Tuesday, 29 August 2017

' कल्चर एंड मार्केट मैरेज ' कहा है पूर्णिमा जोशी ने ढोंगवाद के प्रचार को ------ विजय राजबली माथुर

स्पष्ट रूप से पढ़ने के लिए इमेज पर डबल क्लिक करें (आप उसके बाद भी एक बार और क्लिक द्वारा ज़ूम करके पढ़ सकते हैं ) 

हिंदू की पत्रकार पूर्णिमा जोशी जी ने बड़ी बेबाकी व निष्पक्षता से बताया कि, आज जो ढोंग - पाखंड बढ़ा है उसको बढ़ाने में मीडिया खास तौर पर इलेक्ट्रानिक मीडिया - TV चेनल्स आदि का बड़ा योगदान है और ऐसा नब्बे के दशक के बाद नव - उदारीकरण के बाद उसकी स्व्भाविक परिनिति के रूप में हुआ है। बाजारीकरण के इस दौर को उनके द्वारा ' Culture & Market मैरेज ' की संज्ञा दी गई। इसमें TRP, मुनाफा का ध्यान है मानवता और मानवीय मूल्यों का नहीं ------









20 दिसंबर 1991 को प्रदर्शित महेश भट्ट द्वारा निर्देशित फिल्म 'सड़क ' वेश्या वृत्ती के गैर कानूनी कारोबार को उजागर करने और ध्वस्त करने की एक साहसिक प्रेरणा देती है। नायक रवि ( संजय दत्त ) का सहयोग न मिलता तो क्या पूजा ( पूजा भट्ट ) जिसे उसके अपने चाचा ने ही इस नर्क में धकेला था क्या बच सकती थी ? अब से 26 वर्ष पूर्व आई इस फिल्म से जनता ने कोई सबक नहीं लिया और ढोंगियों के फेर में युवतियाँ फँसती रही हैं या उनके रिशतेदारों द्वारा ही फंसाई जाती रही हैं। 
राम रहीम मामले में भी साध्वियाँ और उनके परिवार स्वेच्छा से ही फंसे थे। किन्तु साहसी पत्रकार जो शहीद भी हुआ यदि छाप कर सार्वजनिक न करता और जज व CBI अधिकारी साहस न दिखाते तब यह न्याय मिलना संभव न होता ? किन्तु नारीवादी नेत्रियों को पुरुषों को उनका श्रेय देना गवारा न हुआ। 
इन सांगठनिक महिलाओं से कहीं ज़्यादा जागरूक और निष्पक्ष  है निर्भीक पत्रकार यह युवती :



ये महिला संगठन यदि अब भी जनता को जाग्रत करें और इन ढोंगियों से महिलाओं व युवतियों को बचाएं तो देश व समाज का भला हो सकता है।
'सड़क ' की तरह संदेषपरक फिल्में अब नहीं बन रही हैं तब क्या ये महिला संगठन भी जनता को जाग्रत करने में अक्षम हैं ? 
वस्तुतः इन संगठनों के पदाधिकारी साधन - सम्पन्न परिवारों से संबन्धित हैं जिनको गरीब और विप्पन परिवार की महिलाओं व युवतियों से क्या सहानुभूति हो सकती है ? सिवाय अपनी छवी चमकाने के। 

यदि सच में ये संगठन खुद जागरूक होते और जनता को जागरूक करने के इच्छुक होते तो सामाजिक कुरीतियों पर प्रहार करते और घर - घर जाकर लोगों को पुरोहित वाद के चंगुल से बचने को प्रेरित करते। महिलाओं के दमन के लिए रचे गए पर्वों - बर मावस, करवा चौथ आदि आदि न करने के लिए महिलाओं को समझाते , भागवत आदि सत्संगों के नाम पर व्याप्त लूट से बचने को आगाह करते, मृत्यु - भोज आदि गरीबों को कंगाल बनाने वाली कुरीतियों से बचने को कहते, पंडितों - पुजारियों को दान देने का निषेद्ध करते । लेकिन इन संगठनों पर ब्राह्मण वादी वर्चस्व होने के कारण ये ऐसा न करके मात्र प्रतिकात्मक प्रदर्शन करके अपने कर्तव्यों की इति श्री कर लेते हैं।
संकलन-विजय माथुर, फौर्मैटिंग-यशवन्त यश

************************************************************
फेसबुक कमेंट्स : 

No comments:

Post a Comment

कुछ अनर्गल टिप्पणियों के प्राप्त होने के कारण इस ब्लॉग पर मोडरेशन सक्षम है.असुविधा के लिए खेद है.