Thursday, 29 December 2016

कृषि में बैंक कर्ज और नोटबंदी ------ मुकेश त्यागी


Mukesh Tyagi
28-12-2016
कृषि में बैंक कर्ज और नोटबंदी :
'सवा सेर गेहूँ' कहानी हम लोगों ने पढ़ी है और 'दो बीघा जमीन' जैसी फ़िल्में भी देखीं हैं जो गाँवों में सूदखोरों के भयंकर शोषण को दिखाती थीं। इससे ही जुडी कुछ बातें नए ज़माने के पूँजीवादी सूदखोरी की। 
1947 में राजनीतिक सत्ता में आया पूँजीपति वर्ग आर्थिक रूप से इतना ताकतवर नहीं था कि बड़े पैमाने पर औद्योगिकीकरण और आधुनिकीकरण कर सके। इसलिए पूँजी की ताकत जुटाने के लिए उसने सरकारी पूँजी निवेश द्वारा सार्वजनिक क्षेत्र के माध्यम से सीमित, क्रमिक औद्योगिकीकरण का रास्ता चुना। कृषि में उसकी नीति सीमित जमींदारी-उन्मूलन, चकबंदी, कृषि-आधारित व्यवसायों, आदि के द्वारा एक जहाँ एक नया धनी किसान वर्ग खड़ा करना था जो गाँव में पूँजीवादी शासन का आधार बने, वहीँ यह भी निश्चित करना था कि बड़े पैमाने पर कृषि से शहरों की और पलायन न हो, क्योंकि इतनी बड़ी बेरोजगारों की फ़ौज उसे खतरा नजर आती थी। इस लिए थोड़ी बहुत जमीन, पशुओं, तालाब, आदि के सहारे इन सबको किसी तरह जिन्दा रहने लायक खेती-व्यवसाय आदि में लगाए रखने के लिए सरकारी-सहकारी बैंकों, सहकारी समितियों आदि द्वारा किसानों को कर्ज देने की योजनाएं लाईं गईं और 1951 के 70% के मुकाबले 1981 में सूदखोरों का देहाती कर्ज में हिस्सा 17% ही रह गया। 
लेकिन 1980 के दशक तक बड़ी इजारेदार पूँजी का मालिक बन चुका पूँजीपति वर्ग दिशा बदल रहा था और दुनिया भर के साम्राज्यवादी पूँजी के साथ मिलकर भारत को उनके लिए सस्ते उत्पादन का केंद्र बनाने की कोशिश में जुट गया था। अब सार्वजनिक क्षेत्र उसके लिए अपनी भूमिका काफी हद तक खो चुका था और वह औद्योगीकरण को अपने हाथ में लेने में लगा था - आर्थिक सुधार! अब उसे अपने उद्योगों के लिए भारी संख्या में सस्ते मजदूरों की फ़ौज चाहिए थी जिसका एक ही स्रोत मुमकिन था बड़े पैमाने पर छोटे-सीमांत किसानों की कंगाली से उन्हें शहर में मजदूरी के लिए पलायन पर विवश करना। इसके विभिन्न तरीकों में एक कृषि में बैंक कर्ज की सप्लाई को सीमित करना भी है। इसके चलते फिर से ग्रामीण कर्ज में सूदखोरों को हिस्सा बढकर 2002 में 27% और 2013 में 44% हो गया। 
अब नोटबंदी में सहकारी बैंकों/समितियों पर खास तौर पर रोक लगाकर इस प्रक्रिया को और तेजी दी गई है। फसल की बिक्री का पैसा ना मिलने, अगली फसल बोने तथा रोजमर्रा के जीवन के लिए पैसे की जरुरत वाले छोटे-मध्यम किसानों को फिर से धनी किसानों और आढ़तियों से 3 से 5% महीना (36 से 60% सालाना!) के खून निचोड़ू सूद पर कर्ज लेने को मजबूर होना पड़ रहा है। कुछ रिपोर्टों के अनुसार तो कुछ जगहों पर 10% तक के सूद की खबरें आईं हैं। 
नतीजा होगा, बड़े पैमाने पर इन कर्जदार छोटे किसानों-कृषि सम्बंधित व्यवसायियों की कंगाली और इनके जमीन-मकानों, आदि पर सूदखोरों द्वारा कब्ज़ा और इनकी परिवारों सहित शहरों में असंगठित क्षेत्र के उद्योगों में मजदूरों की फ़ौज में भर्ती और झोंपड़पट्टियों में निवास।
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28-12-2016 

