Wednesday, 10 September 2014

एकल परिवार भी बिखरने की कगार पर---अरविंद विद्रोही

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09 -09-2014 :


 https://www.facebook.com/arvind.vidrohi/posts/742166825819570
अरविंद विद्रोही जी एक जागरूक पत्रकार हैं और उनकी चिंता स्व्भाविक तथा वास्तविक है। प्रस्तुत दोनों घटनाओं में युवा महिलाओं को सिर्फ इसीलिए अपनी ज़िंदगी से हाथ धोना पड़ा कि वे आर्थिक स्वतन्त्रता हेतु जीविकोपार्जन के लिए घर से बाहर निकली थीं। कितनी आर्थिक स्वतन्त्रता मिली और परिवार में कितनी समृद्धि आ पाई ? बल्कि असमय ही उनके सपने और परिवार बिखर गए। :



ये दो तो सिर्फ उदाहरण हैं न जाने कितनी ही इस प्रकार की घटनाएँ रोज़ घटित हो रही हैं और अनेकों परिवार अनायास संकटों का सामना कर रहे हैं।  रोजगार रत महिलाओं पर घर और बाहर दोनों की ज़िम्मेदारी रहती है और कुछ को छोड़ कर अधिकांश के स्वस्थ्य व मनोदशा पर इसका विपरीत प्रभाव पड़ता है जिसका खामियाजा पूरे परिवार को भुगतना पड़ता है। 

जब तक जिस परिवार में पुरुष भी घर की ज़िम्मेदारी निबाहने को तैयार न हों उस परिवार की महिलाओं को रोजगार करने से इंकार कर देना चाहिए ,वे क्यों घर-बाहर दोनों जगहों की ज़िम्मेदारी लेकर अपने निजी स्वस्थ्य व समस्त परिवार को जोखिम में डालें?

सनातन धर्म गर्ल्स  इंटर कालेज,आगरा छावनी में गणित के एक अध्यापक आलोक श्रीवास्तव साहब तो घर का काम बाकायदा अपनी श्रीमती जी को मदद करने के उद्देश्य से करते थे जबकि वह रोजगार में भी नहीं थीं। आलोक जी का कहना था कि यदि वह सुबह नाश्ता बना कर खा कर और अपनी श्रीमती जी को खिला कर कालेज चले जाते हैं तो सुबह-सुबह उनकी श्रीमती जी को छोटे बच्चे को अकेला छोड़ कर जल्दी-जल्दी उनके लिए नाश्ता नहीं तैयार करना पड़ता जबकि दिन में तसल्ली से इतमीनान से वह सब कार्य सुचारू रूप से कर लेती थीं। 

इसके विपरीत सेंट पैटरिक जूनियर गर्ल्स हाईस्कूल,आगरा में गणित के अध्यापक नरेंद्र चौहान साहब अपनी श्रीमती जी को घर के किसी भी काम में मदद नहीं करते थे यहाँ तक कि पौधों में पानी भी नहीं डालते थे। एक बार उनको कहीं  अचानक जाने की जल्दी थी और खाना तैयार नहीं था उन्होने बाज़ार से कुछ नाश्ता मंगाया जिसकी सब्जी में बैंगन की डंडी भी पड़ी थी जो मास्टर साहब के गले में जाकर अटक गई और उनको मुंह खोले -खोले ही डॉ के पास जाकर चिमटी से निकलवानी पड़ी। कार्यक्रम का मज़ा तो किरकिरा हुआ ही गले का घाव कई दिन तक परेशान किए रहा। यदि वह सब्जी बना देते या छील -काट कर ही तैयार कर देते तो  डॉ के पास दौड़ लगाने और तकलीफ उठाने की नौबत क्यों आती?

गणित मास्टर चौहान साहब के मुक़ाबले गणित मास्टर आलोक श्रीवास्तव साहब की घरेलू गणित ज़्यादा सटीक व कारगर साबित होती है। अतः समाजवाद को घर में भी लागू किया जाना चाहिए तभी परिवारों में खुशहाली लौट सकेगी। 

(विजय राजबली माथुर )

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