Tuesday, 25 June 2013

ये प्रगतिशील नहीं पोंगापंथियों के संरक्षक हैं---विजय राजबली माथुर

 कुछ लोग फेसबुक आदि पर उत्तराखंड,दिल्ली आदि में वर्षा-बाढ़ की तबाही से चिंता प्रकट कर रहे हैं किन्तु समय रहते बचाव के उपाय करना उन्ही लोगों को पसंद नहीं हैं। अभी 14 जून तक 'सूर्य' और 'मंगल' वृष राशि में थे जिस का भी प्रभाव रहा और इसके अलावा 8 मई शनिवार को 'अमावस्या' एवं 23 जून रविवार को 'पूर्णिमा' पड़ने का ही यह प्रभाव है। आजकल वैज्ञानिक 'हवन'-'यज्ञ'पद्धति को ठुकरा कर 'ढोंग-पाखंड-आडंबर' को धर्म के नाम पर महिमामंडित करने का यह प्राकृतिक पुरस्कार है। चाहे सहर्ष स्वीकार करें अथवा चिंतित होकर जब उपाय नहीं करेंगे तो पीड़ा तो होगी ही।
जब तक हवन पद्धति प्रचलन में रही प्राकृतिक प्रकोप नियंत्रण में रहे क्योंकि अब मनुष्य प्रकृति के स्थान पर 'जड़' की पूजा करता है तो प्रकृति की कृपा कहाँ से?कैसे हो?
........ 
ह जानते हुये भी कि खुद को 'प्रगतिशील',वामपंथी,विज्ञान प्रेमी आदि-आदि घोषित करने वाले लोग इसका विरोध करके पोंगा-पंथ को संरक्षण प्रदान करेंगे।   
 मैंने समय-समय पर ब्लाग्स व फेसबुक के माध्यम से चेतावनियाँ दी हैं और उपहास  का पात्र तथाकथित वामपंथी-प्रगतिशीलों  एवं पोंगापंथियों दोनों के द्वारा बनाया गया हूँ। ये प्रगतिशील नहीं पोंगापंथियों के संरक्षक हैं। 


 'कुम्भ' हादसा एवं उल्का पिंड गिरने से पूर्व लिखा था-
http://krantiswar.blogspot.in/2013/01/blog-post_15.html

"04 जनवरी 2013 को शुक्र के धनु राशि मे प्रवेश से उसका वृष राशि के गुरु से 180 डिग्री का संबंध
बना जिसके फल स्वरूप सीमा पर विवाद-गोली चालन,सैनिकों की हत्या आदि घटनाएँ घटित हुईं।.................
28 जनवरी को शुक्र ग्रह मकर राशि मे सूर्य के साथ आएगा जो 12 फरवरी तक .... परिणाम स्वरूप शीत लहरें चलेंगी,हिम प्रपात,नभ-गर्जना के योग होंगे। जन-धन की क्षति होगी। 12 फरवरी से 03 मार्च 2013 तक सूर्य और मंगल कुम्भ राशि मे एक साथ होंगे जिसके परिणाम स्वरूप पूरी दुनिया मे भू-क्रंदन और आपदा के योग रहेंगे।"

18 मार्च 2013 को लिखा था- http://vijaimathur.blogspot.in/2013/03/blog-post_18.html 11 मार्च,2013 को प्रकाशित समाचार मे मौसम विभाग की आशंका प्रकाशित हुई थी जो ज्योतिष के आंकलन के अनुरूप ही थी और 15 मार्च को प्रकाशित समाचार द्वारा उसके सही सिद्ध होने की पुष्टि भी हो गई। 'कोटा',राजस्थान के जिन महान ज्ञाता की टिप्पणी उस सूचना के विरुद्ध आई थी उनके राजस्थान मे भी तेज़ आंधी और बारिश होने की सूचना फेसबुक पर वहीं के लोगों ने दी थी और 'मोहाली' मे तो क्रिकेट मैच भी बारिश के कारण स्थगित करना पड़ा था। तथाकथित प्रगतिशील/वैज्ञानिक विद्वान वास्तव मे पोंगापंथियों/शोषकों के उत्पीड़न और शोषण पर पर्दा डालने हेतु ही जनता को वास्तविक स्थिति से अवगत नहीं होने देना चाहते हैं तभी जागरूकता के प्रयासों की निंदा व विरोध करते हैं। इन जन-विरोधी लोगों से सदा ही सतर्क रहना चाहिए। 