Wednesday, 28 December 2016

ज़मीन से जुड़ाव ख़त्म ------ फखरे आलम / यूसुफ अंसारी

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28-12-2016 


28-12-2016 





    संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश

Friday, 23 December 2016

भारत सरकार इस तथ्य को दबा रही है कि नोटबंदी के फैसले से भारत को दसियों अरब डॉलर का नुकसान हो सकता है ------ स्टीव फोर्ब्स

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प्रतिष्ठित अमेरिकी बिज़नेस पत्रिका फोर्ब्स के अनुसार नरेंद्र मोदी सरकार के नोटबंदी के फैसले से देश को भारी नुकसान हो सकता है। फोर्ब्स पत्रिका के 24 जनवरी 2017 के संस्करण में छपे लेख में कहा गया है कि मोदी सरकार के इस फैसले से भारत के पहले से ही गरीब लाखों लोगों की हालत और खराब हो सकती है। फोर्ब्स पत्रिका के चेयरमैन और एडिटर-इन-चीफ स्टीव फोर्ब्स ने लिखा है, “देश की ज्यादातर नकदी को बंद कर दिया गया। स्तब्ध नागरिकों को नोट बदलने के लिए कुछ ही हफ्तों का समय दिया गया।”
फोर्ब्स के अनुसार, “आर्थिक उथलपुथल को इस बात से भी बढ़ावा मिला कि सरकार पर्याप्त मात्रा में नए नोट नहीं छाप पाई…नए नोटों का आकार भी पुराने नोटों से अलग है जिसकी वजह से एटीएमों के लिए बड़ी दिक्कत खड़ी हो गई।” लेख में कहा गया है, “भारत हाई-टेक पावरहाउस है लेकिन देश के लाखों लोग अभी भी भीषण गरीबी में जी रहे हैं। ” लेख में कहा गया है कि नोटबंदी के फैसले के कारण भारतीय शहरों में काम करने वाले कामगार अपने गांवों को लौट गए हैं क्योंकि बहुत से कारोबार बंद हो रहे हैं।
फोर्ब्स ने भारतीय अर्थव्यवस्था के नकद पर अत्यधिक निर्भर होने का मुद्दा उठाते हुए कहा है कि यहां ज्यादातर लोग नियमों और टैक्स के अतिरेक की वजह से अनौपचारिक तरीके अपनाते हैं। फोर्ब्स ने नोटबंदी की तुलना 1970 सत्तर के दशक में लागू की गई नसबंदी से की है। फोर्ब्स ने लिखा है कि 1970 के दशक में लागू की गई नसबंदी के बाद सरकार ने ऐसा  अनैतिक फैसला  नहीं लिया था।

फोर्ब्स ने नोटबंदी के फैसले को जनता की संपत्ति की लूट बताया है। फोर्ब्स ने लिखा है,  “भारत सरकार ने उचित प्रक्रिया के पालन का दिखावा भी नहीं किया- किसी लोकतांत्रिक सरकार का ऐसा कदम स्तब्ध कर देने वाला है।” फोर्ब्स के अनुसार भारत सरकार इस तथ्य को दबा रही है कि नोटबंदी के फैसले से भारत को दसियों अरब डॉलर का नुकसान हो सकता है।
प्रधानमंत्री मोदी ने आठ नवंबर को 500 और 1000 के बैंक नोटों को उसी रात 12 बजे से बंद कि जाने की घोषणा की जिसके बाद से ही इसे लेकर आम लोगों के साथ ही विशेषज्ञों के बीच बहस जारी है। सरकार ने बंद किए जा चुके नोटों को बैंकों और डाकघरों में जमा करने के लिए 30 दिसंबर तक का समय दिया है। वहीं 30 दिसंबर तक बैंकों से हर हफ्ते 24 हजार रुपये और एटीएम से एक दिन में प्रति कार्ड 2500 रुपये निकालने की सीमा तय की गई है।
साभार : 
http://www.jansatta.com/international/forbes-magazine-said-demonetization-by-narendra-modi-grovernment-will-caused-tens-billion-dollar-one-time-windfall-it-is-theft-of-public-property/214171/


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25-12-16

25-12-16






संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश

Monday, 19 December 2016

एक नजर भाजपा के घोटाले की लिस्ट पर ------ अवध नारायण चौहान


Awadhnarayan Chouhan  : बीजेपी हमेशा कांग्रेस के घोटाले दिखाकर खुद को देशभक्त साबित करती है और जनता को बेवकूफ बनाती है। जरा नजर डालते हैं भाजपा के घोटाले की लिस्ट पर।

