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Saturday, 23 July 2016

मीडिया मायावती को मोदी समझ रही:/सवर्ण और दलितों का अलगाव ------ अकील अहमद / लालाजी निर्मल

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****** जिसके एक आह्वान पर UP ही नहीं देश के दलित सड़क पर उतर आने को आतुर हो , उसी ताकतवर दलित महिला नेत्री के विरूद्ध आक्रमक तेवर में फरार दयाशंकर की पत्नी को उसके समकक्ष दिखाने का पर्यास जिसमे स्वाति सिंह कह रही है की भाजपा के सारे कार्यकर्ता मेरे साथ
.....क्या संदेश है ? ******
***उत्तर प्रदेश की राजनीती में सवर्ण और दलितों का अलगाव और अपने अपने खेमे में जुड़ाव साफ़ नजर आने लगा है | सोसल मिडिया में तो यह अलगाव शीशे की तरह साफ़ नजर आ रहा है | स्वाभाविक मित्रों को छोड़ कर वैचारिक विरोधियों के साथ दोस्ती और जातीय प्रबंधन निष्फल दिखने लगा है |***
***  दलितों - सवर्णों का यह अलगाव 'नास्तिकता'- एथीज़्म का दावा करने वाले साम्यवादी दल  के भीतर भी उतना ही मजबूत है जितना सोशल मीडिया और समाज में क्योंकि ये दल भी ब्राह्मण वादियों के ही नियंत्रण में हैं। बस फर्क सिर्फ इतना है कि, इन दलों में दलितों का समर्थन करने वाले मुखर लोग खुद दलित नहीं हैं बल्कि गैर ब्राह्मण और गैर प्रभावशाली कामरेड्स हैं । ब्राह्मण वादी /कार्पोरेटी/मोदीईस्ट कामरेड्स प्रभावशाली और दलित विरोधी मानसिकता के हैं जिनके लिए मार्क्स वाद सिर्फ सत्ता नियंत्रण का मंत्र भर है और वे अपनी कारगुजारियों से मार्क्स वाद को जनता से दूर रखने में निरंतर सफल रहे हैं । ***



Aquil Ahmed
मायावती v/s स्वाति 
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जैसे ही हजरतगंज थाने से मायावती जी सहित बसपा के दो अन्य नेतावो सतिस्चन्द्र मिश्र और नसीमुद्दीन सिद्दीकी और कर्य्कर्तावो के खिलाफ FIR दर्ज करा बाहर निकलते ही मीडियाकर्मियों से घिरी स्वाति सिंह (पत्नी भाजपा से निष्कासित नेता दयाशंकरसिंह) ने सहयोग के लिए कैमरे पर ही media का धन्यवाद दिया ,..........मुझे आजतक का वो समाचार याद आ गया मायावती जी के संसद में दयाशंकर जी के विरूद्ध प्रतिरोधस्वरूप उठाईगयी थी जिसमे उन्होंने कहा था ..'' मै देश की बेटी हू ,दया शंकर जी ने मुझ पर नहीं अपनी बेटी , बहन को ये शब्द कहे हैं"......सबसे पहले लोगो का ध्यानाकर्षित करते हुए ''आजतक'' नेकहा था मायावती जी का भी जुबान फिसल रही है .......अब जा कर यह समझ में आया की अहं से भरी स्वर्ण प्रभुत्व और मानसिकता वाली मीडिया को यह हजम न हो पा रहा था की एक दलित भी अपने मान सम्मान के लिए इतने आक्रामकता के साथ प्रतिरोध दर्ज करा सकती है ?____निचे दिए गए देश के दो प्रमुख चैनलों के है, जरा गौर कीजिये ....1, ABP न्यूज़ ....देश के सबसे ताकतवर दलित महिला के विरूद्ध अपराधिक टिपन्नी करने वाले फरार दयाशंकर सिंह की पत्नी का मीडिया से घिर bite देते 2, 'आजतक' की heading " मायावती v/s स्वाति" ____बिना इस बात की परवाह किये की जिसके एक आह्वान पर UP ही नहीं देश के दलित सड़क पर उतर आने को आतुर हो , उसी ताकतवर दलित महिला नेत्री के विरूद्ध आक्रमक तेवर में फरार दयाशंकर की पत्नी को उसके समकक्ष दिखाने का पर्यास जिसमे स्वाति सिंह कह रही है की भाजपा के सारे कार्यकर्ता मेरे साथ

