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Saturday, 20 April 2019

न्यायपालिका की स्वतंत्रता खतरे में है ------ चीफ जस्टिस रंजन गोगोई

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सीजेआई रंजन गोगोई ने अपने उपर लगे यौन शोषण के आरोपों को नकार दिया. सीजेआई रंजन गोगोई ने कहा कि न्यायपालिका खतरे में है. अगले हफ्ते कई महत्वपूर्ण मामलों की सुनवाई होनी है, इसीलिये जानबूझकर ऐसे आरोप लगाए गए. दरअसल, एक महिला द्वारा सीजेआई पर यौन शोषण का आरोप लगाने के बाद सुप्रीम कोर्ट की एक स्पेशल बेंच ने मामले की सुनवाई की.





अनीता संजीव
1 hr
सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की चेतावनी को हल्के में न लें। उन्होंने कहा कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता खतरे में है. इस आरोप से मैं बेहद आहत हुआ हूं. इस पूरे मामले पर मीडिया को संयम बरतने की सलाह दी गई है.

विदित हो जस्टिस रंजन गोगोई के खिलाफ एक महिला द्वारा लगाए गए यौन उत्पीड़न के आरोपों पर शनिवार को सुप्रीम कोर्ट में विशेष बेंच में सुनवाई हुई. इस दौरान चीफ जस्टिस गोगोई ने अपने ऊपर लगे आरोपों को बेबुनियाद बताया और कहा कि इसके पीछे कोई बड़ी ताकत होगी, वे सीजेआई के कार्यालय को निष्क्रिय करना चाहते हैं.

जस्टिस गोगोई ने सुनवाई के दौरान कहा, 'मैंने आज अदालत में बैठने का असामान्य और असाधारण कदम उठाया है क्योंकि चीजें बहुत आगे बढ़ चुकी हैं. मैं इस कुर्सी पर बैठूंगा और बिना किसी भय के न्यायपालिका से जुड़े अपने कर्तव्य पूरे करता रहूंगा. 20 साल की सेवा के बाद यह सीजेआई को मिला इनाम है'.

चीफ जस्टिस ने कहा कि इसके पीछे कोई बड़ी ताकत होगी, वे सीजेआई के कार्यालय को निष्क्रिय करना चाहते हैं. लेकिन न्यायपालिका को बलि का बकरा नहीं बनाया जा सकता.रंजन गोगोई ने कहा, 'यह अविश्वसनीय है. मुझे नहीं लगता कि इन आरोपों का खंडन करने के लिए मुझे इतना नीचे उतरना चाहिए. कोई मुझे धन के मामले में नहीं पकड़ सकता है, लोग कुछ ढूंढना चाहते हैं और उन्हें यह मिला. न्यायाधीश के तौर पर 20 साल की निस्वार्थ सेवा के बाद मेरा बैंक बैलेंस 6.80 लाख रुपये है'. जस्टिस गोगोई ने स्पष्ट कहा कि मैं इस कुर्सी पर बैठूंगा और बिना किसी भय के न्यायपालिका से जुड़े अपने कर्तव्य पूरे करता रहूंगा.

वहीं, जस्टिस अरुण मिश्रा ने कहा कि इस तरह के अनैतिक आरोपों से न्यायपालिका पर से लोगों का विश्वास डगमगाएगा.

इस दौरान कोर्ट के अंदर जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा कि इसकी भी जांच होनी चाहिए कि इस महिला को यहां (सुप्रीम कोर्ट) में नौकरी कैसे मिल गई जबकि उसके खिलाफ आपराधिक केस है. अटॉर्नी जनरल ने कहा कि पुलिस द्वारा कैसे इस महिला को क्लीन चिट दी गई.
अब उस दृश्य को याद करें जब सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों ने संयुक्त प्रेस वार्ता कर देश की न्यायपालिका पर खतरा बताया था।
क्या यह रफॉल मामले में न्यायिक सक्रियता ओर एक तरह की " जज लोया " प्रतिक्रिया है? यदि यह हकीकत है तो ये मतदान बेमानी है। लोकतंत्र पर बड़ा खतरा है।सारी प्रक्रिया सत्ता हथियाने की औपचारिकता मात्र है। केंचुआ का व्यवहार जाहिर है, ईवीएम के खेल सामने आ ही रहे है एयर अब सुप्रीम कोर्ट की रिगिंग हो रही है।
देश पर इतना बड़ा संवैधानिक संकट और ख़ुद को लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कहने वाला मीडिया बिहार से लाइव चुनाव रैली दिखा कर विज्ञापन के दाम चुका रहा है।
नागरिक समाज को आगे आना होगा।

#चपड़

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 संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश

