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hindustaan,lakhnau ,28 janvaree 2013
उपरोक्त समाचार मे 'राहुल गांधी' को 'कांग्रेस उपाध्यक्ष' बताया गया है। परंतु प्रश्न यह है कि,यह कांग्रेस कौन सी कांग्रेस है?निश्चय ही राहुल जी की कांग्रेस वह कांग्रेस नहीं है जिसने भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम का नेतृत्व किया था।राहुल जी की कांग्रेस मात्र 44 वर्ष की पार्टी है जिसका जन्म उनकी दादी साहिबा द्वारा स्वतन्त्रता आंदोलन की कांग्रेस के प्रति बगावत का नतीजा है।
सन 1857 के प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम या 'क्रान्ति' के विफल हो जाने के 18 वर्षों बाद स्वामी दयानन्द सरस्वती (जिनहोने उस संग्राम मे सक्रिय भाग लिया था) सन 1875 ई .मे चैत्र प्रतिपदा (प्रथम नवरात्र ) के दिन 'आर्यसमाज' की स्थापना की थी जिसका मूल उद्देश्य जनता को 'ढोंग-पाखंड-आडंबर'के विरुद्ध जाग्रत करके भारत को स्वाधीन करना था। जहां-जहां ब्रिटिश छावनियाँ थीं वहाँ-वहाँ इसकी शाखाओं का गठन प्राथमिकता के आधार पर किया गया । ब्रिटिश हुकूमत ने स्वामी दयानन्द को क्रांतिकारी संत (Revolutionary Saint) की संज्ञा दी थी। भयभीत अङ्ग्रेज़ी सरकार ने लार्ड डफरिन के इशारे पर अवकाश प्राप्त ICS एलेन आकटावियन हयूम के सहयोग से वोमेश चंद्र बनर्जी की अध्यक्षता मे सन 1885 ई मे इंडियन नेशनल कांग्रेस की स्थापना करवाई जिसका उद्देश्य 'औपनिवेशिक राज्य'-Dominiyan State की स्थापना था। अतः स्वामी दयानन्द की प्रेरणा से आर्यसमाजी अधिकांश संख्या मे कांग्रेस मे शामिल हो गए और उसका उद्देश्य 'पूर्ण स्वाधीनता' करवाने मे कामयाब रहे। 'कांग्रेस का इतिहास' के लेखक डॉ पट्टाभि सीता रमेय्या ने लिखा है कि,'स्वाधीनता आंदोलन मे जेल जाने वाले कांग्रेसियों मे 85 प्रतिशत आर्यसमाजी थे'।
अतः स्वाधीनता आंदोलन को छीण करने हेतु ब्रिटिश सरकार ने ढाका के नवाब मुश्ताक हुसैन को प्रेरित करके 'मुस्लिम लीग' की स्थापना 1906 मे तथा पंडित मदन मोहन मालवीय द्वारा 1920 मे 'हिन्दू महासभा' की स्थापना करवाई। भारतीयों को 'हिन्दू' और 'मुस्लिम' मे विभाजित करके परस्पर विरोध मे ब्रिटिश सरकार द्वारा खड़ा किया गया किन्तु हिन्दू महासभा ज़्यादा कामयाब न हो सकी । अतः पूर्व कांग्रेसी डॉ हेडगेवार एवं पूर्व क्रांतिकारी विनायक दामोदर सावरकर को माध्यम बना कर ब्रिटिश सरकार ने RSS की स्थापना 1925 ई मे करवाई। मुस्लिम लीग और RSS ने देश को 'दंगों' की आग मे झोंक दिया जिसकी अंतिम परिणति 'देश-विभाजन' के रूप मे सामने आई।
1925 ई मे देश-भक्त कांग्रेसियों ने 'भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी' की स्थापना की जिसका मूल उद्देश्य देश के स्वाधीनता आंदोलन को गति प्रदान करना तथा साम्राज्यवादी विदेशी सरकार की विभाजनकारी नीतियों को विफल करना था। 'गेंदा लाल दीक्षित','स्वामी सहजानन्द सरस्वती' सरीखे कट्टर आर्यसमाजी 'क्रांतिकारी कम्युनिस्ट' बने। 'सत्यार्थ प्रकाश' पढ़ कर ही सरदार भगत सिंह जिनके चाचा कट्टर आर्यसमाजी थे 'क्रांतिकारी कम्युनिस्ट' बने।