 26 मई को यह लिखा था-http://krantiswar.blogspot.in/2013/05/blog-post_26.html
 04 मई से 29 मई 2013 तक वृष राशि में 'गुरु' व 'शुक्र' ग्रह एक साथ होने का परिणाम है आज कल ग्रीष्म का प्रचंड -प्रकोप । 'राहू' व 'मंगल' तथा 'शनि' व 'मंगल' के मध्य बना 180 डिग्री का संबंध अमेरिका के तूफानी बवंडर ,बस्तर आदि की आतंकवादी  घटनाओं के कारक हैं (निर्णय सागर पंचांग के पृष्ठ-32एवं 33 पर पूर्व चेतावनी दी गई थी-
"राहू भौम सप्तम गति,शनि भौम संम सप्त। 
भूक्रंदनजन धन क्षति,मनसा मानस तप्त। । 
चक्रवात आंधी पवन,सागर देश विदेश। 
संहारक रचना गति,जन धन मध्य विशेष। । "

26 मई से 23 जून के मध्य सीमा क्षेत्रों में यातना तथा सम्पूर्ण विश्व में आतंकवादी हिंसा बढ्ने की चेतावनी दी गई है। 
परंतु खेद के साथ कहना और लिखना पड़ रहा है  कि कोई भी इस ओर उसी प्रकार ध्यान नहीं देगा जैसा कि पूर्व में हुआ था जो कि निम्नांकित के अवलोकन से सिद्ध हो जाएगा। :-----
 


बुधवार, 6 अप्रैल 2011
[२७ अप्रैल २०१० को लखनऊ के एक स्थानीय समाचार पत्र में पूर्व प्रकाशित आलेख ]


दंतेवाडा त्रासदी - समाधान क्या है? http://krantiswar.blogspot.in/2011/04/blog-post_06.html




 संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त माथुर

Sunday, 23 June 2013

लॉन्ग ड्राइव कम रोमान्स राइड---अनीता राठी



Anita Rathi
आदरनीय मित्रो

उत्तराखंड - बदरीनाथ , केदारनाथ में प्रकृति ने जो तांडव मचाया, इस हादसे को देशवासी नहीं भूल सकते। कई हजार लोगो ने अपने अपनों को हँसते हँसते तीर्थ यात्रा भेज था और उम्मीद की थी की सब हंसी ख़ुशी लौट आयेंगे , हमेशा की तरह, मगर ... इस बार त्रिकाल को कुछ और ही लीला सूझी और उसने अपने भक्तो को अपना रौद्र रूप दिखा ही दिया। कई हज़ार लोग लापता और कई हज़ार लोग बे-वक़्त मौत के हवाले। इन मरने वालो में ..... नौ-जवान सबसे जियादा है, फिर प्रौढ़ और यहाँ तक की छोटे छोटे मासूम बच्चे और दुध्मुहे बच्चे तक शामिल है। हम इसके लिए समय को दोष दे, या प्रकृति को या कहे कुछ भक्त भगवान् को इतने भा गए की उन्होंने उनको हमेशा हमेशा के लिए अपने पास बुला लिया, मगर ......हकीकत .................