Friday, 20 April 2018

न्यायपालिका की स्वतन्त्रता और सत्तारूढ़ दल को लाभ

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पूर्व पी एम मनमोहन सिंह साहब  जब मुख्य न्यायाधीश के विरुद्ध महाभियोग चलाने की मुहिम का विरोध करते हैं तब यह सुस्पष्ट समझना चाहिए कि, वह व्यक्तिगत आधार पर ऐसा कर रहे हैं लेकिन उनके द्वारा कांग्रेस - संस्कृति का हवाला दिया गया है। उनको क्या याद नहीं है कि, इलाहाबाद उच्च न्यायालय के निर्भीक न्यायाधीश जगमोहन लाल सिन्हा साहब द्वारा 12 जून 1975 को जब तत्कालीन कांग्रेसी पी एम इन्दिरा गांधी के विरुद्ध निर्णय देने पर सर्वोच्च न्यायालय के छह जजों को सुपरसीड करके  ए एन रे  साहब को इसलिए प्रधान न्यायाधीश बनाया गया था कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय के निर्णय को पलटा जाये। तब क्या वह न्यायपालिका के क्षेत्र में हस्तक्षेप नहीं था  ? 
वस्तुतः मनमोहन सिंह साहब ही मोदी सरकार के गठन के लिए उत्तरदाई हैं इसलिए उनके द्वारा  उठाया हर  कदम मोदी सरकार का रक्षा कवच सिद्ध होता है। 
 
 ------ (विजय राजबली माथुर )




Tuesday, 28 November 2017

पीड़ित परिवार की आवाज पर पर्दा डालने में जुट गए ------ नवनीत मिश्र , इंडिया संवाद

चूंकि फडणवीस इंडियन एक्सप्रेस के कार्यक्रम में शरीक होने आए, इस नाते उन्हें खुश करने के लिए इंडियन एक्सप्रेस ने जज मौत पर क्लीनचिट वाला खुलासा किया। चूंकि जज की मौत नागपुर के गेस्ट हाउस में हुई थी। अगर मौत का मामला संदिग्ध है तो महाराष्ट्र सरकार भी इस केस में घिरती नजर आ रही थी। ऐसे में देखा जाए तो इंडियन एक्सप्रेस ने इस प्लांटेड खबर के जरिए खुद जज बनकर फडणवीस और उनके बॉस यानी अमित शाह को क्लीन चिट देने की कोशिश की।...........दि कारवां मैग्जीन की स्टोरी तब खारिज होती जब जज के पिता, बहन, भांजी में से कोई यह स्पष्टीकरण देता कि मौत सामान्य है। इंडियन एक्सप्रेस भूल गया कि पीड़ित परिवार न्याय मांग रहा है। परिवार तो सिर्फ न्यायिक जांच की मांग कर रहा है। संविधान ने हर पीड़ित को यह अधिकार दिया है कि वह जांच की मांग करे। न्यायिक जांच से पहले ही सरकार का जवाब लेकर इंडियन एक्सप्रेस उस दिन आया, जिसन दिन उसके कार्यक्रम में फडणवीस मुख्य अतिथि रहे।


 
Rani Rajesh
इंडियन एक्सप्रेस के पहले पन्ने पर दो खबरें ध्यान खींचती हैं। एक तरफ जज लोया की संदिग्ध मौत पर उठते सवालों पर पर्दा डालने वाली खबर है, दूसरी तरफ मुस्कुराते फडणवीस की तस्वीर वाली फोटो है। क्या इन दो खबरों में कोई कनेक्शन है। क्या फडणवीस को खुश करने के लिए सबसे दिलेर अखबार ने अपनी साख की भी ऐसी-तैसी कर ली। ऐसे कई सवाल सोमवार को खबरी बिरादरी में चर्चा-ए-खास रहे।

