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अगर भारत की जनता रौलट एक्ट का और साइमन कमीशन का विरोध कर सकती है तो वह क्यों नहीं सीएए का भी विरोध कर सकती है।
वह विरोध तो गुलामी के काल का था, जिस विरोध में ना तो हिंदू महासभा की कोई भागीदारी थी और ना ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की ! तो क्यों आजाद भारत में संविधान के विरोध में लाया गया काला कानून वापस नहीं हो सकता ? और क्यों उसकी मुखालफत नहीं हो सकती?
वास्तव में उसकी मुखालफत करना उचित है और यह कार्य बिना किसी भय के करना देशभक्ति का ही काम है।
सीएए कानून दरसल देश के धर्मनिरपेक्ष संविधान के विरुद्ध लाया गया है , वह उसकी मूल आत्मा को , जैसे महात्मा गांधी का कत्ल किया गया , उसी तरह उसका कत्ल करने के लिए लाया गया है। उसका विरोध होना जरूरी है ।
1955 के राष्ट्रीय नागरिकता कानून में कहीं भी किसी धर्म का उल्लेख नहीं है। भारत देश के 1950 के संविधान में एवं भारत की संविधान सभा ने भारत की नागरिकता के लिए कभी भी किसी धर्म की प्रतिबद्धता नहीं रखी।
घंटाघर
आज शाम मुझको लखनऊ के घंटाघर जाने का मौका मिला ।
लगभग 5:45 बजे हुए थे ।लगभग दिन ढल चुका था।रात पसर रही थी।
मैं गिन नहीं सकता था पर हजारों महिलाएं वहां पर थी ।बुर्का नशीन भी और बिना बुर्के की भी।
मैंने पहली बार घंटाघर देखा उसके अगल-बगल भी लैंडस्केप को देखा घंटाघर बहुत पुराना लगता है ।अंग्रेजों के जमाने से भी पहले नवाब नसरुद्दीन हैदर नें बनाया था।घंटाघर के चारों तरफ पक्के पत्थर लगा दिए गए हैं जिससे एक चबूतरा सा बन गया है ।
साफ सुथरा।
उसके सामने की ओर मेन सड़क है और उसके पीछे बहुत बड़ा पार्क ।
वास्तव में बेहद खूबसूरत जगह है।
इतनी सारी महिलाओं को मैंने एक साथ कभी नहीं देखा।
मेरे लिए बात बड़ी तसल्ली की थी।
वहां पर महिलाएं सीएए, एनपीआर और एनआरसी के विरुद्ध धरना दे रही हैं।
मैंने वहां लोगों से पूछा क्या महिलाएं बिना किसी टेंट की छाया के धरना देती हैं ?तो लोगों ने बताया , ऐसा ही है ।
इतनी अधिक सर्दी पड़ रही है और सर पर टेंट लगाने को जगह नहीं है।
बाबा रे।
पर महिलाएं बैठी हुई है।
बहनों की बहादुरी को सलाम।
जहां हजारों की संख्या में महिलाएं धरना दे रही हैं उस स्थल पर एक चौकोर रस्सी खींच दी गई है । मेन सड़क की ओर उस रस्सी पर कुछ स्टिकर्स लगे हैं और उन पर लिखा है इस रस्सी के अंदर सिर्फ लेडीज़ या मीडिया कर्मी ही आ सकते हैं ।उस रस्सी के बाहर हजारों पुरुष भी है जो अपनी माताओं ,बहनों ,बीवियों का समर्थन करने पहुंचे हुए हैं ।
हजारों की तादाद में।
वहां मैंने देखा , दूर से , लखनऊ यूनिवर्सिटी की रिटायर्ड प्रोफेसर रूपरेखा वर्मा भी मीडिया कर्मियों को कोई इंटरव्यू दे रही है। मैंने अपने साथ गए वहीं के एक निवासी साथी से कहा कि वह फोटो खींचे पर, उनके फोन की उस समय बैटरी चली गई थी और मेरा फोन मेरे पास नहीं था। जिसको वहां जाने की जल्दी में मैं चार्ज करने के लिए अपने निवास पर छोड़ गया था ।
इसलिए उस समय की फोटो मैं ले नहीं पाया।
भारतीय जनता पार्टी के नेता चाहे जो भी बयान दें।वह प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री। उनका कोई मतलब नहीं है।
साधारण महिलाओं और उनके मन में, भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने जो कानून लागू किए हैं उसका तिरस्कार है। अगर भारत की जनता रौलट एक्ट का और साइमन कमीशन का विरोध कर सकती है तो वह क्यों नहीं सीएए का भी विरोध कर सकती है।
वह विरोध तो गुलामी के काल का था, जिस विरोध में ना तो हिंदू महासभा की कोई भागीदारी थी और ना ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की ! तो क्यों आजाद भारत में संविधान के विरोध में लाया गया काला कानून वापस नहीं हो सकता ? और क्यों उसकी मुखालफत नहीं हो सकती?
