Sunday 18 August 2019

सब ध्वस्त हैं : लूटतंत्र और तानाशाही के आगे ------ राजेश द्वारा जया सिंह

Jaya Singh
20 hrs

बनिया- बीजेपी और ईवीएम
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लंबा लेख हैं ,मेरे विचार हैं केवल जो सोच पे आधारित हैं
आपको संशोधन करने का हक है पढ़कर ।
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बात थोड़ी पुरानी हैं 
हम यहां छोड़ देते हैं हिंदू महासभा और जनसंघ को ..
बचपन था ,वो संयुक्त परिवार का दौर भी रहा..
अपने रूवाब ,अपने इलाके अपनी ही शोहरतें ,हर दो चार किलोमीटर दूर ऐसे परिवार अक्सर लगभग-लगभग सवर्ण समाज में होते ही थे लेकिन बैकवर्ड क्लास में भी होते थे ।
हमें याद है मेरे संसदीय क्षेत्र से बाबू जगजीवन राम जी कांग्रेस से अलग होकर चुनाव लड़ें थें ,हार जीत हम नहीं जानते न पढ़ना चाहते हैं ।
लेकिन बड़े बाबूजी मुखिया जी और उनके मझोले भाई यानि हम-सब जिन्हें छोटका बाबूजी कहते थे ,बूथ पे वोट देने गये थे,
मैं भी पीछे पीछे चला गया , चुनाव तो पता नहीं था लेकिन खेलने-कूदने ही गये थे ,
जब ये लोग वापस आ रहें थे तो हम भी चलें पीछे पीछे ।
ये लोग बात कर रहे थे 
अरे वो शुद्ध बनियों की पार्टी है ।
ये पूर्वजों की बातें थीं ।
हम शायद बीजेपी नाम नहीं जानते थे ।
हां इंदिरा कांग्रेस का नाम सुना था ,
वो दौर को कुछ दिनों बाद हम पढ़े , देखें या कहें तो समझें ।
सारे सवर्ण खासकर कांग्रेसी ही थे , और तो और दलित और मुस्लिम भी सोलह आने थे ।
या कहें तो अन्य सभी जातियां भी , कांग्रेस का ही वोटर होता था या प्रतिनिधि ।
यानि मेरे समझ से सभी जातियां कांग्रेस की थी ,
अगर पूरे देश में अगर वामपंथी को छोड़ दिया जाये तो बदलाव कांग्रेस के वोट में पहली दफा इंदिरा जी के आपातकाल से आया होगा,यानि कांग्रेस का वोट बिखराव हुआ होगा या कांग्रेस को चोट दिया होगा अपने वोटों से,
इस दौर में अपने अपने इलाके के अपना नेता पैदा हुआ होंगे ,या हुए ही ।
जब जनता पार्टी की सरकार मोरारजी देसाई के रूप में बनी ,
कांग्रेस की एकरूपता ध्वस्त हुई थी एकाधिकार पे चोट लगे होंगे , फिर बहुत नेता निकले कांग्रेस से ,गये भी तो आये भी ।

फिर पूर्ण बहुमत से इंदिरा गांधी आती है , और 84 में मारी जाती है ।
देश की गद्दी पे राजीव गांधी आते हैं बहुत कुछ बदलाव कर जाते हैं ,
उसके बाद बोफोर्स तोप वाली माहौल लेकर वीपी सिंह आते हैं 
मंडल कमीशन लागू , और बीजेपी की कमंडल की बात ।
सरकार गिराई जाती है ।
फिर चंद्रशेखर जी .
आपातकाल से लेकर यहां तक जनता कांग्रेस से बंट चुकी थी 
या मोहभंग हो चुका था,
कांग्रेस को घृणित निगाहों से देखने लगे थे लोग ।
या कह सकते हैं आप धीरे-धीरे ही सही कुछ % जनता कांग्रेस से बिदकने लगे थे ।
खैर चुनाव के दौर थे राजीव जी मारे जाते हैं फिर कांग्रेस.