हकीकत ये है की, मेट्रो की चाल चलता जीवन, रुपैये के ढेर पर सोता इंसान, नींद को तरसती कॉल सेंटर्स में कमर तोड़ म्हणत करते युवा , जिंदगी शहरी जीवनशैली , भौतिकतावादी संस्कृति और सबसे बड़ी बात मानव का अति-अपेक्षावादी होना। और इन सब का परिणाम तनाव, ब्लड-प्रेशर, घबराहट, बेचैनी ,रिश्तो में तनाव और तनाव को कम करने या भूलाने का एक
मात्र उपाय आमोद-प्रमोद , हिल स्टेशन की सैर। अब ऐसे में धर्म को एक अछि खासी commodity बनाने वाला वो तबका जो स्वयम को धर्म का मसीहा दिखा कर बसे और ट्रेने तीर्थ यात्रा कम्पनी के नाम पर लोगो को लुभावने आकर्षण दे दे कर उकसाते है। और नीम हकीम खतरा ये जान , धर्म और धार्मिकता के मर्म को पूरी तरह समझे बगैर बोरिया बिस्तर ले चल देते है हिल स्टेशन के सैर सपाटे cum तीर्थ यात्रा के ठेकेदारों के पास। खुश होते है प्रति नग खर्च कम में दस से पन्द्राह दिन के हनीमून पर। या फिर खुद की कार से लॉन्ग ड्राइव कम रोमान्स राइड पर। रास्ते में पीना पिलाना आम बात ..... ये यात्रा धार्मिक नहीं रह जाती .... ये ... ना मालूम क्या ही हो जाती है .......

मुझे जहां तक मालूम है हिन्दू धर्म ग्रंथो में मनुष्य जीवन को १ ० ० वर्ष का मान उसे उम्र के अनुसार आश्रमों में बांटा गया है ताकि इंसान व्यवस्थित और दीर्घायु के साथ साथ सुखी संपन्न जीवन यापन कर सके ... ये आश्रमों में एक है ... संन्यास आश्रम जो की आयु का वो होता है इंसान अपने सभी उत्तरदायित्वो से हो जाता है और स्वयम को इश-अराधना, ध्यान और साधना में लगा आध्यात्मिक सुख प्राप्त करता है।और इसी क्रम में वह तीर्थ यात्राएं करता है , क्रोध , लोभ , मोह के जंजाल से जीवात्मा को मुक्त कर , परमात्मा के सानिध्य को पाने के उपक्रम में वो दिन रात सारे मोह ताज कर तीर्थो पर जाता है। परन्तु आज हम देख रहे है २ साल का बच्चा भी तीर्थ यात्रा गया था .... तो ... १ ६ साल की बालिका भी तीर्थ कर रही है,....... हाँ मजेदार बात ये है की बुजुर्गो की संख्या उतनी नहीं जितनी प्रोढ़ लोगो की है ....

इस सब में धार्मिकता कम, अधार्मिकता अधिक दिखती है, अंधविश्वास और अज्ञान अधिक दिखता है , अन्धानुकरण साफ़ द्रष्टिगोचर होता है , हम समझ सकते है, किस मकसद से किस उम्र का इंसान ऐसी आस्था और विश्वास वाले स्थानों पर जाते है और वहाँ के प्राकृतिक सौहाद्र और वातावरण को नुक्सान भी पहुंचाते है।
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धर्म शास्त्रों में शिव का स्थान सबसे ऊपर है वो त्रिनेत्रधरी है, वो त्रिलोकी है वो अन्तर्यामी है , वो भोले है, लेकिन हम ये क्यों नहीं स्वीकारते वो एकांतवासी है , वो साधक है, उनकी साधना में तो स्वयं पार्वती (प्रकृति) भी बाधा उत्पन्न नहीं कर सकती थी और करती थी तो अच्छा ख़ासा दंड भुगतना पड़ता था , तांडव से धरती डोल उठती है , तीनो लोक काँप उठते है। और इंसान अपनी हदें भूल उनके एकांत को कोलाहल में परिवर्तित करता चला जा रहा है, ...... कोई सीमा ही नहीं रही , कोई बंधन ही नहीं रहे , कोई अंकुश ही नहीं ..... धन के दम पर क्या क्या खरीद लेना चाहता है ... चाह परिणाम सामने है

उन्होंने बदरीनाथ के प्राचीन स्वरुप को एक बार वापस हमारे सम्मुख ला रखा है , केदारनाथ के मंदिर में बाबा भू-समाधि में है और बाकी बचा है तो एक नंदी, ........ और सब और वीरान .... सन्नाटा ..........

क्यों नहीं हम सीख लेते इस हादसे से .... हमें प्रण लेना होगा ......