वास्तव में उसकी मुखालफत करना उचित है और यह कार्य बिना किसी भय के करना देशभक्ति का ही काम है।
सीएए कानून दरसल देश के धर्मनिरपेक्ष संविधान के विरुद्ध लाया गया है , वह उसकी मूल आत्मा को , जैसे महात्मा गांधी का कत्ल किया गया , उसी तरह उसका कत्ल करने के लिए लाया गया है। उसका विरोध होना जरूरी है ।
1955 के राष्ट्रीय नागरिकता कानून में कहीं भी किसी धर्म का उल्लेख नहीं है। भारत देश के 1950 के संविधान में एवं भारत की संविधान सभा ने भारत की नागरिकता के लिए कभी भी किसी धर्म की प्रतिबद्धता नहीं रखी।
भारत के स्वतंत्रता संग्राम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का कोई योगदान नहीं है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने कभी भी तिरंगे का सम्मान नहीं किया।
तत्कालीन हिंदुत्ववादी नें डॉक्टर भीमराव अंबेडकर के समक्ष भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने का प्रस्ताव रखा था परंतु अंबेडकर जी नें और देश की संविधान सभा ने उस प्रस्ताव को कभी स्वीकार नहीं किया।
अब देश की मोदी सरकार , बैक डोर से अपने पाश्विक बहुमत के सहारे देश के संविधान की मूल आत्मा को बदलना चाहती है और उसनें देश की नागरिकता को धर्म सापेक्ष करने की हिमाकत की है। देश की 130 करोड़ जनता उसको कभी स्वीकार नहीं करेगी।
देश के प्रधानमंत्री , देश के गृहमंत्री अथवा उनकी पूरी कैबिनेट तथा संपूर्ण भारतीय जनता पार्टी चाहे सीएए का विरोध करने वालों को कितना भी बुरा भला कहें या , उनको गालियां दे और या अपने झूठ का प्रचार झूठे मीडिया चैनलों से करवाएं।
देश में न्याय ही चलेगा।
यह देश सबका है ।
हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई ।
जो भी धर्म के आधार पर देश को बांटने की चेष्टा करेगा उसका हाल वही होगा जो हिटलर और मुसोलिनी का हुआ था
देश से कभी भी जनवाद खत्म नहीं किया जा सकता ।
देश का नौजवान और देश की महिलाएं और देश की आम जनता आज मोदी सरकार की नीतियों के विरुद्ध उठ खड़ी हुई है और इसका नतीजा विभिन्न असेंबली में हुए चुनाव में भी दिखाई दे रहा है।
वह दिन दूर नहीं है जब दिल्ली के चुनावों में भी मोदी जी की भारतीय जनता पार्टी की बुरी तरह हार होने वाली है । चाहे वह 5000 रैली या 100000 रेलिया करें।रैलियों में अपनी पूरी कैबिनेट को भी लगा दे ।
दिल्ली में मोदी की सरकार भारतीय जनता पार्टी और इनकी नीतियां हारने वाली है।
मैं दूर से तिरंगे के आशिर्वाद के साथ आज़ादी का नारा सुन रहा था।
घंटाघर की बहनों संघर्ष जारी रहे।
आपको सलाम।
https://www.facebook.com/arvindrajswarup.cpi/posts/2546010418950414
संकलन-विजय माथुर
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अगर भारत की जनता रौलट एक्ट का और साइमन कमीशन का विरोध कर सकती है तो वह क्यों नहीं सीएए का भी विरोध कर सकती है।
वह विरोध तो गुलामी के काल का था, जिस विरोध में ना तो हिंदू महासभा की कोई भागीदारी थी और ना ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की ! तो क्यों आजाद भारत में संविधान के विरोध में लाया गया काला कानून वापस नहीं हो सकता ? और क्यों उसकी मुखालफत नहीं हो सकती?
