Saturday 19 October 2013

सवाल-जवाब :फेसबुक पर ---विजय राजबली माथुर



19 अक्तूबर 2013

Prathak Batohi 'राम' भी अधिनायकवाद पर चलने लगे.... Vijai Mathur सर क्या इसे प्रमाणित किया जा सकता है
 पृथक साहब यदि आप इस नोट पर दिये गए लिंक तक जाते तो ज्ञात होता कि प्रस्तुत लेख-'सीता का विद्रोह' डॉ रघुवीर शरण'मित्र' के खंड काव्य 'भूमिजा' पर अवलंबित है। यह पुस्तक मेरठ  विश्व विदध्यालय ,मेरठ के बी  ए  के कोर्स में 1970-71 के दौरान  पढ़ी थी। इस पुस्तक की प्रस्तावना में डॉ 'मित्र' ने खुद लिखा है जो कि मेरे लिए तो पर्याप्त प्रमाण है। 'कोर्ट'-कचहरी के लिहाज से मैं कोई प्रमाण नहीं प्रस्तुत कर सकता हूँ। फिर भी इतना ज़रूर कहना चाहूँगा वहीं बी ए 'समाजशास्त्र' की एक पुस्तक में पढ़ा था कि प्राचीन काल का अध्यन  करते समय हमें सूत्रों से तथ्य खोजने होते हैं । उदाहरण के तौर पर वर्णन था कि जैसे हम धुआँ देख कर अनुमान लगा लेते हैं कि ज़रूर 'आग 'लगी है और 'गर्भिणी' को देख कर अनुमान लगाते हैं कि 'संभोग' हुआ है उसी प्रकार अध्यन में प्राप्त सूत्रों से अनुमान लगाए जाते हैं। वरना नौ लाख वर्ष पूर्व (राम-रावण युद्ध )के प्रमाण आज कौन जुटा सकता है ज़रा आप खुद ही बता दीजिएगा बहुत-बहुत मेहरबानी होगी। 

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Nitin Devak आपने मुझे ये लिंक दिया है। इसी आधार पर मैं जानना चाहता हूँ अगर तुम आर्य हो तो आनार्य कौन है ?
 
नितिन देवक जी आपने 'आर्य' और 'अनार्य' के बारे में जानकारी चाही है इस संबंध में निवेदन इस प्रकार है-
 
आर्य कोई जाति या धर्म नहीं है और न ही इसका संबंध किसी 'काल-TIME' से है ,इसका तात्पर्य नर या नारी अथवा स्त्री या पुरुष से भी नहीं है। यह मोटा-पतला,काला-गोरा,लम्बा-नाटा के सन्दर्भ में भी नहीं है। 
 
विदेशी साम्राज्यवादियों ने इतिहास को तोड़-मरोड़ कर पेश किया और पढ़ाया है उसी का दुष्परिणाम आज देश में फूट के रूप में सामने है। विदेशियों ने खुद को सर्वोच्च सिद्ध करने के लिए आर्यों को भारत पर आक्रांता के रूप में दर्शाया है जिसके परिणाम स्वरूप 'आर्य'बनाम ',मूल निवासी' संघर्ष चल रहा है। 
 
आज से दस लाख वर्ष पूर्व जब मानव-सृष्टि हुई तो 'युवा नर' और 'युवा नारी' के रूप में हुई थी जिनकी सन्तानें पूरी दुनियाँ में आज भी फैली हुई हैं। 
 
अफ्रीका,मध्य यूरोप और 'त्रिवृष्टि' अर्थात 'तिब्बत' में एक साथ युवा सृष्टि हुई थी। रूप-रंग,आकार-प्रकार क्षेत्र की जलवायु के अनुरूप विकसित हुये। 
 
इनमें   त्रिवृष्टि के लोग सर्वांगीण विकास करने में सफल रहे और आबादी बढ्ने पर दक्षिण में हिमालय पर करके आ बसे जिसे हम आज भारत वर्ष कहते हैं। यहाँ जिस सभ्यता का विकास हुआ वह आचरण के दृष्टिकोण से 'श्रेष्ठ'थी जिसे उस समय की संस्कृत में 'आर्ष' कहते थे जो अब 'आर्य' हो गया है। इस प्रकार आर्य का अर्थ श्रेष्ठ 'कर्म' और 'स्वभाव'से है। जिनके कर्म इसके विपरीत हों वे ही 'अनार्य' हैं। 

शोषण,उत्पीड़न,लोभ -लालच के चलते पोंगा-पंडितों और शासकों ने 'कर्म' पर आधारित 'वर्ण-व्यवस्था' को 'जन्म'पर आधारित करके 'जाति' व्यवस्था में बदल डाला जो कि 'अनार्य-व्यवस्था' है। अतः आज मुख्य रूप से कोई भी खुद को 'आर्य'कहने का हकदार नहीं है। फिर भी जिनके 'कर्म' श्रेष्ठ हों,आचरण श्रेष्ठ हों उनको आर्य की संज्ञा दी जा सकती है। 


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