नोट - ये सिर्फ कुछ ही घोटालो की झलक है।

1- कारगिल ताबूत घोटाले, कारगिल उपकर दुरूपयोग घोटाला।
2- दूरसंचार प्रमोद महाजन - घोटाले (रिलायंस)
3-अरुण शौरी निजी खिलाड़ियों को बेलआउट पैकेज यूटीआई घोटाले
4- साइबर स्पेस इन्फोसिस लिमिटेड घोटाले
5- पेट्रोल पंप और गैस एजेंसी आवंटन घोटाले
6- जूदेव घोटाले सेंटूर होटल में डील
7- दिल्ली भूमि आवंटन घोटाले
8- हुडको घोटाले राजस्थान में Landscams (राज)
9- बेल्लारी खनन और रेड्डी ब्रदर्स घोटाले
10- मध्य प्रदेश में कुशाभाऊ ठाकरे ट्रस्ट घोटाले
11- कर्नाटक में भूमि आवंटन (येदियुरप्पा)
13-,पंजाब रिश्वत मामले
14- उत्तराखंड पनबिजली घोटाले
14- छत्तीसगढ़ खानों में भूमि घोटाले
15- पुणे भूमि घोटाले (भाजपा नेता नितिन गडकरी शामिल)
16- उत्तराखंड में गैस आधारित पावर प्लांट घोटाले
17- फर्जी पायलट घोटाले सुधांशु मित्तल और विजय कुमार मल्होत्रा
18- अरुण शौरी द्वारा वीएसएनएल विनिवेश घोटाला
19-अरविंद पार्क लखनऊ घोटाले
20- आईटी दिल्ली प्लॉट आबंटन घोटाले
21- चिकित्सा प्रोक्योर्मेंट घोटाले - सी पी ठाकुर
22- बाल्को विनिवेश घोटाले जैन हवाला मामले लालकृष्ण आडवाणी
23- 1998 खाद्यान घोटाला 35,000 करोड़
24- 2000 चावल निर्यात घोटाला 2,500 करोड़ का
25-,2002 उड़ीसा खदान घोटाला7,000 करोड का
26- 2003 स्टाम्प घोटाला 20,000 करोड़ का
27- 2002 संजय अग्रवाल गृह निवेश घोटाला 600 करोड़ का
28- 2002 कलकत्ता स्टॉक एक्सचेंज घोटाला 120 करोड़ का
29- 2001 केतन पारिख प्रतिभूति घोटाला 1,000 करोड़ का
30-2001 UTI घोटाला 32 करोड़ का
31-2001 डालमिया शेयर घोटाला 595 करोड़ का
32- 1998 टीक पौधों का घोटाला 8,000 करोड़ का
33- 1998 उदय गोयल कृषि उपज घोटाला 210 करोड़ का
34-1997 बिहार भूमि घोटाला 400 करोड़ का
35- 1997 SNC पावार प्रोजेक्ट घोटाला 374 करोड़
36- 1997 म्यूच्यूअल फण्ड घोटाला 1,200 करोड़ का
37- 1996 उर्वरक आयत घोटाला 1,300 करोड़ का
38- 1996 यूरिया घोटाला 133 करोड का ये 1999 से 2004 तक के बीजेपी सरकार के घोटाले हैं। मोदी सरकार के देखिये
39- अभी का व्यापम ,
40- छत्तीसगढ़ का 36000 करोड का चावल घोटाला ,
41- पंजाब का 12000 करोड का गेहुं घोटाला,
42- राजस्थान का माईंस घोटाला ,
43- मनुस्मृति का बुक्स घोटाला,
44- ललित गेट ,
45- गुजरात का जमीन घोटाला,
46- हेमा मालिनी जमीन घोटाला,
47 - एल ई डी बल्ब घोटाले
48- गुजरात में मोदी ने 1 लाख 25 हजार करोड का हिसाब सी नही दिया सीएजी की रिपोर्ट के अनुसार ।
36000 करोड़ का चावल घोटाला छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री, उनका परिवार, उनके रिश्तेदार, स्टाफ, पीए सब शामिल, व्यापमं घोटाला, महाराष्ट्र में पंकजा मुंडे का 206 करोड़ का घोटाला, 271 करोड़ का कार बाइक घोटाला हैदराबाद में वैंकया नायडू के पुत्र आरोपी, मोदी राज में गुजरात का 27000 करोड़ का टैक्स घोटाला, 1 रुपये मीटर के भाव अदानी को 16000 एकड़ जमीन का घोटाला। स्मार्ट सिटी की बिना किसी जमीनी आधार दस्तावेज वाली योजना के नाम पर 1 लाख करोड़ का आवंटन एक और घोटाला।
पिछले साल फरवरी में पेट्रोल 63 रूपए लीटर और कच्चा तेल 45-50 डॉलर प्रति बैरल था अब जब कच्चा तेल 29 डॉलर प्रति बैरल पर है तो पेट्रोल के दाम 66 रूपए प्रति लीटर। ये है इनकी लूटनीति।
पिछली सरकार ने 2G स्पेक्ट्रम का 20% भाग बेचा था 62000 करोड़ रुपए में, तब संघियों के फेवरेट CAG ने 1,76,000 करोड़ का घाटा बताया था, अब मोदी जी ने बचा हुआ 80% स्पेक्ट्रम 1,10,000 करोड़ में 20 साल की उधारी में बेच दिया जिसकी ब्याज सहित 21 लाख करोड़ कीमत थी, कहाँ गया घाटा?
भाजपा वालो जवाब दो