तबतक जनता दल के दौर ने कई क्षत्रप नेता तैयार किए ।
जिसका असर हरियाणा बिहार यूपी झारखंड पे पड़ा , उड़ीसा और पूर्वोत्तर के साथ दक्षिण में भी दमदार क्षत्रपो ने अपनी अपनी राज्यों की जमीनें पकड़ ली थी ।
खैर मेरी तहकीकात यूपी बिहार पे ही केंद्रीत है ।
यहां बिल्कुल नये ढंग से राजनीति परोसी गई जो जातिवादी थी ,
जातिवादी केंद्र की कांग्रेस सरकार भी थी तभी नकल इन यूपी बिहार के नेताओं ने किया ,
मैं सवाल दागना चाहता हूं यूपी बिहार के सत्ता पे काबिज नायकों से ..
क्या बिहार में लालूजी ने समाजिक न्याय के अनुरूप सत्ता चलाई ?
उनके दौर में साधु सुभाष कौन थे ?
ऐसे-ऐसे दो दर्जन जातिय नेता थे जो जहां थे समानांतर सरकार चला रहे थे अपनी अपनी,उनके सामने कानून और न्याय वही थे ।
क्या क्या तांडव नही किया गया ?
वगैरह-वगैरह...अनवरत ।
माननीय मुलायम सिंह जी ,क्या आपकी पार्टी समाजवाद ला सकी ?
एक ही घर से कितने सांसद मंत्री और अध्यक्ष बनाये 
पैसे के खेल नहीं हुए ,
लूट नहीं मचा, कमीशनखोरी नहीं चला ?
इनके दौर मे नंगा नाच हुए हैं 
फिल्मी दुनिया की सभी हिरोइनें सैफई में था था थैय्या करती थी ..
कौन था यूपी में इन सभी के सामने ।
क्या दोनों राज्यों में जातीय खेल नंगा नहीं खेला गया ?
लेकिन अब बड़ा गुंडा मिला दिल्ली में तो हाजिर हूं हूजूर ।
खैर समय हैं ।
हम सब (यानि सवर्ण )खुद पहले से मौजूदा जातिवादी थे वो भी घर घर से ,
हम तो कभी मान नहीं सकते कि फलां फलां जाति हमपे शासन करें ।
क्योंकि अपने अपने इलाके के हमसभी जातिवादी ही थे या कह सकते हैं वर्चस्ववादी ।
और अब कोई वश भी नहीं चलनेवाला था,
तो का करें ,वर्षो बीतते गए और हम कुंठित होते गए उदासीन होते गए ।
इसमें 89 से 2014 तक आप मान सकते हो कि हम उपेक्षित महसूस किए होंगे ,यही सभी ने सोचा होगा ।
अपने में हीनता भरते गये ,नौकरी,जाब पेशा,शिक्षा की अव्यवस्था हमें सीधे-सीधे चोट करती कि क्या ऐसा भी सरकारें प्रदेश में होनी चाहिए , नहीं नहीं ।
लेकिन आप नोट यह भी करो कि आपका वश नहीं चलता रहा ,
और हम लोकतंत्र में तो थे लेकिन खुद को ही हर जगह लोकतंत्र का ठेकेदार समझते रहें ।
धीरे-धीरे दबे कुचलो ने लोकतंत्र का मायने समझा ,जबकि पहले हम 35-40% वोट अपने लोगों का लेकर दिलवाते थे
व्यवहार वश या एक दूसरा रूप भी था इलाके का सौदागर थे वोट का दबंगई का ।
एक इशारे पे वोट खाने में गिर जाते थे ।
अपहरण, बलात्कार और लूट की घटनाएं, दिनदहाड़े हत्या या गैंग वार की घटनाएं बढ़ती रही ।
सरकारें निष्पक्ष नहीं रही , और तो और इन सरकारों ने कोई और वर्ग को जोड़ने की कोशिश नहीं की,
कोशिश की तो उस जाति के मनपसंद नेता को टिकट पकड़ा दिया और काम हो गया,ऐसे नहीं चलता कभी ,यह समझ मेरी हैं ,
अगर आप नेतृत्वकर्ता हैं तो जनता के बीच जाना होगा,समझना होगा और सहानुभूति बटोरने होंगे , लेकिन यह काम आज भी नहीं हैं यह दुखद है ।
आप जनसमस्याओं के सामूहिक मुद्दों को हो सके तो निदान करें ,
आपका कोई खास तो खास किसी तरह समझाकर बनाएं रहें ,
