Saturday 12 August 2017

..... पर मैं फिर भी कहूंगी और आपको सुनना पड़ेगा! ------ अल्का प्रकाश


यह उन सभी लोगों (अधिकांश पुरुषों, कुछ स्त्रियों) के लिए है जो सामाजिक रूप से अपनी स्त्री-पक्षधर पहचान निर्मित करने के लिए लालायित रहते हैं, लेकिन असल ज़िन्दगी में साथी कवयित्रियों, लेखिकाओं, अध्यापिकाओं, कर्मचारियों, छात्राओं या किसी स्त्री के चरित्रहनन करने से लेकर अन्य घटिया हरकतों में शामिल रहते हैं, और जब-तब स्त्रियों पर हमले कर इसे अपनी कुंठा शांत करने का जरिया बना लिए हैं .


Alka Prakash
 12-08-2017 
कुछस्त्रीविरोधीस्वरोंकाअचानकस्त्रीवादीहोजाना   -
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हिंसाएं इन दिनों शग़ल बन चुकी है और हत्याएँ एक ख़ास तरह का मनोरंजन। विमर्श को सजावटी सामान बना दिया गया है और विचार प्रसाधन की तरह प्रयोग में लाये जा रहे हैं। आधुनिकता मुक्ति का स्वांग रच रही है और प्रगतिशीलता अब एक घोषित अपराध है। आलोचनाएँ कौतुक बन चुकी हैं जहां भाषा की लगाम थामकर शब्दों को नचाया जा रहा। ऐसे में कूड़े के ढेर समान कुछ झूठे लोग मिथ्या-आरोपों को कवच बनाकर साफ-सुथरे दिखने और सच्चे होने की कोशिश में लगे हैं। अफवाहों को उन्होंने रोज़गार बना लिया है और स्त्री-निंदा को अपने मनोरोग की दवा। कुंठाओं में बजबजाते ये बीमार और misogynist लोग किसी स्त्री की प्रतिभा, सफलता और खुशियों से सबसे अधिक असुरक्षित महसूस करते हैं और निराश होते हैं। तो इनके पास अंतिम अस्त्र मात्र चरित्रहनन बचता है और पूरी बेहयाई और मनोयोग के साथ वे ऐसे नीच कर्म करते हैं। ये स्त्रीद्वेषी ही हमारे असली दुश्मन हैं जो कि अक्सर बहुत चालाकी से खुद को स्त्री-पक्षधर दिखाते हुए छिपे रहते हैं। क्या कुछ कहूँ, कितना कहूँ! बात वही निकलेगी न कि "मैं सच कहूंगी और फिर भी हार जाऊंगी"..... पर मैं फिर भी कहूंगी और आपको सुनना पड़ेगा!
आप दोगले लोग जो एक स्त्री के अपमान के विरोध में सार्वजनिक रूप से अपनी पक्षधरता दिखा वाहवाही लूटते हैं वहीं दूसरी स्त्रियों के बारे में बनाई गई अफवाहों पर सहज विश्वास कर उसे फैलाने में अपना भरसक योगदान देते हैं। आप जो बिना किसी तथ्य-प्रमाण के किसी सम्मानित स्त्री पर भ्रष्ट का ठप्पा लगाकर अपने मित्रों को उससेे बचकर रहने और संवाद न करने की हिदायत देते फिरते हैं। आप लोग जो प्रशंसा को रणनीति की तरह बरतते हैं और कार्यालयों, कार्यक्रमों या गोष्ठियों में सम्मुख उपस्थित किसी स्त्री की योग्यता बखानते हुए या संवाद करते हुए चाय-कॉफ़ी की चुस्कियों के साथ उसे पूरा गटक जाते हैं और इस बात से अनजान रहते हैं कि वह सब कुछ देख-समझ पा रही। आप जिनके लिए किसी स्त्री को मंचों पर बैठते देखना और बोलते हुए सुनना एक अजूबी और दुखद घटना सदृश लगती है। और आख़िर में आप लोग भी जो संवेदनशील कवि-आलोचक-छात्र-साहित्यप्रेमी के रूप में किसी स्त्री के बारे में की जा रही ऐसी मसालेदार मनगढ़ंत बातों के सहज-सुलभ-मुफ़्त भोज में शामिल होते हुए अपनी नैतिकता को मेज़पोश बना और अपने विवेक की रूमाल से हाथ साफ कर उन बेसिरपैर की बातों का विरोध दर्ज़ करने के बजाय बाक़ायदा चटखारे लेते हुए खीसें निपोरते हैं! 
तब शायद अनजान बने रहकर आप सभी किसी स्त्री के संघर्ष की, हिम्मत की, ईमानदार कोशिशों की, सपनों की और सम्भावनाओं की हत्या कर रहे होते हैं जो जीवन भर लिख-पढ़ कर अपना बहुत कुछ दांव पर लगाकर घर की चौखट से बाहर खुद को पहचान दिलाने और अपनी सार्थकता सिद्ध करने निकल सकी है।

