Monday, 21 October 2013

सच्चाई और ईमानदारी अजायबघर की अमूल्य निधि बन कर रह गई है ---चक्रपाणि 'हिमांशु'

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( चक्रपाणि 'हिमांशु' जी एवं  'पाटलीपुत्र टाईम्स'को हार्दिक बधाई )
 पाटलीपुत्र टाईम्स की 29 वीं वर्षगांठ पर विशेष :
कैसे बीत गए 28 वर्ष..!!---चक्रपाणि 'हिमांशु'




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तारीख 21/10/1985 | पटना से प्रकाशित पाटलिपुत्र टाइम्स दैनिक के विशेष काॅलम 'मेरी नजर' में छपे मेरे इस छोटे से आलेख के साथ ही शुरू हुई थी मेरी पत्रकारिता | यह मेरा पहला आलेख था |
पाटलिपुत्र टाइम्स का वह काल बिहार में पत्रकारिता की दशा और दिशा निर्धारित करने वाले काल के रूप मे रेखांकित किया जा सकता है | उस समय जब पटना में आर्यावर्त, इंडियन नेशन, सर्चलाइट, प्रदीप और जनशक्ति जैसे दैनिकों का दबदबा और रुतवा था; तब पाटलिपुत्र टाइम्स; अखबार के प्रिंटिंग, कंटेंट और प्रस्तुति के तौर तरीकों पर नित नये प्रयोग कर रहा था |संयोग या सच; उस वक्त 'पा० टा०' की टीम का; कुछ नया करने का जज्बा ऐसा कि; वह किसी भी समाचार पत्र की ड्रीम टीम हो सकती है| उस वक्त 'पा०टा०' से जुड़े थे- मणिकांत ठाकुर (बीते माह बी०बी०सी० की हिंदी सेवा से रिटायर), प्रभात रंजन दीन (संप्रति- संपादक, कैनविज टाइम्स, लखनऊ), अवधेश प्रीत (संप्रति- हिन्दुस्तान, पटना, वरिष्ठ साहित्यकार व कथाकार), विकास कुमार झा (माया), संजय निरूपम (संप्रति- सांसद), अजीत अंजुम (संप्रति- मैनेजिंग एडीटर, न्यूज 24), नवेन्दु-श्रीकांत (संप्रति- बिहार के चर्चित व वरिष्ठ पत्रकार), कल्पना अशोक (संप्रति- समाजसेवा व लेखन), सलिल सुधाकर (संप्रति- फिल्म/टीवी आर्टिस्ट) सुधीर सुधाकर (संप्रति- इलेक्ट्रनिक मीडिया), ज्ञानवधर्धन मिश्र, राजेन्द्र कमल, रतीन्द्रनाथ (संप्रति- ब्यूरो प्रमुख, शुक्रवार मैगजीन), खुर्शीद अनवर, मुकेश प्रत्यूष, डा० दीपक प्रकाश के अलावे और भी कई नाम ऐसे हैं जो फिलहाल स्मृति पटल पर नहीं आ रहे | ....और इन सबसे छोटा मैं ! पटना सायंस काॅलेज का नया नया छात्र ! इन हस्तियों के बीच जब मैं बार बार छपता तो रोमांचित भी होता और इन लोगों के लेखन से कुछ न कुछ सीखने की चेष्टा भी करता था |
...और संपादक थे विनोदानंद ठाकुर, फिर माधवकांत मिश्र; जो मेनका गांधी की मैगजीन सूर्या इंडिया से आए थे, बाद में वे राष्ट्रीय सहारा में रहे (संप्रति- अाध्यात्म की ओर झुके और विभिन्न टीवी चैनलों पर उनका विशेष कार्यक्रम ' रुद्राक्ष का पौधा' आता रहता है|)
"पा०टा०" संभवतः देश का पहला अखबार था; जिसने बीच के पेज (संपादकीय के सामने वाला) पर विभिन्न विषयों पर प्रतिदिन फीचर छापने की शुरुआत की | इससे पहले केवल रविवार को ही अखबारों में फीचर सप्लीमेंट देने की परंपरा थी | ऐसी शुरुआत बाद में जनसत्ता ने की थी..उसके बाद देश के सभी अख़बारों ने |
तीन दिन बाद मेरा यह आलेख 28 वर्ष पुराना हो जाएगा | इस बीच कई अख़बार, कई मैगजीन, कई मीडिया हाउस...और साथ में अब- फ़ेसबुक ! ..जहाँ आज भी अपने सैकड़ों मित्रों से रोज़ कुछ न कुछ सीखता हूँ और अपने विचार शेयर करता हूँ; भविष्य में भी ऐसा होता रहेगा......आमीन !!

 संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त माथुर

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