के कर्ता धर्ता बनाये गए थे . राहुल गांधी ने कांग्रेस को .ऐसे लोगों के हवाले कर दिया जिनकी राजनीति में समझ न के बराबर थी . नतीजा सामने है. कांग्रेस उत्तर प्रदेश में शून्य के आस पास पंहुच चुकी है .
अब राहुल गांधी कांग्रेस अध्यक्ष हैं .नई दिल्ली की राजनीति के बारे में रिपोर्ट करने वालों को मालूम है कि किस तरह से राहुल गांधी २०११ के बाद सोनिया गांधी के ज़्यादातर फैसलों को पलट दिया करते थे. नई दिल्ली के प्रेस क्लब में एक अध्यादेश के कागजों को फाड़ते हुए राहुल गांधी को जिन लोगों ने देखा है उनको मालूम है कि यू पी ए -२ के समय राहुल गांधी मनमानी पर आमादा रहते थे . प्रियंका गांधी को २०१४ में प्रचार करने से रोकने के पीछे भी यही उनकी अपनी असुरक्षा काम कर रही थी . उनको यह मुगालता भी रहता था की सभी कांग्रेसी उनके दास हैं .लेकिन अब तस्वीर बदल चुकी है . गुजरात चुनाव के दौरान उन्होंने सभ्य आचरण किया था और अब दुनिया जानती है कि राहुल गांधी बदल गए हैं .
उन लोगों की बात से भी सहमत नहीं हुआ जा सकता जो कहते रहते हैं कि कांग्रेस की राजनीति में वंशवाद की शुरुआत जवाहरलाल नेहरू ने की थी . उन्होंने तो इंदिरा गांधी को कभी चुनाव तक नहीं लड़ने दिया था . नई दिल्ली में विराजने वाले चापलूसों ने ही उनको शास्त्रीजी के मंत्रिमंडल में शामिल करवा दिया था . इंदिरा गाधी को संसद की राज्यसभा का सदस्य बनने का मौक़ा भी शास्त्री जी ने दिया , नेहरू ने नहीं . हाँ इंदिरा गांधी ने बाकायदा वंशवाद की स्थापना की . कांग्रेस की मूल मान्यताओं को इंदिरा गांधी ने ही धीरे धीरे दफ़न किया .इमरजेंसी में तानाशाही निजाम कायम करके इंदिरा गाँधी ने अपने एक बेरोजगार बेटे को सत्ता थमाने की कोशिश की थी . वह लड़का भी क्या था. दिल्ली में कुछ लफंगा टाइप लोगों से उसने दोस्ती कर रखी थी और इंदिरा गाँधी के शासन काल के में वह पूरी तरह से मनमानी कर रहा था . इमरजेंसी लागू होने के बाद तो वह और भी बेकाबू हो गया . कुछ चापलूस टाइप नेताओं और अफसरों को काबू में करके उसने पूरे देश में मनमानी का राज कायम कर रखा था. इमरजेंसी लगने के पहले तक आमतौर पर माना जाता था कि कांग्रेस पार्टी मुसलमानों और दलितों की भलाई के लिए काम करती थी .हालांकि यह सच्चाई नहीं थी क्योंकि इन वर्गों को बेवक़ूफ़ बनाकर सत्ता में बने रहने का यह एक बहाना मात्र था . इमरजेंसी में दलितों और मुसलमानों के प्रति कांग्रेस का असली रुख सामने आ गया . दोनों ही वर्गों पर खूब अत्याचार हुए . देहरादून के दून स्कूल में कुछ साल बिता चुके इंदिरा गाँधी के उसी बिगडैल बेटे ने पुराने राजा महराजाओं के बेटों को कांग्रेस की मुख्य धारा में ला दिया था जिसकी वजह से कांग्रेस का पुराना स्वरुप पूरी तरह से बदल दिया गया था . अब कांग्रेस ऐलानियाँ सामंतों और उच्च वर्गों की पार्टी बन चुकी थी. ऐसी हालत में दलितों और मुसलमानों ने उत्तर भारत में कांग्रेस से किनारा कर लिया . नतीजा दुनिया जानती है . कांग्रेस उत्तर भारत में पूरी तरह से हार गयी और केंद्र में पहली बार गैरकांग्रेसी सरकार स्थापित हुई
संजय गांधी की मृत्यु के बाद भी इंदिरा गांधी ने अपने बड़े बेटे को राजनीति में स्थापित करना शुरू किया .वह भी वंशवाद था . उनकी अकाल मृत्य के बाद फिर कुछ ऐसे लोगों ने जो सत्ता का आनंद लेना चाहते थे उन्होंने राजीव गांधी को प्रधानमंत्री बनवा दिया . उनके भी दून स्कूल टाइप लोग ही दोस्त थे . मणिशंकर अय्यर उसी वर्ग के नेता हैं . राजीव गांधी भी अपने संभ्रांत साथियों के भारी प्रभाव में रहते थे. मुख्यमंत्रियों को इस तरह से हटाते थे जैसे बड़े लोग कोई अस्थाई नौकर को हटाते हैं .. उनके काल में भी दिल्ली की संभ्रांत बस्तियों में विराजने वाले लोगों ने खूब माल काटा . लेकिन १९८९ में सत्ता से बेदखल होने के बाद वे काफी परिपक्व हो गए थे लेकिन अकाल मृत्यु ने उनको भी काम नहीं करने दिया .
सोनिया गांधी ने विपरीत परिस्थितियों में कांग्रेस का नेतृत्व सम्भाला और सत्ता दिलवाई . इसलिए सोनिया गांधी की इज्ज़त एक राजनेता के रूप में की जा सकती है . अब राहुल गांधी को चार्ज दिया गया है . देखना दिलचस्प होगा कि वे कैसे अपनी दादी द्वारा स्थापित की गयी कांग्रेस को आगे बढाते हैं . इस कांग्रेस को महात्मा गांधी या जवाहरलाल नेहरू या सरदार पटेल या की कांग्रेस मानना ठीक नहीं होगा क्योंकि उस कांग्रेस को तो इंदिरा गांधी ने १९६९ में ख़त्म करके इंदिरा कांग्रेस की स्थापना कर दी थी. मौजूदा कांग्रेस उसी इंदिरा कांग्रेस की वारिस है . और राहुल गांधी उसी कांग्रेस के अध्यक्ष हैं .
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