क्रांतिकारी कम्युनिस्टों के प्रभाव को छीण करने के उद्देश्य से ब्रिटिश सरकार ने गांधी जी के अहिंसक सत्याग्रह के साथ समझौते करने शुरू किए जिसका जनता पर यह प्रभाव पड़ा कि,जनता ने गांधी जी के पीछे खुद को लामबंद कर लिया और इस प्रकार देश की स्वाधीनता का श्रेय गांधीजी और उनकी कांग्रेस को दे दिया जबकि क्रांतिकारी कम्युनिस्टों तथा नेताजी सुभाष चंद्र बोस की INA-आज़ाद हिन्द फौज,एयर फोर्स व नेवी के विद्रोहों का बड़ा योगदान 15 अगस्त 1947 की आज़ादी के पीछे है।
आज़ादी दिलाने का श्रेय मिलना ही कांग्रेस की 'पूंजी' बना और वह सत्ता प्राप्त कर सकी। शनैः शनैः कांग्रेस सरकार जनता से कटती गई और 'पूंजीपतियों' को समृद्ध करती गई। 1967 मे सम्पूर्ण उत्तर भारत से कांग्रेस की सत्ता का सफाया हो गया। सत्ता पर अपनी पकड़ को बनाए रखने के उद्देश्य से इंदिरा गांधी जी (राहुल साहब की दादी )ने जनता को ठगने हेतु 'समाजवाद' का नारा लगा कर 1969 मे राष्ट्रपति चुनावों मे कांग्रेस के अधिकृत उम्मीदवार के विरुद्ध निर्दलीय उम्मीदवार खड़ा करके मूल कांग्रेस से बगावत कर दी और 'इन्दिरा कांग्रेस' की स्थापना की। यह उपाध्यक्ष राहुल साहब इसी बागी कांग्रेस-इन्दिरा कांग्रेस के नेता हैं जिसका उद्देश्य शोषक/उत्पीड़क 'पूँजीपतियों' व 'उद्योगपतियों' का हितसाधन है और इंनका देश के स्वाधीनता आंदोलन से किसी प्रकार का कोई सरोकार कभी भी नहीं रहा है न ही देश की जनता से । न ही इनको कोई अधिकार है कि वह स्वाधीनता आंदोलन की विरासत का खुद को वारिस बताएं। ऐसा करना सिर्फ गलत बयानी ही होगा।
1971 मे बांग्लादेश के स्वाधीनता आंदोलन को सफल समर्थन देकर इंदिराजी की लोकप्रियता बढ़ गई थी और उसी को भुनाते हुये मध्यावधी चुनाव करा दिये थे। प्रचंड बहुमत का दुरुपयोग करते हुये संविधान मे संशोधन करके लोकसभा का कार्यकाल 6 वर्ष कर दिया था और खुद इन्दिरा जी का राय बरेली का चुनाव हाई कोर्ट द्वारा रद्द किए जाने पर देश मे 'आपात काल' थोप कर प्रभावशाली नेताओं को जेलों मे ठूंस दिया था जिनमे 'लोकनायक जय प्रकाश नारायण''भी शामिल थे। जनता के साथ-साथ सरकारी कर्मचारी/अधिकारी बहुत त्रस्त थे और खुफिया विभाग ने गुमराह करके 1977 मे उनसे मध्यवधी चुनाव करवा दिये जिसमे इन्दिरा जी खुद भी और जहां का प्रतिनिधितित्व राहुल कर रहे हैं वहाँ से संजय गांधी भी चुनाव हार गए थे।
1980 के मध्यवधी चुनावों मे राहुल की दादी साहिबा ने RSS से 'गुप्त समझौता ' करके सांप्रदायिक आधार पर बहुमत हासिल कर लिया था और पूर्व 'जनता सरकार' को परेशान करने हेतु अपने द्वारा खड़े किए गए और 'भस्मासुर' बने भिंडरा वाले का सैन्य कारवाई मे खात्मा करा दिया था। परिणाम स्वरूप अपने ही अंग रक्षकों द्वारा उनकी हत्या कर दी गई थी जिसकी सहानुभूति प्राप्त कर उनके उत्तराधिकारी -राहुल के पिता राजीव गांधी ने तीन चौथाई बहुमत हासिल कर लिया था और पहले 'शाहबानों'को न्याय से वंचित करने हेतु 'मुस्लिम सांप्रदायिकता 'फिर राम मंदिर की आड़ मे 'हिन्दू सांप्रदायिकता' से समझौता करके विद्वेष भड़का कर ब्रिटिश साम्राज्यवाद की पुरानी नीतियों को लागू कर दिया था । उनके कार्यकाल मे सरकार को कारपोरेट लाबी मे तब्दील कर दिया गया जो उनकी हत्या से उपजी सहानुभूति की लहर मे प्रधानमंत्री बने पी वी नरसिंघा राव के वित्त मंत्री जो अब पी एम हैं के द्वारा और परिपुष्ट किया गया।