Monday, 12 December 2016

WELL SAID और WELL DONE में अच्छा कौन है ? ------ Tajinder Singh

Tajinder Singh




Wednesday, 7 December 2016

लेदर -फुटवियर इंडस्ट्री सरकार की नोटबंदी से बर्बाद : मौजूदा लेदर उद्योग का स्थान बड़ी कारपोरेट पूंजी को ------ चंद्र प्रकाश झा / जगदीश्वर चतुर्वेदी

लाखों लोगों को अपनी रोजी-रोटी का संकट : 

Jagadishwar Chaturvedi

Chandra Prakash Jha की वॉल से साभार -
नोट बन्दी तथ्यपत्रक 10
( Via Vivekanand Tripathi )
लेदर -फुटवियर इंडस्ट्री सरकार की नोटबंदी से बर्बाद
नोट बंदी की वजह से पूरी दुनिया में अपनी अलग पहचान रखने वाला आगरा लेदर व फुटवियर इंडस्ट्री पर बहुत ही बुरा असर हुआ है। गौरतलब है कि चीन के बाद भारत लेदर उद्योग व निर्यात में दूसरे स्थान पर है और सालाना कारोबार लगभग 30 हजार करोड़ का है जिसमें अकेले आगरा का शेयर 10 हजार करोड़ है। 2013-14 में कुल निर्यात अरब अमेरिकी डालर था। पूरे इस उद्योग में 25 लाख लोग लगे हैं। अकेले आगरा में प्रतिदिन डेढ़ लाख पेयर शूज का उत्पादन होता है। जिसमें 60 बड़े औद्योगिक प्रतिष्ठान, 3000 छोटे प्रतिष्ठान और 30 हजार काॅटेज/हाउस होल्ड यूनिट काम कर रही हैं और आगरा शहर की लगभग एक तिहाई लेदर-फुटवियर उद्योग पर निर्भर है जिसमें लगभग 5 लाख मजदूरों को प्रत्यक्ष रोजगार मिलता है। अभी आगरा का लेदर-फुटवियर उद्योग निर्यात में 35 फीसदी व घरेलू बाजार में 65 फीसदी योगदान करता है। वर्कर्स फ्रंट की टीम ने 2 दिसम्बर को आगरा में लेदर-फुटवियर के औद्योगिक प्रतिष्ठानों व घरेलू उत्पादन इकाईयों को मौके पर जाकर देखा। नोट बंदी के बाद बड़े प्रतिष्ठानों में 80 फीसदी से ज्यादा ठेका/दिहाड़ी मजदूरों ने काम छोड़ कर चले गये हैं और उत्पादन एक तिहाई से भी कम हो गया है। इसी तरह घरेलू उत्पादन में हालात् और ज्यादा खराब हो गये हैं जहां स्टाक के कच्चे माल से कुछ उत्पादन तो जारी है लेकिन सप्लाई एकदम ठप है जिससे नया कच्चा माल खरीदने के लिए पैसा ही नहीं है और अगले कुछ दिनों में इन स्माल स्केल यूनिटों में भारी असर होगा। अभी भी न केंद्र और न ही राज्य सरकार की तरफ से कोई भी ठोस उपाय नहीं किये जा रहे हैं जिससे भविष्य में इस पूरे उद्योग पर भारी संकट आ सकता है जिससे न सिर्फ आगरा बल्कि देश की अर्थव्यवस्था पर भारी असर होगा। जानकार बताते हैं कि अपने देश में 2000 पेयर शूज का उत्पादन करने की क्षमता से बड़ी यूनिटे नहीं है जबकि चीन में 40 हजार पेयर शूज प्रतिदिन उत्पादन की यूनिट है। यहां पर भी बड़े कारपोरेट घराने इस क्षेत्र में अपनी पूंजी लगाना चाहते हैं जिसके लिए स्माल स्केल व मध्यम दर्जे की औद्योगिक इकाईयों को बर्बाद होना तय है। नोट बंदी से वे परिस्तियां पैदा हो सकती हैं जिससे भविष्य मौजूदा लेदर उद्योग का स्थान बड़ी कारपोरेट पूंजी ले ले। जो भी हो इससे भारी पैमाने पर मजूदरों की छटंनी हो सकती है र परोक्ष रोजगार में भारी कमी होगी। इसी तरह बनारस का बुनकर उद्योग, अलीगढ़ का ताला उद्योग सहित विभिन्न विभिन्न लघु-कुटीर उद्योग जो पहले ही सरकार की नीतियों से बर्बाद हो रहे हैं नोट बंदी से और ज्यादा संकटग्रस्त हो गया है और लाखों लोगों को अपनी रोजी-रोटी का संकट पैदा हो गया है।
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फेसबूक कमेंट्स : 
07-12-2016 