.....क्या संदेश है ?........ऐसे ऐसे मायावती के मुकाबले कोई गुमनाम स्वर्ण स्वाति भी भारी है?
https://www.facebook.com/aquil.ahmed.7927/posts/668679363286163




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Lalajee Nirmal
सवर्ण और दलितों का अलगाव  :
देश की सबसे ताकतवर महिला दलित सुप्रीमो बहन जी पर आज बड़ा सामंती हमला हुआ |उनके विरूद्ध भारतीय दंड संहिता की धारा 504 ,506 ,509 ,153ए और 120बी के तहत मुकदमा दर्ज कराया गया है |नसीमुद्दीन सिद्दीकी,राम अचल राजभर और मेवालाल गौतम सहित अज्ञात लोगों को भी इसमें आरोपी बनाया गया है |इसी के साथ उत्तर प्रदेश की राजनीती में सवर्ण और दलितों का अलगाव और अपने अपने खेमे में जुड़ाव साफ़ नजर आने लगा है | सोसल मिडिया में तो यह अलगाव शीशे की तरह साफ़ नजर आ रहा है | स्वाभाविक मित्रों को छोड़ कर वैचारिक विरोधियों के साथ दोस्ती और जातीय प्रबंधन निष्फल दिखने लगा है |बड़ी मजबूती के साथ फिर कह रहा हूँ भारत के सामंती कोढ़ की शल्य चिकित्सा केवल और केवल बहुजन अवधारणा से ही संभव है |

https://www.facebook.com/lalajee.nirmal/posts/1122617821131866

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उपरोक्त टिप्पणियों से साफ नज़र आता है कि, दलितों - सवर्णों का यह अलगाव 'नास्तिकता'- एथीज़्म का दावा करने वाले साम्यवादी दल  के भीतर भी उतना ही मजबूत है जितना सोशल मीडिया और समाज में क्योंकि ये दल भी ब्राह्मण वादियों के ही नियंत्रण में हैं। बस फर्क सिर्फ इतना है कि, इन दलों में दलितों का समर्थन करने वाले मुखर लोग खुद दलित नहीं हैं बल्कि गैर ब्राह्मण और गैर प्रभावशाली कामरेड्स हैं । ब्राह्मण वादी /कार्पोरेटी/मोदीईस्ट कामरेड्स प्रभावशाली और दलित विरोधी मानसिकता के हैं जिनके लिए मार्क्स वाद सिर्फ सत्ता नियंत्रण का मंत्र भर है और वे अपनी कारगुजारियों से मार्क्स वाद को जनता से दूर रखने में निरंतर सफल रहे हैं । इसी लिए 1964 में टूट कर CPM का गठन किया गया था। यू पी में पिछले बाईस वर्षों में दो बार पार्टी विभाजन भी ब्राह्मण वाद और ब्राह्मणों के वर्चस्व का  ही परिणाम था। CPM से टूटे नकसल पंथी गुटों ने कार्पोरेटी शक्तियों को मजदूरों - किसानों का दमन करने का स्वर्णिम अवसर प्रदान कर दिया है। आज का जातीय विभाजन और टकराव और कुछ नहीं सिर्फ शोषणवादी शक्तियों को ही मजबूत करेगा जो कि, सत्तारूढ़ सरकारों की गहरी कूटनीतिक चाल है। इसकी पुष्टि  BBC के इस वीडियो से भी होती है 
( विजय राजबली माथुर )