आज की राहुल कांग्रेस घोर जन-विरोधी एवं शोषक/उत्पीड़क शक्तियों का संरक्षक दल बन गई है।
वे कम्युनिस्ट जो प्रथम आम चुनावों के जरिये संसद मे 'मुख्य विपक्षी'दल थे और जिन्हों ने केरल मे विश्व की प्रथम निर्वाचित कम्युनिस्ट सरकार का गठन किया था जनता की नब्ज़ न पकड़ने के कारण पिछड़ गए हैं और अब राहुल जी उनको ही देश से उखाड़ फेंकने की दहाड़ लगा रहे हैं। मैं ढाई वर्षों से अपने ब्लाग के माध्यम ('क्रांतिस्वर'---http://krantiswar.blogspot.in)
से अपने विचारों मे जनता की नब्ज़ पर ध्यान रख कर चलने का निवेदन करता रहा हूँ जिसका संकीर्ण साम्यवादी लगातार विरोध करते रहे हैं। खुशी की बात है कि कभी साम्यवादी दल के प्रशिक्षक रहे डॉ मोहन श्रोत्रिय साहब ने भी आज ऐसे ही विचारों का समर्थन किया है।
संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त माथुर
hindustaan,lakhnau ,28 janvaree 2013
उपरोक्त समाचार मे 'राहुल गांधी' को 'कांग्रेस उपाध्यक्ष' बताया गया है। परंतु प्रश्न यह है कि,यह कांग्रेस कौन सी कांग्रेस है?निश्चय ही राहुल जी की कांग्रेस वह कांग्रेस नहीं है जिसने भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम का नेतृत्व किया था।राहुल जी की कांग्रेस मात्र 44 वर्ष की पार्टी है जिसका जन्म उनकी दादी साहिबा द्वारा स्वतन्त्रता आंदोलन की कांग्रेस के प्रति बगावत का नतीजा है।
सन 1857 के प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम या 'क्रान्ति' के विफल हो जाने के 18 वर्षों बाद स्वामी दयानन्द सरस्वती (जिनहोने उस संग्राम मे सक्रिय भाग लिया था) सन 1875 ई .मे चैत्र प्रतिपदा (प्रथम नवरात्र ) के दिन 'आर्यसमाज' की स्थापना की थी जिसका मूल उद्देश्य जनता को 'ढोंग-पाखंड-आडंबर'के विरुद्ध जाग्रत करके भारत को स्वाधीन करना था। जहां-जहां ब्रिटिश छावनियाँ थीं वहाँ-वहाँ इसकी शाखाओं का गठन प्राथमिकता के आधार पर किया गया । ब्रिटिश हुकूमत ने स्वामी दयानन्द को क्रांतिकारी संत (Revolutionary Saint) की संज्ञा दी थी। भयभीत अङ्ग्रेज़ी सरकार ने लार्ड डफरिन के इशारे पर अवकाश प्राप्त ICS एलेन आकटावियन हयूम के सहयोग से वोमेश चंद्र बनर्जी की अध्यक्षता मे सन 1885 ई मे इंडियन नेशनल कांग्रेस की स्थापना करवाई जिसका उद्देश्य 'औपनिवेशिक राज्य'-Dominiyan State की स्थापना था। अतः स्वामी दयानन्द की प्रेरणा से आर्यसमाजी अधिकांश संख्या मे कांग्रेस मे शामिल हो गए और उसका उद्देश्य 'पूर्ण स्वाधीनता' करवाने मे कामयाब रहे। 'कांग्रेस का इतिहास' के लेखक डॉ पट्टाभि सीता रमेय्या ने लिखा है कि,'स्वाधीनता आंदोलन मे जेल जाने वाले कांग्रेसियों मे 85 प्रतिशत आर्यसमाजी थे'।
अतः स्वाधीनता आंदोलन को छीण करने हेतु ब्रिटिश सरकार ने ढाका के नवाब मुश्ताक हुसैन को प्रेरित करके 'मुस्लिम लीग' की स्थापना 1906 मे तथा पंडित मदन मोहन मालवीय द्वारा 1920 मे 'हिन्दू महासभा' की स्थापना करवाई। भारतीयों को 'हिन्दू' और 'मुस्लिम' मे विभाजित करके परस्पर विरोध मे ब्रिटिश सरकार द्वारा खड़ा किया गया किन्तु हिन्दू महासभा ज़्यादा कामयाब न हो सकी । अतः पूर्व कांग्रेसी डॉ हेडगेवार एवं पूर्व क्रांतिकारी विनायक दामोदर सावरकर को माध्यम बना कर ब्रिटिश सरकार ने RSS की स्थापना 1925 ई मे करवाई। मुस्लिम लीग और RSS ने देश को 'दंगों' की आग मे झोंक दिया जिसकी अंतिम परिणति 'देश-विभाजन' के रूप मे सामने आई।
