Sunday, 17 August 2014

'संवेदना शून्य' है निजी क्षेत्र ---शशि शेखर

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 काफी लंबे अरसे बाद शशि शेखर जी ने सच्ची बात इस सम्पादकीय लेख मे कही है। बिलकुल सही है कि निजी क्षेत्र केवल मुनाफा कमाने पर ध्यान देता है उसे ग्राहक की चिंता या ख्याल ज़रा सा भी नहीं होता है। 1980 में पहली बार शुद्ध RSS के समर्थन से सरकार बनाने के बाद इन्दिरा जी ने आर्थिक नीतियाँ बदलना शुरू कर दिया था और उसी काल से श्रम न्यायालयों द्वारा श्रमिकों के विरुद्ध मालिकों के पक्ष में निर्णय देना प्रारम्भ हो गया था। उनके बाद राजीव जी ने पहली बार केंद्र सरकार को 'कारपोरेट कंपनी' के तौर पर चलाया था। 1991 में नरसिंघा राव जी के वित्त मंत्री की हैसियत से मनमोहन सिंह जी ने  निजी क्षेत्र को निर्लज्ज समर्थन देना प्रारम्भ कर दिया था और ट्रेड  यूनियन आंदोलन को तोड़ने के लिए 'वर्ल्ड बैंक' के इशारे पर NGOs की बहार ला दी थी। फिर बाजपेयी साहब की सरकार ने तो बाकायदा 'विनिवेश मंत्रालय 'का गठन करके सरकारी क्षेत्र की मुनाफा कमाने वाली कंपनियों को औने-पौने दामों पर बेच डाला व निजी क्षेत्र को अनावश्यक लाभ पहुंचाया था। 'उदरवाद' व नव-उदारवाद' चला कर पूर्व पी एम मनमोहन सिंह जी ने सरकारी क्षेत्र को जर्जर करके जनता की रीढ़ तोड़ दी थी एवं 2011 से हज़ारे/केजरी को आगे करके NGOs द्वारा कारपोरेट क्षेत्र के भ्रष्टाचार को संरक्षण देने का आंदोलन चलवाया था जिसको RSS का प्रत्यक्ष समर्थन प्राप्त था और आज की मोदी सरकार उसी का प्रतिफल है। अब तो रेलवे और रक्षा संस्थानों को भी सिर्फ निजी क्षेत्र ही नहीं विदेशी कार्पोरेट्स के लिए भी खोला जा रहा है। 

शशि शेखर जी की पीड़ा तब सामने आई है जब निजी क्षेत्र की बुराइयों से कारपोरेट हिमायती  उन जैसों का भी साबका पड़ना शुरू हो गया है। फिर ज़रा कल्पना कीजिये कि साधारण जनता का क्या हाल होगा?



 संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश

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