Thursday, 30 June 2016

ब्राहमणवाद है असली जातिवाद ------ महेश राठी


Mahesh Rathi
30 जून 2016  · 
ब्राहमणवाद है असली जातिवाद 
जातिवाद का लांछन यथास्थिति बनाये रखने की एक ब्राहमणवादी साजिश है। देश का बहुजन एकजुट होगा और अपने हक की बात करेगा तो ब्राहमणवादी बुद्धिजीवी उन पर जातिवादी होने का आरोप लगायेंगे और इस आरोप प्रत्यारोप का शोर मचाकर प्रचार भी करेंगे। और अपने शोर को इतना स्वाभाविक और मौलिक दिखाने की कोशिश करेंगे कि कई भ्रमित अथवा अपने हितों को साधने वाले बहुजन भी उनके इस जाति राग में शामिल हो जाते हैं। वास्तव में जातिवाद का यह शोर यथास्थिति को बनाये रखने की एक सोची समझी राजनीति है, साजिश है। 
इस साजिश में सभी खुले और छुपे ब्राहमणवादी शामिल रहते हैं धुर दक्षिणपंथ से लेकर दिग्गज प्रगतिशील तक। यह क्रान्तिकारी कभी यह सवाल नही उठाते हैं कि वर्तमान मीड़िया पर 95 प्रतिशत के लगभग अगड़े ब्राहमणवादियों का कब्जा क्यों हैं और न्यायपालिका से लेकर नौकरशाही और रक्षा क्षेत्र में देश के शीर्ष पदों अर्थात नीति निर्माता पदों पर इन अगड़ी जातियों के ब्राहमणवादियों का कब्जा क्यों हैं। यदि वह योग्यता को पैमाना बताते हैं तो बताये कि शादी विवाह और तमाम तरह के धार्मिक कर्मकाण्ड़ करने वाले ब्राहमणों में 90 प्रतिशत का संस्कृत उच्चारण गलत होता है और 95 प्रतिशत बोले जाने वाले श्लोंकों का अर्थ भी नही जानते हैं। फिर भी धार्मिक कर्मकाण्ड़ों पर उन्ही का कब्जा क्यों हैं? क्या यह जातिवाद नही है? 
इसके अलावा देश के किसी भी हिस्से में जहां ब्राहमणवाद दंगों के बीज बोता है। वहां दंगे का एक खास किस्म का डिजाइन काम करता है जिसमें मुस्लिम बस्तियों के पास दलित बस्तियों को बसाया जाता है और दंगा होने पर वही दोनों समुदाय हिंसा का शिकार होते हैं। ज्यादा दूर जाने की आवश्यकता नही है विगत वर्षों में दिल्ली के त्रिलोकपुरी में हुआ फसाद इसका उदाहरण है। जहां वाल्मिकी और मुसलमानों को आपस में लड़ाया गया और यह अधिकतर शहरों में पाया जाने वाला एकसमान डिजाइन है। यदि आप दंगों में दलितों आदिवासियों का इस्तेमाल कर सकते हैं और वो इतने बहादुर हैं (जोकि वो वास्तव में हैं) तो उन्हें सेना में आरक्षण क्यों नही? क्यों उन जातियों की देश की रक्षा का भार दिया जाता है अथवा उन्हें देश रक्षा की रणनीति बनाने का महत्ती कार्यभार दिया जाता है। क्या यह जातिवाद नही है और जो इस जातिवाद पर खामोश है और बहुजन की एकता से डरता है वो ही असली जातिवादी है। जो मीड़िया के जातिवाद पर उंगली उठाने से डरता है और बहुजन की एकता पर शोर मचाता है वही असली जातिवादी है। क्योंकि वह यथास्थिति बनाये रखकर अपने हितों को साधना चाहता है। वह विभिन्न प्रवेश परीक्षाओं में ब्राहमणवादी पक्षपात पर खामोश है विश्वविद्यालयों में छात्रों और शिक्षकों की भर्ती के अवसरों को रोकने की ब्राहमणवादी साजिश पर आंखें मूंद लेता है और अगड़े वर्चस्व को बनाये रखने के लिए काम करता है। वह सरवाइवल आॅफ फिटेस्ट वाले निजीकरण के इस दौर में कमजोर बहुजनों के रेस से बाहर जाने पर गंूगा है परंतु अपने हक के लिए बहुजन एकता पर जातिवाद जातिवाद कहकर चिल्लाता है वही असली जातिवादी अथवा जातिवादियों का दलाल है।
https://www.facebook.com/mahesh.rathi.33/posts/10204833061144688

Saturday, 5 March 2016

कन्हैया कुमार के विचार : जन-अभिव्यक्ति ------ विजय राजबली माथुर

कन्हैया कुमार ने जो राह दिखा दी है उसको अपना कर ,उसको मान-सम्मान के साथ अनुकरण में लाकर जनता को अपने साथ जोड़ने का कार्य वामपंथ को अविलंब करना चाहिए। उसके विचार जन-अभिव्यक्ति हैं तभी तो अब मीडिया भी उनको स्थान देने लगा है। 
(विजय राजबली माथुर )
कन्‍हैया के भाषण में सबक लेने लायक कोई बात थी तो वह वामपंथियों के लिए ही थी। उन्‍होंने कहा, ‘जेएनयू में हम सभी को सेल्फ क्रिटिसिज्‍म की जरूरत है क्योंकि हम जिस तरह से यहां बात करते हैं वो बात आम जनता को समझ में नहीं आती है। हमें इस पर सोचना चाहिए।’ देश में वामपंथ राजनीति सालों से इस समस्‍या से जूझ रही है। वह जनता के हितों की बात करती है, फिर भी जनता उनकी सुनती नहीं है। कन्हैया ने अपने जेल के अनुभव गिनाते हुए संकेत दिया कि वामपंथियों को दलितों को साथ लेकर चलना होगा। वामपंथी पार्टियां इस पर सोच सकती हैं।