वास्तव में उसकी मुखालफत करना उचित है और यह कार्य बिना किसी भय के करना देशभक्ति का ही काम है।
सीएए कानून दरसल देश के धर्मनिरपेक्ष संविधान के विरुद्ध लाया गया है , वह उसकी मूल आत्मा को , जैसे महात्मा गांधी का कत्ल किया गया , उसी तरह उसका कत्ल करने के लिए लाया गया है। उसका विरोध होना जरूरी है ।
1955 के राष्ट्रीय नागरिकता कानून में कहीं भी किसी धर्म का उल्लेख नहीं है। भारत देश के 1950 के संविधान में एवं भारत की संविधान सभा ने भारत की नागरिकता के लिए कभी भी किसी धर्म की प्रतिबद्धता नहीं रखी।
Arvind Raj Swarup Cpi
लखनऊ 20 जनवरी 2020.घंटाघर
आज शाम मुझको लखनऊ के घंटाघर जाने का मौका मिला ।
लगभग 5:45 बजे हुए थे ।लगभग दिन ढल चुका था।रात पसर रही थी।
मैं गिन नहीं सकता था पर हजारों महिलाएं वहां पर थी ।बुर्का नशीन भी और बिना बुर्के की भी।
मैंने पहली बार घंटाघर देखा उसके अगल-बगल भी लैंडस्केप को देखा घंटाघर बहुत पुराना लगता है ।अंग्रेजों के जमाने से भी पहले नवाब नसरुद्दीन हैदर नें बनाया था।घंटाघर के चारों तरफ पक्के पत्थर लगा दिए गए हैं जिससे एक चबूतरा सा बन गया है ।
साफ सुथरा।
उसके सामने की ओर मेन सड़क है और उसके पीछे बहुत बड़ा पार्क ।
वास्तव में बेहद खूबसूरत जगह है।
इतनी सारी महिलाओं को मैंने एक साथ कभी नहीं देखा।
मेरे लिए बात बड़ी तसल्ली की थी।
वहां पर महिलाएं सीएए, एनपीआर और एनआरसी के विरुद्ध धरना दे रही हैं।
मैंने वहां लोगों से पूछा क्या महिलाएं बिना किसी टेंट की छाया के धरना देती हैं ?तो लोगों ने बताया , ऐसा ही है ।
इतनी अधिक सर्दी पड़ रही है और सर पर टेंट लगाने को जगह नहीं है।
बाबा रे।
पर महिलाएं बैठी हुई है।
बहनों की बहादुरी को सलाम।
जहां हजारों की संख्या में महिलाएं धरना दे रही हैं उस स्थल पर एक चौकोर रस्सी खींच दी गई है । मेन सड़क की ओर उस रस्सी पर कुछ स्टिकर्स लगे हैं और उन पर लिखा है इस रस्सी के अंदर सिर्फ लेडीज़ या मीडिया कर्मी ही आ सकते हैं ।उस रस्सी के बाहर हजारों पुरुष भी है जो अपनी माताओं ,बहनों ,बीवियों का समर्थन करने पहुंचे हुए हैं ।
हजारों की तादाद में।
वहां मैंने देखा , दूर से , लखनऊ यूनिवर्सिटी की रिटायर्ड प्रोफेसर रूपरेखा वर्मा भी मीडिया कर्मियों को कोई इंटरव्यू दे रही है। मैंने अपने साथ गए वहीं के एक निवासी साथी से कहा कि वह फोटो खींचे पर, उनके फोन की उस समय बैटरी चली गई थी और मेरा फोन मेरे पास नहीं था। जिसको वहां जाने की जल्दी में मैं चार्ज करने के लिए अपने निवास पर छोड़ गया था ।
इसलिए उस समय की फोटो मैं ले नहीं पाया।
भारतीय जनता पार्टी के नेता चाहे जो भी बयान दें।वह प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री। उनका कोई मतलब नहीं है।
साधारण महिलाओं और उनके मन में, भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने जो कानून लागू किए हैं उसका तिरस्कार है। अगर भारत की जनता रौलट एक्ट का और साइमन कमीशन का विरोध कर सकती है तो वह क्यों नहीं सीएए का भी विरोध कर सकती है।
वह विरोध तो गुलामी के काल का था, जिस विरोध में ना तो हिंदू महासभा की कोई भागीदारी थी और ना ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की ! तो क्यों आजाद भारत में संविधान के विरोध में लाया गया काला कानून वापस नहीं हो सकता ? और क्यों उसकी मुखालफत नहीं हो सकती?