1925 ई मे देश-भक्त कांग्रेसियों ने 'भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी' की स्थापना की जिसका मूल उद्देश्य देश के स्वाधीनता आंदोलन को गति प्रदान करना तथा साम्राज्यवादी विदेशी सरकार की विभाजनकारी नीतियों को विफल करना था। 'गेंदा लाल दीक्षित','स्वामी सहजानन्द सरस्वती' सरीखे कट्टर आर्यसमाजी 'क्रांतिकारी कम्युनिस्ट' बने। 'सत्यार्थ प्रकाश' पढ़ कर ही सरदार भगत सिंह जिनके चाचा कट्टर आर्यसमाजी थे 'क्रांतिकारी कम्युनिस्ट' बने।
क्रांतिकारी कम्युनिस्टों के प्रभाव को छीण करने के उद्देश्य से ब्रिटिश सरकार ने गांधी जी के अहिंसक सत्याग्रह के साथ समझौते करने शुरू किए जिसका जनता पर यह प्रभाव पड़ा कि,जनता ने गांधी जी के पीछे खुद को लामबंद कर लिया और इस प्रकार देश की स्वाधीनता का श्रेय गांधीजी और उनकी कांग्रेस को दे दिया जबकि क्रांतिकारी कम्युनिस्टों तथा नेताजी सुभाष चंद्र बोस की INA-आज़ाद हिन्द फौज,एयर फोर्स व नेवी के विद्रोहों का बड़ा योगदान 15 अगस्त 1947 की आज़ादी के पीछे है।
आज़ादी दिलाने का श्रेय मिलना ही कांग्रेस की 'पूंजी' बना और वह सत्ता प्राप्त कर सकी। शनैः शनैः कांग्रेस सरकार जनता से कटती गई और 'पूंजीपतियों' को समृद्ध करती गई। 1967 मे सम्पूर्ण उत्तर भारत से कांग्रेस की सत्ता का सफाया हो गया। सत्ता पर अपनी पकड़ को बनाए रखने के उद्देश्य से इंदिरा गांधी जी (राहुल साहब की दादी )ने जनता को ठगने हेतु 'समाजवाद' का नारा लगा कर 1969 मे राष्ट्रपति चुनावों मे कांग्रेस के अधिकृत उम्मीदवार के विरुद्ध निर्दलीय उम्मीदवार खड़ा करके मूल कांग्रेस से बगावत कर दी और 'इन्दिरा कांग्रेस' की स्थापना की। यह उपाध्यक्ष राहुल साहब इसी बागी कांग्रेस-इन्दिरा कांग्रेस के नेता हैं जिसका उद्देश्य शोषक/उत्पीड़क 'पूँजीपतियों' व 'उद्योगपतियों' का हितसाधन है और इंनका देश के स्वाधीनता आंदोलन से किसी प्रकार का कोई सरोकार कभी भी नहीं रहा है न ही देश की जनता से । न ही इनको कोई अधिकार है कि वह स्वाधीनता आंदोलन की विरासत का खुद को वारिस बताएं। ऐसा करना सिर्फ गलत बयानी ही होगा।
1971 मे बांग्लादेश के स्वाधीनता आंदोलन को सफल समर्थन देकर इंदिराजी की लोकप्रियता बढ़ गई थी और उसी को भुनाते हुये मध्यावधी चुनाव करा दिये थे। प्रचंड बहुमत का दुरुपयोग करते हुये संविधान मे संशोधन करके लोकसभा का कार्यकाल 6 वर्ष कर दिया था और खुद इन्दिरा जी का राय बरेली का चुनाव हाई कोर्ट द्वारा रद्द किए जाने पर देश मे 'आपात काल' थोप कर प्रभावशाली नेताओं को जेलों मे ठूंस दिया था जिनमे 'लोकनायक जय प्रकाश नारायण''भी शामिल थे। जनता के साथ-साथ सरकारी कर्मचारी/अधिकारी बहुत त्रस्त थे और खुफिया विभाग ने गुमराह करके 1977 मे उनसे मध्यवधी चुनाव करवा दिये जिसमे इन्दिरा जी खुद भी और जहां का प्रतिनिधितित्व राहुल कर रहे हैं वहाँ से संजय गांधी भी चुनाव हार गए थे।