Tuesday, 6 December 2016

कैशलेस की बात करना देश के रुपये में से विदेशियों को हिस्सा देना ही है ------ गिरीश मालवीय

डिजिटल और कैशलेस के शोर का क्या मतलब है? :


उत्तर प्रदेश की राजधानी तक का यह हाल है कि, बैंको के साथ साथ पोस्ट आफ़िसों में भी नई मुद्रा नहीं पहुंचाई गई है। जिन बुज़ुर्गों को पेंशन या अपना MIS का ब्याज लेकर घर खर्च चलाना होता है उनके सामने गंभीर संकट है। भोजन तो उधार लेकर भी खाया जा सकता है लेकिन सफाई कर्मी,अखबार,चौकीदार के भुगतान क्या वे पे टी एम या डेबिट कार्ड से ले सकते हैं? मजदूर जिसका रोजगार नोटबंदी ने छीन लिया है वह क्या करे?नोटबंदी द्वारा काला बाज़ारियों का धन नई मुद्रा से बदल दिया गया है और साधारण जनता को भूखे मरने को छोड़ दिया गया है। 'भूख इंसान को गद्दार बना देती है' , 'बुभुक्षुतम किं न करोति पापम ?' 
इंतज़ार किया जा रहा है कि, कब भूखी जनता बगावत करे और तब राष्ट्र द्रोह का आरोप लगा कर उसे कुचलने के लिए अर्द्ध सैनिक तानाशाही थोप दी जाये। देश को गृह युद्ध में धकेल कर यू एस ए की योजना ( जिसके अनुसार भारत को तीस भागों में विभक्त किया जाना है ) को साकार करने का उपक्रम है नोटबंदी ।
https://www.facebook.com/vijai.mathur/posts/1254666757928631




डिजिटल कर रहे हैं , आधार कार्ड से लिंक कर रहे हैं लेकिन यह आधार कार्ड पूरे देश में मान्य नहीं किया जा रहा है। वर्तमान केंद्र सरकार के मित्र रिलायंस जियो पूरे उत्तर प्रदेश भी नहीं केवल यू पी ईस्ट के लोगों का ही आधार कार्ड मान्य कर रहा है। तब उत्तराखंड,हिमाचल,दिल्ली के लोग यू पी में अपने आधार कार्ड से कैसे ख़रीदारी करेंगे? फिर डिजिटल और कैशलेस के शोर का क्या मतलब है?

https://www.facebook.com/vijai.mathur/posts/1252039961524644


04-12-2016 
(विजय राजबली माथुर )

"कैशलेस का असली लाभ" :

