Thursday, 30 June 2016

ब्राहमणवाद है असली जातिवाद ------ महेश राठी


Mahesh Rathi
30 जून 2016  · 
ब्राहमणवाद है असली जातिवाद 
जातिवाद का लांछन यथास्थिति बनाये रखने की एक ब्राहमणवादी साजिश है। देश का बहुजन एकजुट होगा और अपने हक की बात करेगा तो ब्राहमणवादी बुद्धिजीवी उन पर जातिवादी होने का आरोप लगायेंगे और इस आरोप प्रत्यारोप का शोर मचाकर प्रचार भी करेंगे। और अपने शोर को इतना स्वाभाविक और मौलिक दिखाने की कोशिश करेंगे कि कई भ्रमित अथवा अपने हितों को साधने वाले बहुजन भी उनके इस जाति राग में शामिल हो जाते हैं। वास्तव में जातिवाद का यह शोर यथास्थिति को बनाये रखने की एक सोची समझी राजनीति है, साजिश है। 
इस साजिश में सभी खुले और छुपे ब्राहमणवादी शामिल रहते हैं धुर दक्षिणपंथ से लेकर दिग्गज प्रगतिशील तक। यह क्रान्तिकारी कभी यह सवाल नही उठाते हैं कि वर्तमान मीड़िया पर 95 प्रतिशत के लगभग अगड़े ब्राहमणवादियों का कब्जा क्यों हैं और न्यायपालिका से लेकर नौकरशाही और रक्षा क्षेत्र में देश के शीर्ष पदों अर्थात नीति निर्माता पदों पर इन अगड़ी जातियों के ब्राहमणवादियों का कब्जा क्यों हैं। यदि वह योग्यता को पैमाना बताते हैं तो बताये कि शादी विवाह और तमाम तरह के धार्मिक कर्मकाण्ड़ करने वाले ब्राहमणों में 90 प्रतिशत का संस्कृत उच्चारण गलत होता है और 95 प्रतिशत बोले जाने वाले श्लोंकों का अर्थ भी नही जानते हैं। फिर भी धार्मिक कर्मकाण्ड़ों पर उन्ही का कब्जा क्यों हैं? क्या यह जातिवाद नही है? 
इसके अलावा देश के किसी भी हिस्से में जहां ब्राहमणवाद दंगों के बीज बोता है। वहां दंगे का एक खास किस्म का डिजाइन काम करता है जिसमें मुस्लिम बस्तियों के पास दलित बस्तियों को बसाया जाता है और दंगा होने पर वही दोनों समुदाय हिंसा का शिकार होते हैं। ज्यादा दूर जाने की आवश्यकता नही है विगत वर्षों में दिल्ली के त्रिलोकपुरी में हुआ फसाद इसका उदाहरण है। जहां वाल्मिकी और मुसलमानों को आपस में लड़ाया गया और यह अधिकतर शहरों में पाया जाने वाला एकसमान डिजाइन है। यदि आप दंगों में दलितों आदिवासियों का इस्तेमाल कर सकते हैं और वो इतने बहादुर हैं (जोकि वो वास्तव में हैं) तो उन्हें सेना में आरक्षण क्यों नही? क्यों उन जातियों की देश की रक्षा का भार दिया जाता है अथवा उन्हें देश रक्षा की रणनीति बनाने का महत्ती कार्यभार दिया जाता है। क्या यह जातिवाद नही है और जो इस जातिवाद पर खामोश है और बहुजन की एकता से डरता है वो ही असली जातिवादी है। जो मीड़िया के जातिवाद पर उंगली उठाने से डरता है और बहुजन की एकता पर शोर मचाता है वही असली जातिवादी है। क्योंकि वह यथास्थिति बनाये रखकर अपने हितों को साधना चाहता है। वह विभिन्न प्रवेश परीक्षाओं में ब्राहमणवादी पक्षपात पर खामोश है विश्वविद्यालयों में छात्रों और शिक्षकों की भर्ती के अवसरों को रोकने की ब्राहमणवादी साजिश पर आंखें मूंद लेता है और अगड़े वर्चस्व को बनाये रखने के लिए काम करता है। वह सरवाइवल आॅफ फिटेस्ट वाले निजीकरण के इस दौर में कमजोर बहुजनों के रेस से बाहर जाने पर गंूगा है परंतु अपने हक के लिए बहुजन एकता पर जातिवाद जातिवाद कहकर चिल्लाता है वही असली जातिवादी अथवा जातिवादियों का दलाल है।
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