1980 के मध्यवधी चुनावों मे राहुल की दादी साहिबा ने RSS से 'गुप्त समझौता ' करके सांप्रदायिक आधार पर बहुमत हासिल कर लिया था और पूर्व 'जनता सरकार' को परेशान करने हेतु अपने द्वारा खड़े किए गए और 'भस्मासुर' बने भिंडरा वाले का सैन्य कारवाई मे खात्मा करा दिया था। परिणाम स्वरूप अपने ही अंग रक्षकों द्वारा उनकी हत्या कर दी गई थी जिसकी सहानुभूति प्राप्त कर उनके उत्तराधिकारी -राहुल के पिता राजीव गांधी ने तीन चौथाई बहुमत हासिल कर लिया था और पहले 'शाहबानों'को न्याय से वंचित करने हेतु 'मुस्लिम सांप्रदायिकता 'फिर राम मंदिर की आड़ मे 'हिन्दू सांप्रदायिकता' से समझौता करके विद्वेष भड़का कर ब्रिटिश साम्राज्यवाद की पुरानी नीतियों को लागू कर दिया था । उनके कार्यकाल मे सरकार को कारपोरेट लाबी मे तब्दील कर दिया गया जो उनकी हत्या से उपजी सहानुभूति की लहर मे प्रधानमंत्री बने पी वी नरसिंघा राव के वित्त मंत्री जो अब पी एम हैं के द्वारा और परिपुष्ट किया गया।
आज की राहुल कांग्रेस घोर जन-विरोधी एवं शोषक/उत्पीड़क शक्तियों का संरक्षक दल बन गई है।
वे कम्युनिस्ट जो प्रथम आम चुनावों के जरिये संसद मे 'मुख्य विपक्षी'दल थे और जिन्हों ने केरल मे विश्व की प्रथम निर्वाचित कम्युनिस्ट सरकार का गठन किया था जनता की नब्ज़ न पकड़ने के कारण पिछड़ गए हैं और अब राहुल जी उनको ही देश से उखाड़ फेंकने की दहाड़ लगा रहे हैं। मैं ढाई वर्षों से अपने ब्लाग के माध्यम ('क्रांतिस्वर'---http://krantiswar.blogspot.in)
से अपने विचारों मे जनता की नब्ज़ पर ध्यान रख कर चलने का निवेदन करता रहा हूँ जिसका संकीर्ण साम्यवादी लगातार विरोध करते रहे हैं। खुशी की बात है कि कभी साम्यवादी दल के प्रशिक्षक रहे डॉ मोहन श्रोत्रिय साहब ने भी आज ऐसे ही विचारों का समर्थन किया है।
Vijai RajBali Mathur shared Mohan Shrotriya's status.13 फरवरी,2013
किन्तु
'धर्म' की वास्तविक व्याख्या और 'ढोंग-पाखंड-आडंबर' के विरुद्ध मेरे 'क्रांतिस्वर' मे अभियान को बामपंथी साथी पुराणपंथियो के स्वर मे स्वर मिला
कर विरोध करके उसी पाखंड को मजबूत कर रहे हैं,क्यों?
- You, Manu Prakash Tyagi, Sanjog Walter and 2 others like this.
संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त माथुर
बसन्त पंचमी की हार्दिक शुभ कामनाएँ!
ReplyDeleteदिनांक 15 /02/2013 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपकी प्रतिक्रिया का स्वागत है .
धन्यवाद!
फेसबुक पर प्राप्त 5टिप्पणियाँ---
ReplyDeleteShriram Tiwari Bahut ..bahut shukria...badhai ...comrade...!
22 hours ago · Unlike · 1
Suresh Sharma · Friends with Shriram Tiwari
khud ukhd jaoge vice presidentji
फेसबुक पर प्राप्त टिप्पणी---
ReplyDeleteMadan Tiwary --सारी खामियों के बावजूद भी साम्यवादी अभी सबसे अच्छे है, कम से कम भ्रष्ट तो नही हैं। आज कांग्रेस को बचाये हुये भी उन्होने हीं रखा है अन्यथा भाजपा कब का निगल जाती। साम्यवादी और समाजवादी के कारण हीं भाजपा सता मे नही आ पा रही है, बच्चे हैं राहुल गांधी ।
2 minutes ago · Like
समाजिक बदलाव लाने में हम स्वयं भूमिका निभाएं ..... जनसहभागिता हर क्षेत्र में ज़रूरी है .....
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