Sarvesh Rajan Singh
रामचंद्र गुहा को खोने को बहुत कुछ है.. लेकिन पाने को कुछ भी नहीं क्योकि जो पाना था वो पा लिया अब उसे खोये न, इसका डर का अहसास कराया जा चुका है......
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गाँधी नेहरू पटेल का अनुशरण करना आसान नहीं है . ये वो लोग है जिनको खोने का कोई डर नहीं था क्योकि जो पाए थे उसे वो खो दिए थे. और जो पाना था वो स्वप्न में था इसी ने उनको महान बनाया. ये लोग जब जब अंग्रेज़ो की सत्ता के द्वारा प्रताड़ित हुवे दुबारा मज़बूत और अति उत्साह के साथ आये क्योकि खोने को कुछ था नहीं और हर प्रताड़ना उन्हें उनके स्वप्न को नज़दीक ला देता की सत्ता अब डर रही है. उन लोगो का स्वप्न था भारत की आज़ादी। और ये कब प्राप्त होगी ये नही मालूम था।
रामचंद्र गुहा और रतन टाटा ने जो बयान दिया है उसके मेरे नज़र में दो मायने है. मुझे रतन टाटा के बयान से कोई दुःख नहीं हुवा है क्योकि बिजनेसमैन को सत्ता के साथ हमेशा खड़ा देखा है और न हो तो सत्ता उसे बर्बाद कर सकती है. अनिल अम्बानी इसके सबसे बेहतरीन उदहारण है. मुझे साफ़ साफ़ याद है की कैसे मायावती ने अनिल अम्बानी को बर्बाद कर दिया, अनिल अम्बानी को मुलायम सरकार में बहुत से ठेके मिले और इसके लिए अनिल अम्बानी ने एक समय भारत का सबसे बड़ा IPO लेकर आये थे , ऊर्जा के क्षेत्र में, उम्मीद उत्तर प्रदेश से थी. लेकिन सरकार बदली और मायावती ने उस सारे प्रोजेक्ट को थप किया और वही से अनिल अम्बानी की बर्बादी शुरू हुवी.
कुछ बिजनेसमैन व्यापारी नहीं बल्कि व्यापार करने के लिए आते है . और इनकी सोच केवल कुछ समय के लिए ही होता है और उस समय में जितना दोहन किया जाय उतना कर लेते है . वो केवल एक ही सरकार के पक्ष में होते है. जैसे रामदेव , इनका कोई लॉन्ग टर्म विज़न नहीं था . जनता को स्वदेशी के नाम पर चुना लगाना था, राष्ट्रवाद के नाम पर गाय का अमृत दूध से महँगी गाय का मूत्र बेचना था और ये तभी संभव है जब राष्ट्रवादी सरकार सामने हो और उसकी मदद से अपनी मंशा को प्राप्त किया जाय. ऐसे लोग एक ही सरकार के चट्टे बट्टे होते है. और ये पूरी तैयारी के साथ होते है की दूसरी सत्ता आएगी तो इनको बंद करेगी तो क्यों न अपनी पसंद की सत्ता में ज्यादा से ज्यादा फायदा लेकर भागा जाय.
लेकिन उद्योगपति ऐसे नहीं होते . उन्हें लोग टर्म विज़न के साथ काम करना होता है . और उस लॉन्ग टर्म में कई सरकार आती है तो उन्हें खुद को सरकारों के साथ बैलेंस होकर चलना होता है . रतन टाटा का ब्यान इसी श्रेणी में आता है . अंदर से उन्हें भी पता है की ये देश आर्थिक, सामाजिक,वैज्ञानिक और वैचारिक रूप से बर्बाद हो रहा है और इसका कारण मोदी और शाह और संघ का विज़न है लेकिन सायरस मिस्त्री के कारण उन्हें ये बयान देना पड़ रहा है . जिसके लिए माफ़ है क्योकि रतन टाटा का देश के लिए योगदान सराहनीय है.
लेकिन रामचंद्र गुहा आप तो सत्ता की पहली प्रताड़ना में ही जमीं पर आ गए . और ऐसे लोग ही फासिस्ट सत्ता को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती है की सबको अपनी आभा में लाया जा सकता है . चाहे किसी भी निति को अपनाना पड़े . साम दाम दंड भेद निति ही क्यों न हो.
CAA विरोध में जेल जाने के बाद उनके सुर बदले बदले हुवे है. और केरल में जो बयान दिया वो उनकी उसी वैचारिक पतन की ओर इशारा करता है. वो भूल गए की दुनिया की हर पार्टी पर किसी न किसी परिवार का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष छत्रछाया रहती है . BJP संघ परिवार के हिस्सा है. दुनिया में क्रान्ति या बदलाव पार्टी संगठन या संघ नहीं लाती बल्कि दुनिया में जितने भी बदलाव हुवे है उसके पीछे किसी व्यक्ति के विचारो से जुड़े हुवे लोगो के कारण हुवा है. NAZI का अस्तित्व हिटलर से है . ROMAN EMPIRE का अस्तित्व जूलियस सीजर से था. जीसस , बुद्ध , नानक ये सारे व्यक्ति थे न की संगठन. रूस की क्रांति के पीछे लेनिन था.
