Wednesday 22 January 2020

हम कागज नही बनाएंगे - हम रजिस्ट्रेशन नही कराएंगे: "सत्याग्रह" ------ मनीष सिंह



Manish Singh
16 अगस्त 1908, जोहान्सबर्ग, जगह हमीदा मस्जिद के सामने का मैदान। भारतीय और एशियन समुदाय की भारी भीड़ गांधी के इशारे का इंतजार कर रही थी। गांधी टेलीग्राम पढ़ रहे थे, जो सरकार की ओर से आया था। लिखा था- काला कानून वापस नही लिया जाएगा।

गांधी ने आंदोलन दोबारा शुरू करने की घोषणा की। उस मैदान में हजारों लोगों ने उस मैदान में अपने  NRC सर्टिफिकेट जला दिए। पूरे दक्षिण अफ्रीका में भयंकर बवंडर खड़ा हो गया। दुनिया सत्याग्रह नाम के नए-नए ईजाद हथियार का इस्तेमाल देख रही थी।
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दरअसल 1906 में ट्रांसवाल की सरकार ने एक " ट्रांसवाल एशियाटिक ऑर्डिनेंस" जारी किया। हर भारतीय, अरब, चीनी और दूसरे काले एशियन्स को अपना रजिस्ट्रेशन करवाना होगा। रजिस्ट्रार के पास जाकर अपना शारीरिक परीक्षण करवाना होगा, अंगुलियों की छाप देनी होगी। एक सर्टिफीकेट लेना होगा, जो सदा साथ रखना होगा। न होने पर फाइन या जेल हो सकती थी। आबाल- वृद्ध , कोई भी अगर बगैर रजिस्ट्रेशन पेपर्स के मिले, उसकी उंगलियों की छाप मैच न करे, तो सीधे जेल, या डिपोर्ट किया जा सकता था।

पहले से ही रंगभेद झेल रहे एशियन समुदाय को, इस कानून से जीना मुश्किल होने के आसार थे। गांधी जो अब तक समुदाय के जाने पहचाने चेहरे हो चुके थे, आगे आये। जोहान्सबर्ग के एम्पायर थिएटर में सारे समुदायों के लीडर्स को इकट्ठा किया। तीन हजार की भीड़ को संबोधित करते गांधी ने इस कानून को "काला कानून" कहा।

उन्होंने कहा- "हम इस कानून को रिजेक्ट करते हैं। हमे मिलकर तय करना होगा कि हममें से कोई रजिस्ट्रेशन न कराए। मैं सबसे पहले अपना वचन देता हूँ। मैं अपना रजिस्ट्रेशन नही कराऊंगा"

एक बूढ़ा मुसलमान उठा। वो सेठ हबीब था। सबसे पहला था वो, जिसने गांधी के सामने शपथ उठाई- " हम कागज नहीं बनाएंगे"...।

ये गूंजता हुआ नारा हो गया। कानून का उल्लंघन, जेल, मारपीट, अपमान और दमन को सहना, लेकिन अड़े रहना, पीछे नही हटना। मजबूती से थमे रहना, अपना आग्रह मुस्कान के साथ बनाये रखना। हम कागज नही बनाएंगे। हम रजिस्ट्रेशन नही कराएंगे।

आंदोलन के इन तरीकों को शुरू में उन्होंने "पैसिव रेजिस्टेंस" कहा। मगर नाम कुछ जंच नही रहा था। उन्होंने साथियों से नाम सुझाने को कहा। एक साथी मगनलाल थे- उन्होंने कहा, " सदाग्रह!!

गांधी ने सुना , सोचा.. फिर एकाएक बोले - " सत्य के प्रति निर्भीक आग्रह.. यही !

"सत्याग्रह"

यह गांधी की दिशा बन गयी। गांधी का हथियार बन गया। वक्त वो था, आज भी वही है। सवा सौ साल से दुनिया का कोई हिस्सा हो, वक्त हो, देश हो..

सत्याग्रह को हर आततायी ख़ौफ़ से देखता है।


https://www.facebook.com/manish.janmitram/posts/2698406466910320

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