लेकिन अपने खास को खुश करने के लिए आम जनता से क्यो दूरी बनाते हों,ये तो राजनीति भी नहीं कहती ।
शायद यह यूपी बिहार हरियाणा झारखंड के अलग-अलग काबिज सत्ता पे नेता समझ नहीं पाये कि ऐसा आज 👈दौर भी आयेगा ।
इस दयनीय स्थिति में सवर्ण समाज मध्यमवर्गीय और सत्ता से वंचित वर्ग हताश निराश था ,उसे भी बोलने की जगह चाहिए थी भले वो दरवाजे के बाहर बोले ,सड़क पर बोले,बाजार में बोले जिले और राजधानी में बोले 
बोलने के लिए बीजेपी की बैनर सही लगी और सब समाहित हुए बीजेपी में ,
यह मुख्य कारण रहा बीजेपी स्वीकार करने की 🤳
लेकिन खोया कितना इसकी कल्पना ये सभी वर्ग आज भी वही कर सकते न मान सकते हैं ❗
आप विश्वास करोगे तो लोकतंत्र में तूम नहीं हो 👈
आप विश्वास करोगे तो संवैधानिक व्यवस्था में नहीं हो 👈
आप विश्वास करोगे तो मौलिक अधिकार तेरे छिन लिया 👈
आप विश्वास करोगे तो देश की अर्थव्यवस्था चौपट है👈
आप विश्वास करोगे तो न्यायालय भी पंगु हैं 👈
आप विश्वास करोगे तो चौथे स्तंभ गिरवी है 👈
आप विश्वास करोगे तो तेरे मत लूट लिया गया 👈
यह भी नोट करो कि भले तूम भाजपा के भक्त या फिर अंधभक्त ही हो सत्ता तेरे लिए नहीं है ,
जिसे तूम अपने अपने कौम का नेता मानते थे 
यहां तो आपकी आवाज दबी थी न, दिल्ली ने आपके नेताओं की आवाज दबा दी ❗
आप याद करो 84 में दो सीट वाले बीजेपी जनतदल के समय 82 पे आ टीका था ।
और अटल आडवाणी की बीजेपी में खुद का भविष्य या देश का भविष्य ।

फिर अपने बलबूते बीजेपी सरकार बनाती है अटल पीएम बनते हैं , अविश्वास प्रस्ताव में हारते हैं फिर चुनाव और पांच साल गुजारते हैं ।
यह क्रम चला ।
अटल जी ब्राह्मण समाज से थे और बुजुर्ग ब्राह्मण भी अटल में भविष्य देखता था तो उनके नौजवान क्यो न अपना भविष्य देखें ?
यह था सवर्ण समाज का झुकाव ..
फिर तो सभी झुकें.. 
आपको नोट करा दूं बनिया तो पहले से थे ही लेकिन ब्राह्मण, कायस्थ ,राजपूत यानि सभी सवर्ण जातियां भाजपा का मुरीद हो चुकी थी और हैं भी ❗
सवर्ण जाति का पैमाना मेरे समझ से कलम और दिमाग ही होता है ,
इसमे राजपूत चौथे स्थान पर आते हैं, 
फिर भी लठैत होने के नाते ई खुद को एक मान लेते हैं कि हम ही नंबर वन हैं ,या फिर बना दिया जाता हैं, फिर धीरे से उस्तरा चला कर इनका काम तमाम कर दिया जाता हैं ❗
पढ़ोगे समझोगे तो उतर यही मिलेगा हर जगह ❗
लेकिन हूं तो हूं ,ई ऐंठन अभी हैं ही ।
फिर भी सभी कुंठित लोगों ने भाजपा में अपना भविष्य सुरक्षित समझा और शामिल हुए गाहे-बगाहे ही सही लेकिन हुए ।
ई सब भी बोलने लगे ,नहीं अटल जी अच्छे हैं वगैरह-वगैरह
अरे मियां बीजेपी अटल जी की आज नहीं है ।
और संघ जैसे बड़े संगठन साथ हो और हिंदुत्व संबंधी सारी देश की दर्जनों संगठने साथ हो तो ...!
अटल जी के समय ही उपेक्षित , कुंठित सवर्ण बीजेपी से 
जुड़ गया था ।
बुरा न मानना क्योंकि अपने को उपेक्षित और कुंठित कह रहा हूं ।
हमें यह खेद हैं बिखरी कांग्रेस नरसिंह राव के दौर में और अभी मनमोहन सिंह जी के दौर में जनता पे पकड़ क्यो नही बना पाई ?