१. तीर्थ यात्रा अपने सभी उत्तरदायित्वो से मुक्त हो कर ही जाना है।
२. ६५ / ७ ० 65 /70 वर्ष से कम उम्र के व्यक्ति अपना स्वास्थ्य जांच करवा कर ही तीर्थ जाए
३ . धार्मिकता अपनाये ... मन, कर्म , और वचन से अन्धविश्वासो में नहीं।
४. सरकार इन स्थानों पर व्यावसायिकता को बैन करे।
५ दर्शन करने के बाद, वहां रुकने के लिए सिर्फ कुछ घंटो की इजाजत दे
६. नियंत्रित यत यात व्यवस्था को अपनाये।
७ बीमा कम्पनियों को दायित्व दे।


मेरी इस पोस्ट से किसी की धार्मिक भावना को ठेस पहुंची हो तो मुझे अनजान समझ कर माफ़ करें।







 संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त माथुर

Monday, 17 June 2013

केंद्र व उ .प्र.सरकार के निर्णय युवा,छात्र एवं जन-विरोधी ---विजय राजबली माथुर

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आज के हिंदुस्तान में पृष्ठ 11 पर प्रकाशित  यह समाचार सरकार के छात्र विरोधी,युवा विरोधी एवं गरीब विरोधी होने का जीता जागता नमूना है। अभी विगत दिसंबर 2012 में IBPS की परीक्षा में भी आवेदकों को दूसरे शहरों के केंद्र आबंटित किए गए थे जिस कारण काफी तादाद मे गरीब आवेदक परीक्षा में सम्मिलित होने से वंचित रह गए जबकि सबने  निर्धारित पूर्ण शुल्क जमा किया था। तब यह समझा था कि प्रधानमंत्री मनमोहन जी कारपोरेट घरानों के प्रति उदार व गरीबों के प्रति अनुदार हैं इसलिए बैंक परीक्षा में ऐसा निर्णय लिया गया है। 

उ.प्र.की समाजवादी सरकार के युवा मुख्यमंत्री के शासन में भी उसी जन विरोधी परिपाटी को अपनाया गया है और बड़ी शान से उसका कसीदा गढ़ा गया है।पुनः भारी संख्या में आवेदक दूसरे शहरों में जाकर परीक्षा नहीं दे सकेंगे। ऐसे स्थानों पर रुकने व आने-जाने का खर्च एक गरीब आवेदक नहीं उठा सकता है। इसका ज़रा भी ख्याल नहीं रखा गया है। 

लखनऊ के आवेदक को गाजियाबाद के केंद्र पर 26 जून की  प्रातः 9-30 पर पहुँचना है और 4-30 पर दूसरी शिफ्ट समाप्त होगी। इसका अभिप्राय यह है  कि आवेदक को 25 जून तक वहाँ पहुँचना पड़ेगा। जाने-आने का यात्रा व्यय और ठहरने -खाने का खर्चा क्या आवेदकों और उनके अभिभावकों पर अनावश्यक बोझ नही है?

साफ ज़ाहिर बात है कि कोचिंग इन्सटीचयूट्स से पढ़ने वाले अमीरों को लाभ पहुंचाने हेतु गरीबों को अवसर से वंचित करने का यह षड्यंत्र रचा गया है।



 संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त माथुर

Sunday, 16 June 2013

धन का खेल

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 निम्नांकित घटनाएँ  भले ही अलग-अलग स्थानों की और अलग-अलग प्रतीत हों परंतु तीनों के मूल में 'धन' ही है। धन के आगे दूसरी किसी बात का महत्व नहीं है ये घटनाएँ इसी ओर इंगित करती हैं।




 संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त माथुर

Friday, 14 June 2013

मिशन-2014 : प्रधानमंत्री पद के दावेदार

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 संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त माथुर

