स्पष्ट रूप से पढ़ने के लिए इमेज पर डबल क्लिक करें (आप उसके बाद भी एक बार और क्लिक द्वारा ज़ूम करके पढ़ सकते हैं )
यद्यपि कुछ विद्वान राहुल गांधी से यह अपेक्षा कर रहे हैं कि, वह संविधान के धर्म - निरपेक्ष सिद्धांतों का अनुगमन करें और संघ - प्रेरित भाजपा के हिन्दुत्व का अनुसरण न करें। किन्तु वे इस तथ्य की अनदेखी कर रहे हैं कि, उनकी दादी इन्दिरा गांधी ने ही संघ की ओर रुझान कर लिया था । 1975 में एमर्जेंसी के दौरान हुये अत्याचारों ने 1977 में उनको करारी शिकस्त दिलवाई। मोरारजी प्रधानमंत्री बन गए और उनके विदेशमंत्री ए बी बाजपेयी व सूचना प्रसारण मंत्री एल के आडवाणी। इन दोनों ने संघियों को प्रशासन में ठूंस डाला। इसके अतिरिक्त गृह मंत्री चौधरी चरण सिंह के पीछे ए बी बाजपेयी,पी एम मोरारजी के पीछे सुब्रमनियम स्वामी तथा जपा अध्यक्ष चंद्रशेखर के पीछे नानाजी देशमुख छाया की तरह लगे रहे और प्रशासन को संघी छाप देते चले। संघ की दुरभि संधि के चलते मोरारजी व चरण सिंह में टकराव हुआ और इंदिराजी के समर्थन से चरण सिंह पी एम बन गए।
एमर्जेंसी के दौरान हुये मधुकर दत्तात्रेय 'देवरस'- इन्दिरा (गुप्त ) समझौते को आगे बढ़ाते हुये चरण सिंह सरकार गिरा दी गई और 1980 में संघ के पूर्ण समर्थन से इन्दिरा जी की सत्ता में वापसी हुई। अब संघ के पास (पहले की तरह केवल जनसंघ ही नहीं था ) भाजपा के अलावा जपा और इन्दिरा कांग्रेस भी थी। संघ के इशारे पर केंद्र में सरकारें बनाई व गिराई जाने लगीं। सांसदों पर उद्योपातियों का शिकंजा कसता चला गया। 1996 में 13 दिन, 1998 में 13 माह फिर 1999 में पाँच वर्ष ए बी बाजपेयी के नेतृत्व में केंद्र सरकार का भरपूर संघीकरण हुआ। 2004 से 2014 तक कहने को तो मनमोहन सिंह कांग्रेसी पी एम रहे किन्तु संघ के एजेंडा पर चलते रहे। 1991 में जब वह वित्तमंत्री बन कर ‘उदारीकरण ‘ लाये थे तब यू एस ए जाकर आडवाणी साहब ने उसे उनकी नीतियों को चुराया जाना बताया था। स्पष्ट है कि वे नीतियाँ संघ व यू एस ए समर्थक थीं। जब सोनिया जी ने प्रणव मुखर्जी साहब को पी एम बना कर मनमोहन जी को राष्ट्रपति बनाना चाहा था तब तक वह हज़ारे /रामदेव/केजरीवाल आंदोलन खड़ा करवा चुके थे। 2014 के चुनावों में 100 से अधिक कांग्रेसी मनमोहन जी के आशीर्वाद से भाजपा सांसद बन कर वर्तमान केंद्र सरकार के निर्माण में सहायक बने हैं।
यदि इंदिरा जी ने 1975 में 'देवरस'से समझौता नहीं किया होता व 1980 में संघ के समर्थन से चुनाव न जीता होता तब 1984 में राजीव जी भी संघ का समर्थन प्राप्त कर बहुमत हासिल नहीं करते। विभिन्न दलों में भी संघ की खुफिया घुसपैठ न हुई होती।
आज संघ के पास सिर्फ भाजपा ही नहीं राहुल की कांग्रेस भी है और वह अदल - बदल कर इन दो दलों के माध्यम से सत्ता पर पकड़ बनाए रखने में सक्षम है।
जो लोग या दल इसे नापसंद करते हैं उनको अन्य विकल्प तलाशना होगा और कांग्रेस पर निर्भरता समाप्त करनी होगी।
