Sunday, 20 January 2013

सबसीडी नहीं,सरकारी मंत्रियों/अधिकारियों की सुविधाएं घटाएँ---विजय राजबली माथुर

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उदारीकरण के पुरोधा डॉ मनमोहन सिंह जी की रण-नीति है कि धीरे-धीरे जनहित के सभी कार्यों को सरकार के दायित्व से हटा दिया जाये और सरकार एक कारपोरेट व्यापारी की भांति मुनाफे के कार्यों का ही निष्पादन करे। IAS अधिकारी और मंत्री तो राजसी ठाट-बाट मे जनता के धन का अपव्यय खूब धड़ल्ले से बड़ी ही बेरहमी के साथ करते हैं किन्तु गरीब जनता को जीवनोपयोगी आवश्यकता की वस्तुओं पर दी जा रही 'राज्य सहायता-सबसीडी' को समाप्त कर देना चाहते हैं।
पहले चित्र मे ब्रिटेन के यातायात मंत्री को ट्रेन मे सफर करते देख सकते हैं। वहाँ की जनता ने उनके कार के प्रयोग की आलोचना की थी और जनता की भावनाओं का आदर करते हुये उन्होने ट्रेन से सफर शुरू कर दिया। इसके विपरीत हमारे देश के उदारीकरण वीर मंत्री और अधिकारी अपनी लूट /सुविधा को छोड़े बगैर आम जनता को तकलीफ़ें देकर कामयाबी का तमगा पहनना चाहते हैं। इस जन-विरोधी प्रवृति को त्यागना होगा और जनता की सुविधाओं को बरकरार रखना होगा अन्यथा 'रक्त-रंजित क्रांति' के बीज रोपने के समान होगा यह उदारीकरण का राग।

सरकारी गैस कंपनियों को घाटे की बात का रोना तो खूब गाया जाता है। जिन लोगों को सड़क मार्ग से आगरा से मथुरा जाने का अवसर मिला होगा वे भलीभाँति जानते होंगे कि 'मथुरा रिफायनरी' की चिमनियों से प्रतिदिन 300 गैस सिलेंडरों मे भरे जाने लायक गैस ईंधन इसलिए व्यर्थ फूंका जाता था कि उस गैस को स्टाक करने का कोई स्थान अथवा भरे जाने लायक खाली सिलेन्डर उपलब्ध नहीं है। क्यों नहीं हैं क्योंकि जिन कंपनियों से कमीशन की मोटी  रकम मिलनी है उनसे से ही नए सिलेन्डर खरीदने हैं। अधिकारियों -इंजीनियरों का यह भ्रष्टाचार तेल कंपनी के घाटे का जिम्मेदार है न कि राजी-सहायता या सबसीडी। क्योंकि यह तो एक रिफायनरी का उदाहरण है जो हमने बस से सफर करते हुये खुद प्रत्यक्ष देखा है और ऐसा ही सभी रिफायनरियों मे भ्रष्टाचार-खेल चलता होगा। भारत का अधिकांश आयात यू एस ए की कंपनियों से होता है। ईरान से आयात न करने का अमेरिकी दबाव जो सहना है। तब तेल कंपनियों का घाटा भी अमेरिका या यू एस ए की कंपनियों से वसूला जाना चाहिए न कि देश की निर्दोष जनता से।
 संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त माथुर

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