साभार :
https://www.facebook.com/girish.malviya.16/posts/1339142779450700


Girish Malviya

मेरा अनुरोध है कि "कैशलेस का असली लाभ" किसे हो रहा है इस तथ्य को समझने के लिए इस लेख को बेहद ध्यान से पढ़े...................
मेरी साधारण समझ के अनुसार हर तरह के व्यापार धंधों के लिए कैशलेस का मतलब क्रेडिट और डेबिट कार्ड आधारित व्यवस्था ही है.................
यह एक तरह की पेमेंट बैंकिग है.................
क्या आपको इस व्यवस्था के लिए तैयारी दिख रही है ,.....एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत को कैशलेस इकोनोमी बनाने के लिए दो करोड़ पीओएस( swipe mahine) की जरुरत है। अभी लगभग सिर्फ 12 लाख स्वाइप मशीन हैं जो भारत के आकार को देखते हुए काफी कम है। इसका एक बड़ा हिस्सा ग्रामीण व अ‌र्द्ध शहरी क्षेत्रों में लगाया जाएगा वहा भी पहले बिजली और इंटरनेट की उपलब्धता को सुनिश्चित करना होगा तभी यह पध्दति कारगर होगी...................
अब इस पध्दति की असलियत जान लीजिए जिसके लिए यह लेख लिखा गया है ....................
पहला इन् मशीनों को विदेशो से आयात किया जा रहा है जिससे बड़े पैमाने पर देश की पूंजी विदेश में जा रही है...............
दूसरा और सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह है, क़ि देश के लगभग 80 फीसदी डेबिट और क्रेडिट कार्ड ,मास्टर और वीजा कंपनियों के है जो पूर्ण रूप से विदेशी है .......हर ट्रांसिक्शन पर भारतीय बैंके लगभग 2 रुपये 80 पैसे मिनिमम इन कंपनियों को देती है और कैशलेस के इस दौर में हमारे वित्तीय लेन-देन का लगभग आधे से ज्यादा तंत्र इन्हीं कार्डों पर आश्रित हो गया है .........
चाहे आप मोबाइल एप से भुगतान करे चाहे आप अन्य किसी और माध्यम का सहारा ले,......आप अपने हर ट्रांसिक्शन से इन विदेशी कंपनियों को लाभ पुहंचा रहे है और इसीलिए मास्टर कार्ड ने कैशलेस के समर्थन मे देश भर के बड़े अख़बारों मे पूरे पेज के विज्ञापन दिए है.....................
इन ट्रांसिक्शन से इन विदेशी कम्पनियो को कितना अधिक फायदा है इसे इस उदाहरण से समझें कि यदि आपने किसी वस्तु के लिए आनलाइन पेमेंट किया या कोई बिल अदा किया। या स्वाइप मशीन से भुगतान किया .........तकनीकी कारणों से पेमेंट फेल हो गया लेकिन राशि आपके खाते से कट गई तो जितने दिन राशि आपके खाते में वापस नहीं आएगी, उसमें इन विदेशी कम्पनियों का बहुत फायदा होगा एक तो अंतरणों की संख्या एक से बढ़कर दो हो जाएगी। ऊपर से, पेमेंट के लम्बित होने के वक्त का ब्याज भी उनकी जेब में जाएगा। ....................
चूंकि कैशलेस की तलवार अब बैंकों के सर पर लटकी है इसलिए इन विदेशी कंपनियों से सेवाएं लेना भी बैंकों की मजबूरी है और इन्हें ही भारत के कैशलेस होने से असली फायदा हुआ है यह कम्पनी अपनी शर्तों पर ही काम किया करती हैं इन्ही कंपनियों के सेवा शुल्क भी इतना ज्यादा है कि बैंकें एटीएम स्थापना के बाद अन्य शुल्क लगाकर इस खर्च की भरपाई किया करती हैं।...............
ऐसे में आवश्यकता थी कि किसी न किसी तरह विदेशी कार्डों का आधिपत्य समाप्त या बेहद कम कर दिया जाए 2011-12 मे rupay नामक पेमेंट सिस्टम की स्थापना इसी मोनोपॉली को तोड़ने के लिए की गयी थी लेकिन अभी भी यह सिस्टम जनधन खातों तक ही सीमित है बड़े ट्रासिक्शन की इसमें सुविधा नहीं है,..........सभी बड़े देशों ने कैशलेस अपनाने से पहले अपने देश के पेमेंट बैंकिंग को मजबूत किया है और उसके बाद ही कैशलेस को लागू किया है .....................

बिना इस सिस्टम को मजबूत किये इस कैशलेस की बात करना देश के रुपये में से विदेशियों को हिस्सा देना ही है और विडम्बना यह है कि कल तक चाइनीज सामान खरीदने के विरोधी आज इन विदेशी paytm और मास्टर और वीजा की गुलामी करने को सहर्ष तैयार है..................
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6-12-16

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