Thursday, 21 February 2013

हाय रे पैसे ---मोहम्मद ख़ालिक़

हाय रे पैसे,हाय रे पैसे 
कहें तो क्या कहें?किस से 
सभी हैं एक ही के हिस्से 
कोई है नहीं जुदा हमसे
क्या कार वाले क्या जहाज वाले 
क्या जो चलाते हैं रिक्शे 
सभी की आँखों मे हैं,एक ही नक्शे 
हाय रे पैसे,हाय रे पैसे 
जीवन मे पैसे,पैसे हैं 
फिर भी हैं कम,पैसे 
दौलत भरी हो खान मे फिर भी कम हैं पैसे 
पैसे से चिपक जाएंगी जब ज़िंदगी ऐसे 
होगा मनुष्य का कल्याण फिर कैसे?
हाय रे पैसे,हाय रे पैसे । ।  

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कामरेड मोहम्मद ख़ालिक़

(कामरेड मोहम्मद ख़ालिक़ इस समय भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी , लखनऊ के ज़िला मंत्री हैं। उन्होने एक साक्षात्कार मेअपने उपरोक्त उद्गारों को व्यक्त करते हुये बताया कि जब वह छ्ठवी /सातवी कक्षा मे पढ़ते थे तब एक गरीब सहपाठी की उपेक्षा देख कर उनके मन मे ये विचार आए थे जिनको अक्सर वह लोगों से साझा करते रहते हैं।) उन्होने पार्टी को एक यह नारा भी दिया है-

निशान हो हँसिया बाली 

और झण्डा हो लाल 

खुशहाली से हम भी जिये 

जिये हमारे लाल । ।


 संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त माथुर

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