यद्यपि कुछ विद्वान राहुल गांधी से यह अपेक्षा कर रहे हैं कि, वह संविधान के धर्म - निरपेक्ष सिद्धांतों का अनुगमन करें और संघ - प्रेरित भाजपा के हिन्दुत्व का अनुसरण न करें। किन्तु वे इस तथ्य की अनदेखी कर रहे हैं कि, उनकी दादी इन्दिरा गांधी ने ही संघ की ओर रुझान कर लिया था । 1975 में एमर्जेंसी के दौरान हुये अत्याचारों ने 1977 में उनको करारी शिकस्त दिलवाई। मोरारजी प्रधानमंत्री बन गए और उनके विदेशमंत्री ए बी बाजपेयी व सूचना प्रसारण मंत्री एल के आडवाणी। इन दोनों ने संघियों को प्रशासन में ठूंस डाला। इसके अतिरिक्त गृह मंत्री चौधरी चरण सिंह के पीछे ए बी बाजपेयी,पी एम मोरारजी के पीछे सुब्रमनियम स्वामी तथा जपा अध्यक्ष चंद्रशेखर के पीछे नानाजी देशमुख छाया की तरह लगे रहे और प्रशासन को संघी छाप देते चले। संघ की दुरभि संधि के चलते मोरारजी व चरण सिंह में टकराव हुआ और इंदिराजी के समर्थन से चरण सिंह पी एम बन गए।
एमर्जेंसी के दौरान हुये मधुकर दत्तात्रेय 'देवरस'- इन्दिरा (गुप्त ) समझौते को आगे बढ़ाते हुये चरण सिंह सरकार गिरा दी गई और 1980 में संघ के पूर्ण समर्थन से इन्दिरा जी की सत्ता में वापसी हुई। अब संघ के पास (पहले की तरह केवल जनसंघ ही नहीं था ) भाजपा के अलावा जपा और इन्दिरा कांग्रेस भी थी। संघ के इशारे पर केंद्र में सरकारें बनाई व गिराई जाने लगीं। सांसदों पर उद्योपातियों का शिकंजा कसता चला गया। 1996 में 13 दिन, 1998 में 13 माह फिर 1999 में पाँच वर्ष ए बी बाजपेयी के नेतृत्व में केंद्र सरकार का भरपूर संघीकरण हुआ। 2004 से 2014 तक कहने को तो मनमोहन सिंह कांग्रेसी पी एम रहे किन्तु संघ के एजेंडा पर चलते रहे। 1991 में जब वह वित्तमंत्री बन कर ‘उदारीकरण ‘ लाये थे तब यू एस ए जाकर आडवाणी साहब ने उसे उनकी नीतियों को चुराया जाना बताया था। स्पष्ट है कि वे नीतियाँ संघ व यू एस ए समर्थक थीं। जब सोनिया जी ने प्रणव मुखर्जी साहब को पी एम बना कर मनमोहन जी को राष्ट्रपति बनाना चाहा था तब तक वह हज़ारे /रामदेव/केजरीवाल आंदोलन खड़ा करवा चुके थे। 2014 के चुनावों में 100 से अधिक कांग्रेसी मनमोहन जी के आशीर्वाद से भाजपा सांसद बन कर वर्तमान केंद्र सरकार के निर्माण में सहायक बने हैं।
यदि इंदिरा जी ने 1975 में 'देवरस'से समझौता नहीं किया होता व 1980 में संघ के समर्थन से चुनाव न जीता होता तब 1984 में राजीव जी भी संघ का समर्थन प्राप्त कर बहुमत हासिल नहीं करते। विभिन्न दलों में भी संघ की खुफिया घुसपैठ न हुई होती।
आज संघ के पास सिर्फ भाजपा ही नहीं राहुल की कांग्रेस भी है और वह अदल - बदल कर इन दो दलों के माध्यम से सत्ता पर पकड़ बनाए रखने में सक्षम है।
जो लोग या दल इसे नापसंद करते हैं उनको अन्य विकल्प तलाशना होगा और कांग्रेस पर निर्भरता समाप्त करनी होगी।
No comments:
Post a Comment
कुछ अनर्गल टिप्पणियों के प्राप्त होने के कारण इस ब्लॉग पर मोडरेशन सक्षम है.असुविधा के लिए खेद है.