आप जो विश्वविद्यालयों, संस्थानों और अकादमियों में बैठे हुए हैं, आप जो नामी प्रोफ़ेसर्स हैं, आप जो प्रतिष्ठित आलोचक हैं, आप जो साहित्य जगत के महत्वपूर्ण हस्ताक्षर और नई संभावनाएं हैं.. आपसे अनुरोध है कि भाषा में अपने श्रम की बहुमूल्य पूंजी लगाकर शब्दों से धंधा कराना यथाशीघ्र बंद करिए! आप भाषा की खोल में विचारों का खून पीते भेड़िये हैं। आपसे जो उम्मीदें हैं, जिस कार्य के लिए लाखों की भीड़ में से केवल आप चुने गए हैं, मंचों पर और लेखन में जो विचार पॉलिटिकली करेक्ट होने के लिए आप स्थापित करते फिर रहे हैं, उसे जीवन में भी उतारिए! सब कुछ हो जाने और पा लेने से पहले एक मनुष्य बनिए। वरना आपके पाप का घड़ा भरता ही जा रहा है और जब वह फूटेगा तो आपको हमेशा सिर-माथे पर लगाए रहने वाले लोग भी गंदगी की तरह साफ़ कर किनारे फेंक देंगे और साहित्य-समाज में आपको नकली लेखक मानते हुए एक दिन आपका सारा लिखा हुआ विमर्श भाषा में साजिश करार दिया जाएगा! आपकी कायराना हरकतों से कोई स्त्री दुखी हो सकती है, मानसिक रूप से उत्पीड़ित हो सकती है पर हार नहीं मान सकती, हतोत्साहित नहीं हो सकती। वह आपके हर उस हमले का जवाब देगी जो उसकी हत्या के लिए या उसे आत्महत्या के लिए प्रेरित करने के घृणित उद्देश्य के साथ आप उस पर किये जा रहे हैं। आपके उपहास करने से वह लिखना बंद नहीं करेगी, आप और आप जैसों के गीदड़-समूह के भय से वह घर से बाहर निकलना बंद नहीं करेगी, आपकी बनाई अफवाहों से वह कार्यालयों और संस्थाओं में काम करना बंद नहीं कर देगी। वह आपसे लड़ेगी, आपको आईना दिखाती रहेगी, आपकी पहचान उजागर करती रहेगी और यही आपकी हार होगी।

लेखिका :

(ये बातें आज ऐसी ही लिख देने की इच्छा हुई जो बहुत दिनों से उपेक्षित की जा रही थीं कि दुष्टों से उलझ कर अपना चैन न छिने और कार्यक्षमता प्रभावित न हो, पर शायद इसे बहुत पहले साझा कर दिया जाना चाहिए था। इसका संबंध किसी एक व्यक्ति या किसी चर्चित प्रकरण से नहीं है। यह उन सभी लोगों (अधिकांश पुरुषों, कुछ स्त्रियों) के लिए है जो सामाजिक रूप से अपनी स्त्री-पक्षधर पहचान निर्मित करने के लिए लालायित रहते हैं, लेकिन असल ज़िन्दगी में साथी कवयित्रियों, लेखिकाओं, अध्यापिकाओं, कर्मचारियों, छात्राओं या किसी स्त्री के चरित्रहनन करने से लेकर अन्य घटिया हरकतों में शामिल रहते हैं, और जब-तब स्त्रियों पर हमले कर इसे अपनी कुंठा शांत करने का जरिया बना लिए हैं )

साभार  :
https://www.facebook.com/alka.prakash.94/posts/1493688234052482

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 संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश

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