समय तो बहुत मिला , कांग्रेस सोनिया गांधी तक अटक गई
और अंदरूनी कांट छांट चलती रही ।
गुटबाजी और गिरोहबाजी चलती रही ।
कांग्रेस क्यो नही उन क्षत्रप नेताओं को पकड़ी या उन्हें आजादी देकर जनता-जनार्दन को कांग्रेस के खेमे में जोड़ने का काम दिया ?
इससे खुद कांग्रेस को क्या मिला ।
राव हो या मनमोहन सिंह ,इन दोनों के समय कांग्रेस पूर्ण बहुमत में भी नहीं रहा 
यूपीए वन यूपीए टू तो हमें याद ही है ।
तो संगठन में मजबूती क्यों नहीं ?
कांग्रेस में बड़े बड़े नेता बन चुके थे बिल्कुल राजा महाराजाओं जैसे..
जो जनता-जनार्दन के बीच में बैठना पसंद नहीं करते हों , केवल जनता ही उनके दरबार पे जाये और दरबार के लठैतो चमचो की दया हो तो भेंट हो अन्यथा नहीं ।
इससे आज पता चला होगा कांग्रेस को कि क्या खोया क्या पाया ।
मनमोहन सिंह की सरकार ने बहुत ही दमदार और जानदार कार्ययोजना चलाई देश के लिए देश की जनता के लिए , 
देश की अर्थव्यवस्था मजबूत किया जबकि विश्व में आर्थिक मंदी थी ।
फिर भी कांग्रेस जनता को पकड़ नहीं पाई 
और जनता समझ नहीं पाई ।
अब दौर रहा टीवी न्यूज चैनल, अखबार का जो रोज घोटाले रंग रोज रहें थे याह ओह वगैरह-वगैरह ।
दुनिया की सबसे अधिक आबादी युवाओं की यहां बन चुकी थी ,
सबके पेट भरने लगे थे ..!
शोशल मिडिया हाथ लग चुकी थी 
उसमें व्हाटसप ऐसा था जो सीधे-सीधे विष्णु भगवान लिखकर भेज रहें थें ब्रह्मा जी का आदेश ।
आकाशवाणी का दौर आप देखो हो या सुने हो 
रेडियो का युग , गांवों-कस्बों में इक्का दुक्का होता था और अगल बगल के लोग चिपककर सुनने के आ जाते थे 
फिर टीवी हुए कितने-कितने घरो में थे अरे रामायण महाभारत की सिरीयल . 
ठस ठस दरवाजा भर जाते थे गांवों में 
कनिया बहुरिया भी आ जाती थी देखने ..
यह सच माने लोग अधिक व्हाटसप पे ,जो लिखा हैं वो ब्रह्मा का लेख ही हैं ।
और हमने तो देखा है 
काफी पढ़े-लिखे लोगो को आज भी वही सच मानते हैं ।
संघ और बीजेपी ने मोदी को परोसा 
मोदी में हिंदुओं का आकर्षण क्यों ...
क्योंकि मोदी ही देश का एक ऐसा नेता हैं जो हिंदुओं के लिए हजारों हज़ार मुश्लिमों को गुजरात में कटवा कर फेंक दिया जला दिया ...
जबकि गोधरा में हिंदू जले पहले तो कौन जलाया,सीधा सा अर्थ हैं मुश्लिम
अरे भाई राजनीति में सत्ता के लिए कुछ भी संभव हैं ,
यहां तो घर के लोगों की भी बलि दी जाती है इतिहास नहीं पढ़े कभी का ?
यह मोदी की गुण हिंदुओं को आकर्षित करने का केंद्र बिंदु रही 
यही सच हैं न या कुछ और बताइयेगा ?
राम मंदिर,370 , रोजगार,कृषि लाभ ,शिक्षा स्वास्थ्य और और भ्रष्टाचार मुक्त भारत, काला धन हर गांव को मिलेगा वगैरह-वगैरह हर एक जरूरी वादों की फेहरिस्त लंबी फेंकी गई, पैसे के विज्ञापन होर्डिंग लगाए गए , हजारों हजार गाडियां ,टी शर्ट,टोपी झंडे बैनर पहनाएं गये ,
दिन-रात अच्छे दिन आयेंगे , और हर हर मोदी घर घर मोदी के बिगुल बजाए गये ।
सैकड़ों हेलीकॉप्टर आकाश से जमीन तक खड़खडाए गये,
लगभग-लगभग पचासों हजार करोड़ रुपए 14 की सत्ता आने के लिए कारपोरेट से चंदे और कर्ज लिए गए । 
और हम अपनी स्वविवेक ही सम्मान ही स्थिरता ही खो बैठे ।
यही नहीं इंसानियत भी भूल गए भगवा राज्य बनायेंगे
मुश्लिमो को पाकिस्तान भेजेंगे ।
ई मुल्ला वो मुल्ला .....!