नई दिल्‍ली: देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार होने के बाद कल (गुरुवार को) जमानत पर रिहा होकर जेएनयू वापस लौटे जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष कन्हैया कुमार ने NDTV से खास बातचीत में कहा कि '9 फरवरी का कार्यक्रम मैंने आयोजित नहीं किया था। देश‍विरोधी नारे लगे या नहीं लगे, इसके बारे में मुझे कुछ नहीं पता, क्योंकि मैं वहां मौजूद नहीं था।'

कन्हैया द्वारा कही गई मुख्‍य बातें...
मेरी उस कार्यक्रम के प्रति परोक्ष रूप से कोई सहमति नहीं थी। मुझे उस कार्यक्रम की सूचना नहीं दी गई थी। कार्यक्रम की इजाजत देना मेरा काम नहीं है।
चार-पांच लोग वहां नारे लगा रहे थे। नारे लगाना गलत है। नारे लगाने वालों पर कार्रवाई होनी चाहिए।
पुलिस कहती है कि मेरी रज़ामंदी से कार्यक्रम हुआ, इसलिए गिरफ़्तार किया।
पहले से इस तरह की गतिविधियां होती आ रही है। उस कार्यक्रम को रोकना मेरे अधिकार से बाहर था।
अध्यक्ष होने के नाते मैं छात्रों की नुमाइंदगी करता हूं। छात्रों की बात करना मेरा काम, कार्यक्रम की इजाज़त देना नहीं।
कुछ छात्रों को निशाना बनाने की कोशिश हो रही है।
जो नारे लगाए गए, मैं उसकी निंदा करता हूं। ये सिर्फ़ नारे का मामला नहीं है, उससे ज़्यादा गंभीर है। नारों से लोगों का पेट नहीं भरता।
देश के सिस्‍टम पर मेरा भरोसा है।
मामला कोर्ट में है, इसलिए मैं ज्‍यादा बोल नहीं सकता।
हमारा देश इतना कमजोर है, जो नारों से हिल जाएगा?
हैदराबाद की कहानी जेएनयू में दोहराने की कोशिश हुई।
जेएनयू में दक्षिणपंथी ताकतें अलग-थलग हैं।
हर मामले को हिंदू-मुसलमान रंग दिया जाता है।
हम अफजल गुरु पर कोर्ट के आदेशों का सम्‍मान करते हैं।
मेरा भाई सीआरपीएफ में था, जो नक्‍सली हमले में मारा गया।
किसी को नक्‍सली बताकर गलत तरीके से मारने का भी समर्थन नहीं करता।
ये लड़ाई देश के खिलाफ नहीं, बल्कि सरकार के खिलाफ है।
जेएनयू के छात्रों को देशद्रोही बताया जा रहा है।
पिछड़े लोगों को निशाना बनाया जा रहा है।
पटियाला हाउस कोर्ट में जो मैंने देखा वो ख़तरनाक परंपरा है।
हाथ में झंडा लेकर संविधान की धज्जियां उड़ा रहे थे।
देशद्रोह का क़ानून अंग्रेज़ों के ज़माने का है।
भगत सिंह देश के लिए लड़ रहे थे। भगत सिंह को अंग्रेज़ देशद्रोही मानते थे।
सरकार आपके पास के थाने से लेकर संसद तक है।
विचारधारा को रणनीतिक रूप नहीं देने से वो ख़त्म हो जाती है।
केजरीवाल, राहुल गांधी को देश से प्यार है तो आंदोलन करना होगा।
भगत सिंह और गांधी जैसे सुधारक हुए। ये वो लोग थे जो साम्राज्यवाद से लड़े।
दक्षिणपंथी मुद्दों पर फ़ोकस करतें है, विचारधारा पर नहीं।
जब तक आप डरेंगे नहीं तो लड़ेंगे नहीं।
मुझे आरएसएस से डर लगा इसलिए उसके ख़िलाफ़ लड़ा।
अब पुलिस से दोस्ती हो गई है।
मैं आगे चलकर शिक्षक ही बनूंगा।
मैं मुद्दों पर बहस करूंगा, अपनी विचारधारा के लिए लडूंगा।
मैं अपने अनुभवों पर किताब लिखना चाहता हूं।
मामला कोर्ट में है, अभी फ़र्ज़ी राष्ट्रवाद पर बहस न हो।
जब आरएसएस में वैचारिक बदलाव हो रहा है तो कांग्रेस, लेफ़्ट में भी होगा। हमें इस बदलाव को बारीकी से देखने की ज़रूरत है। तभी हम लेफ़्ट, बीजेपी, कांग्रेस, केजरीवाल में फ़र्क कर पाएंगे
सबको एक ब्रश से मत रंगिए।
http://khabar.ndtv.com/news/india/exclusive-kanhaiya-kumar-interview-by-ravish-kumar-1283995?site=full
स्पष्ट रूप से पढ़ने के लिए इमेज पर डबल क्लिक करें (आप उसके बाद भी एक बार और क्लिक द्वारा ज़ूम करके पढ़ सकते हैं )
05-03-2016 