फेसबुक गाथा -1

20 मार्च 2013
वकील साहब की जुबानी अस्पताल की कहानी-
नाई साहब एक ओर तो हेयर कटिंग करते जा रहे थे तो साथ ही साथ एक साहब से बातें करते जा रहे थे। वह साहब चटकारे ले ले कर बातें बताते जा रहे थे। वह बता रहे थे कि,'मेदानता हास्पिटल'मे ज़बरदस्त सफाई रखी जाती हैवहाँ आते-जाते रहने के कारण उनका पान-गुटखा खाना तो बिलकुल ही छूट गया है। इससे तो उतनी दिक्कत नहीं होती है। तलब नहीं रोकी जा सकती उसे पूरा करने के लिए लखनऊ मे 40/- रु मे मिलने वाला क्वार्टर वहाँ मँगवाने पर रु 600/- मे पड़ता है क्योंकि 35-40 किलोमीटर दूर से मङवाना होता है। लाने वाला ढूँढने के बाद उसके आने-जाने का टैक्सी का खर्चा रु 500/- पड़ जाता है और उसे भी जेब खर्च देना पड़ता है। इसके बाद पीना भी किसी तपस्या से कम नहीं पड़ता है। उन्होने साझे का कमरा लिया हुआ है जिसमे दो पेशेंट हैं और उनके एक-एक तीमारदार हैं। एक रोज़ का किराया रु 4000/- प्रत्येक को पड़ता है। अतः उसी कमरे मे दूसरे पेशेंट व तीमारदार के सामने पीना जबकि अस्पताल मे पीना प्रतिबंधित हो संभव न था। इसलिए उनको टाइलेट की शरण लेनी पड़ी। उनका कहना था कि पूरे अस्पताल मे कहीं भी किसी भी कमरे मे कुंडा,चटकनी या ताला लगाने का प्रबंध नहीं है। जब कोई अंदर जाता है तो DND की प्लेट लटका जाता है और आने पर हटा देता है। वह पीने की जल्दबाज़ी मे बिना DND प्लेट लटकाए एक बार क्वार्टर और बिसलेरी की बोतल लेकर घुस गए। पीना शुरू ही किए थे कि दूसरे पेशेंट की तीमारदारन दरवाजा खोल कर घुस गई और उनको पीते देख कर हक्का-बक्का रह गई। उल्टे पैरों वह तो लौट गई लेकिन यह साहब घबरा गए और जल्दी से सब गटक कर खाली क्वार्टर की बोतल जेब मे डाल कर पानी की बोतल वापिस लेकर आ गए। साथ के पेशेंट की उन  तीमारदार महिला से उन्होने  गुस्से मे कहा कि उनकी मिसेज से पूछ तो लेतीं कि वह नीचे गए हैं या बाथरूम मे। उन महिला को डरा कर शिकायत कर्ने से तो रोक दिया परंतु खाली बोतल फिंकवाने के लिए फिर रु 100/- खर्च कर्ने पड़े। इतनी दास्तान सुनाने के बाद वह तो दूसरे खोके पर दाढ़ी बनवाने चले गए। चलते -चलते नाई ने पूछा कि अब फायदा है तो जवाब मे उन्होने नकारात्मक हाथ हिला दिया और बोले हम दिमाग पर टेंशन नहीं लेते हैं।सरकार खर्चा देती है तो इलाज चल रहा है वरना पैसा कहाँ था?
हमने उन नाई साहब से पूछा कि यह साहब किस विभाग मे नौकरी करते हैं। नाई ने बताया कि यह सामने वाली लाईन मे रहने वाले वकील साहब हैं ,बड़े ही व्यवहारिक हैं। इनकी पत्नी IAS हैं जिनको डेढ़ लाख मासिक वेतन मिलता है और एक वर्ष से कैंसर से पीड़ित हैं तबसे लगातार इलाज चल रहा है,दिल्ली मे और कभी-कभी मेदानता मे भी भर्ती करना पड़ता है। साल भर से ही उनकी वकालत ठप पड़ी है। फिर भी मस्त हैं।

Sunday, 9 June 2013

एकता,सहिष्णुता और वात्सल्य की मिसाल

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आज के समय मेँ इस प्रकार के समाचारों की प्राप्ति न केवल सुखद एहसास दिलाती है बल्कि यह उम्मीद भी जगाती है कि मानवता अभी जीवित है।

संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त माथुर

Sunday, 2 June 2013

घर से ही होगी बदलाव की शुरुआत ---शबाना आज़मी

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 हिदुस्तान,2 जून2013 , लखनऊ के समपादकीय पृष्ठ से साभार ---





 संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त माथुर