मेरे समझ से लगभग सभी वर्गों के लोगों ने 14 के चुनाव में बीजेपी को वोट दिया है जाति व्यवस्था से ऊपर उठकर,
उसमें मुश्लिम बंधु भी कुछ अवश्य वोट दिये है .
यह एक जनता की आशा थी कि कुछ बदलेगा अबकी बार देश ..
क्या दौर था आप देखें ही होंगे ,मोदी की बुराई करने पे लगता था लोग मार देंगे आपको वो भी दर्जन भी इकट्ठा होकर हर चौक और चौराहे पर ।
शोशल मिडिया पे तो अच्छे से अच्छे लेखकों को गालियां भद्दी भद्दी दी जाती थी ,हमने भी पढ़ा है देखा हैं ये सब ।
आज कम तो हुआ हैं लेकिन फिर भी हैं 
लाखों लाख फेंक आईडी है 
जो इन सरकारों के इशारों पे वेतनमान युक्त आईटी सेल चल रही है ।
टीवी न्यूज चैनल मैनेज है 
कितने लेखक विचारक मारे गए 
फिर भी आज अनवरत हैं .
युवा तो होश में नही हैं आज भी जबकि उनका कीमती पांच साल इसी सरकार में गुजर गया 
पांच साल और में वे बीड़ी सिगरेट चाय पीना शुरू करेंगे 
फिर दारू ,जुऐ वगैरह-वगैरह।
देश की जनता को जो आज मिला हैं ,सवर्ण समाज और गरीब दलित को क्या मिला है , नौजवान को क्या मिला हैं 
जगजाहिर हैं नही तो वो खुद बतायेंगे ।
बसर्ते बीजेपी को सत्ता चाहिए थी वो मिल गई हैं
लेकिन वो सत्ता आम आवाम की नही है 
मात्र पूंजीपतियों की सरकार है
उनकी नीतियों पे काम करनेवाली सरकार हैं ।
यूपी बिहार की क्षेत्रिय पार्टियां टुट और बिखर चुकी है
अभी लालू यादव जी ने कहा हैं कि सभी को लेकर ही राजनीति की जा सकती है
लेकिन समय तो गुजर गया ..
तत्काल में सामने कांग्रेस ही हैं मात्र.
लेकिन कांग्रेस को अपना रवैया बिल्कुल बदलना होगा और नये शिरे से कांग्रेस का निर्माण करना होगा , क्योंकि आज देश बदल चुका है अब जातिवाद की समीकरण नहीं चलेगी सच्चे समाजवाद के तरफ आना ही होगा नहीं तो खैर नहीं रहेगी कांग्रेस की भी , वैसे वैसे नेता को कांग्रेस दायित्व दे जो जनमानस को साथ ले और जोड़े ।
जैसे पहले कांग्रेस देश को चला लिया वैसे अब देश कदापि नहीं चल सकता ,
माहौल और जनता दोनों बदल चुके हैं ।
आगे देखना यह है कि
जनता कब सड़कों पे आंदोलित होती हैं
अपना दल चुनती हैं अपना नेता चुनती है 
यह समय की बात होगी, फिलहाल कोई एक ऐसा नेता नहीं हैं विपक्ष में जो जनता का नेतृत्व करें या आंदोलित करें ।
हमारी मौलिक अधिकारों की हनन रोंके , लोकतांत्रिक व्यवस्था को मजबूत करने की काम करें,
संवैधानिक व्यवस्था को सुचारू रूप से चलने देने के लिए ही आवाज दे आवाज उठाएं...!
फिलहाल पुलवामा कराकर ईवीएम पर भारत सरकार इतरा रही है ।
अब नागालैंड और काश्मीर भी वोट है 
क्योंकि पांच राज्यों में चुनाव हैं ।
बाकिए सब ध्वस्त हैं ।
लूटतंत्र और तानाशाही के आगे ।
जय हिन्द जय भारत
राजेश ®️✍️
Rajesh Rajesh


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