http://epaper.telegraphindia.com/details/173713-175741306.html

नीतीश कुमार ::
युवाओं के आगे आने से देश में लोकतंत्र मजबूत होगा। देश में पनप रहे अंसतोष को दबाने के लिए देशभक्ति का नारा छेड़ा है। उनको और कम्युनिस्ट पार्टी को शुभकामना देता हूं, ऐसे विचारों को बल मिलेगा।

http://www.livegaya.com/…/in…/id/3118/kanhaiya-nitish-kumar… 


भाषण में क्‍या था:  
कन्‍हैया के भाषण में सबक लेने लायक कोई बात थी तो वह वामपंथियों के लिए ही थी। उन्‍होंने कहा, ‘जेएनयू में हम सभी को सेल्फ क्रिटिसिज्‍म की जरूरत है क्योंकि हम जिस तरह से यहां बात करते हैं वो बात आम जनता को समझ में नहीं आती है। हमें इस पर सोचना चाहिए।’ देश में वामपंथ राजनीति सालों से इस समस्‍या से जूझ रही है। वह जनता के हितों की बात करती है, फिर भी जनता उनकी सुनती नहीं है। कन्हैया ने अपने जेल के अनुभव गिनाते हुए संकेत दिया कि वामपंथियों को दलितों को साथ लेकर चलना होगा। वामपंथी पार्टियां इस पर सोच सकती हैं।   

http://www.jansatta.com/national/why-jnusu-president-kanhaiya-kumar-not-a-hero/73955/?utm_source=JansattaHP&utm_medium=referral&utm_campaign=jaroorpadhe_story

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फेसबुक पर प्राप्त  टिप्पणियाँ :
05-03-2016 

Saturday, 19 December 2015

ब्राहमणवाद का राजनीतिक अर्थशास्त्र ------ महेश राठी

हिंदू समाज में दलित के रूप में पैदा होना निश्चित ही दुनिया का सबसे निकृष्टतम कृत्य और कृत्य भी ऐसा जिसमें आपका कोई हाथ नही होता है। यह निकृष्टता और अपमान ब्राहमणवादी संघी टोले के केन्द्रीय सत्ता पर काबिज होने के बाद से अपने चरम पर है। ब्राहमणवादियों की दबंगई और उसमें सत्ता का दुरूपयोग अपनी पूरी आक्रामकता और निर्लज्जता के साथ देश में चारो तरफ पैर पसार रहा है। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की राजधानी भी इस दबंगई से अछूती नही है। 


