स्पष्ट रूप से पढ़ने के लिए इमेज पर डबल क्लिक करें (आप उसके बाद भी एक बार और क्लिक द्वारा ज़ूम करके पढ़ सकते हैं )
आदरणीय के .पी .सक्सेना साहब लखनऊ के जाने-माने साहित्यकार हैं उन्होने 04 सितंबर 2011 को एक बैठक मे वेदना प्रकट की कि अब लखनऊ वह पुराना वाला लखनऊ नहीं रह गया है। इससे पूर्व 13 अप्रैल 2011 को भी वह इस संबंध मे अपने उद्गार व्यक्त कर चुके हैं जिन्हें आप निम्न-लिखित स्कैन कापियों द्वारा पढ़ सकते हैं-
मैंने अपना 'विद्रोही स्व-स्वर मे' प्रारम्भ करते हुये 03 अगस्त 2010 को 'लखनऊ तब और अब' मे 1961 मे लखनऊ छोडने से 2009 मे वापिस लौटने पर हुये बदलावों का जो जिक्र किया था उनकी इस महान साहित्यकार के विचारों से पूर्ण पुष्टि ही होती है।
संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त माथुर
आदरणीय के .पी .सक्सेना साहब लखनऊ के जाने-माने साहित्यकार हैं उन्होने 04 सितंबर 2011 को एक बैठक मे वेदना प्रकट की कि अब लखनऊ वह पुराना वाला लखनऊ नहीं रह गया है। इससे पूर्व 13 अप्रैल 2011 को भी वह इस संबंध मे अपने उद्गार व्यक्त कर चुके हैं जिन्हें आप निम्न-लिखित स्कैन कापियों द्वारा पढ़ सकते हैं-
,
मैंने अपना 'विद्रोही स्व-स्वर मे' प्रारम्भ करते हुये 03 अगस्त 2010 को 'लखनऊ तब और अब' मे 1961 मे लखनऊ छोडने से 2009 मे वापिस लौटने पर हुये बदलावों का जो जिक्र किया था उनकी इस महान साहित्यकार के विचारों से पूर्ण पुष्टि ही होती है।
संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त माथुर
No comments:
Post a Comment
कुछ अनर्गल टिप्पणियों के प्राप्त होने के कारण इस ब्लॉग पर मोडरेशन सक्षम है.असुविधा के लिए खेद है.