मेरे गांव के पांडे जी के घर की कहानी सुन लीजिए।
पांडे जी का बेटा
मेरा दोस्त था। हम दोनों बचपन में साथ खेला करते थे। मैंने देखा था कि
पांडे जी की पत्नी अपनी सास से बहुत चिढ़ती थीं। वो जब भी खाना पकातीं तो
अपनी सास को एक रोटी देकर चुपचाप खिसक लेतीं। दूसरी रोटी के लिए उन्हें
पूछती भी नहीं। और जब सास दूसरी रोटी का इंतजार करते-करते थक जातीं, तो
चुपचाप थाली छोड़ कर उठ जातीं। ऐसे चलता रहा सास बहू का द्वंद्व।
कई
साल बीत गए। सास बूढ़ी होकर मर गईं। तब तक पांडे जी की पत्नी भी बूढ़ी हो
चली थीं, और उनके बेटे की शादी भी हो गई थी। मैं एक बार फिर गांव गया तब तक
पांडे जी का निधन हो चुका था, तो मैंने देखा कि पांडे जी की पत्नी छत पर
बने उसी कमरे में अकेली लेटी थीं, जिसमें कभी उन्होंने अपनी सास को रखा था।
वही बिस्तर, वही खटिया, सबकुछ वही। मुझे पल भर को लगा कि मैं पांडे चाची
से नहीं, उनकी सास से मिल रहा हूं। थोड़ी देर में उनकी बहू थाली में एक
रोटी लेकर आई और उसने उनके आगे रख दिया।
बहू नीचे चली गई तो पांडे
चाची ने मुझसे कहा कि बहू बहुत खराब मिल गई है। मुझे उपर ला कर अकेला छोड़
दिया है। एक रोटी दे जाती है, दूसरी मांगने का मौका भी नहीं देती।
मैं
हैरान नहीं था। मैं सोच रहा था कि कह दूं कि यही आपका नर्क है। आपने जो
किया था अपनी सास के साथ वो आपको जस का तस मिल रहा है। लेकिन मैं नहीं कह
पाया।
मैं नीचे आया। मैं बहू यानी अपने दोस्त की पत्नी से बातें करने
लगा। बहू ने बातचीत में बताया कि सास बहुत तकलीफ देती थी, इसीलिए उसे उपर
शिप्ट कर दिया गया है।
मैं चाह रहा था कि उससे कह दूं कि तुम इस क्रम
को तोड़ दो। तुम उस चक्र से मुक्त हो जाओ जिससे तु्म्हारी सास, उनकी सास,
उनकी सास की सास बंधी रहीं। भूल जाओ उनके नर्क की बात, अपना स्वर्ग सुधार
लो। पर पता नहीं क्यों नहीं कह पाया।
बहुत दिनों बाद मेरे दोस्त के
बेटे की भी शादी हो गई। उसका बेटा पुणे के पास कहीं रहता है। सॉफ्टवेयर
इंजीनियर है। खूब कमाता है। अपनी पसंद की लड़की से शादी की है, और मां के
पास नहीं जाता। अभी कुछ दिन पहले फिर गांव गया तो अपने दोस्त की पत्नी से
मिला। वो मुझे बहुत बीमार लग रही थी। बीमार से ज्यादा लाचार। मैंने उसकी
आंखों में झांका, और देखा कि बेटे की जुदाई का गम उसे सता रहा है। उसका
अकेलापन उसे खा रहा है। मैंने हिम्मत की, उससे पूछा कि कैसी हो तुम?
उसने भर्राए गले से कहा, एक ही बेटा था। अपनी खुशियों को छोड़ कर उसे
पढ़ाया, इंजीनियर बनाया। अब वो ससुराल का हो गया है। सास को मां बुलाता है,
ससुर को पापा। हम तो छूट ही गए। लानत है ऐसी औलाद पर।
मन में आया कि
आज कह ही दूं कि ये आपका नर्क है। कुछ साल पहले ही तो आया था तुम्हारे घर,
तुम्हारी बुढ़िया सास इस खाट पर लेटी थी, तुमने फेंक कर उसे रोटी दी थी। पर
क्या कहता? मैं तो जानता था कि उस बुढ़िया को भी अपना नर्क भुगतना ही था।
और फिर उसी नर्क की अगली कड़ी में मेरे दोस्त की पत्नी को भी ये सब भुगतना
ही था। उसका बेटा हर शनिवार गौशाला में जाकर गाय को रोटी खिलाता है, अपने
हाथोें से गायों को बाल्टी भर भर कर पानी पिलाता है। किसी ने कह दिया है कि
केतु नाराज है, तो सड़क के कुत्तों को दूध भी पिलाता है। लेकिन मां? नहीं
मां को तो उसका नर्क मिल कर ही रहेगा।
फिर भी सोच रहा हूं कि जो अपने
दोस्त की पत्नी से नहीं कह पाया उसे उसके बेटे की पत्नी से कह दूं। कह दूं
कि तोड़ तो उस चक्र को। जो भी हो, अपना स्वर्ग ठीक कर लो।
मैं बहुत से
लोगों को जानता हूं जो मेरे आसपास अपने अपने हिस्से का नर्क भुगत रहे हैं,
भुगतने वाले हैं। उनकी औलादें गाय को रोटी खिला कर अपना पुण्य कमा लेंगी,
लेकिन मां को नहीं खिलाएंगी। फिर भी मेरी गुजारिश है आप सबसे कि जिसने जो
किया हो आपके साथ, आप उसे माफ कर दें। उसे इस बात के लिए माफ मत करें कि
उसने आपके साथ क्या किया? उसे इस बात के लिए माफ कर दें कि आपके जीवन से उस
पाप का चक्र छूट जाए।
साभार :
https://www.facebook.com/manmohan998/posts/780975261954222
द्वारा :
https://www.facebook.com/sanjayzee/posts/10203799370601406
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