Mahesh Rathi


ब्राहमणवाद का राजनीतिक अर्थशास्त्र :
हिंदू समाज में दलित के रूप में पैदा होना निश्चित ही दुनिया का सबसे निकृष्टतम कृत्य और कृत्य भी ऐसा जिसमें आपका कोई हाथ नही होता है। यह निकृष्टता और अपमान ब्राहमणवादी संघी टोले के केन्द्रीय सत्ता पर काबिज होने के बाद से अपने चरम पर है। ब्राहमणवादियों की दबंगई और उसमें सत्ता का दुरूपयोग अपनी पूरी आक्रामकता और निर्लज्जता के साथ देश में चारो तरफ पैर पसार रहा है। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की राजधानी भी इस दबंगई से अछूती नही है। 
द्वारका इलाके में कुतुब विहार नामक कालोनी में एक दलित रामप्रसाद के नेतृत्व में कालोनी के अनुसूचित जाति के लोगों ने कुछ साल पहले एक मंदिर की नींव रखी और कईं सालों की मेहनत के बाद उसे विकसित भी किया। अब अचानक इलाके के ब्राहमणवादी भाजपाईयों को याद आ गया कि उनकी देवी देवताओं की देखभाल करने वाले लोग दलित हैं और उन्हें उनके देवी देवताओं की रखवाली और पूजा अर्चना करने का कोई अधिकार नही है। उसके बाद भाजपा के स्थानीय नेता शेलैन्द्र पाण्ड़े के साथ मिलकर उनकी ही पार्टी के दो अन्य कार्यकर्ताओं अभिमन्यू और मनीषा ने रामप्रसाद और उनके परिवार को मंदिर से धक्के देकर बाहर कर दिया। उन्होंने साफ कहा कि तुम नीच जाति वालों को पूजा पाठ करने विशेषकर मंदिर की देखभाल करने का कोई अधिकार ही नही है। रामप्रसाद ने थाने जाकर शिकायत करनी चाही तो थानाध्यक्ष ने साफ कहा कि शिकायत मत करो पछताना पडेगा और शिकायत लेने से मनाकर दिया। उसके बाद उन्होंने अपनी शिकायत डीसीपी और पुलिस आयुक्त को एवं अनुसूचित जाति जनजाति आयोग में भी भेजी जहां आयोग ने 29 दिसम्बर को इस मामले की सुनवाई तय की है। 
अब थानाघ्यक्ष की चेतावनी के मूर्त रूप लेने का समय था। भाजपा नेता ने अपनी सहयोगी मनीषा के माध्यम रामप्रसाद पर छेड़छाड़ करने का आरोप लगवाकर उसे जेल भेज दिया। पंरतु ऐसा मामला बनने की आशंका को लेकर एक शिकायत रामप्रसाद ने पहले ही पुलिस विभाग को कर दी थी और उसी के आधार पर उन्हें जमानत भी मिल गई। इस इलाके में जगह जगह लगे पोस्टर एवं होर्डिंग्स भाजपा नेता के पद एवं रसूख का पता दे रहे हैं तो वहीं उनके साथ उन्हीं होर्डिंग्स में लगी उस महिला की तस्वीर भी पूरी कहानी बयां कर देती है जिसने रामप्रसाद को छेडछाड़ को आरोप में फंसवाया है। 
दरअसल यह पूरा मामला सरकारी जमीन को हड़पने का है। डीडीए की कईं बीघा जमीन में यह मंदिर बना हुआ है। मंदिर के पास भी लगभग एक हजार गज की जमीन पर बना ढ़ंाचा है अर्थात मामला स्थानीय निवासियों द्वारा इस मंदिर को कालोनी के कब्जे में रखकर इसका सामाजिक इस्तेमाल करने बनाम लैंड माफिया द्वारा इसे हथियाकर बेचन का है। जिसने कईं सालों तक इस मंदिर को बनाने में अपना सब कुछ लगाया और जिसका पूरा परिवार इस मंदिर के रख रखाव में लगा उसे एक दिन ब्राहमणवादी संगठन के प्रदेश स्तरीय नेता ने बता दिया कि तुम दलित हो और ना मंदिर तुम्हारा है और यह धर्म ही तुम्हारा है, भागो यहां से। हिंदू धर्म, उसके मंदिर उसके पूरे कार्मकाण्ड़ों का सच ही यही है कि वो एक वर्ग विशेष को देश और समाज के पूरे संसाधनों पर कब्जे और उसके दोहन का अर्थशास्त्र सिखाता है। यह तभी से जारी है जब हजारों साल पहले इस देश के मूल निवासियों पर आर्यों के रूप में पहला साम्राज्यवादी हमला हुआ था।* तभी से इन ब्राहमणवादियों की कोशिश धार्मिक कर्मकाण्ड़ों पर अपना वर्चस्व बनाने के माध्यम से पूरी प्राकृतिक और राष्ट्रीय संपदा के दोहन की है। परंतु अब लड़ाई का बिगुल बज चुका है और कुतुब विहार, गोला डेरी में ब्राहमणवाद के कब्जे से इस मंदिर को आजाद कराकर इसे समता प्रेरणा स्थल के रूप स्थापित किया जायेगा। आप सभी के इसमें सहयोग की आशा है।
https://www.facebook.com/mahesh.rathi.33/posts/10203777537797264
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'भारत पर आर्यों का हमला ' यह एक पाश्चात्य दृष्टिकोण है जो साम्राज्यवादियो द्वारा खुद को श्रेष्ठ साबित करने का एक घृणित प्रयास है। 