जो संदेह के घेरे में है, जिन जजों की भूमिका संदिग्ध है। जिन पर सवाल उठ रहे हैं। उन्हीं से बातकर छाप दी पूरी कहानी जो पीड़ित परिवार है, उससे इंडियन एक्सप्रेस ने बात करने की जरूरत ही नहीं समझी। जज लोया की संदिग्ध मौत के मामले में उठ रहे जिन सवालों का जवाब महाराष्ट्र सरकार को देना चाहिए, संदेह के घेरे में आए लोगों को देना चाहिए, उन सवालों का आधा-अधूरा जवाब लेकर किस हड़बड़ी में इंडियन एक्सप्रेस सामने आया। यह समझ से परे है। पूरी स्टोरी पढ़िए तो दिखेगा कि दि कारवां ने अपनी स्टोरी में जो सवाल उठाए हैं, उसका जवाब देने की इंडियन एक्सप्रेस कोशिश कर रहा है। मगर आधी-अधूरी और गलत तरीके से।
जो साथी जज खुद संदेह के घेरे में हैं, उनके और उनके साथियों जुबानी छाप दी पूरी कहानी। ईसीजी की रिपोर्ट छापी, वो भी जज की मौत से एक दिन पहले की। एक दिसंबर को पांच बजे सुबह जज लोया हास्पिटल में भर्ती होते हैं, इंडियन एक्सप्रेस ईसीजी की जो रिपोर्ट छापकर दावा करता है कि जज का इसीजी न होने का दावा झूठा है, वह रिपोर्ट एक दिन पहले 30 नवंबर की है। यानी जज के भर्ती होने से पहले ही ईसीजी हास्पिटल में तैयार हो गई थी। कमाल है साहब। इस मामले में जब इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट पर सवाल उठने लगे तो अखबार ने डैमेज कंट्रोल के लिए खबर अपडेट की। जिसमें हास्पिटल की ओर से सफाई पेश करते हुए लिखा गया है कि 30 नवंबर की तिथि गलती से अंकित हो गई थी। चूंकि मामला हाईप्रोफाइल है तो ऐसी गलतियां आसानी से कोई क्यों स्वीकार कर लेगा।
इंडियन एक्सप्रेस की एनकाउंटर रिपोर्ट ने जज की मौत का रहस्य और गहरा कर दिया। इस रिपोर्ट पर कई सवाल उठ खड़े हुए हैं। लोग चौंक रहे हैं कि जो संपादक राजकमल पिछले साल मौदी की मौजूदगी में जर्नलिज्म ऑफ करेज का पाठ पढ़ा रहे थे, उन्हीं के संपादन में इंडियन एक्सप्रेस जैसा अखबार सरकार बहादुर की सेवा में तनकर खड़ा हो गया।
इंडियन एक्सप्रेस के सोमवार के अंक हाथ में लीजिए। पहले पन्ने पर नजर डालिए। दो खबरें प्रमुखता के साथ लगी मिलेंगी। सेकंड लीड के तौर पर जज लोया की संदिग्ध मौत को झुठलाने वाली खबर प्रकाशित है। जिसमें अंग्रेजी मैग्जीन द कारवां की रिपोर्ट में उल्लिखित पीड़ित परिवार के तमाम दावे को नकारा गया है। बीच में एक अन्य खबर लगी है। यह इंडियन एक्सप्रेस समूह के कार्यक्रम की खबर है। जिसमें एक तस्वीर छपी है। इस तस्वीर में देवेंद्र फडणवीस मुंबई के 26-11 हमले की बरसी पर पीड़ित परिवारों के बीच मौजूद हैं। जिस दिन महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस इंडियन एक्सप्रेस के इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि बनते हैं, उसी दिन यह खबर प्लांट होती है। कोई भी खबर पढ़कर यह बता देगा इसमें संदेह के घेरे में खड़े सभी लोगों को क्लीनचिट देने की कोशिश हुई है।
एक वरिष्ठ पत्रकार कहते हैं- चूंकि फडणवीस इंडियन एक्सप्रेस के कार्यक्रम में शरीक होने आए, इस नाते उन्हें खुश करने के लिए इंडियन एक्सप्रेस ने जज मौत पर क्लीनचिट वाला खुलासा किया। चूंकि जज की मौत नागपुर के गेस्ट हाउस में हुई थी। अगर मौत का मामला संदिग्ध है तो महाराष्ट्र सरकार भी इस केस में घिरती नजर आ रही थी। ऐसे में देखा जाए तो इंडियन एक्सप्रेस ने इस प्लांटेड खबर के जरिए खुद जज बनकर फडणवीस और उनके बॉस यानी अमित शाह को क्लीन चिट देने की कोशिश की।
वरिष्ठ पत्रकार का मानना है कि दि कारवां मैग्जीन की स्टोरी तब खारिज होती जब जज के पिता, बहन, भांजी में से कोई यह स्पष्टीकरण देता कि मौत सामान्य है। इंडियन एक्सप्रेस भूल गया कि पीड़ित परिवार न्याय मांग रहा है। परिवार तो सिर्फ न्यायिक जांच की मांग कर रहा है। संविधान ने हर पीड़ित को यह अधिकार दिया है कि वह जांच की मांग करे। न्यायिक जांच से पहले ही सरकार का जवाब लेकर इंडियन एक्सप्रेस उस दिन आया, जिसन दिन उसके कार्यक्रम में फडणवीस मुख्य अतिथि रहे। सवाल उठता है कि क्या जर्नलिज्म ऑफ करेज की बात करन वाले संपादक राजकमल झा फडणवीस और उनके बॉस को खुश करने के लिए पीड़ित परिवार की आवाज पर पर्दा डालने में जुट गए।
नवनीत मिश्र
इंडिया संवाद

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