वास्तव में उसकी मुखालफत करना उचित है और यह कार्य बिना किसी भय के करना देशभक्ति का ही काम है।
सीएए कानून दरसल देश के धर्मनिरपेक्ष संविधान के विरुद्ध लाया गया है , वह उसकी मूल आत्मा को , जैसे महात्मा गांधी का कत्ल किया गया , उसी तरह उसका कत्ल करने के लिए लाया गया है। उसका विरोध होना जरूरी है ।
1955 के राष्ट्रीय नागरिकता कानून में कहीं भी किसी धर्म का उल्लेख नहीं है। भारत देश के 1950 के संविधान में एवं भारत की संविधान सभा ने भारत की नागरिकता के लिए कभी भी किसी धर्म की प्रतिबद्धता नहीं रखी।
भारत के स्वतंत्रता संग्राम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का कोई योगदान नहीं है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने कभी भी तिरंगे का सम्मान नहीं किया।
तत्कालीन हिंदुत्ववादी नें डॉक्टर भीमराव अंबेडकर के समक्ष भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने का प्रस्ताव रखा था परंतु अंबेडकर जी नें और देश की संविधान सभा ने उस प्रस्ताव को कभी स्वीकार नहीं किया।
अब देश की मोदी सरकार , बैक डोर से अपने पाश्विक बहुमत के सहारे देश के संविधान की मूल आत्मा को बदलना चाहती है और उसनें देश की नागरिकता को धर्म सापेक्ष करने की हिमाकत की है। देश की 130 करोड़ जनता उसको कभी स्वीकार नहीं करेगी।
देश के प्रधानमंत्री , देश के गृहमंत्री अथवा उनकी पूरी कैबिनेट तथा संपूर्ण भारतीय जनता पार्टी चाहे सीएए का विरोध करने वालों को कितना भी बुरा भला कहें या , उनको गालियां दे और या अपने झूठ का प्रचार झूठे मीडिया चैनलों से करवाएं।
देश में न्याय ही चलेगा।
यह देश सबका है ।
हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई ।
जो भी धर्म के आधार पर देश को बांटने की चेष्टा करेगा उसका हाल वही होगा जो हिटलर और मुसोलिनी का हुआ था
देश से कभी भी जनवाद खत्म नहीं किया जा सकता ।
देश का नौजवान और देश की महिलाएं और देश की आम जनता आज मोदी सरकार की नीतियों के विरुद्ध उठ खड़ी हुई है और इसका नतीजा विभिन्न असेंबली में हुए चुनाव में भी दिखाई दे रहा है।
वह दिन दूर नहीं है जब दिल्ली के चुनावों में भी मोदी जी की भारतीय जनता पार्टी की बुरी तरह हार होने वाली है । चाहे वह 5000 रैली या 100000 रेलिया करें।रैलियों में अपनी पूरी कैबिनेट को भी लगा दे ।
दिल्ली में मोदी की सरकार भारतीय जनता पार्टी और इनकी नीतियां हारने वाली है।
मैं दूर से तिरंगे के आशिर्वाद के साथ आज़ादी का नारा सुन रहा था।
घंटाघर की बहनों संघर्ष जारी रहे।
आपको सलाम।
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संकलन-विजय माथुर
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