वस्तुतः आर्य न कोई जाति है, न संप्रदाय, न ही धर्म । आर्य शब्द आर्ष का अपभ्रंश है जिसका अभिप्राय है 'श्रेष्ठ' अर्थात विश्व का कोई भी मनुष्य जो श्रेष्ठ है वह आर्य है। 
यदि पाश्चात्य दुष्चक्र में फंस कर आर्य को जाति,धर्म,संप्रदाय के रूप में लेकर हमलावर मानते रहेंगे तो कभी भी अपने लक्ष्य में सफल न हो सकेंगे, जैसा कि ब्राह्मणवादी चाहते भी हैं। 
'त्रिवृष्टि' अर्थात तिब्बत क्षेत्र आर्यों का मूल उद्गम क्षेत्र है जहां 'स्व:' और 'स्वधा' का सृजन हुआ। ये श्रेष्ठ लोग जब आबादी बढ्ने पर दक्षिण में हिमालय के पार जिस निर्जन-क्षेत्र में बसे वह इनके कारण आर्यावृत कहलाया। पहले मूल निवासी तो ये श्रेष्ठ जन- आर्य ही थे। तब तक आज का दक्षिण भारत  'जंबू द्वीप' के रूप में एक अलग निर्जन टापू था। जब  भू- गर्भीय हलचलों से 'जंबू द्वीप' उत्तर की ओर बढ़ कर आर्यावृत से टकराया तब 'हिंदमहासागर' नाम से जाना जाने वाला समुद्र सिकुड़ कर धुर दक्षिण में चला गया तथा जंबू द्वीप व  आर्यावृत को संयुक्त करने वाले 'विंध्याचल' पर्वत की उत्पत्ति हुई। आर्यावृत से जंबू द्वीप पर आबादी के स्थानांतरण से आर्यजन वहाँ भी आबाद हुये। पाश्चात्य इतिहासकारों ने इनको प्रथक द्रविन घोषित करके पार्थक्य की भावना को पोषित कर रखा है। 
जब अफ्रीका व यूरोप की आबादी को श्रेष्ठ अर्थात आर्य बनाने के उद्देश्य से आर्यों के जत्थे पश्चिम से चले तो उनका पहला पड़ाव था आर्यनगर= एर्यान= ईरान। खोमेनी से पहले तक वहाँ का शासक खुद को आर्य मेहर रज़ा पहलवी कहता था। आगे बढ़ते हुये आर्य मेसोपोटामिया होते हुये जर्मनी पहुंचे थे। लेकिन पाश्चात्य जगत से गुमराह लोग उल्टा कहते हैं कि वहाँ से आर्य भारत पर आक्रमण करके आए थे। 
पूर्व से चले आर्य वर्तमान चीन, साईबेरिया क्षेत्र से होते हुये ब्लाड़ीवासटक और अलास्का को पार करते हुये कनाडा से दक्षिण की ओर बढ़े थे। उनका पहला पड़ाव 'तक्षक' ऋषि के नेतृत्व में जहां पड़ा था वह स्थान आज भी उनके नाम पर अपभ्रंश में 'टेक्सास' कहलाता है जहां  जान एफ केनेडी को गोली मारी गई थी। दूसरा पड़ाव धुर दक्षिण में 'मय' ऋषि के नेतृत्व में जहां पड़ा वह आज भी उनके ही नाम पर मेक्सिको है।  
दक्षिण दिशा में 'पुलत्स्य'ऋषि के नेतृत्व में गए आर्य वर्तमान आस्ट्रेलिया पहुंचे थे जहां का शासक 'सोमाली' एक निर्जन टापू की ओर अपने समर्थकों सहित भाग गया था वह आज भी उसी के नाम पर सोमाली लैंड है। 
भारत से बाहर गए इन आर्यों का ध्येय लोगों को श्रेष्ठ मार्ग सिखाना अर्थात आर्यत्व में ढालना था। किन्तु पुलत्स्य के वंशज 'विश्र्श्वा' ने वर्तमान लंका में एक राज्य की स्थापना कर डाली जो अपनी भौगोलिक स्थिति के कारण अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के लिए महत्वपूर्ण सिद्ध हुआ और इसी कारण उनका पुत्र रावण साम्राज्यवादी बन सका अपने अमेरिकी और साईबेरियाई सहयोगियों (एरावन व कुंभकरण ) की सहायता से। इसी साम्राज्यवादी आर्य - रावण को भारत के आर्य - राम ने कूटनीति व युद्ध में परास्त कर साम्राज्यवाद का सर्व प्रथम विनाश किया था। 
दुर्भाग्यपूर्ण है कि विद्वान लेखक महेश राठी जी ने भी पाश्चात्य साम्राज्यवादियों के दुर्भावनापूर्ण शब्द आर्य हमलावर थे को अपना लिया। भारतीय साम्यवाद के जनता के मध्य अलोकप्रिय होने का सबसे बड़ा कारण साम्यवादी विद्वानों द्वारा साम्राज्यवादी इतिहासकारों से भ्रमित होते रहना ही है। काश अब भी साम्यवादी विद्वान 'सत्य ' को स्वीकार करके ' हिन्दू' और 'ब्रहमनवाद' को अभारतीय कहने का साहस दिखा सकें तो सफलता उनके चरण चूम लेगी। साम्यवाद और कुछ नहीं वेदोक्त समष्टिवाद ही है लेकिन सत्य से दूर रहना और उसका वरन करने की बजाए उस पर प्रहार करते रहना ही वह वजह है जिसने जनता के दिलो-दिमाग में साम्यवाद के प्रति नफरत भर रखी है।महेश राठी जी सत्य के शस्त्र से हिंदूवाद और ब्रहमनवाद पर प्रहार करें तो निश्चय ही सफल होंगे , हमारी शुभकामनायें उनके साथ हैं। 
(विजय राजबली माथुर ) 