अमेरिका में BUSH FAMILY सबसे बड़ी राजनितिक परिवार है . आज भी 50 प्रतिशत से ज्यादा अमेरिका के राज्यों में BUSH FAMILY का ही शासन है.
और रामचंद्र गुहा जी कांग्रेस की विरासत नेहरू तक थी . नेहरू के बाद कांग्रेस का कोई राजवंश पुत्र प्रधानमंत्री नहीं बना . नेहरू के बाद सत्ता लाल बहादुर शास्त्री को मिली न की उसकी बेटी इंदिरा गाँधी को . और इंदिरा गाँधी को नेहरू वाली कांग्रेस ने निकाल फेका था और इंदिरा ने नयी पार्टी उसी तर्ज पर बनायीं जैसे NCP या TMC है. इस पार्टी ने इंदिरा के छोड़कर केवल राजीव को गद्दी विरासत में दिया वो भी इसीलिए क्योकि इंदिरा की हत्या हो गयी थी. इंदिरा के जीवित रहते तो राजीव भी राजनीती से दूर ही रहे. उनका कोई राजनितिक वजूद नहीं था. जनता भावनात्मक होती है . अखिलेश हो या उद्धव ठाकरे या जगनमोहन रेड्डी ये सारे लोगो को भावनात्मक रूप से सत्ता विरासत में लिया है . लेकिन उसके बाद इस पार्टी ने नरसिंहराव और मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री दिए जो गाँधी परिवार से हटकर था. अब ये न कह देना की मनमोहन तो सोनिया का पपेट था . तो मनमोहन पार्टी नहीं थे जिन्हें जनता के बीच में जाकर वोट माँगना था. याद रखिये प्रधानमंत्री पद देश से पहले जीती हुवी पार्टी के मैनिफैस्टो को पूरा करने के लिए होता है. क्योकि संसदीय लोकतंत्र में जनता नेता नहीं पार्टी को चुनती है .तो पार्टी अध्यक्ष को कण्ट्रोल करना होता है . देखा नहीं आज मोदी प्रधानमंत्री है . अमित शाह गृहमंत्री होकर भी BJP का अध्यक्ष पद त्याग नहीं रहा क्योकि पार्टी हाथ से निकल न जाय.
इस देश के लोग बलात्कारी को लोकसभा में चुनते है . वो दिक्कत आपको नहीं थी . दिल्ली में ही लोगो ने जिन 7 MP को चुना है उनका क्या राजनितिक क्रेडेंशियल है . हंस राज हंस को ही ले लीजिये . इस देश ने आतंकी प्रज्ञा ठाकुर को चुना है. ये सब आपको विनाशकारी नहीं लगा लेकिन केरल से राहुल गाँधी का चुना जाना विनाशकारी है.
फिर भी मैं यकीन के साथ कह रहा हु की आपका बयान जो आपने केरल में दिया है वो एक फासीवादी ताकतों के सामने झुकाव की ओर इंगित करता है. और ये तभी हो सकता है जब आपको खोने को बहुत कुछ है . क्योकि इस सत्ता में जिस तरह से देश की बर्बादी की गाथा हर क्षेत्र में चाहे वो सामजिक ,आर्थिक ,वैज्ञानिक और वैचारिक में हो रही है, लोगो को पाने की कोई उम्मीद नहीं है. और लोग अब जो उनके पास है उसे खोने से बचाने के लिए झुक रहे है .
आपने शायद सबसे ज्यादा ऑस्कर जीती हुवी फिल्म SCHINDLER LIST नहीं देखी. मैं कहता हु देखिये और खुद को SCHINDLER के स्थान पर पाते है तो आपको ये देश माफ़ कर देगा . क्योकि SCHINDLER ने अपने अंतिम भाषण में यही कहा था की वो यहूदियों को हिटलर के कहर से बचा रहे थे लेकिन फिर भी जब SS सेना का अफसर उनके सामने यहूदी बच्चे और महिला को अपने क्रीड़ा के रूप में गोली मारकर हत्या कर देता तो वो भी उस SHOT पर ताली बजाते क्योकि ऐसा न करने पर और उनके मौत पर दुःख जताने पर आपको हिटलर विरोधी घोसित किया जा सकता था. लेकिन वो अकेले में उनकी पीड़ा में कराहते थे.
समझे रामचंद्र गुहा, गाँधी, नेहरू उस आज़ादी के लिए लड़ रहे थे जो केवल उनके स्वप्न में था . क्या उन्हें पता था की दुनिया पर राज करने वाली सत्ता 1947 में आज़ाद कर देगी भारत को . लेकिन वो प्रताड़ित होते और जेल जाते और निकलकर अपने उस स्वप्न के लिए फिर उससे दुगुनी उत्साह से खड़े हो जाते.
कौशल सिंह ...
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