Thursday, 29 October 2015

बीजेपी दलित, पिछड़ा आरक्षण के विरोध का नेतृत्व करती रही है --- प्रीतमजी



Pritam Jee
29-10-2015  Edited ·
नरेन्द्र मोदी और बीजेपी के इस चुनावी पिछड़ा प्रेम को समझने के लिए गुजरात के बारे में समझ लेना आवश्यक होगा. गुजरात में जब दलित आरक्षण लागू किया गया था तो उस वक़्त ब्राह्मण, पाटीदार और बनिया वर्ग का ज़बरदस्त विरोध सामने आया जिसने बाद में 1981 में दलित विरोधी आंदोलन का रूप लिया और बीजेपी ने इस दलित विरोधी आन्दोलन का नेतृत्व किया था.
इस दलित विरोधी आन्दोलन ने दंगों की शक्ल अख्तियार की और गुजरात के 19 में से 18 जिलों में दलितों को निशाना बनाया गया. इन दंगों में मुस्लिमों ने दलितों को आश्रय दिया और उनकी मदद भी की. वास्तव में दलित, पिछड़ा और आदिवासी गुजरात की लगभग 75 प्रतिशत जनसंख्या बनाते हैं.
इसी को अपने साथ मिलाकर 1980 में कांग्रेस ने सत्ता प्राप्त की थी. यह गठजोड़ जिसे अंग्रेजी के खाम यानी क्षत्रिय, हरिजन, आदिवासी और मुस्लिम कहा जाता है, ने पहली बार ब्राह्मण और पाटीदारों को सत्ता के केंद्र से दूर कर दिया.
हालांकि इसके ठीक बाद बीजेपी ने 1980 में अपने कट्टर हिन्दुत्ववादी एजेंडे पर काम करना शुरू किया और आडवानी की रथ यात्रा ने उस प्रक्रिया को तेज़ किया, जिसमें सवर्ण और उच्च जाति के लोगों ने सत्ता से दूर होने के आधार पर एकजुट होकर आरक्षण विरोधी आन्दोलन को चलाया. साथ ही इसने गुजरात के भगवाकरण के लिए भी परिस्थितियां पैदा की.
1980 में कांग्रेस की जीत के बाद बीजेपी ने दलित विरोधी रणनीति में परिवर्तन कर इसे सांप्रदायिक रंग दिया और अब निचली जाति के दलित, आदिवासी समूह को मुस्लिमों के विरुद्ध खड़ा किया. इसी कारण 1981 में आरक्षण विरोधी आन्दोलन ने 1985 में सांप्रदायिक हिंसा का रूप धारण कर लिया और इसे आडवानी ने अपनी रथयात्रा से और भी उन्मादी और हिंसक बनाया. 1990 में जब आडवानी रथ यात्रा के ज़रिए देश में जहर घोल रहे थे, उस वक़्त गुजरात में उनके सिपहसलार नरेन्द्र मोदी थे जो गुजरात बीजेपी महासचिव थे.
बीजेपी न केवल दलित, पिछड़ा आरक्षण के विरोध का नेतृत्व करती रही है, बल्कि सत्ता में आने के बाद नरेन्द्र मोदी की सरकार ने गुजरात में इस आरक्षण के लाभ को भी सरकारी मशीनरी के दुरूपयोग से रोका है. ‪#‎आरक्षण‬
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 संकलन-विजय माथुर